फिल्म संगीत क्षेत्र में स्वच्छता अभियान / जयप्रकाश चौकसे

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फिल्म संगीत क्षेत्र में स्वच्छता अभियान
प्रकाशन तिथि : 24 जून 2020


संगीत क्षेत्र में मैग्नेटिक टेप आने से प्रतिलिपि बनाना आसान हो गया है, जैसे कार्बन पेपर से कागज की कॉपी बनने लगी थीं। शीघ्र ही टेक्नोलॉजी ने ऐसी मशीनें बनाईं कि कम समय में अधिक कॉपी बनाई जा सकें। गुलशन कुमार दिल्ली में जूस सेंटर चलाते थे। दुकानदारी के साथ उन्हें फिल्मी गीत सुनना-सुनाना पसंद था। गीतों की लोकप्रियता के रसायन को वे ब-खूबी समझते थे। वे दस गीतों को केवल एक बार सुनकर लोकप्रियता का क्रम बनाते थे, जो प्राय: सही सिद्ध होता था, उनके जूस सेंटर पर ग्राहक से ज्यादा फिल्मी गीत सुनने वाले आने लगे और एक नए किस्म का क्लब बना। अहमदाबाद में भी ग्रामोफोन संगीत सुनने वालों का एक संगठन आज भी सक्रिय है, दरअसल बेसुरे भी अपने अवचेतन में गीत गुनगुनाते हैं। कुशाग्र व्यवसायिक बुद्धि के धनी गुलशन ने इस संगीत मथनी प्रक्रिया में अपने लिए मख्खन व्यवसाय जमाने की बात सोच ली।

प्राय: खोटे सिक्के बाजार से अच्छी मुद्रा को निष्काषित कर देते हैं। गुलशन कुमार की दुकान चल पड़ी। तत्कालीन कॉपी राइट एक्ट छलनी की तरह छिद्रमय था, परंतु गुलशन इसे वैद्य स्वरूप देना चाहते थे। उन दिनों फिल्मकारों को पूंजी 36 प्रतिशत वार्षिक ब्याज पर मिलती थी। गुलशन कुमार ने उन्हें शूटिंग प्रारंभ होने के पहले संगीत अधिकार की रकम एक मुश्त देने की पेशकश की और रातों-रात वे संगीत जगत के अघोषित सम्राट बन गए। इस अनुबंध में रॉयल्टी देने का प्रावधान नहीं था। फिर उन्होंने कैसेट व टेप रिकॉर्डर का निर्माण प्रारंभ किया। उच्च गुणवत्ता से शपथ-बद्ध पुरानी संगीत कंपनी पिछड़ गई। गुलशन कुमार ने लीला चिटनिस के पुत्र संग रिकॉर्डिंग स्टूडियो स्थापित कर वर्जन रिकॉर्डिंग प्रारंभ की। महान गायकों के गाए गीतों के वर्जन धड़ल्ले से बिके। इसमें एक पार्श्व गायिका को अवसर मिले, इसके पूर्व वह पार्श्व गायन के किले से सिर टकराकर हताश हो चुकी थी। फिर गुलशन कुमार ने दो प्रतिभाशाली युवाओं को अवसर दिए। क्षेत्र में एक समानांतर व्यवस्था खड़ी हुई। गुलशन ने महेश भट्‌ट को अनुबंधित कर फिल्म निर्माण भी किया। उद्देश्य केवल संगीत बेचना था। संगीत जोड़ी को अवसर देते ही गुलशन अनजाने ही अपने भावी भस्मासुर को बना चुके थे। जोड़ी का एक सदस्य अत्यंत अहंकारी था। उसका एक गैर फिल्मी कैसेट बिका नहीं। गुलशन ने उसे समझाया कि भारत में फिल्म गीत और प्राइवेट भजन बिकते हैं। कहा जाता है कि इसी बात से कालांतर में गुलशन कुमार की हत्या के षडयंत्र ने भी जन्म लिया। इन बातों की पुष्टि नहीं हो सकी है, परंतु संगीतकार के देश से भागने के कारण संदेह के स्याह बादल छाने लगे। गुलशन कुमार के पुत्र भूषण कुमार ने अपने साम्राज्य को नया विस्तार यह दिया है कि फिल्मकार से अनुबंध कर उसे परामर्श दिया जाता है कि वे कंपनी के गीत बैंक से रेडीमेड गीत चुन लें। इस बैंक में प्रेम, विरह, युगल, समूह गीत, भजन व कव्वालियों का स्टॉक है। इसलिए फिल्म संगीत क्षेत्र में सृजन के कार्य की आवश्यकता नहीं है। प्रतिभा का मार्ग ‌अवरुद्ध है।

माधुर्य ही दर्शक को बार-बार फिल्म देखने को प्रेरित करता है। कुछ फिल्मों की कथा और कलाकार भुला दिए जाते हैं, परंतु गीत-गूंजते रहते हैं। भारतीय जीवन, समाज और सिनेमा में गीत-संगीत का महत्व कालजयी है। यह सत्य है कि रेडीमेड वस्त्र ने दर्जी जमात को हाशिये में फेंक दिया है। विवाह पर पहने जाने वाले वस्त्र भी किराए पर उपलब्ध हैं, परंतु त्वचा का स्वामित्व आज भी कायम है। एक युवा संगीतकार की धुनें अस्वीकृत होती थीं, एक बार उसके घर का झाड़ू-पोछा करने वाली बाई ने उसे उसकी बनाई एक भूली-बिसरी धुन को ही मांजने को कहा और वह धुन चुन ली गई। युवा बाई का वेतन बढ़ा दिया। विशेषज्ञ होते ही बाई का चयन गलत साबित होने लगा। वर्तमान संगीत क्षेत्र को झाड़ू-पोंछे की आवश्यकता है। दरअसल पूरी व्यवस्था को ही इसकी दरकार है।