फ्रांसीसी रेड वाइन / प्रभात रंजन

Gadya Kosh से
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चंद्रचूड़जी की दशा मिथिला के उस गरीब ब्राह्मण की तरह हो गई थी जिसके हाथ जमीन में गड़ी स्वर्णमुद्राएँ लग गई थीं। बड़ी समस्या उठ खड़ी हुई। किसी को बताए तो चोर ठहराए जाने का डर न बताए तो सोना मिट्टी एक समान...

कभी-कभी उस दिन को कोसते जिस दिन रितेश उनके लिए विदेश से रेड वाइन की बोतल लेकर आया। उसी दिन से उनका मन तरह-तरह की कल्पनाओं में खोया रहने लगा था। तरह-तरह की योजनाएँ बनाने लगा था...

चंद्रचूड़ किशोर, कैशिएर, भारतीय जीवन बीमा निगम की नेमप्लेट वाले उस छोटे से घर में उनकी दिनचर्या बड़े नियमित ढंग से चल रही थी। रोज सुबह छह बजे उठकर राधाकृष्ण गोयनका कॉलेज के ग्राउंड का एक चक्कर लगाते, घर आकर एक कप चाय के साथ दैनिक हिंदुस्तान का नगर संस्करण मनोयोग से पढ़ते, तैयार होते, पत्नी के हाथ का बनाया नाश्ता करते...

ठीक पौने दस बजे रिक्शा पर बैठकर मेन रोड, सीतामढ़ी के अपने ब्रांच ऑफिस के लिए चल देते...

पढ़-लिखकर कुछ बनना चाहते थे। एम.ए. की पढ़ाई के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय में फॉर्म भी भरा। मगर होनी को कौन टाल सकता है। पिताजी को एक दिन ऑफिस में ही हार्ट अटैक हुआ। मशहूर डॉक्टर बी.एन.सिन्हा के क्लीनिक में इलाज चला। लेकिन बच नहीं पाए।

पिता श्री कृष्ण किशोर एलआईसी में ब्रांच मैनेजर थे। उनके इस तरह असमय चले जाने से घर की सारी जिम्मेदारी चंद्रचूड़जी के ऊपर आ पड़ी। उच्च शिक्षा का सपना अधूरा छोड़कर उन्होंने अनुकंपा के आधार पर मिल रही नौकरी कर ली। बस एक अंतर आया। पिताजी की तरह इनको मुजफ्फरपुर में नहीं सीतामढ़ी में नौकरी मिली। माँ की इच्छा थी। सीतामढ़ी पुश्तैनी गाँव से नजदीक जो था। माँ पिताजी के गुजर जाने के बाद से गाँव में ही ज्यादा रहने लगीं। इसलिए सीतामढ़ी में नौकरी करना उनके लिए अधिक सुविधाजनक था।

कोर्ट बाजार मुहल्ले में छोटा सा घर किराए पर ले लिया। पहले अकेले रहते थे। दो साल पहले विवाह हो गया। रहना तो कुछ दिन और अकेले चाहते थे। मगर माँ की इच्छा... बचपन की सहेली की बेटी सीमा से विवाह तय कर दिया। इन्होंने भी बिना ना-नुकुर के हामी भर दी। तब से अकेलेपन से उनका रिश्ता टूट गया है। बीच-बीच में माँ कभी पोता होने के लिए कोई मन्नत मानने, कोई पाठ रखवाने, किसी सिद्ध बाबा की जड़ी देने के लिए आती रहती हैं।

