फिल्म नक्कारखाने में तूती की आवाज़ / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 13 अगस्त 2018
आनंद एल. राय सफलतम फिल्मकार हैं। उनकी फिल्म 'हैप्पी फिर भाग जाएगी' 24 अगस्त को प्रदर्शित होगी। शाहरुख खान अभिनीत 'जीरो' भी पूरी की जा चुकी है। शतरंज के खेल में प्रतिद्वंद्वी अपनी चाल का क्या जवाब दे सकता हैं, इसका अनुमान लगाकर ही चाल चली जाती है। इस खेल में वर्तमान, भूतकाल एवं भविष्य काल के पूरे ज्ञान के साथ ही चाल चली जाती है। आनंद एल. राय की शतरंज जैसी विचार प्रक्रिया शतरंज के नियमों से संचालित है, भले ही वे यथार्थ में शतरंज न खेलते हों।
आनंद एल. राय ने इंजीनियर बनने की शिक्षा पाई है और विज्ञान के छात्र ने फिल्म कला जगत में सिंहासन प्राप्त कर लिया है। यह उनका ही कमाल है कि कर्म द्वारा प्राप्त सिंहासन पर वे स्वयं कभी बैठते नहीं। उनके दफ्तर में हर सदस्य को किसी भी कुर्सी पर बैठने के लिए किसी से भी इजाजत नहीं लेनी पड़ती। उनका संसद नुमा दफ्तर दिल्ली स्थित संसद से अधिक सक्रिय है और परिणाम दे रहा है। आनंद के राज्य में आंकड़ों की घोषणाएं नहीं होती। वे अपने हुनर और जौहर का प्रदर्शन नहीं करते। आनंद एल. राय ने अपनी विज्ञान की शिक्षा से कला के आदर्श को यथार्थ में बदल दिया है। रवि राय कुछ समय के लिए महेश भट्ट के सहायक रहे। उन्होंने टेलीविजन क्षेत्र में बहुत काम किया। उनके छोटे भाई आनंद एल. राय ने भी टेलीविजन से किफायत और समय-सीमा के पाठ पढ़कर फिल्म निर्माण क्षेत्र में कदम रखा।
2007 में आनंद एल. राय ने जिमी शेरगिल को लेकर 'स्ट्रेंजर' नामक फिल्म बनाई और अपनी असफलता का पोस्टमार्टम करके 'थोड़ा लाइफ और थोड़ा मैजिक' नामक फिल्म बनाई जो असफल रही। उन्होंने समझ लिया कि पहली फिल्म के पोस्टमार्टम में त्रुटि हुई है। सर्जन की तरह पूरी तरह अपने को निष्पक्ष रखकर उन्होंने चीर-फाड़ नहीं की। 2011 में कंगना रनोट के साथ 'तुन वेड्स मनु' बनाई, जिसकी सफलता से वे जरा भी इतराए नहीं। बस फिल्म के व्यवसाय तिलस्म के गुहा द्वार पर खुलजा सिम सिम बोलने का सबक सीखा। उनकी 'रांझणा' में रजनीकांत के दामाद धुनष प्रस्तुत किए गए। उन्होंने 'निल बटे सन्नाटा' नामक महान फिल्म की रचना की। 'शुभ मंगल सावधान' में साहसी विषय पर पारिवारिक मनोरंजन गढ़ा। संभवत: तथाकथित शक्तिवर्धक दवाओं के भ्रामक विज्ञापनों ने उन्हें इस फिल्म को बनाने की प्रेरणा दी। एक दौर में अनुराग कश्यप कुछ मसीही अंदाज में प्रस्तुत हुए और हिंदुस्तानी सिनेमा को फॉर्मूले से मुक्त कराने का ढोल पीटते नज़र आए। 'बॉम्बे वेलवेट' की तरह कुछ और फुस्सी बमों के बाद वे लगभग 'नल्ले' हो गए। उन्हें निर्देशन का अवसर देकर आनंद एल. राय ने सफल फिल्म 'मुक्केबाज' बनाई। साबित हुआ कि अनुराग कश्यप माइनस मसीही हेकड़ी कोई सन्नाटा नहीं है। उन्होंने 'तनु वेड्स मनु' का भाग दो भी बनाया। उनके गीतकार राज शेखर ने गीत लिखा था 'रंगरेज तूने अफीम क्या हैं खाली/जो मुझसे तू ये पूछे के कौन सा रंग/रंगों का कारोबार हैं तेरा/ये तू तो जाने कौन सा रंग/... ये बात बता रंगरेज मेरे/ये कौनसे पानी में तूने कौनसा रंग घोला हैं'। कुछ इसी पंक्ति से आनंद एल. राय ने स्वयं को सफलता की अफीम से बचाए रखा है।
उनकी फिल्म 'जीरो' पचास पार शाहरुख खान को नए अवसर दिला सकती है। सुपरस्टार शाहरुख को एक बौने का किरदार देकर उन्होंने उन्हें सितारा केंचुल से बाहर निकालने का प्रयास किया है। 'तनु वेड्स मनु' और 'क्वीन' की सफलता के नशे में चूर कंगना रनोट को जब निर्मम यथार्थ से टकराना पड़ा तब वे आनंद के द्वार पहुंची परंतु सफलता के दौर में उन्होंने अच्छा व्यवहार नहीं किया था। जीवन के हर क्षेत्र में अहंकार से बचना आवश्यक है। इस शतरंज पर प्यादा बने रहना ही लाभप्रद होता है। आनंद एल. राय के दफ्तर में सभी को अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। परंतु काम-काज हिंदुस्तानी में ही किया जाता है। पर कथाएं पांच सितारा होटल के वातानुकूलित कमरों में नहीं लिखी जाती और न ही करण जौहर की तरह लंदन जाकर लिखी जाती हैं।
इस अर्थ में वे 'स्वदेशी' फिल्मकार होते हुए भी 'मेक इन इंडिया' की नारेबाजी से मुक्त हैं। आनंद एल. राय अधिकतम की पसंद के प्रति संवेदनशील रहते हुए भी हमेशा नए विचार का स्वागत करते हैं। सभी पैरों पर चलते हैं और कोई प्रयोग की सनक में हाथों पर चलने लगेगा तो दुर्घटना हो सकती है। अपनी सहज साधारण बुद्धि जिसे कॉमन सेंस कहते हैं। आजकल अनकॉमन या कहें विरल होती जा रही है। आनंद एल. राय मनोरंजन उद्योग के पागलखाने में स्वयं की सहज बुद्धि को कायम रखे हुए हैं। यह कोई कम बात नहीं है।