फिल्म नामावली के किस्से / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :05 जनवरी 2019
फिल्म में नामावली प्रारंभ या अंत में दी जाती है। प्राय: प्रारंभ में निर्माता, निर्देशक और सितारों के नाम दिए जाते हैं और अन्य सभी के नाम फिल्म के अंत में दिए जाते हैं, जिसे रोलर टाइटल्स कहा जाता है, क्योंकि सिनेमा के परदे पर वे पतंग के उचके (चरखी) में डोर को लपेटने की तरह प्रस्तुत किए जाते हैं। हर कलाकार का व्यक्तिगत सेवक दल होता है। नामावली में कलाकारों के सेवकों के नाम भी दिए जाते हैं। इसके साथ ही शूटिंग के समय निर्माता द्वारा नियुक्त स्पॉट बॉय के नाम भी दिए जाते हैं। स्पॉट बॉय पूरी यूनिट को चाय, कॉफी व पानी पिलाने का काम करता है। पार्श्व गायक के नाम के साथ ही कुछ निर्माता कोरस का नाम भी देते हैं।
एक फिल्म यूनिट में लगभग 150 लोग होते हैं और सभी के नाम दिए जाते हैं। कामगारों के यूनियन होते हैं। निर्माता यूनियन को खबर देता है कि उसे कितने एक्स्ट्रा की आवश्यकता है। यूनियन का अध्यक्ष उन्हें एक्स्ट्रा के नाम भेजता है। एक्स्ट्रा के प्रतिदिन के मेहनताने का कुछ प्रतिशत यूनियन को मिलता है। सारे यूनियन अध्यक्ष अपने क्षेत्र के अपराध सरगना की तरह शक्तिशाली होते हैं। नृत्य निर्देशक अपनी पसंद के लोगों को समूह नृत्य में काम देता है और इस अधिकार का दुरुपयोग भी किया जाता है। ये लोग तो 'मी टू' आंदोलन का हिस्सा भी नहीं बनते। बिना विरोध किए शोषित होते हैं।
एक नियम यह भी है कि अगर निर्माता नृत्य संगठन के सदस्यों को न लेकर किसी अन्य जगह से नर्तक बुलाता है तो भी उसे संगठन को धन देना पड़ता है। इसे इस तरह से समझें कि कॉलेज में समूह नृत्य का दृश्य था तो निर्माता ने छात्रों को ही अवसर दिया परंतु उसे उतना ही धन संगठन को देना पड़ा। देशी एक्स्ट्रा से अधिक मेहनताना विदेशी एक्स्ट्रा को दिया जाता है। हमारे गुलामी के दिन इस स्वरूप में अभी भी जारी है। नृत्य संगठन की तरह एक्शन संगठन भी है। नायक से पिटने वाले लोग इसी संगठन से लिए जाते हैं। इस क्षेत्र में भी 'गोरे' को 'काले' सदस्य से अधिक धन दिया जाता है, क्योंकि रंगभेद जारी है। कभी-कभी कोई एक्स्ट्रा सितारा बन जाने में सफल होती है। मसलन, मुमताज एक्स्ट्रा से प्रारंभ करके नायिका बनीं और उन्होंने राजेश खन्ना के साथ कुछ फिल्मों में नायिका की भूमिका निभाई। एक दौर में शम्मी कपूर को मुमताज से प्यार हो गया था और शंकर जयकिशन ने इसी तथ्य से प्रेरित होकर गीत बनाया था, 'आजकल तेरे मेरे प्यार के चर्चे हैं हर जबान पर, सबको मालूम है और सबको खबर हो गई है।' मुमताज ने लंबी पारी खेलने के बाद एक अप्रवासी भारतीय से विवाह किया। विदेश में लंबे समय तक सुखी वैवाहिक जीवन जिया। उनकी सुपुत्री का विवाह फिरोज खान के बेटे से हुआ।
