फुटबॉल : रेखागणित, अंक गणित और बीज गणित / जयप्रकाश चौकसे

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फुटबॉल : रेखागणित, अंक गणित और बीज गणित
प्रकाशन तिथि : 16 जुलाई 2018


रूस में आयोजित फुटबॉल महाकुंभ संपन्न भया और मेजबान देश को संतोषप्रद आयोजन के लिए बधाई। अब रूस में सन्नाटा छा जाएगा। ज्ञातव्य है कि फ्रांस में एफिल टॉवर के उद्‌घाटन के समय चार महीने चलने वाला उत्सव मनाया गया, जिसके समाप्त होने पर पेरिस में इतना नैराश्य छा गया कि कई लोगों ने आत्महत्या कर ली। उत्तेजना की लहर पर सवार व्यक्ति, जीवन के सामान्य स्तर पर लौटते ही असहज हो जाता है।

जीवन की नदी मंथर गति से बहती है, उसमें बाढ़ केवल तेज बरसात के समय आती है। बाढ़ उसका स्थायी चरित्र नहीं है। इसी तरह अवाम के जीवन में जब उत्सव की बाढ़ उतर जाती है, तब नदी के कूल किनारों पर कचरा छोड़ जाती है। कभी-कभी इसमें बच्चों के टूटे हुए खिलौने भी होते हैं और चंद टूटी हुई चूड़ियां भी होती हैं। मंथर गति जीवन है, बाढ़ विनाश है। क्या यह दुखद नहीं कि सैकड़ों वर्षों से कुछ क्षेत्रों में बाढ़ प्रतिवर्ष तांडव करती है और उन पर कम ऊंचाई के बांध नहीं बनाए गए हैं। अधिक ऊंचे बांध पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं।

बहरहाल, किसी भी खेल में आनंद लेने के लिए उसकी बारीकियां समझना या उसके शास्त्रीय ग्रामर के नियम का ज्ञान होना जरूरी नहीं है। कौन-सा फिल्म गीत किस राग से प्रेरित है, यह जाने बिना भी उसके माधुर्य को महसूस किया जा सकता है। हमारे देश में पान की दुकान पर भी क्रिकेट का आंखों देखा हाल सुना जाता है और उस पनवाड़ी को खेल की बारीकियों की कोई जानकारी नहीं है। परंतु वह विशेषज्ञ की तरह बात करता है।

'जोकर' का गीत 'जाने कहां गए वो दिन' शिवरंजनी प्रेरित है, इसे जाने बिना भी गीत में अभिव्यक्त दु:ख से सुनने वाले की आंखें नम हो जाती हैं। 'पूछो न मैंने कैसे रैन बिताई/ एक पल बीता एक युग जैसे/ युग बीते मोहे नींद न आई' गीत बार-बार किसी घाटी में बजाएं तो पत्थर भी पिघल सकते हैं। फुटबॉल महाकुंभ का आनंद उन लोगों ने भी उठाया, जो खेल का शास्त्र नहीं जानते, जिनमें खाकसार भी शामिल है। फुटबॉल में खिलाड़ियों का एक-दूसरे के पास गेंद देना प्राय: त्रिभुज की तरह होता रहा। कभी-कभी चतुर्भुज भी बनाए गए हैं। हमारी अनेक फिल्मों में भी प्रेम त्रिकोण रहे हैं। गोयाकि खेल रेखा गणित के नियमों से संचालित रहा परंतु फैसला तो मारे गए गोल करते थे अर्थात अंक गणित निर्णायक रहता था। खिलाड़ी के बदले दूसरा खिलाड़ी मैदान में उतारना बीज गणित की तरह रहा। कभी-कभी दागा गया गोल निरस्त किया गया, क्योंकि खिलाड़ी ऑफ साइड था अर्थात वह कतार के आगे निकल गया था। नोटबंदी के समय अवाम तो कतारों में खड़ा था परंतु साधन संपन्न एवं पहुंच वाले लोगों ने अपना धन निकाल लिया और रेफरी ने उन्हें ऑफ साइड करार नहीं दिया। व्यवस्था में इस तरह के छेद बनाए जाते हैं।

आम आदमी की जीत प्राय: ऑफ साइड से मारा हुआ गोल करार दी जाती है। क्रोएशिया ने दिग्गजों को मात दी। उसकी आबादी मात्र 48 लाख है परंतु 130 करोड़ आबादी वाला भारत महान अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल में नीचे की पायदान पर पाया जाता है। अगले फुटबॉल महाकुंभ में 32 के बदले 48 टीमों को आमंत्रित किया जाएगा परंतु तब भी भारत का नंबर लगना कठिन लगता है। बहरहाल, इस खेल आयोजन से रूस के अर्थशास्त्र को बहुत सहायता मिली है। लाखों दर्शक आए और जी खोलकर खर्च किया। इस समय विश्व के सारे शेयर मार्केट एक उतुंग लहर पर सवार हैं परंतु दो या तीन वर्ष में मंदी आने की आशंका होगी तब प्रारंभ होगा नैराश्य का नया दौर।

फुटबॉल के दस खिलाड़ियों का वजन एक मैच के दरमियान घट जाता है और रेफरी का वजन भी घट जाता है। दोनों टीमों के गोलकीपरों का वजन इतना नहीं घटता परंतु उन्हें मर्मांतक तनाव अन्य खिलाड़ियों के समान ही होता है। खेल समाप्त होने के चंद घंटों बाद ही वजन पुन: सामान्य हो जाता है। अगर फुटबॉल के खिलाड़ियों की हृदयगति के उतार-चढ़ाव जानने के लिए उनके शरीर पर यंत्र लगाएं तो ज्ञात होगा कि मानव हृदय कितना मजबूत होता है। हृदय नामक पम्प हजारों लीटर खून प्रवाहित करता है।

यह सबसे शक्तिशाली पम्प है परंतु रूठी प्रेमिका की एक टेढ़ी नज़र से दिल टूट भी जाता है गोयाकि एक ही यंत्र सबसे मजबूत और सबसे नाजुक भी है गोयाकि सिमटे तो दिले आशिक, फैले तो जमाना है। इसी तरह मनुष्य मस्तिष्क की शक्तियां असीमित है परंतु मनुष्य उसके न्यूनतम का ही इस्तेमाल करता है। प्राय: हम मनमानी यह कहकर करते हैं कि यह हमारे दिल ने चाहा है परंतु यह महज बहाना है। हम अपने हर टुच्चेपन के लिए कोई न कोई मुखौटा खोज लेते हैं। यह नहीं भूलना चाहिए कि मनुष्य मस्तिष्क मानव शरीर के शिखर पर स्थित है और दिल का स्थान शरीर के मध्यस्थल पर रचा गया है।