फिल्म निर्माण क्षेत्र में दीपिका पादुकोण / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 21 फरवरी 2022
गौरतलब है कि प्रकाश पादुकोण अपने दौर के श्रेष्ठ बैडमिंटन खिलाड़ी रहे हैं। उनका ड्रॉपशॉट इतना सटीक होता था कि शटल नेट पर एक दो क्षण थम कर कोर्ट में गिरती थी। गोया की दीपिका अपने पिता की जीवन यात्रा को रोचक ढंग से परदे पर प्रस्तुत करना चाहती हैं। इस समय वे शाहरुख खान की ‘पठान’ नामक फिल्म की शूटिंग पूरी कर रही हैं। फिल्म में प्रकाश पादुकोण की भूमिका कौन अभिनीत करेगा यह अभी बताया नहीं गया है। हर बायोपिक में कुछ अंश काल्पनिक होता है। सच तो यह है कि जब भी हम अपने विगत को अपने मन में दोहराते हैं, तब कुछ काल्पनिक अंश का समावेश हो जाता है।
राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने ‘भाग मिल्खा भाग’ बनाई थी। इसे क्षेत्र का सर्वश्रेष्ठ प्रयास माना जाता है।
दीपिका एक संतुलित और समझदार कलाकार हैं वे अपने पिता की बायोपिक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगी। यह संभव है कि फिल्म के प्रदर्शन के बाद बैडमिंटन का खेल लोकप्रिय हो जाए। क्योंकि फिल्म का कुछ प्रभाव तो सामाजिक परिवेश पर पड़ता ही है।
प्रकाश पादुकोण ने हमें यह सिखाया है कि चीन के खिलाड़ियों का मुकाबला किस तरह करें। उन दिनों बैडमिंटन और टेनिस क्षेत्र में चीन का बड़ा नाम था। प्रकाश पादुकोण ने डेनमार्क में बहुत वक्त बिताया है। वहां आयोजित अनेक प्रतियोगिताओं में विजय पाई। कई बड़े खेल आयोजनों में प्रकाश ने गोल्ड मेडल जीता है। यह संभव है कि प्रकाश पादुकोण अपनी पुत्री दीपिका से अधिक अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुके होंगे। हर क्षेत्र में दमखम के साथ चतुराई की आवश्यकता होती है। दरअसल प्रतिद्वंद्वी का दिमाग पढ़ना होता है। आमिर खान की ‘दंगल’ में इस बात का विस्तार से खुलासा किया गया है।
प्रकाश पादुकोण अभी लगभग 60 वर्ष के हैं। अत: अपनी बायोपिक के लिए वे बहुत सी जानकारियां दे सकते हैं। ज्ञातव्य है कि शटल कॉक का पिछला हिस्सा बड़ा मजबूत होता है। खेलते समय खिलाड़ी की नाक पर लग जाए तो बहुत दर्द होता है। हर बैडमिंटन खिलाड़ी खेल के कोर्ट का नक्शा अपने दिमाग में रच लेता है। खेलते समय प्रकाश पादुकोण आंखें बंद करके भी सही स्थान पर पहुंच जाते थे। यह सब अभ्यास और लगन से होता है। यह बड़ी प्रसन्नता की बात है कि पुत्री, पिता का बायोपिक बना रही है। निदा फाजली ने फरमाया था कि पिता हमेशा अपनी संतान की सांसों में जिंदा रहता है। बायोपिक में गीत की गुंजाइश बड़ी कठिनाई से बनती है। प्राय: फिल्म में खिलाड़ी के अभ्यास करते समय एक गीत पार्श्व में डाला जाता है।
जाने क्यों प्राय: पुत्रियां ही पिताओं को इस शिद्दत से याद करती हैं। मां का स्मरण आज भी शिखर पर है। दीपिका को अभिनय क्षेत्र में संघर्ष करना पड़ा परंतु शाहरुख खान के साथ ‘ओम शांति ओम’ में उन्हें अवसर मिला। बिमल रॉय की ‘मधुमति’ क्षेत्र की सर्वश्रेष्ठ फिल्म है और अनेक फिल्मकारों ने वहां से प्रेरणा ली है। बहरहाल दीपिका इस फिल्म में अभिनय करेंगी और फिल्म उद्योग के कई मित्र हैं जो उनका सहयोग करेंगे। हमारे उद्योग में महिला निर्माताओं की संख्या काफी कम रही है। नरगिस और नूतन की माताएं अपने समय की शिखर अभिनेत्रियां रही हैं। हम उम्मीद करते हैं कि दीपिका द्वारा अपने पिता को इस तरह आदर देना सराहा जाएगा।