फॉल्ट / सुकेश साहनी
"मि. विनय, अपनी टोन सँभालिए।"
"कायदे की बात आपके दिमाग में घुसती है? मैंने कल ही आपको बताया कि मैं घरेलू कारणों से बहुत परेशान हूँ इसलिए हैडआॅफिस प्रगति-रिपोर्ट नहीं भेज पाया, फिर भी आपने इतना गंदा डी.ओ. लिख मारा।"
"आप काम नहीं करेंगे तो मुझे लिखना पड़ेगा...और अब... जिस तरह आप मुझसे मिसबिहेव कर रहे हैं...मुझे आपकी शिकायत हैड ऑफिस करनी पड़ेगी।"
"अरे...कल करता है तो आज कर दे।" विनय के होंठ गुस्से से फड़कने लगे। उसने साहब की मेज पर ज़ोर से घूँसा मारा और चिल्लाया, "मैं भी देखता हूँ तू मेरा क्या बिगाड़ लेता है।"
वह पैर पटकता हुआ कार्यालय से बाहर आ गया। उसका सिर किसी फोड़े की तरह दुख रहा था, दो दिन से वह एक मिनट के लिए भी नहीं सो सका था। शो-रूम्स के आगे हाथ में हाथ डाले टहलते जोड़ों को देखकर उसे ईर्ष्या हुई. पार्क की ओर जाने वाली सड़क पार करते हुए वह बस की चपेट में आने से बाल-बाल बचा। पार्क में बैठकर उसने दो डिब्बी सिगरेट फूँक डाली। जब रात के दस बज गए, तब वह घर की ओर चल दिया।
तीन-चार बार ज़ोर-ज़ोर से घंटी बजाने पर पत्नी ने दरवाजा खोला और भावशून्य चेहरा लिए एक ओर हट गई।
"कानों में तेल डालकर पड़े रहते हैं।"- वह भीतर घुसते हुए बड़बड़ाया।
जवाब में पत्नी ने 'भड़ाक' की ज़ोरदार आवाज़ के साथ दरवाज़ा बंद किया।
बैडरूम में पत्नी उसकी ओर पीठ किए लेटी थी। कांपोज़ की दो गोलियाँ गटकने के बावजूद नींद उससे कोसों दूर थी। पिछले दो दिनों से यह सिलसिला जारी था। झगड़े की जड़ में कुछ भी नहीं था, फ़िल्म देखने जाने, न जाने जैसी बात का बतंगड़ बन गया था। दोनों में बातचीत बिल्कुल बंद थी। नाइट बल्ब की रोशनी में पत्नी को घूरते हुए उसने सोचा...निष्ठुर! पत्थर दिल! ...इसे मेरी ज़रा भी चिंता नहीं। मैंने दो दिन से खाना खाया कि नहीं...पूछ भी नहीं सकती? इतनी अकड़! ...अरे एक बार मेरे पास आकर बात कर ले तो मैं सारे गिले शिकवे भुलाकर राजी हो जाऊँ।
करवट बदलती पत्नी को देखते हुए एक प्रश्न ने उसके मस्तिष्क में डैने फैलाए...क्या इसने खाना खाया होगा? उसने खुद से इस प्रश्न का उत्तर माँगा तो दिल ने...दिमाग ने एक स्वर में कहा, 'वह तुम्हारे बगैर नहीं खा सकती...असंभव!' उसके दिल को जैसे किसी ने मुट्ठी में जकड़ लिया...एसिडिटी की मरीज और दो दिन से भूखी। एकाएक उसने सोचा जिस पहल की उम्मीद वह पत्नी से कर रहा है, उस पर खुद अमल क्यों नहीं करता?
उसने पत्नी के कंधे पर धीरे से हाथ रखा तो वह तुरंत पलटी और उसके कंधे से लगकर फफक-फफककर रो पड़ी, बोली, "तुम मुझसे झगड़ा मत किया करो। मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती।" उसने पत्नी को प्यार से थपथपाया और रुंधे गले से बोला, "मैं भी!"
"हम अपना उपवास किस चीज से तोड़ें?" पत्नी आँसू पोंछते हुए मुस्कराई्।
"ताज रेस्टोरेण्ट से खाना मँगा लेते हैं।" उसने तिपाई पर रखे फोन की ओर हाथ बढ़ाया।
"नहीं, मैं खुद ही बनाऊँगी।"
"अरे, अपना टेलीफोन कब ठीक हुआ?" रिसीवर कान से लगाते ही उसे ध्यान आया कि फोन तो दो दिन से खराब था।
"आज ही।" पत्नी ने बताया, "अपने ही सैट में फॉल्ट था। लाइनमैन बता रहा था कि अपने इंस्ट्रयूमेंट में गड़बड़ी की वजह से कई लाइनें हैल्ड अप थीं।"
पत्नी के रसोई में जाने के बाद भी वह रिसीवर थामें सोचता रहा। फिर उसने अपने बॉस के घर का नंबर डायल किया।
"हैलो!" बॉस लाइन पर थे।
"सर, मैं विनय," उसने कहा, "आज कार्यालय में जो कुछ भी हुआ उसके लिए मैं शर्मिन्दा हूँ...कृपया क्षमा करें।"
"मि. विनय, मेरे दिल में आपके लिए बहुत आदर है, मैं उस बात को भूल चुका हूँ। आप निश्ंिचत रहें...एंड हैव ऐ नाइस स्लीप।"
उसने रिसीवर क्रेडिल पर रखा तो खुद को बहुत हल्का महसूस कर रहा था। उसने उनींदी आँखों से देखा पत्नी डायनिंग टेबल और किचन के बीच किसी नन्हीं चिड़िया-सी फुदक रही थी। -0-