फुटबॉल के रोमियो-जूलियट विवाह बंधन में / जयप्रकाश चौकसे

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फुटबॉल के रोमियो-जूलियट विवाह बंधन में
प्रकाशन तिथि : 25 जून 2018


केरल के रोशन देवदास ब्राजील फुटबॉल टीम के प्रशंसक हैं और मोनिशा मोहन अर्जेंटीना फुटबॉल टीम की प्रशंसिका। प्राय: इस तरह के प्रशंसक एक-दूसरे से नाराज रहते हैं परंतु रोशन देवदास और मोनिशा मोहन ने विवाह कर लिया। उनके पास इतने साधन नहीं हैं कि वे रूस जाकर विश्वकप देख सकें। अत: उन्होंने आपस में खूब तेज बरसते पानी में फुटबॉल खेला और उनके इस अभिनव प्रयास को उनके मित्र अनीस ने फोटोग्राफ में संजो लिया है। उस वक्त इतनी तेज बारिश हुई कि फुटबॉल का मैदान मिनी स्वीमिंग पूल की तरह दिख रहा था। नवविवाहित जोड़े ने जमकर फुटबॉल खेला और वे अपनी मनपसंद टीमों की तरह ही वस्त्र धारण किए हुए थे। दोनों ने दस नंबर की जर्सी पहनी थी, जिस तरह की जर्सी उनके प्रिय खिलाड़ी पहनते हैं। रूस में चल रहे फुटबॉल समर में इस समय अर्जेंटीना की टीम अंतिम सोलह टीमों में पहुंचने के लिए संघर्ष कर रही है। टीम अपने प्रारंभिक मैच अपने से कमतर टीमों से हार चुकी हैं। लेटिन अमेरिका में फुटबॉल राष्ट्रीय जुनून है।

अगर फुटबॉल के लिए जुनून जैनेटिक है तो इनके बच्चे भी अलग-अलग टीमों के दीवाने होंगे और घर फुटबॉल मैदान में बदल जाएगा। माता-पिता और संतानों की टीमें घर में ही धमाल मचा देंगी। क्या इस तरह दो राजनीतिक दलों में विश्वास करने वालों का भी विवाह हो सकता है। मान लें कि वर भारतीय जनता दल का मतदाता है और वह जिससे प्रेम करता है वह कांग्रेस की मतदाता है। तब यह विवाह गुरिल्ला युद्ध की तरह होगा। क्या इसी तरह संसद में पत्नी मंत्री हैं और पति विपक्ष का नेता है। ज्ञातव्य है कि सुचेता कृपलानी और उनके पति की राजनीतिक आस्थाएं परस्पर विरोधी दलों में रही है। प्रेम का इंद्रधनुष सभी सरहदों के ऊपर देखा जा सकता है। भारत और पाकिस्तान की सुलगती सरहदों के ऊपर भी इंद्रधुनष नज़र आता होगा और कोई नफरत इंद्रधनुष को दो धड़ों में बांट नहीं सकती। अवाम को धर्म, जाति, इत्यादि के नाम पर बांटा जा सकता है परंतु कुदरत को नहीं बांट सकते, मौसम को नहीं बांट सकते। निदा फाज़ली ने लिखा है, 'बरसात का आवारा बादल क्या जाने किस छत को भिगोना है, किस छत को बचाना है।'

एक बार इंग्लैंड की क्रिकेट टीम भारत दौरे पर आई और उनका सबसे प्रभावी गेंदबाज हिंदुस्तान के एक प्रांत में जन्मा था परंतु इंग्लैंड में बस गया था। उस प्रांत के लोग अपने 'पुत्तर' को प्रोत्साहित कर रहे थे। यह नज़रअंदाज करके कि वह हिंदुस्तान की टीम के खिलाफ खेल रहा है। इस तरह बजेदारियां संकट में पड़ जाती है। अक्षय कुमार अभिनीत फिल्म में उन्होंने स्टार तेज गेंदबाज की भूमिका की थी परंतु फिल्मकार ने विवाद से बचने के लिए उसे ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ खेलते दिखाया है। लंदन के एक क्षेत्र में हिंदुस्तान और पाकिस्तान के लोग आकर बसे हैं और उनके बीच भाईचारा है। वहां सांझा तंदूर भी है। उधर की सरहदें सुलगती रहती हैं परंतु अन्य देशों में हिंदुस्तानी, पाकिस्तानी, बांग्लादेशी तथा श्रीलंका निवासी एक-दूसरे के मित्र और मददगार हैं।

शिकागों में बसे दो पड़ोसी परिवार विधु विनोद चोपड़ा की फिल्म '1942 ए लव स्टोरी' देखने गए। फिल्म के अंत में भारत का राष्ट्रगान बजने पर सभी दर्शक खड़े हो गए। पड़ोसी वापस लौट रहे थे तब पाकिस्तान से आकर शिकागो में बसे व्यक्ति ने कहा कि फिल्म के प्रभाव में उसने वंदेमातरम् गाया। क्या फिल्म इनके बीच की शत्रुता खत्म कर सकती हैं? पाकिस्तान में बमुश्किल पचास सिनेमाघर हैं और हिंदुस्तानी फिल्मों के सीडी दुबई से पाकिस्तान पहुंचते हैं। हमारे सितारे वहां भी बहुत लोकप्रिय हैं। जैसे वहां बने टीवी सीरियल, जिन्हें वे ड्रामा कहते हैं, यूट्यूब पर अनेक भारतीय परिवार देखते हैं।

बहरहाल, रोशन देवदास एकमात्र देवदास हैं, जिनका ब्याह उनकी पारो के साथ हुआ है। देवदास प्रेरित ग्यारह फिल्में बन चुकी हैं। बारहवीं फिल्म में देवदास और पारो के विवाह के साथ फिल्म शुरू की जाए और उनका विवाहित जीवन दिखाया जाए। उन दोनों के स्वाभाव प्रखर हैं और उनकी तकरार और झगड़े काफी रोचक हो सकते हैं। इसे एक हास्य फिल्म की तरह भी बनाया जा सकता है और त्रासद रूप में भी बनाया जा सकता है। देवदास पारो से कहता है कि वह रूप गर्विता है और मानती है कि वह चांद की तरह सुंदर है। वह अपनी छड़ी उसके माथे पर मारकर कहता है कि चांद में भी दाग है। विवाहित होने पर पारो के माथे पर बने दाग को देवदास चूम भी सकता है परंतु मछली स्वादहीन बनाने पर उसे फिर मार भी सकता है। देवदास सामंतवादी परिवार में जन्मा है और पारो मध्यम वर्ग के परिवार में जन्मी है। अत: उनके बीच संघर्ष बना ही रहेगा। बहरहाल, रोशन देवदास और मोनिशा मोहन फुटबॉल प्रेमी हैं, जो सर्वहारा वर्ग का खेल है, जबकि क्रिकेट साम्राज्यवादी है। दरअसल, खेलों को किसी तरह बांटा नहीं जा सकता। भारत में आयोजित एशियाड में नेहरू ने कहा था, 'प्ले द गेम इन द स्पिरिट ऑफ द गेम'। खेल भावना बनी रहनी चाहिए। इसी तरह तब के प्रधानमंत्री अटल बिहारी ने भारतीय क्रिकेट टीम को संदेश दिया था कि दिल जीतकर आना। उस समय भारतीय टीम पाकिस्तान दौरे पर जा रही थी।