फोकनी / सुरेन्द्र प्रसाद यादव
फोकनी गांव के सवासीन छेकै। ओकरोॅ बापोॅ नेॅ ओकरा यहाँ बसैलेॅ छेलै। ओकरोॅ बाबू के आर्थिक हालत ओतना अच्छा नै छेलै, तहियो बड़ा अच्छा ढंगोॅ से फोकनी केॅ अपना यहाँ बसैलेॅ रहै।
फोकनी रोॅ दुल्हा केॅ हरवाही दिलैनें रहै आरू ओकरा सें मिल्लोॅ पैसा सें जमीनो किनी देलेॅ रहै। ऊसमय सस्ती के रहै। एक कट्ठा बसोवासी खरीदी देलकै। फोकनी नैहर में अपनोॅ घर अलग बनाय केॅ अमन-चैन सें रहेॅ लागलै।
ओकरोॅ जनम ननिहर में होलोॅ छेलै। पैरोॅ हिन्ने सें जनमली छेलै-एक बड़ोॅ दबाय, एक बड़ोॅ यश लैकेॅ जनमली छेलै। जबेॅ ऊबड़ी होलै तबेॅ वें ई अमोघ अस्त्रा रोॅ प्रयोग करेॅ लागलै। लोगोॅ रोॅ सब्भे दरद आपनोॅ गोड़ छुअेला सें खतम करी दै छेलै।
गांव के अमीर से अमीर, गरीब सेॅगरीब रोॅ पुतोहू-जेकरा हुक उठै छेलै, डॉड़ा में, ऊहूक केॅ बैठाय रोॅ दबाय जोंकेकरोॅ पास छेलै तेॅ ऊछेलै फोकनी सवासिन। जे बहुसिनी के मुँहोॅ रोॅ ताक-झांक केकरो नसीब नै होलोॅ होतै उ$, हूक उठला पर घूँघट लै केॅ सास-ननद या देवरे के साथ फोकनी के यहाँ पहुंची जाय छेलै। तबेॅ फोकनी लात मारै सें कतराय छेलै। लै दै केॅ कहै छेलै-"हमरा कैन्होॅ नी लागै छै। नया भौजाय केॅ हम्में केना केॅ लात मारवै।" गांव के चाची बड़की माय कहै छेलै-"की करबौ बेटी. तोरा में है गुण छौं। दू लात डांड़ा पर देभौ तेॅ हेकरोॅ सब्भे दरद छू मंतर होय जैतै।"
हमरोॅ लात नै उठै छैं है तेॅ अछताय-पछताय केॅ लात मारै लेॅ लागै छै। "कहतें-कहतें फोकनी सच बड़ी दुखित होय उठै छेलै। आरू फेनु वहेॅ दू लात डाड़ोॅ पर दै छेलै आरू दरद वाली के दरद गायब। सिरिफ दुल्हन, दीदी, दादी के बात ने छेलै, गांव के मरद जे रिस्ता में कोय दादा लागतै, कोय बड़का बाप, कोय चाचा तेॅ कोय भाय-ई सब केॅ भी हूक उठी जाय छेलै तेॅ बिना कहले-सुनले वहाँ पहुंची या निहौरा करी केॅ बुलवाय छेलै। सौंसे गांव में चर्चा रोॅ विषय छै फोकनी। एक नमूना रोॅ रूप में ऊकायम होय गेलौ छै। सब्भे लोग ओकरा ढ़ेर सिनी प्यार आरो सम्मान दै छै। रूपया-पैसा भी लोगें सिनी दै ले चाहै, मतरकि आपनों उपकार के बदला में वें कुच्छू भी लै से कतराय जाय छै आरोॅ नै चाची," नै दादी, "" नै दादा कही केॅ बीत्ता भर रोॅ जी काढ़ी लै छेलै। वें मने-मन कहियो-कहियो सोचै भी छै। हम्में कत्ते गरीब साधारण औरत छी आरोॅ बड़ोॅ परिवारोॅ केॅ हम्में लातोॅ सें मारै छी है अच्छा नै करै छियै, " आरोॅ जेना सपना में ऊबोलै छै-चाची, दादी, चाचा है काम हमरा सें कैन्हैं करवाय छोॅ।
फोकनी केॅ दू बेटा आरू दू बेटी छेलै। सब्भे रोॅ सब जवान होय गेलोॅ छेलै। एक बेटा तेॅ ससोरारै में घर जमैया वसी गेलोॅ छेलै, आरोॅ एक अपनोॅ डीहोॅ पर। बेटी दोन्होॅ रोॅ कच्चीम-मद्धिम सें हाथ पीला करी देलकै तेॅ ऊकहियोॅ आपनोॅ माय केरोॅ मुँह नै देखेॅ सकलकै।
आबे फोकनी जर्जर अवस्था में मरण-खाट रोॅ शोभा बढ़ाय रहिलौ छै। खटिया पर ही खाय छै, बगलोॅ में ही नहावै छै आरो शौच बगल में ही करै छै।
लगभग दू सालोॅ सें ऊडाड़ोॅ रोॅ दर्दों सें बेचैन छै। एक तेॅ बुढ़ापा फेनु खाय-पीयै में कट-मटोॅ छै। कभी काल भूखोॅ से रेकै छै, तबे गांव रोॅ कुछ आदमी नें इनका पतोहू केॅ डाट दै छै, आरो कहि छै, समय पर साग सत्तू जे चल्होॅन वहे खाय लेॅ दोहोॅ। एक दिन पैर डगमगैला सें फोकनी के कमरोॅ में दरद होय गेलोॅ छेलै, ऐकरो डांड़ोॅ रोॅ हूक वें लात मारी के दूर नै करेॅ सकै छै।
गांव में एहनोॅ कोय नै छै, जे हजार दू हजार खरच करी केॅ ओकरोॅ कमर रोॅ दरद दूर करै सकै छै। रुपया सबने मिली केॅ जुटाइयोॅ देतै तेॅ केकरौ अपनोॅ रोजी-रोटी सें एतना फुरसत नै छै कि ओकरोॅ ईलाज कराय लेली शहर लै जैतै।
फोकनी कमरा रोॅ दरदोॅ सें रात भर चीखतै रहि छै। ओकरोॅ दरद रोॅ चरचा कोय नै करै छै। यहेॅ फोकनी छेलै जे जवानी से लै केॅ खाट पर गिरै से पहिने तांय केकरो कमरोॅ रोॅ दरद केॅ तनियो-टा खबर सुनै तेॅ लाठी लै के चली दै छेलै। आबेॅ तै फोकनी खटिया पर पड़ली अकेली कमर रोॅ असहनीय दरद केॅ सहते रहै छै, आरो दरद तनियों टा कम महसूस करै छै, तेॅ कहरतेॅ हुए यहे गाय छै-
राजा राणा छत्रपति हाचिन के अखवार
मरना सबकै एक दिन आपनोॅ-आपनोॅ बार।
दान बिना निर्धन दुखी तृष्णावश धनवान
कहूँ न सुख संसार में सब जग देखा छान।
आप अकेला अब तरे मरे अकेला होय;
यू कबहूॅ इस जीव को साथी सगा न कोय
आवेॅ फोकनी जवे ई गीत गुनगुनैतेॅ रहै छै तेॅ ओकरा लागै छै-जेूना अनचोके कोय ओकरोॅ डांड़ा पर लात मारी केॅ ऊजगह रोॅ दरद के खतम करी दै छै।