उनकी दिनचर्या भंग नहीं हो पाई थी। सब कुछ उसी तरह से चल रहा था, जो अनुकंपा के आधार पर मिली इस नौकरी के लिए सीतामढ़ी आने के बाद शुरू हुआ था। ऊँचे-ऊँचे सपने नहीं थे उनके, न उच्च शिक्षा प्राप्त न कर पाने का कोई मलाल। कहते छोटे शहर में रहने के लिए छोटा बनकर रहने में ही भलाई है। अपने दादाजी की सुनाई एक कहावत वे अक्सर सुनाया करते - संसार में अगर संतोष से जीना है तो अपने से आगेवालों को नहीं पीछेवालों को देखना चाहिए। आप पाएँगे कि बहुत सारे लोग हैं जिनकी अवस्था आपसे भी बुरी है, बहुत सारे लोग हैं जो बुनियादी सुविधाओं से भी महरूम हैं। आगे वालों को देखने से महत्वाकांक्षा पैदा होती है, जिसके पूरा न होने पर असंतोष होता है।

चंद्रचूड़जी का जीवन पहले की तरह ही संतोषपूर्वक चलता रहता अगर उनका साला रितेश फ्रांस न गया होता।

वहाँ से उनके लिए रेड वाइन लेकर नहीं आया होता, पेत्रूस रेड वाइन...

उनकी शादी के साल रितेश दिल्ली में कंप्यूटर का कोर्स कर रहा था, संयोग देखिए अगले साल मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी मिल गई... तीसरे ही साल कंपनी ने ट्रेनिंग के लिए फ्रांस भेज दिया... उनके जानने वालों में पहला आदमी था रितेश जो विदेश गया। कभी सोचा नहीं था उनका कोई इतना करीबी रिश्तेदार कभी विदेश भी जाएगा।

विदेशी के नाम पर उनके पास एक अंग्रेज की लिखी चिट्ठी थी। दादाजी के नाम की। देश की आजादी के समय दादाजी मिडिल स्कूल में अध्यापक थे। स्कूल का प्रिंसिपल अंग्रेज था। चिट्ठी उसी ने लिखी थी। अपने देश लौटकर उसने दादाजी को चिट्ठी लिखकर उनके सहयोग के लिए आभार जताया था। दादाजी से मिलने उस गाँव में जो भी आता उसे वह चिट्ठी दिखाते। धीरे-धीरे आसपास के गाँवों में जो भी हमारे परिवार को जानता था वह इस तथ्य से भी अवगत होता था कि हमारे परिवार के किसी व्यक्ति को किसी अंग्रेज ने विलायत से चिट्ठी लिखकर हाल-समाचार पूछा था।

उस दिन चंद्रचूड़जी ने चिट्ठी सँभाल कर रख ली थी जब पहली बार अखबार में यह पढ़ा कि इस तरह की सामग्री को एंटीक कहा जाता है। जिसकी संसार के बड़े-बड़े शहरों में नीलामी होती है। लोग लाखों-करोड़ों देकर ऐसे धरोहरों को खरीदते हैं। हो सकता है उस विलायती बाबू की चिट्ठी भी किसी दिन एंटीक मान ली जाए और वह भी हजारों-लाखों में नीलाम हो जाए।

एक दिन उनका कोई सगा विदेश जाएगा और उनके लिए वहाँ से ऐसा दुर्लभ तोहफा लेकर आएगा, ऐसा उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था।

बताया तो था पत्नी ने, रितेश कह रहा था कि वह जीजाजी के लिए स्पेशल कुछ लेकर आने वाला है। सरप्राइज...

परफ्यूम लेकर आएगा, इंडिया टीवी का समाचार देखते चंद्रचूड़जी ने मन ही मन सोचा। फ्रांसीसी सेंट लगाकर जब वे ऑफिस जाएँगे तो कोई समझ भी नहीं पाएगा किस ब्रांड का है। किसी ने कभी फ्रांसीसी सेंट लगाया हो तब ना... सोचकर उनके होंठो पर मुस्कराहट ऐसे फैली कि देखकर पत्नी को कहना पड़ा -

क्या सोच-सोच कर मुस्की छोड़ रहे हैं...

