फिल्म और साहित्य में घोड़े का महत्व / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :22 अप्रैल 2016
सरकारी अश्व शक्तिमान की मृत्यु हो गई है। हमारे नेताओं की सारी ऊर्जा एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने में नष्ट हो रही है। कांग्रेस का आरोप है कि भारतीय जनता पार्टी की जनसभा में शक्तिमान के घायल होने के कारण वे हत्या के दोषी हैं और भाजपा का कहना है कि कांग्रेस के कारण शक्तिमान का इलाज ठीक से नहीं हो पाया। इन स्वयंभू नेताओं के पास देश के बारे में बयान देने को कुछ नहीं है परंतु इन्हें खामोशी का मूल्य भी नहीं पता। खामोशी की गरिमा से ये लोग अनभिज्ञ हैं। देश का अवाम भी दोषी है कि वह अपने मत का प्रयोग सावधानी से नहीं करता। इन बातों का यह अर्थ नहीं है कि शक्तिमान के निधन का दु:ख नहीं है परंतु नेताओं की विचारहीनता विचलित कर देती है। देश के सामने समस्याएं मुंह बाये खड़ी हैं और ये आत्मलीन, आत्ममुग्ध लोग अनावश्यक विवाद खड़े करके अवाम को भ्रमित कर रहे हैं और अवाम भी अपने दांतों के विष से अनभिज्ञ सपेरे की बीन पर डोल रहा है। 'बीन पर सांप का डोलना' जाने कैसे बना है, उस गरीब के कान ही नहीं होते। वह केवल सपेरे को डोलते हुए सिर की नकल कर रहा है।
किंवदंतियों व इतिहास में घोड़े का बहुत महत्व है। राणा प्रताप के युद्ध में घायल होने पर उनका चेतक ही उन्हें सुरक्षित स्थान पर ले गया था। कुत्ते की वफादारी का प्रतीक माने जाने के कारण अश्व से कुछ कीर्ति का हरण कर लिया गया है। यह भी गौरतलब है कि शक्ति के मानक को 'हॉर्स पावर' कहा जाता है। साधारण समझदारी को 'हॉर्स सेन्स' कहते हैं और बेवजह धूम मचाने को 'हॉर्स प्ले' कहते हैं। प्राय: शादी की बारात में दूल्हा घोड़ी पर ही सवार होकर जाता है। इस कार्य में आजकल कारों का इस्तेमाल भी होता है परंतु ऐसी बारात में भी रिवाज के अनुसार कुछ दूरी दूल्हे को घोड़ी पर बैठकर जाना होता है। परंपरागत रूप से योद्धा घोड़ों पर सवार होते थे और शादी भी उसका अनुसरण इस हद तक करती है कि दूल्हा कटार से तोरण में बंधे नारियल को फोड़ता है। विवाह की कुछ रीतियों में युद्ध की मान्यताओं का अनुसरण किया जाता है और अनेक शादियां अंततोगत्वा छापामार युद्ध में बदल जाती हैं। पति-पत्नी एक-दूसरे पर आक्रमण करके अपनी-अपनी कमजोरियों के टीलों के पीछे छिप जाते हैं। ग्रीक साहित्य में काठ के घोड़ों की सहायता से जीते युद्ध की गाथा ट्रोजन हॉर्स कहलाती है।
हमारे पौराणिक आख्यानों में माधवी और गालव की कथा है कि किस तरह एक पिता को अपनी गुरुदक्षिणा में मांगे गए 800 श्वेत घोड़ों के लिए उसे एक-एक वर्ष के लिए अपने दानदाताओं के पास छोड़ना पड़ा और अंत में जब पिता अपनी पुत्री माधवी के साथ अपने गुरु के वापस मांगे गए अश्व में किंचित कम संख्या लेकर पहुंचे और वर्णन किया कि कैसे राजाओं के यहां अश्व की खातिर अपनी बेटो को सीमित समय के लिए देना पड़ा तो 'परमज्ञानी' गुरु ने कहा कि तुम पहले ही अपनी इस अति सुंदर पुत्री उन्हें दिखा देते तो वे अश्व के बदले सुंदर माधवी को ही मांग लेते। यह विवरण मैंने पौराणिक संदर्भ के आधुनिक व्याख्याता उमाकांत मालवीय की किताब 'टुकड़ा टुकड़ा औरत' में पढ़ी है, जिसे अनुभूति प्रकाशन इलाहाबाद ने जारी किया था। किताब प्रकाशन का यह विवरण केवल इसलिए कि आजकल बेबात पर वैचारिक उग्रवादी आक्रमण करते हैं। मसलन, भारतीय रिजर्व बैंक के उच्चतम पदाधिकारी रघुराम राजन के भारत को अत्यंत गरीब देश कहने पर एक सांसद ने कटु आलोचना की तो उन्हें अगले दिन बयान देना पड़ा कि उनके कथन से कोई आहत हुआ है तो वे क्षमा मांगते हैं। धीरे-धीरे हम क्षमता मांगते रहने की परंपरा को लोकप्रिय बना रहे हैं, जबकि 'सत्यमेव जयते' हमारी आस्था मानी जाती है।
फिल्मों में घोड़े 'बहादुर' की लोकप्रियता आसमान छू रही थी, जब नाडिया उस पर सवार होकर दुष्टों को दंड देने निकलती थीं। सिनेमा तकनीक के उस शैशव काल में फिल्मकार होमी वाडिया की नायिका नाडिया अपने घोड़े को चलती हुई ट्रेन की छत पर दौड़ाती थीं और दर्शकों का दिल जोर से धक-धक करने लगता था। इन स्टंट फिल्मों में नाडिया का साथी जानकाउस होता था परंतु उनमें कोई प्रेम प्रकरण नहीं था जैसे मॉडेस्टी ब्लैज़ और विली गारविन के बीच प्रेम-कथा नहीं थी। इतिहास आधारित फिल्मों में घोड़ो का प्रयोग हुआ है। साथ ही दस्यु कथाओं के साथ कुछ सामाजिक फिल्मों में घोड़ों का प्रयोग हुआ है। जीनियस गिरीश कर्नाड के नाटक 'हयवदन' में स्वयंवर में कन्या घोड़े के गले में वरमाला डालती है, क्योंकि कोई भी प्रतियोगी उसे पसंद नहीं आया। चौथे दशक में लोकप्रिय सितारे श्याम की मृत्यु शूटिंग के दौरान घुड़सवारी के दृश्य में हुई थी। फिरोज खान की 'गॉडफादर' से प्रेरित 'धर्मात्मा' में नायक बुजकशी दृश्य में दिखाया गया है। यह खतरनाक खेल घुड़सवार ही खेलते थे। एक अमेरिकन फिल्म में इस खेल का हैरतअंगेज फिल्मीकरण दिखाया गया है। इसी फिल्म के एक दृश्य में घायल नायक की चोट पर एक धार्मिक पुस्तक का पृष्ठ बांधा जाता है, मानो वह कारगर इलाज है। जहालत पर किसी देश का एकाधिकार नहीं है। वह जहां तहां बिखरी हुई है।