फिल्म का समग्र प्रभाव महत्वपूर्ण है / जयप्रकाश चौकसे

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फिल्म का समग्र प्रभाव महत्वपूर्ण है
प्रकाशन तिथि : 20 अक्टूबर 2018


दक्षिण भारत में एक फिल्म की पूरी शूटिंग मात्र 90 मिनट में पूरी कर ली गई गोयाकि 90 मिनट दिखाई जाने वाली फिल्म 90 मिनट में ही शूट हो गई। दूसरी और 'मुगल-ए-आजम’ को बनने में दस वर्ष लगे, 'पाकीजा’ को 14 वर्ष लगे। 'मेरा नाम जोकर’ छह वर्षों में बनी। राजकुमार, राजेंद्र कुमार और मीना कुमारी अभिनीत 'दिल एक मंदिर’ केवल 30 दिन की शूटिंग में पूरी हुई। हॉलीवुड में बनी फिल्म 'बेनहर’ में रथों की दौड़ का दृश्य शूट करने में उतना ही समय लगा, जितना शेष पूरी फिल्म में लगा था। विजय आनंद ने 'ज्वेल थीफ' का लंबा नृत्य गीत 'होंठों पर ऐसी बात दबा के चली आई’ मात्र एक ही शॉट में शूट किया। केतन मेहता ने एक पूरी फिल्म का संयोजन ही एक शॉट में किया था।

राज कपूर की 'जागते रहो’ विश्व सिनेमा की एकमात्र फिल्म है, जिसमें घटनाक्रम ढाई घंटे का है। पहले शॉर्ट में दिखाया गया है कि आधी रात हो चुकी है- घड़ी के शॉट में रात 12:40 दिखाया गया है और घटनाक्रम का अंत अलसभोर में होता है जब मंदिर में गीत गाया जा रहा है। 'जागो मोहन प्यारे....किरण परी गगरी छलकाए, ज्योत का प्यासा प्यास बुझाए, मत रहना अंखियों के सहारे, जागो मोहन प्यारे।’ कौन-सी फिल्म कितने समय में शूट की गई है यह कोई महत्वपूर्ण मुद्दा नहीं है। निर्णायक बात यह है कि फिल्म का समग्र प्रभाव क्या है? एक नृत्य गीत फिल्माने के लिए कई सेट्स लगाए जाते हैं, तीन मिनट दिखाए गए नृत्य में नायिका आधा दर्जन अलग-अलग पोशाकों में प्रस्तुत होती है। फिल्म यकीन दिलाने की कला है। दिन-प्रतिदिन के जीवन में आम आदमी अपना पर्स, घड़ी या रूमाल भूल जाता है और दरवाजे तक जाते ही याद आने पर वह लौट आता है। औसत जीवन 60 वर्ष का है, जिसमें 15 वर्ष के बराबर समय हम भूले हुए पर्स, गाड़ी और रूमाल लेने के लिए वापस आने में गंवा देते हैं। कुछ लोग तीन मिनट में स्नान कर लेते हैं तो कुछ लोग शावर के नीचे आधा घंटा खड़े रहते हैं। अंग्रेजी साहित्य में कवि पोप की 'द रेप ऑफ द लॉक’ में बेलिंडा के स्नान का जिक्र है कि कितने साबुन, कितने क्रीम इत्यादि लगाए जाते हैं।

राज कपूर अपनी नायिका को उबटन से मालिश और दूध में स्नान के बाद सजी-संवरी प्रस्तुत करते थे। यह उन्होंने केवल दो नायिकाओं के लिए किया। अपने पर लगे नायिका से प्रेम के आरोप के सुविधाजनक जवाब में उन्होंने कहा था कि वे नायिका को उसके सुंदरतम रूप में प्रस्तुत करते हैं और रश प्रिंट देखकर नायिका स्वयं की सुंदर छवि से प्रेम करते हुए उस छवि के गढ़ने वाले से प्रेम करने लगती है।

विधु विनोद चोपड़ा ने अपनी फिल्म '1942 ए लव स्टोरी’ के क्लाइमैक्स के लिए भव्य सेट लगाया था और अपने आदर्श विजय आनंद से सलाह मशविरा किया था। उन्हीं की फिल्म 'करीब’ के एक गीत के छोटे से हिस्से को शूट करने के लिए झील में सैकड़ों जलते हुए दीयों को तैरते हुए दिखाना था। दीये को लकड़ी के प्लेटफॉर्म पर रखने के तामझाम में लंबा समय लगा। 'जोकर’ में रुचि सर्कस के भारत आगमन और स्वागत के दृश्य के लिए राज कपूर ने विजय आनंद से एक यूनिट के निर्देशन का आग्रह किया।

राज कपूर के प्रिय सहायक रहे राहुल रवैल ने अपनी फिल्म 'अर्जुन’ का एक दृश्य मुंबई के भीड़ भरे फ्लोरा फाउंटेन क्षेत्र में शूटिंग के लिए पांच अलग-अलग जगह कैमरे रखे थे और अवाम बेखबर था कि शूटिंग हो रही है। इसे संपादित करके सगर्व उन्होंने अपने गुरु को दिखाया कि पांच कैमरे से शूट किया गया है। राज कपूर ने दृश्य के यथार्थवाद की प्रशंसा करते हुए कहा कि चार कैमरों के शॉट समझे जा सकते हैं परंतु पांचवें का क्या हुआ? राहुल रवैल ने लजाते हुए स्वीकार किया कि दृश्य में चार कैमरों का ही इस्तेमाल हुआ, पांचवां कैमरा संचालित नहीं हो पाया। गुरु के साथ तकनीकी ब्लफबाजी नहीं की जा सकती। फिल्म निर्माण में समय परिश्रम और प्रतिभा लगती है। डिजिटल कैमरे के आने का बाद काम कुछ कम और सरल हुआ है परंतु क्रिस्टोफर नोलन जैसे निष्णात निर्देशक आज भी सेल्युलाइड पर फिल्म शूट करते हैं, क्योंकि उनका विश्वास है कि डिजिटल लंबे समय तक कायम नहीं रहता। हुक्मरान है कि डिजिटल डिजिटल का राग अलापता है, जबकि उसके अनियोजित काम अधिक समय तक कायम नहीं रहने वाले हैं। आम आदमी को लंबे समय तक मुगालते में नहीं रखा जा सकता। ज़िंदगी बीस ओवर या पचास ओवर का मैच नहीं, पांच दिवसीय टेस्ट है।