कुछ नहीं, देख रही हो समाचार के नाम पर क्या-क्या दिखाते रहते हैं... चंद्रचूड़जी ने हड़बड़ाते हुए जवाब दिया।

केवल फ्रांसीसी परफ्यूम लेकर ही नहीं आया था रितेश। टीशर्ट, शेविंग किट, चॉकलेट और छोटे-मोटे अनेक तरह के सामान लेकर आया था।

'एतना समान लाने का क्या जरूरत था', सारा सामान समेटते हुए रितेश से उन्होंने कहा।

आप एक ही तो जीजाजी हैं मेरे, आपके लिए नहीं लाता तो किसके लिए लाता। छोटा-मोटा सामान सब है। हवाई जहाज में अगर सामान का वजन तीस किलो से अधिक हो जाए तो एक्स्ट्रा चार्ज करते हैं। नहीं तो कुछ बढ़िया सामान लाता।

'अरे, क्या बात करते हैं रितेशजी, बिदेश में तो समान बहुत महँगा भी होता है। सुनते हैं वही समान अब अपने देश में बड़ा सस्ता मिल जाता है।'

नहीं जीजाजी, जो समान वहाँ मिलता है वह यहाँ कहाँ मिलेगा। यहाँ तो सारा चाइनीज माल मिलता है। उसी पर मेड इन इंग्लैंड, मेड इन फ्रांस लिख देते हैं। लेकिन अंतर तो यूज करने पर ही समझ में आता है। देखिए रेड वाइन तो अब इंडिया में भी बनने लगा है... महाराष्ट्र में लोग बताते हैं सस्ता भी मिलने लगा है... लेकिन पीजिएगा न तो आपको क्वालिटी का अंतर खुद ही समझ में आ जाएगा... ऐसा वाइन तो बस फ्रांस में ही मिल सकता है। इसीलिए तो फ्रांसीसी रेड वाइन की संसार भर में बड़ी माँग है। कहावत है, वाइन बनाना और खाना खाना फ्रांसीसियों से सीखना चाहिए...

दक्षिण फ्रांस की वादियों के बेहतरीन लाल और काले अंगूरों के मिश्रण से तैयार होने वाले पेत्रूस वाइन की दक्षिण अमेरिका के देशों में बड़ी माँग है। कीमत पचास यूरो से शुरू होती... रघुनंदन साइबर कैफे, महंथ साह चौक में गूगल सर्च पर मिली इस जानकारी से उनको रोमांच हो आया था। रितेश ने फ्रांसीसी वाइन की ऐसी महिमा बखान की कि उसके जाने के बाद सबसे पहले उन्होंने साइबर कैफे में जाकर उसकी बातों की सचाई जाँचने की कोशिश की... रितेश सच कह रहा था... रेड वाइन रईसों की शान समझी जाती है। हाईसोसायटी में शराब नहीं रेड वाइन परोसी जाती है। घर में तरह-तरह की रेड वाइन रखना अमीरों का नया शगल है...

साइबर कैफे से बाहर निकलकर जब वह रिक्शे का इंतजार कर रहे थे, उन्हें अचानक अपने बालसखा कैलाशपति की बात याद आ गई। उसके बारे में सब कहते कि पहले गाँजा-चरस ही बेचता था अब तो दिल्ली-मुंबई में हेरोइन, कोकीन भी पार्टी लोगों को पहुँचाने लगा है। एक बार मिलने पर उन्होंने उससे पूछ लिया था। जवाब में उसने हँसते हुए कहा था, तस्करी तो नहीं करता सेवन जरूर करता हूँ।

लेकिन ये सब तो ड्रग्स होते हैं, जीवन को बर्बाद करने वाले, आश्चर्य से उन्होंने कहा।

