फिल्म ‘मैदान’ पर ‘कोरोना’ का कहर / जयप्रकाश चौकसे

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फिल्म ‘मैदान’ पर ‘कोरोना’ का कहर
प्रकाशन तिथि : 25 मार्च 2020


बोनी कपूर फुटबॉल केंद्रित फिल्म ‘मैदान’ बना रहे हैं। उन्होंने मुंबई से 15 किलोमीटर दूर 20 एकड़ जमीन खरीदी और उस पर स्टेडियम का सेट लगाया। उन्होंने विदेशी टीमों से अनुबंध किए और शूटिंग में भाग लेने का मुआवजा भी दिया। इस तरह इस फिल्म पर बहुत अधिक धन लग चुका है। कोरोना वायरस के कारण विदेशी टीमें भारत नहीं आ सकतीं और इस फिल्म का निर्माण खटाई में पड़ गया है। फिल्मकार अमित शर्मा ने सफल सार्थक ‘बधाई हो’ बनाई थी और इसके पूर्व वे विज्ञापन फिल्में बनाते थे। ‘मैदान’ अमित शर्मा का आकल्पन है। श्याम बेनेगल भी पहले ब्लेज कंपनी के लिए विज्ञापन फिल्में बनाते थे और उनकी पहली कथा फिल्म ‘अंकुर’ भी ब्लेज ने ही बनाई थी। ए.आर. रहमान विज्ञापन फिल्मों में संगीत देते हुए कथा फिल्मों के लिए माधुर्य गढ़ने लगे। विज्ञापन फिल्म और कथा फिल्में दो स्वतंत्र विधाएं हैं, परंतु इनके फिल्मकार मनचाहे क्षेत्र में प्रवेश कर लेते हैं। कैमरा एक सेकंड में 24 फ्रेम चलता है और फिल्म किसी भी ढंग की हो, कैमरा नियम नहीं बदलता।

आगामी 24 जुलाई से 9 अगस्त तक टोक्यो में ओलिंपिक खेल का आयोजन भी कोरोना के कारण रद्द किया जा सकता है। अभी इस पर विचार चल रहा है। ओलिंपिक के इतिहास में विश्व युद्ध के कारण 1916 का खेल निरस्त किया गया था। कनाडा में आयोजित ओलिंपिक में इजरायल के खिलाड़ियों की हत्या के कारण खेल स्थगित कर दिए गए थे। दूसरे विश्व युद्ध (1939-45) के कारण भी खेल रद्द कए गए थे। एक संक्रामक रोग के कारण पहली बार ओलिंपिक रद्द किए जा सकते हैं। ओलिंपिक की तैयारी करने वाला देश भारी पूंजी निवेश करता है। विदेशी टीमों और विश्वभर से आने वाले दर्शकों के कारण उसे अपनी लागत पर मुनाफा भी मिलता है। टोक्यो में भी लंबे समय से आोजन की तैयारी चल रही है और भारी पू्ंजी हो चुका है। खेल रद्द होने पर जापान की इकोनॉमी लड़खड़ा जाएगी। सन् 2022 में आने वाले आर्थिक मंदी के दौर की पदचाप कोविड में सुनी जा सकती है। ज्ञातव्य है 1928 और 1932 के ओलिंपिक में हॉकी मैच में जर्मन कप्तान घायल हुआ था। उसे 1936 के लिए कोच नियुक्त किया गया था। तानाशाह हिटलर खेल-कूद के क्षेत्र में अपने देश को श्रेष्ठतम चाहता था। राष्ट्रीय गौरव के उन्माद के कारण मानवता खतरे में पड़ जाती है। गुरु रवींद्रनाथ टैगोर ने गांधीजी को पत्र लिखकर आग्रह किया था कि स्वतंत्रता संग्राम के समय देशप्रेम का अलख जगाना उचित है, परंतु भविष्य में इसी का अतिरेक बहुत हानिकारक सिद्ध हो सकता है। कवि त्रिकालदर्शी होते हैं।