प्राय: एक्स्ट्रा के संवाद नहीं होते परंतु संवाद होने पर उन्हें अतिरिक्त मेहनताना दिया जाता है। इसी तरह का दृश्य गुरुदत्त की ' कागज के फूल' में था। किसी दौर के सफल फिल्मकार सिन्हा अपने गुरबत के दौर में एक्स्ट्रा बन जाते हैं। फिल्म की नायिका के साथ इस एक्स्ट्रा का दृश्य और संवाद भी है। वे संवाद नहीं बोलते ताकि पहचाने नहीं जाए। फिल्म की नायिका को उन्होंने ही पहला अवसर दिया था और आज वह शिखर पर है। 'कागज के फूल' और राज कपूर की 'मेरा नाम जोकर' काफी हद तक आत्म-कथात्मक फिल्में थीं और दोनों ही बॉक्स ऑफिस पर असफल रही। दोनों की असफलता का एक कारण यह था कि हकीकत और अफसाने को मिलाने में फिल्मों ने संतुलन खो दिया था। दोनों ही ठोस फिल्मकारों ने इन विफलताओं के बाद सफल फिल्मों का निर्माण किया। गुरुदत्त ने 'चौदहवीं का चांद' और राज कपूर ने 'बॉबी' बनाई।
कुछ एक्स्ट्रा फिल्म प्रयोगशाला से वे दृश्य प्राप्त करती थीं, जिसमें उन्हें संवाद बोलने का अवसर मिला था। देश के कोने कोने से लोग मुंबई आते हैं। भारत के अधिकांश कॉर्पोरेट के मुख्यालय मुंबई में स्थित हैं। कुछ लोग व्यवसाय करते हुए कुछ समय अय्याशी के लिए निकालते हैं। एक्स्ट्रा अपने दलाल के मार्फत 'ग्राहक' को फिल्म का अंश दिखाती हैं और यह 'ग्राहक' अपने छोटे शहर में जाकर अपने मित्रों में डींग हांकता है कि वह सितारे के साथ हमबिस्तर होकर आया है। हर व्यवसाय के मुख्यालय के आसपास कुछ पतली संकरी गलियां होती हैं, जहां अनैतिक कार्य किए जाते हैं।
एक्स्ट्रा और कोरस की तरह ही फिल्म में छोटी भूमिकाएं करने वाले कलाकारों का भी संगठन है। सलीम खान अभिनेता बनने आए थे। उन्होंने कुछ फिल्मों में अभिनय किया। एक बार निर्माता ताहिर हुसैन उनसे एक भूमिका करने का इसरार बार-बार करते रहे। यह कुछ अजीब था। बाद में रहस्य पता चला कि ताहिर हुसैन की पिछली फिल्म में सलीम खान के लिए एक सूट बनवाया गया था, जिसके दोबारा इस्तेमाल के लिए उनसे अनुरोध किया जा रहा था। अन्य अभिनेता को लेते तो नया सूट बनवाना पड़ता। अत: यह मानना गलत है कि मनुष्य कपड़े पहनता है, कभी-कभी कपड़े मनुष्य को अवसर दिलाते हैं।
आज दर्शक को क्रेडिट टाइटल्स में कोई रुचि नहीं होती। कुछ सितारों के नाम आते ही दर्शक तालियां बजाते हैं परंतु सामान्यत: टाइटल अनदेखे ही रह जाते हैं। कुछ फिल्मों में टाइटल के साथ व्यंग्यचित्र दिए जाते हैं जैसे 'चलती का नाम गाड़ी' में दिए गए थे। राज कपूर की मृत्यु के बाद रणधीर कपूर ने 'हिना' बनाई। विश्व प्रसिद्ध चित्रकार मकबूल हुसैन ने 'हिना' की कथा के अनुरूप पेंटिंग्स बनाई थी, जिन्हें फिल्म की नामावली में इस्तेमाल किया गया था।
ज्ञातव्य है कि हुसैन ने माधुरी दीक्षित को लेकर 'गजगामिनी' नामक फिल्म भी बनाई थी। संकीर्णता की हिमायती ताकतों के हुड़दंग के कारण हुसैन को विदेश में रहना पड़ा और वहीं उनका निधन हुआ। 'दो गज जमीं भी न मिली कू-ए-यार में।'