फिल्म उद्योग : प्रलोभन संसार / जयप्रकाश चौकसे

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फिल्म उद्योग : प्रलोभन संसार
प्रकाशन तिथि :12 मार्च 2016


चरित्र भूमिकाओंमें प्रभावोत्पादक भूमिकाएं करके नाम कमाने वाली विलक्षण कलाकार स्वरा भास्कर का कहना है कि फिल्म उद्योग प्रलोभनों का संसार है। इसमें भटकना मुमकिन है, बहकने का डर है। अन्य उद्योगों से कहीं अधिक प्रलोभन है फिल्म संसार में। किसी और उद्योग में इतनी शोहरत नहीं है। भारत के सबसे धनाढ्य व्यक्ति मुकेश अंबानी से अधिक लोग फिल्म में छोटी भूमिकाएं करने वाले कलाकारों को जानते हैं। दरअसल, सचमुच के धनाढ्य लोग यह चाहते भी नहीं कि उनके इर्गगिर्द भीड़ जमा हो। नेताओं से अधिक लोकप्रिय हैं फिल्म सितारे। दरअसल, इस उद्योग में लोकप्रियता गढ़ी जाती है, क्योंकि बॉक्स ऑफिस पर भीड़ जुटाने के लिए यह आवश्यक है। यह एकमात्र उद्योग है, जिसमें अवाम में जुनून जगाने पर ही कलाकार का कॅरिअर निर्भर होता है। मुकेश अंबानी के अधीन अनेक व्यवसाय हैं और उसका लुघतम प्रयास भी इतना धन बनाना है, जितने सारे फिल्म सितारों की सामूहिक आय भी नहीं होगी। फिल्म संसार का यह ग्लैमर ही उसकी ताकत है, जिसके कारण लोग खिंचे चले आते हैं परंतु यह ग्लैमर ही सितारों की कमजोरी बन जाता है। उन्हें लाइम लाइट का नशा हो जाता है और उनके लिए आम आदमी की तरह जीना कठिन हो जाता है। जब सितारा शिखर से लुढ़कता है तब उसकी दशा दयनीय हो जाती है। सितारे कभी कतार मंे खड़े होकर अपना क्रम आने की प्रतीक्षा नहीं करते और ढलान पर कोई उनकी प्रतीक्षा नहीं करता। यह अवहेलना ही उन्हें बर्दाश्त नहीं होती। लोकप्रियता के नशे के शिकार नेता भी होते हैं।

फिल्म संसार की इसी चमक-दमक में अपने प्रलोभनों पर अंकुश रखना कठिन होता है। अत्यंत प्रतिभाशाली सितारे भी प्रलोभनों के शिकार हुए हैं। विज्ञापन फिल्में करते समय वे कभी प्रोडक्ट की जांच नहीं करते। सर ऑलीवर ने उस चुरुट का विज्ञापन करने से मना कर दिया था, जिसका सेवन वे स्वयं करते थे, क्योंकि वे तम्बाकू को बढ़ावा नहीं देना चाहते थे। प्रसिद्ध व्यक्तियों से इसी तरह के आचरण की उम्मीद की जाती है। एक बार एक चुनाव में राजेश खन्ना ने अपने प्रतिदंद्वी शत्रुघ्न सिन्हा के शराब विज्ञापन के पोस्टर उनके चुनाव क्षेत्र में लगा दिए और चुनाव जीत गए, जबकि उसी शराब का वे स्वयं भी सेवन करते थे।

राज कपूर, दिलीप कुमार और देव आनंद ने कभी विज्ञापन फिल्मों में काम नहीं किया। इतना ही नहीं राज कपूर तो अपने भाई शम्मी कपूर के गुटखा विज्ञापन का बहुत विरोध करते थे और उन्होंने अपने अनुज को फटकार भी लगाई थी। दरअसल, उस कालखंड में लोग अपने नैतिक दायित्व के प्रति बहुत जागरूक थे। आज के शिखर सितारों का दृष्टिकोण भिन्न है। वे अपना मेहनताना लेकर शादियों में शिरकत करते हैं और कोई आश्चर्य नहीं कि भविष्य में जनाजों और शवयात्राओं में भी मेहनताना लेकर जाएं। धनाढ्य व्यक्ति के रिश्तेदार उन्हें मुआवजा दे सकते हंै। लाइम लाइट के टुकड़े करके भी उसे खुदरा बाजार में बेचा जा सकता है। खरीददारों की भीड़ जुट जाएगी। इस तरह दूसरों के ख्याति-प्रकाश में खड़े रहकर चमकने की इच्छा बलवती होती है। कई लोग जीवन भर सितारों के साथ अवैतनिक नौकर की तरह रहते हैं, क्योंकि वे सितारे के साथ फोटोग्राफ के तलबगार होते हैं और सितारों को भी दरबार लगाने का शौक होता है।

टीएस एलियट के 'बैकेट' नामक काव्य नाटक में एक आदर्शवादी व्यक्ति को प्रलोभन देने के लिए किंग हेनरी चार लोग भेजता है। दुनिया की सारी संपत्ति, ख्याति इत्यादि के प्रतीक स्वरूप तीन टेम्पटर निष्ठावान बैकेट को डिगा नहीं पाते। चौथ टेम्पटर कहता है कि सारे प्रलोभनों को ठुकराने वाला बैकट अपनी शहादत के प्रलोभन नहीं ठुकरा सकता। उसकी दलील है कि आप शक्तिशाली राजा के खिलाफ अपने जीवन मूल्यों की खातिर खड़े हैं परंतु शहादत के प्रलोभन को आप नकार नहीं सकते। बैकेट की हत्या होते ही वह अमर शहीद हो जाएगा और इस अमरत्व के प्रलोभन को नकारा नहीं जा सकता। वह जानता है कि राजा के द्वारा मारे जाने के बाद वह कितना लोकप्रिय हो जाएगा कि हर वर्ष उसकी शहादत का जश्न मनाया जाएगा। अत: लोकप्रियता के प्रलोभन को नकारा नहीं जा सकता। शक्तिके खिलाफ खड़े लोग भी निष्काम कर्मयोग नहीं कर रहे हैं। हृदय के किसी कोने में यह इच्छा हमेशा मौजूद रहती है। स्वरा भास्कर से निवेदन है कि फिल्म उद्योग ही नहीं पूरा संसार प्रलोभन से मुक्त नहीं।