फिल्म संसार के सम्मानित लोग / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :24 जनवरी 2015
कॉलम लिखेजाने तक समाचार है कि इस वर्ष के 148 पद्मभूषण से गौरवान्वित किए जाने वाले लोगों में फिल्म उद्योग से सर्वश्री दिलीप कुमार, रजनीकांत, अमिताभ बच्चन, सलीम खान और संजय लीला भंसाली शामिल हैं। फिल्म उद्योग से लता मंगेशकर को पहले ही भारत-रत्न मिल चुका है। सरकार की ओर से दादा फाल्के पुरस्कार फिल्म उद्योग के लिए श्रेष्ठतम पुरस्कार है। चुनाव में जीते राजनैतिक दल को यह अधिकार है कि वे सम्मान के लिए कुछ उन लोगों को भी चुने जिन्होंने उनकी विचारधारा का समर्थन किया है। यह एक स्वाभाविक विचार है। लालकृष्ण आडवाणी का भी इसी सूची में शामिल होना उनके समर्थकों को थोड़ा बुरा लग सकता है क्योंकि उन्हें वे भारत रत्न का अधिकारी मानते हैं। यह उनके दल का भीतरी मामला है। अब सब लोग सिकंदर और पोरस की तरह तो नहीं हो सकते कि पराजित राजा के साथ राजा की तरह व्यवहार करें और किया भी गया, तो उस तरह का सौहार्द्र हर काल खंड में संभव नहीं है।
बहरहाल दिलीप कुमार हिंदुस्तानी सिनेमा के सर्वकालिक महान नर सम्राट हैं और उन्हें दादा फाल्के पुरस्कार भी मिल चुका है। नए सम्मान मिलने का पूरा अहसास उन्हें हो पाएगा - यह संदिग्ध है क्योंकि विगत कुछ वर्षों से याददाश्त उनके साथ छुपा-छाई खेल रही है। वे आज उस मुकाम पर हैं जहां हर सम्मान भी गौरवान्वित होता है। रजनीकांत सबसे अधिक लोकप्रिय सितारे हैं और अपने दर्शकों के लिए भगवान स्वरूप हैं। उनकी फिल्में विशुद्ध मनोरंजन रही हैं और उन्होंने अपने समकालीन कमल हासन की तरह कला फिल्में नहीं की हैं। रजनीकांत के लिए अपनी छवि से बाहर आना नामुमकिन रहा है और उम्र के इस पड़ाव पर भी वे आम आदमी की भूमिका नहीं कर सकते। आम गरीब इंसानों में इतनी विराट लोकप्रियता का भी सामाजिक महत्व बहुत गहरा है कि अन्याय आधारित व्यवस्था में रजनीकांत द्वारा खलनायकों की पिटाई के दृश्यों में उनके क्रोध का विरेचन हो जाता है वरना कई लोग अपने भीतर के सुषुप्त ज्वालामुखी से जल जाते। यह अवाम की असाधारण सेवा है।
रजनीकांत की तर्ज पर ही अमिताभ बच्चन भी अवाम के क्रोध का विरेचन कर चुके हैं और उस कालखंड में जब जयप्रकाश नारायण ने भ्रष्टाचार के खिलाफ आम आदमी काे आंदोलित किया था। हाय रे दुर्भाग्य हमारे काल खंड का कि अब सामाजिक क्रोध का शमन छोटे परदे पर "न्यूज थियेटर' चलाने वाला अर्णब गोस्वामी कर रहे हैं। यह क्रोध शमन की गिरावट के साथ यह भी रेखांकित करता है कि मध्यम वर्ग और गरीब लोग अपनी आय के दायरे में अय्याश होते हुए इस कदम आत्म संतुष्ट हो गए हैं कि अपने तथाकथित क्रोध की हांडी पर कम आटे की अदृश्य रोटियां सेंक रहे हैं। क्या सचमुच प्रचार तंत्र भूखे को यकीन दिला सकते हैं कि उसका पेट भरा है। इस संभावना को काल्पनिक मानने की भूल नहीं की जाना चाहिए। भविष्य में कभी भूखे लोग अधिक भोजन के कारण डकार लेते-लेते मर सकते हैं?
बहरहाल अमिताभ बच्चन लोकप्रिय होने के साथ निष्णात अभिनेता भी हैं और इनके इस कौशल को देखने के लिए अगर आप उनकी विज्ञापन फिल्में भी देख लें तो उनकी महानता के कायल हो जाएंगे। इतनी सारी बीमारियों के साथ और बावजूद वे उम्र के इस पड़ाव पर भी जवानों की तरह सक्रिय हैं। उनके साथ ही लेखक सलीम खान भी नवाजे गए हैं जिन्होंने जंजीर, दीवार इत्यादि फिल्मों द्वारा अमिताभ बच्चन की आक्रोश छवि अपने मित्र जावेद अख्तर के साथ गढ़ी और वह भी उस समय जब अमिताभ की पहली दर्जन भर फिल्में असफल हो चुकी थीं। यह कितने आश्चर्य की बात है कि सलीम खान (जावेद अख्तर के साथ) और अमिताभ उस दौर में आक्रोश की छवि से जुड़े हैं और आज आक्रोशहीनता के दौर में व्यवस्था द्वारा सम्मानित किए जा रहे हैं। क्या देश का आक्रोश भी इनकी तरह बुढ़ा गया है? क्या आक्रोश की उम्र होती है? गौरतलब है कि आज आक्रोश खारिज क्यों हो गया और मोबाइल के पुराने मॉडल की तरह आउटडेटेड क्यों हो गया? बहरहाल सलीम खान फिल्म उद्योग में लगभग पचपन वर्ष से सक्रिय हैं और उनका अपने घराने ने भी बॉक्स ऑफिस पर हंगामा खड़ा किया है। यह भी गौरतलब है कि सफलता आक्रोश की धार को भोथरा कर देती है। कुछ वर्ष पूर्व सलीम खान ने एक वर्ष तक"दैनिक भास्कर' में साप्ताहिक कॉलम लिखा है और कॉलम की "आग' से अनुमान होता है कि उम्र की राख के नीचे अभी भी चिंगारियां दहक रही हैं। अब सलीम-जावेद और अमिताभ बच्चन को मिलकर बूढ़े आक्रोश को संजीवनी देने का प्रयास करना चाहिए। संजयलीला भंसाली भी नवाजे जा सकते हैं और "ब्लैक' के दौर में उनसे की गई उम्मीदें "रासलीला' में कहीं खो गई हैं। गुजरात की पृष्ठभूमि के निरंतर इस्तेमाल के कारण भी वे नवाजे जा रहे हों - यह मुमकिन है। इस बकमाल तकनीशियन ने कभी जाने क्यों सामाजिक सोद्देश्य की ओर ध्यान नहीं दिया परन्तु अभी वह युवा है और संभावना जीवित है।