फुटबॉल राग, फुटबॉल सिम्फनी, फुटबॉल रंगमंच / जयप्रकाश चौकसे

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फुटबॉल राग, फुटबॉल सिम्फनी, फुटबॉल रंगमंच
प्रकाशन तिथि : 14 जून 2014


ब्राजील में फुटबॉल विश्व कप खेला जा रहा है। दुनिया के श्रेष्ठ खिलाड़ी 32 दिनों तक अपनी क्षमता का प्रदर्शन करेंगे। इस खेल के दीवानों की संख्या सिनेमा दर्शकों से अधिक है और उनके जुनून का ताप सैकड़ों सूर्य के दमकने की तरह है। हर मैच में खिलाड़ी का वजन पांच से पंद्रह किलो तक घट जाता है और विशेष ढंग से बनाए पेय उनके शरीर के द्रव्य की मात्रा घटने नहीं देते। यह मनुष्य के दमखम, ऊर्जा और चपलता के साथ चातुर्य के प्रदर्शन का खेल है और 90 मिनिट के खेल में गेंद और खिलाडिय़ों की हरकत को अगर रेखाचित्र में बदले तो अजीबोगरीब आकृतियां उभर सकती है। आश्चर्य है कि विश्व के महान चित्रकारों ने इस अद्भुत सौंदर्य को अभी तक चित्रित नहीं किया और ना ही कवियों ने मैदान पर घटित कविता को पकडऩे की चेष्टा की है। सबसे चुस्त-दुरुस्त मनुष्यों की श्रेष्ठतम क्षमता के इस प्रदर्शन में ध्वनि सी गति है, शतरंज के निष्णात खिलाडिय़ों सा चातुर्य है, वर्तमान क्षण में आगे के क्षण को पकडऩे की क्षमता का प्रदर्शन होता है। टीम भावना एक परंपरा की तरह प्रवाहित होती है और हर खिलाड़ी अपनी व्यक्तिगत प्रतिभा से इस परंपरा को निखारता है तथा इसी परंपरा से ऊर्जा भी लेता है। यह लेन-देन किसी व्यापार के क्षेत्र में नहीं आता, यह शुभ लाभ और लाभ शुभ के बहीखातों के परे है। फुटबॉल भी बाजार का हिस्सा है और अरबों का कारोबार है परंतु इस तथ्य के बावजूद इस प्रतिस्पर्धा में मनुष्य का श्रेष्ठतम प्रस्तुत होता है।

फुटबॉल का मैदान एक रंगमंच है परंतु प्रस्तुति में कुछ भी बनावटी नहीं है और ना ही क्रिकेट की तरह फिक्सिंग है। केवल शारीरिक क्षमता ही नहीं खिलाडिय़ों की भावना के उद्देश्य को देखिए और खेल के बाद भावों का विरेचन भी होता है। इस खेल में आक्रोश है, जीतने की तीव्र आकांक्षा हर मनोभाव को गजब की धार देती है। इस खेल में हिंसा भी है और खिलाडिय़ों का परस्पर प्रेम भी है। नाट्य शास्त्र के सारे रस इसमें निहित हैं। फुटबॉल का मैदान ऐसा रंगमंच है जिसमें दर्शकों के मन में खिलाडिय़ों के सारे भाव जागते है। यह कोई नीरस प्रस्तुति नहीं है। खिलाड़ी और दर्शक दोनों के हृदय समान भावना पर समान गति से धड़कते हैं और दोनों के बीच एक अदृश्य सेतु बन जाता है। एक अद्भुत चमत्कार घटित होता है। आप महसूस करते हैं कि कोई अदृश्य संगीत कंडक्टर एक महान सिम्फनी प्रस्तुत कर रहा है और सांसें भी साज की तरह बजती हैं। यह खेल नहीं दीवानापन है जिसमें मोहब्बत का सुरूर है, यह पागलपन है जिसमें इबादत सा गुरूर है, गोल हो ना हो उसका इंतजार जरूरी है। क्रिकेट के दर्शक और फुटबॉल के दर्शक में अंतर है। क्रिकेट का प्रारंभ एक भद्र पुरुष के खेल की तरह हुआ परंतु फुटबॉल तो मजदूर का खेल है। अब मेहनतकश इंसान की प्रतिक्रिया और भद्र पुरुष की प्रतिक्रिया में अंतर तो होता ही है। भद्र पुरुष, श्रेष्ठि वर्ग हर काम सोच-समझकर करता है, उसकी मुस्कुराहट भी नपी-तुली होती है और आंसू भी ग्लिसरीन से जन्मे होते हैं। मजदूर का अट्टाहस स्वाभाविक होता है, उसके आंसुओं में नमक होता है।

वह कुछ सोच-समझकर नहीं करता, उसके लिए सहज जीवन की अभिव्यक्ति ही महत्वपूर्ण है। मजदूर किसी गम में शरीक होता है तो उसे नारंगी या प्याज के छिलके डालकर आंसू बहाने या मैन्युफेक्चर करने की आवश्यकता नहीं है। क्रिकेट प्रेमी बीयर या वाइन पीता है, फुटबॉल प्रेमी रम पीता है। क्रिकेट साम्राज्यवाद के साथ फैला है और सामंतवाद ने उसे बड़े प्यार से पाला है। फुटबॉल औद्योगिक क्रांति के समय अथक परिश्रम करने वाले मजदूरों द्वारा अभावों में पाला-पोसा खेल है। फुटबॉल गोयाकि मजदूर के पसीने का फैला हुआ स्वरूप है। पसीने की बूंद का इनलार्जमेंट है।मेरे चौदह वर्षीय पोते अक्षर ने बताया कि कभी-कभी फुटबॉल दर्शकों ने अपनी प्रिय टीम के हारने पर आत्महत्या की है और भारी गलती करने वाले खिलाड़ी की हत्या भी हुई है। यह आवेग की तीव्रता से जन्मे अनर्थ हैं।

अक्षर की तरह अनेक भारतीय किशोर वय के बालक टेलीविजन पर मैच देखने के कारण खेल की बारीकियां समझने लगे हैं। दरअसल किशोर वय में नशीले ड्रग्स का भय होता है और खेल के प्रति नशा उन्हें संभवत: अन्य सभी नशों से बचाता है। भारत में क्रिकेट ने अन्य खेलों को पनपने नहीं दिया। अब फुटबॉल की लीग प्रारंभ हुई और जॉन अब्राहम, सलमान खान और रनवीर कपूर इसमें रुचि ले रहे हैं और निवेश भी कर रहे हैं। यह कितने आश्चर्य की बात है कि जब तक सटोरिये किसी खेल में रुचि नहीं लेते, वह लोकप्रिय नहीं होता।

बारह जून की रात्रि टेलीविजन पर उद्घाटन समारोह देखा। पूरे उत्स का केंद्रीय विचार प्रकृति की रक्षा था। पात्र वृक्षों के रूप में नृत्य कर रहे थे, मासूम बच्चियों का दल पुष्प के खिलने को पंखुड़ी दर पंखुड़ी प्रस्तुत कर रहा था। नृत्य संयोजन में तितलियों के प्रतीक थे। नाव खेने का दृश्य भी था। एक तरफ उत्सव का केंद्रीय विचार प्रकृति है तो दूसरी तरफ भारत में एक ऊंचे बांध को और ऊंचा करने का आदेश हुआ है जो पर्यावरण के लिए खतरा है। विकास का आयात किया मॉडल समग्र विनाश को निमंत्रण है।