फिल्म निर्माण प्रक्रिया का बाय प्रोडक्ट / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 17 जनवरी 2020
नाथूराम गोडसे पर बायोपिक के लिए निर्माता ने राजकुमार राव को गोडसे की भूमिका अभिनीत करने का प्रस्ताव दिया। मुंहमांगा मेहनताना देने की पेशकश भी की परंतु राजकुमार राव ने इंकार कर दिया। वे इस नकारात्मक भूमिका के लिए स्वयं को तैयार नहीं कर पा रहे थे। कंगना रनोट अभिनीत फिल्म 'क्वीन' में राजकुमार राव की भूमिका सकारात्मक नहीं थी। वैचारिक संकीर्णता के इस कालखंड में नाथूराम गोडसे को भी आभामंडित करने का प्रयास किया जा रहा है। महात्मा गांधी और गोडसे पर पश्चिम के एक फिल्मकार ने 'नाइन ऑवर्स टू रामा' नामक हादसा रचा था। कमल हासन की फिल्म 'हे राम' में भी इसी विषय को उठाया गया था।
अनुपम खेर और उर्मिला मातोंडकर अभिनीत फिल्म का नाम था 'मैंने महात्मा गांधी को नहीं मारा'। फिल्म में प्रस्तुत किया गया था कि अनुपम खेर डार्ट मारने का खेल बच्चों के साथ खेल रहे हैं। उनका तीरनुमा डार्ट गांधी जी की तस्वीर पर लगता है और उसी समय गांधी जी की हत्या का समाचार आता है। अनुपम खेर केमिकल लोचा का शिकार हो जाते हैं और उन्हें भ्रम हो जाता है कि उनके डार्ट से गांधी जी मर गए। उपरोक्त फिल्म पिता-पुत्री के रिश्ते की कहानी भी है। उर्मिला मातोंडकर अपने पिता अनुपम खेर की सेवा करती है। वह उन्हें केमिकल लोचे से बाहर लाने का प्रयास करती है। पिता की सेवा के लिए वह अपने प्रेमी से विवाह करने से भी इनकार कर देती है।
सर रिचर्ड एटनबरो की फिल्म 'गांधी' सर्वकालिक महान बायोपिक है। फिल्म के वितरक ने न्यूयॉर्क में मात्र चार सिनेमाघरों में फिल्म का प्रदर्शन किया। लगातार शो हाउसफुल होते रहे और सिनेमाघरों की संख्या बढ़कर 50 कर दी गई। सर रिचर्ड एटनबरो ने अपनी पटकथा तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को पढ़ने के लिए दी थी। नेहरू ने उन्हें त्रुटियां दूर करने के लिए सुझाव भी दिए थे। इस घटना के कई वर्ष पश्चात सर रिचर्ड एटनबरो ने दोबारा लिखी पटकथा तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी को दी। प्रधानमंत्री ने फिल्म निर्माण में सहयोग का आश्वासन दिया। चितरंजन रेलवे फैक्ट्री से पुराने जमाने की रेल उपलब्ध कराई गई, इसके साथ ही वित्तीय सहायता प्रदान करते हुए नेशनल फिल्म डेवलपमेंट कारपोरेशन को फिल्म निर्माण में अंशधारी भी बनाया गया। ज्ञातव्य है कि पश्चिम बंगाल की सरकार ने भी सत्यजीत रॉय की फिल्म 'पाथेर पांचाली' में पूंजी निवेश किया था और सैकड़ों गुना मुनाफा कमाया था।
सर रिचर्ड एटनबरो ने मुख्य भूमिका के लिए भारत के कलाकारों के स्क्रीन टेस्ट लिए। नसीरुद्दीन शाह को मलाल रहा कि उन्हें भूमिका नहीं मिली। सर रिचर्ड एटनबरो अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शन के लिए एक फिल्म बना रहे थे। इसलिए उन्होंने बेन किंग्सले को चुना। ब्रिटिश रंगमंच पर बेन किंग्सले को सितारा हैसियत हासिल थी। बहरहाल बेन किंग्सले ने चरखा चलाना सीखा। गांधीजी की चाल और अंग संचालन की भाषा का गहन अध्ययन किया। फिल्म्स डिविजन के पास स्वाधीनता संग्राम का विवरण देने वाले तीन दर्जन वृत्तचित्र हैं। किंग्सले ने उपवास किए और तमाम कलाकारों ने वर्कशॉप किए। फिल्म में गांधी जी की शव यात्रा के दृश्य को शूट करने के पहले दिल्ली के अखबारों के द्वारा अवाम से प्रार्थना की गई कि वे शूटिंग में भाग लें। सभी को मेहनताना दिया जाएगा। इस दृश्य की शूटिंग में आवाम ने बड़ी संख्या में भाग लिया। शूटिंग के बाद आम जनता का एक भी व्यक्ति मेहनताना मांगने नहीं आया। उन्होंने गांधीजी को आदर देने के लिए काम किया था। एक तरह से यह सामूहिक प्रायश्चित था।
ज्ञातव्य है कि ओलिवर स्टोन की फिल्म 'जेएफके' की शूटिंग में भी अमेरिकन अवाम ने हिस्सा लिया और कोई मेहनताना नहीं लिया। साहसी फिल्मकार ओलिवर स्टोन ने फिल्म के अंत में साजिश रचने वाले बड़े नेता का नाम भी बताया, परंतु उन पर मानहानि का कोई मुकदमा कायम नहीं हुआ। कुछ मामलों में तमाम मनुष्य समान आचरण करते हैं। सर रिचर्ड एटनबरो की गांधी की दूसरी यूनिट के कैमरामैन गोविंद निहलानी थे। उन्होंने छुट्टी के दिन होटल में स्थित किताबों की दुकान से भीष्म साहनी की किताब 'तमस' खरीदी। उन्होंने किताब पढ़कर 'तमस' पर फिल्म बनाने का विचार किया। इस तरह गांधी बायोपिक का बाय प्रोडक्ट है 'तमस'। कालांतर में एक-एक घंटे के चार एपिसोड बनाए। दूरदर्शन पर पहले दो एपिसोड के प्रदर्शन के बाद प्रदर्शन के खिलाफ एक याचिका दायर की गई। जज महोदय ने रविवार के दिन अदालत में चारों एपिसोड देखे और फैसला दिया कि इनका प्रदर्शन रोका नहीं जा सकता। भारतीय अदालतें तटस्थ होकर फैसले देती रही हैं। भारत में गणतंत्र की रक्षा अदालत करती रहेगी। जिस बांटने वाले कानून का विरोध छात्र कर रहे हैं। उस पर भी न्यायालय का फैसला आ सकता है। 'वह सुबह कभी तो आएगी वह सुबह हमीं से आएगी।'