बहरहाल, जर्मन कोच ने हिटलर को यह बताया कि ध्यानचंद के खेलते हुए हिंदुस्तान को हराया नहीं जा सकता। हिटलर ने स्वयं ध्यानचंद को प्रलोभन दिए, यहां तक कि उन्हें जर्मन राष्ट्रीयता भी प्रदान करने की बात कही गई, परंतु ध्यानचंद टस से मस नहीं हुए। स्मरण रहे कि गरीब घर में जन्मे ध्यानचंद ने अपने खेलने की पहली स्टिक एक वृक्ष की डाल काटकर स्वयं बनाई थी। तानाशाह के अपने साहित्यकार और फिल्मकार भी होते हैं। तानाशाह झुकने का आदेश देता है तो उसके भय के कारण व्यक्ति जमनी पर लेट जाता है। सारे तानाशाही तामझाम के महल-चौबारे डर की जमीन पर बनाए जाते हैं। बहरहाल, हिटलर की प्रिय फिल्मकार रेनी रैजन्थाल थीं, जिसने उसके प्रचार की कुछ फिल्में बनाई थीं। हिटलर ने रेनी रैजन्थाल को ओलिंपिक का अधिकृत फिल्मकार घोषित किया। उनकी बनाई ‘ओलंपिया’ दो खंड में बनाई गई फिल्म है। यह वृत्तचित्र कथा चित्रों से अधिक रोचक सिद्ध हुआ। हमारे यहां खेलकूद प्रेरित फिल्में बनी हैं। आशुतोष गोवारीकर और आमिर खान की लगान एक सर्वकालिक महान फिल्म है। मिल्खा सिंह के जीवन से प्रेरित राकेश ओमप्रकाश मेहरा की ‘भाग मिल्खा भाग’ भी महान फिल्म है। प्रियंका चोपड़ा अभिनीत बायोपिक ‘मेरीकॉम’ और कंगना रनौत अभिनीत ‘पंगा’ की खिलाड़ी नायिकाएं विवाहित माताएं हैं और परिवार की जवाबदारी के साथ ही अपने खेल को भी उन्होंने अपने जुझारूपन से संवारा है। आमिर खान की ‘दंगल’ और सलमान खान की ‘सुल्तान’ भी खेल आधारित फिल्में हैं। दंगल महिला गरिमा का श्रद्धा गीत भी माना जा सकता है। ज्ञातव्य है कि अमित शमीन की ‘चक दे इंडिया’ भी महिला केंद्रित फिल्म है।

आधुनिक ओलिंपिक की जड़ें एथेंस में हैं। युद्ध नहीं लड़ते हुए स्वयं को श्रेष्ठ खेल द्वारा सिद्ध किया जाता है। विजय मिलते ही अपने देश का झंडा विदेश में फहराया जाता है। इसमें कोई खून-खराबा भी नहीं होता। खेल स्पर्धा में युद्ध की तरह रक्त नहीं बहता, परंतु खिलाड़ियों के एकत्रित पसीने से कुओं में जल आ सकता है। ‘भाग मिल्खा भाग’ में नायक के अभ्यास के समय निकले पसीने को अपने कपड़ों से निचोड़कर बाल्टी में एकत्रित करने का दृश्य है। युद्ध के पर्याय स्वरूप ओलिंपिक आकल्पन किया गया, परंतु खिलाड़ी इसे युद्ध की तरह ही खेलते हैं।

‘चैरियेट्स ऑफ फॉयर’ नामक फिल्म देखने पर रोंगटे खड़े हो जाते हैं और हम यह सोचने पर विवश हो जाते हैं कि क्या युद्ध का पर्याय संभव है? खेल से जुड़ा अपना शरीर विज्ञान भी है। फिजियो थैरेपी से मांसपेशियां स्वस्थ हो जाती हैं। ऑल्ट्रेलिया में तो एक डॉक्टर ने सुझाव दिया कि तैराक के शरीर के बाल साफ कर दिए जाने पर उसकी गति बढ़ सकती है। खिलाड़ियों के मेडिकल चेकअप होते हैं। यह देखना जरूरी होता है कि कहीं वह प्रतिबंधित दवा का सेवन तो नहीं कर रहा है।