फिल्म विरासत की रक्षा का संकल्प / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :24 फरवरी 2015
22 फरवरी, शाम दक्षिण मुंबई के अत्यंत पुराने लिबर्टी सिनेमा में शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर ने अपनी संस्था फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन के तहत भारतीय सिनेमा में सभी भाषाओं में बनी सौ महान फिल्मों के संरक्षण, रेस्टोरेशन का अधिवेशन प्रारंभ किया। विदेश से आए विशेषज्ञ फिल्म्स डिवीजन के सभाकक्ष में 23 से 28 फरवरी तक सारे देश से चुने गए 53 छात्रों को रेस्टोरेशन विधा का प्रारंभिक पाठ पढ़ाएंगे। कुछ गरीब छात्रों की 50 हजार रुपए की फीस अमिताभ बच्चन, विधु विनोद चोपड़ा, आमिर खान और राजकुमार हीरानी ने चुकाई है। कार्यक्रम में रेस्टोरेशन के पुरोधा नायर साहब को अमिताभ बच्चन के हाथों सेवा का प्रमाण-पत्र प्रदान किया गया और उनके कार्यों की प्रशंसा में श्रोताओं ने खड़े होकर लगातार पांच मिनट तक तालियां बजाईं।
विधु विनोद चोपड़ा ने कहा कि पूना संस्थान में उन्हें नायर साहब द्वारा दी गई सुविधा और शिक्षा के कारण ही वे सफल हो पाए। उनकी अंग्रेजी भाषा में बनी 'ब्रोकन हार्ट' के टाइटल्स में नायर साहब को धन्यवाद दिया गया है और यह फिल्म अप्रैल-मई में सारे विश्व में प्रदर्शित होगी। समारोह में सईद मिर्जा, जया बच्चन, गोविंद निहलानी और श्याम बेनेगल जैसे सृजनधर्मी मौजूद थे। इसी अवसर पर रेस्टोरेशन से जुड़ी 'फ्राम डार्कनेस इन्टू नाइट' नामक किताब का विमोचन भी हुआ। अमिताभ बच्चन अब इस संस्था के एम्बेसेडर बन गए हैं।
शिवेंद्रसिंह डूंगरपुर वर्षों से सिनेमा विरासत की रक्षा के कार्य में जुटे हैं और वे भी पूना संस्थान से प्रशिक्षित हैं। उनके काम की चर्चा के कारण ही स्वर्गीय फिल्मकार कारदार के निकट िरश्तेदार उनसे मिले और उन्होंने आर्थिक सहायता देते हुए निवेदन किया कि वे उनके परिवार के पुरोधा कारदार और मेहबूब खान की फिल्मों को भी रेस्टोर करें। यह कितने आश्चर्य की बात है कि कारदार के दामाद वाई.के. हमीद सिप्ला फार्मा के शीर्ष अधिकारी हैं और इस पुनीत कार्य में मदद कर रहे हैं। इसी तरह स्टूडियो 18 के शीर्ष अधिकारी भी सहायता कर रहे हैं। इस समारोह के बाद 'ए फिस्टफुल ऑफ डॉलर्स' के रेस्टोर किए गए संस्करण का प्रदर्शन भी हुआ। अमिताभ बच्चन ने भी भाषण दिया। लिबर्टी सिनेमा का हाल खचाखच भरा था और कई लोगों से बात करने पर मालूम हुआ कि वे लोग वर्षों बाद इस सिनेमाघर में आए हैं और इसे जस का तस पाकर उन्हें निहायत खुशी हुई! सिनेमाघरों से लोगों की यादें जुड़ीं होती हैं।
मनोरंजन के इन्हीं ठिकानों पर वे नए मित्रों से मिले हैं, उन्हें विगत की अपनी महिला मित्रों की भी याद आती हैं। सिनेमाई यादें जीवन का अभिन्न अंग हैं। उम्र के इस पड़ाव पर भी मुझे बुरहानपुर की प्रकाश टॉकीज की स्मृति है। इंदौर का बैम्बिनो तो मन में ही बसा है। आप जितने भी शहरों की यात्रा पर जाते हैं, वहां के सिनेमाघर आपकी स्मृति में दर्ज होते हैं। होशंगाबाद का सिनेमाघर थोड़ा ऊंचाई पर बना था और टार्च से दर्शक को आता देख प्रदर्शन देर से प्रारंभ किया जाता था।
ऐसी किवदंती है कि अंग्रेजों के जमाने में उनके जासूस मंदिरों, मस्जिदों और गुरुद्वारों में जाकर जनमानस का असंतोष अन्य भावनाओं का जायजा लेते थे और हमारी स्वतंत्रता के 1857 के पहले कुछ प्रयासों की खबरें वे शिमला भेजते थे, जहां जनमानस के असंतोष की रिपोर्ट दर्ज होती थी।। विगत सौ वर्षों से सिनेमाघर ही वे जगहे हैं जहां जनता का सुख-दुख और आक्रोश देखा जा सकता है। जयप्रकाश नारायण के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के बाद देश के असंतोष की प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति सलीम-जावेद द्वारा गढ़ी गई एंग्री यंगमैन छवि के जरिये अभिव्यक्त हुई और यही मूल कारण है जंजीर दीवार की सफलता का। सिनेमा दर्शक की प्रतिक्रिया का समाजशास्त्र में अध्ययन नहीं किया गया। बहरहाल, इसी सिनेमा की विरासत के रेस्टोरेशन का कार्य शिवेंद्रसिंह डूंगरपुर कर रहे हैं। इस महत कार्य से दर्शकों को भी जुड़ना चाहिए, क्योंकि यह उनकी अपनी विरासत है। इसके लिए \ contact@filmheritagefoundation.co परसंपर्क किया जा सकता है।