फिल्म का भूगोल, यथार्थ का भूगोल ? / जयप्रकाश चौकसे

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फिल्म का भूगोल, यथार्थ का भूगोल ?
प्रकाशन तिथि : 06 जून 2013


कश्मीर के मुख्यमंत्री को शिकायत है कि अयान मुखर्जी की 'ये जवानी है दीवानी' की शूटिंग कश्मीर में की और सरकारी सहायता भी उन्हें उपलब्ध कराई, परंतु फिल्म में उसे मनाली कहा गया है। उन्हें ज्ञात नहीं कि प्रारंभ में कश्मीर की सरकार को धन्यवाद दिया गया है। फिल्म में कथा का भूगोल और यथार्थ भूगोल समान नहीं होते। कश्मीर में शूटिंग करके भी उसे मनाली इसलिए कहा गया है क्योंकि होली का गीत आवश्यक था, जिसके माध्यम से नायिका का उन्मुक्त होना दिखाया गया है और मनाली में होली मनाई जाती है, परंतु कश्मीर में यह त्योहार लोकप्रिय नहीं है और जलवायु भी घंटों पानी में तरबतर होने की आज्ञा नहीं देती। फिल्म यकीन दिलाने की कला है और दर्शक को इस जानकारी से कोई फर्क नहीं पड़ता कि कहा क्या गया है और शूटिंग कहीं और की गई है। कथा से दर्शक का भावनात्मक तादात्म्य उसके भूगोल के कारण नहीं बनता।

फिल्म के प्रारंभिक दौर में एक अमेरिकन फिल्म में नायक की नाव उस ओर बढ़ रही है, जहां नियाग्रा जलप्रपात है। नाव का शॉट कहीं और लिया गया है तथा संपादन द्वारा ऐसा प्रभाव बनाया गया मानो नाव उस ओर ही जा रही है। राज कपूर की एक फिल्म में केवल एक दृश्य गंगोत्री में शूट किया गया और गंगा के तट के सारे दृश्य पहलगांव में फिल्माए गए थे। यहां तक कि बनारस के घाट पर नायिका का गीत स्टूडियो में सेट पर लिया गया है। डेविड लीन को 'डॉक्टर जिवागो' की शूटिंग रूस में करने की आज्ञा नहीं मिली तो उसने जर्मनी में की, परंतु किसी दर्शक को भान भी नहीं हुआ। नायिका एलिजाबेथ टेलर के स्वास्थ्य के कारण 'क्लियोपेट्रा' नामक फिल्म का कोई दृश्य इजिप्ट में नहीं फिल्माया गया। सारा काम लंदन में किया गया। अभिषेक शर्मा की 'तेरे बिन लादेन' में पाकिस्तान वाला अंश हैदराबाद में सेट पर शूट हुआ है। प्रकाश झा ने बिहार की पृष्ठभूमि वाली सारी फिल्मों की शूटिंग पुणे के निकट वाही ग्राम में की है। 'तलाश' में बॉम्बे के एक मोहल्ले के सारे दृश्य पुडुचेरी में फिल्माए गए थे। सारांश यह है कि फिल्म कथा में प्रस्तुत भूगोल यथार्थ भूगोल से एकदम भिन्न होता है। फिल्म में प्रस्तुत पानीपत का युद्ध पानीपत में नहीं फिल्माया जाता है।

बहरहाल, कश्मीर के मुख्यमंत्री का विचार है, फिल्म लोकेशन को कश्मीर कहने पर पर्यटक ज्यादा संख्या में आते। उन्हें ज्ञात होना चाहिए कि स्थानीय लोगों के सहयोग से पनपे आतंकवाद के कारण वर्षों तक पर्यटक कश्मीर नहीं आए थे और विगत दो वर्षों से पुन: पर्यटक आने लगे हैं। दरअसल, कानून की चुस्त व्यवस्था ही पर्यटन उद्योग के लिए आवश्यक है, अत: उन्हें उस पर ध्यान देना चाहिए। फिल्म में प्रस्तुत भूगोल से ज्यादा बड़ी समस्याओं से कश्मीर जूझता रहा है। हमारा ध्यान हमेशा लाक्षणिक इलाज की ओर रहता है। जाने कितनी अनावश्यक बातों और बेबुनियाद विवाद में अकल्पनीय राष्ट्रीय ऊर्जा नष्ट होती है। अब बताइए एक युवा मुख्यमंत्री के पास इस तरह की फिल्मी बात सोचने का वक्त होना चाहिए? कोई कश्मीर इसलिए नहीं जाता क्योंकि वहां सितारों ने ठुमके लगाए हैं, पर्यटक कश्मीर जाता है, उसके सौंदर्य के लिए, प्रदूषण रहित जलवायु के लिए, धरती पर रचे स्वर्ग के लिए।

हाल ही में स्वास्तिक फिल्म्स ने अपने सीरियल 'महाभारत' के लिए पंद्रह दिन शूटिंग की है। उन्होंने हस्तिनापुर के सम्राट शांतनु और सत्यवती के दृश्य फिल्माए हैं, देवव्रत के भीष्म बनने का प्रसंग फिल्माया। अब निर्माता सिद्धार्थ तिवारी दर्शक को यह तो नहीं कहेंगे कि वैदिककाल का हस्तिनापुर संभवत: वर्तमान दिल्ली के निकट संभव है, परंतु हस्तिनापुर के निकट गंगा बहती है, ऐसा वेदव्यास लिखते हैं, तब हस्तिनापुर संभवत: मेरठ से कुछ दूर बिजनौर के आसपास कहीं होगा। वर्तमान का गढ़मुक्तेश्वर हस्तिनापुर का हिस्सा रहा होगा। यह तो तय है कि वह कश्मीर के निकट नहीं था। पुराने आख्यानों में वर्णित स्थानों को हम कभी वर्तमान के किसी स्थान से विश्वास के साथ नहीं जोड़ सकते। थाईलैंड में विशाल राम मंदिर है, जिसे वहां के लोग अजोध्या मानते हैं और श्रीलंका के पहले तक राम के वनवास के सारे चिन्ह वहां मिलते हैं। राम द्वारा नष्ट किया गया स्थान वर्तमान का श्रीलंका कतई नहीं है।

हम उत्तरप्रदेश के अयोध्या में रामजन्म को लेकर गुजश्ता सौ वर्षों से घमासान मचाए हैं और यह भी प्रामाणिक नहीं है कि बाबर ने कोई मस्जिद वहां बनाई थी। मूलग्रंथ कहीं उपलब्ध नहीं हैं। वेदव्यास ने ८००० श्लोक लिखे थे और आज हमारे पास ३०००० श्लोक कीकिताबें मौजूद हैं। कल्पना के विवाद कितने भयावह हैं। हमारे अवचेतन में कल्पना प्रामाणिकता के साथ मौजूद है और यथार्थ कल्पना के हाशिये में चला गया है। संभवत: हमारा अवचेतन इस तरह का बना, क्योंकि हम सृष्टि को विष्णु का स्वप्न मानते हैं, जिसके हम पात्र हैं। हम कभी मरते नहीं, क्योंकि हम कभी जन्मे ही नहीं - हम तो स्वयं कल्पना हैं, सृष्टि भले ही यथार्थ हो गई हो।