फैसला / विक्रम शेखावत
सुनिए! शॉपिंग मॉल मे खरीददारी करते हुये विजय को किसी ने पुकारा।
“जी?”, विजय ने चश्मा को थोड़ा संभालते हुये सामने खड़ी एक सभ्रांत महिला की तरफ देखते हुये कहा। दोनों कुछ समय तक एक दूसरे को देखते रहे।
“आप विजय बहादुर सिंह जी ही हैं ना?”, अचानक महिला ने दिमाग पे ज़ोर देते हुये पूछा।
विजय सामने खड़ी प्रोढ़ महिला को पहचानने की कोशिश करने लगा। एकाएक अतीत ने विजय के वर्तमान को हिला कर रख दिया। वो अतीत जिस से माफी मांगने के लिए वो पिछले पच्चीस सालों से इस शहर मे भटक रहा था वो आज अचानक उसके सामने आ खड़ा हुआ।
“अनु! अ..अनुष्का जी”, विजय की आवाज भरभरा गई थी।
“आप… कहा चले गए थे।“, महिला की आवाज मे कंपन था।
“में....में...”
“आप उस दिन के बाद कहीं नज़र ही नहीं आए। उस दिन पहली बार कुछ कहते कहते बिना कुछ कहे आप जल्दी से निकल गए, और उसके बाद उस मकान मे आपको कभी नहीं देखा। बहुत साल मैंने इंतजार किया।“, कहते कहते महिला की आँखों से आँसू निकल आए।
दोनों के दरमियान लंबी खामोशी छाई रही। “आइये कहीं चलकर बैठते हैं”, विजय ने भारी मन से कहा। दोनों सामने के रेस्टोरेन्ट मे जाकर बैठ गए। विजय ने कॉफी का ऑर्डर दे दिया। विजय अनुष्का से नजरे नहीं मिला पा रहा था।
“आप अभी तक इसी शहर मे रह रहे हैं?”, अनुष्का ने पूछा।
“नहीं”
“तो?”
में पिछले कई सालों से हर साल इस शहर मे आता रहा हूँ, बहुत सी यादों से बंधा था इस शहर से, और आखिरकार छ: महीने पहले यहीं आकर सदा के लिए बस गया हूँ।
“परिवार मे कौन कौन हैं?”, अनुष्का ने पूछा।
“मै और एक बेटा “
“आपकी पत्नी?”
“शादी के 2 साल बाद ही हम दोनों मे तलाक हो गया”
“आपने दुबारा शादी नहीं की?”
“नहीं, पहली शादी भी कोनसी मेरी मर्जी से हुई थी”,विजय की आंखे भर आई थी।
दोनों के बीच कुछ देर लंबी खामोशी छाई रही।
“आप?”, विजय ने पूछा।
“आपसे कुछ बेहतर हूँ”, अनुष्का ने मुस्कराकर कर कहा मगर चेहरे पे दर्द साफ झलक रहा था।
“शादी?”, विजय ने पूछा।
“नहीं की “
“क्यों?”
“पता नहीं”, अनुष्का ने लंबी सांस छोड़ते हुये कहा।
“कॉलेज की छूटियों के बाद मे अपने गाँव चला गया था।“, विजय ने कहना शुरू किया।
“घर पहुंचा तो घर के हालातों ने मुझे इस कदर जकड़ लिया की में चाहकर भी आगे की पढ़ाई जारी नहीं रख सका। तुम्हारे बारे मे घरवालों को बताया तो उन्होने जात-बिरादरी की दुहाई देकर मुझे चुप करा दिया। दो साल बाद परिवार के लोगों ने आनन फानन मे जबर्दस्ती मेरी शादी कर दी। रिस्तेदारों के समझाने बुझाने की बदौलत जैसे तैसे मैंने उस शादी की सलीब को 2 साल तक ढोया। आखिरकार मेरी पत्नी ने मुझसे तलाक ले लिया। उस वक़्त मेरा बेटा छ: माह का था जिसे कोर्ट ने माँ के पास रहने का अधिकार दिया। तलाक के 5 साल बाद कैंसर से मेरी तलाक़शुदा पत्नी की मौत हो गई और मैं अपने बच्चे को वापिस अपने पास ले आया। वो आज 23 का हो चुका है। अगले हफ्ते उसकी शादी है।
“मुझे खुशी होगी अगर आप भी इस शादी मे शामिल हों “, विजय ने अपने बैग से निमन्त्रण पत्र अनुष्का की तरफ बढ़ाते हुये कहा।
“हाँ, क्यों नहीं “, अनुष्का ने मुस्कराते हुये कहा।
करीब आधा दिन गुजर चुका था। दोनों अपने अतीत से बाहर आ चुके थे। भारी मन से एक दूसरे से विदा लेकर फिर से जीवन के शेष सफर को पूरा करने अलग अलग निकल पड़े।
शादी के पंडाल मे जैसे ही अनुष्का ने कदम रखा सामने खड़े विजय ने आगे बढ़कर उसका स्वागत किया। अनुष्का को लेकर विजय उस तरफ चल पड़ा जहां घर की अन्य महिलाएं बैठी हुई थी। एक तरफ सौफानुमा कुर्सी पर एक व्योवृद्ध महिला के पास बैठाते हुये कहा,”ये मेरी माँ है, आप यहाँ बैठिए तब तक मे कुछ और जरूरी काम निपटा कर आता हूँ।“
विजय के बेटे ने अंतरजातीय विवाह किया था। समाज के लाख विरोध के बावजूद भी विजय ने अपने बेटे की पसंद को तवज्जो दी और बेटे का साथ दिया। विजय नहीं चाहता था की उसका बेटा उसकी तरह जीवनभर घुट घुट कर जीए।
शादी की रश्मे निपट चुकी थी। मेहमान खाना खा रहे थे। विजय फुर्सत निकालकर माँ के पास आ बैठा जो अनुष्का से बातें कर रही थी।
“अनुष्का जी! आइये आप भी खाना खा लीजिये”, विजय ने कहा।
“इधर ही बैठकर खा लो बेटे। “, माँ ने विजय से कहा।
विजय ने वहीं पर खाना मँगवा लिया और दोनों वही माँ के पास बैठ कर खाना खाने लगे।
वर्षों पहले अपने बेटे के लाख विरोध के बावजूद लिए गए उस कठिन निर्णय को याद कर माँ की बूढ़ी आँखों मे आँसू ढुलक आए।