प्यारे, तुम तो नहीं पीते हो! तुम ही बता दो तुम्हारा जीवन कौन सा आबाद हो गया! पता है इनका सेवन कौन लोग करते हैं, अखबार तो पढ़ते होगे, किस-किस तरह के लोग इसके सेवन के आरोप में पकड़े जाते हैं - बड़े-बड़े फिल्म अभिनेता, क्रिकेट खिलाड़ी, फैशन डिजाइनर, बड़े-बड़े नेताओं के रिश्तेदार... अगर मैं तुम्हारी तरह कभी-कभार पत्नी के पीठ पीछे शराब पीता होता तो आज मैं भी किसी बैंक में थोड़े से पैसों के लिए नोट गिनने की नौकरी कर रहा होता। चरस पीता हूँ, कोकीन चखता हूँ तो समाज के बड़े-बड़े लोगों की संगत में बैठता हूँ... उनकी ही मदद से एक्सपोर्ट का काम करता हूँ। लोगों को लगता है तस्करी करता हूँ। कभी कोकीन चखने का मन हो तो आ जाना। ईमान से, ऐसा नशा कभी किया नहीं होगा। अपनी कमाई से चाहो भी तो इसका नशा नहीं कर सकते हो तुम, समझे! रईसों का नशा है, रईसों की सोहबत में बैठकर किया जाता है।

उस दिन से उनके दिमाग में यह बात बैठ गई थी कि कोकीन का नशा ही दुनिया का सबसे महँगा नशा होता है इसीलिए अमीरों के वह शान की चीज समझी जाती है। लेकिन उस दिन उनको समझ में आया, रेड वाइन रईसों के बीच फैशनेबल समझी जाती है। और इसका सेवन कोकीन या हेरोइन की तरह छिपकर नहीं करना पड़ता...

तो कम से कम तीन हजार की है यह बोतल जो रितेश उनके लिए लेकर आया है। शराब तो कम ही पीते थे। कभी-कभार दोस्तों के साथ, कभी छुट्टी के रोज... जब पत्नी मायके जाती तो जरूर मौका देखकर अक्सर पीने लगते थे। लेकिन वैसे उनको कोई लत नहीं थी।

अपने आप पर गर्व हो रहा था उस दिन... इतनी महँगी शराब शहर में कितने लोग पीते होंगे, शराब तो हो सकता है बहुत लोग पीते हों... अफसर... नेता... ठेकेदार... डॉक्टर... ढाई-तीन हजार रुपए का मोल ही क्या रह गया है आजकल... शहर में कितने डॉक्टर हैं जिनकी रोज की प्रैक्टिस ही इससे अधिक होगी... अफसर तो अफसर कितने बाबू-किरानी ऐसे होंगे जो एक दिन में टेबल के नीचे से इससे ज्यादा रकम खिसका लिया करते होंगे... राकेश भइया, उनके मामा के लड़के, ने अपने मुँह से बताया था। परिहार ब्लॉक में बीडीओ के पीए बनकर गए उनको छह महीने हुए थे जब वे उनसे मिलने गए थे - बड़ा बढिया पोस्टिंग है... दिनभर में इतने लोग आते हैं कि पाँच सौ-हजार तो सलामी में ही मिल जाते हैं। साहब से मिलवाने का अलग, फाइल पर साइन करवाने का अलग, लोन दिलवाने का अलग, वृद्धावस्था पेंशन का अलग... दिन भर में ढाई-तीन हजार तो बिना माँगे मिल जाता है...

उनका मुँह खुला रह गया था।

पैसा कोई कितना ही कमा ले रेड वाइन तो नहीं खरीद सकता, सोचकर उनको कुछ संतोष हुआ। वह भी फ्रांसीसी रेड वाइन... इंटरनेट पर उन्होंने खुद पढ़ा था कि दक्षिणी फ्रांस की वादियों के अंगूरों में खास तरह का खट्टापन लिए मिठास होती है, जिससे वहाँ की वाइन के स्वाद में हल्का तीखापन आ जाता है जो पीने वाले को अपने स्वाद का दीवाना बना देता है।

साइबर कैफे से रिक्शे पर बैठकर घर लौटते हुए उन्हें मन ही मन अपने आप पर गर्व हो रहा था और अपनी पत्नी पर ढेर सारा प्यार उमड़ रहा था... वह न होती तो रितेश जैसा साला नहीं होता। जिसके कारण आज वे एक ऐसी दुर्लभ वस्तु के मालिक हो गए थे जिससे शहर के गणमान्य लोगों में वे गिने जा सकते थे। रेड वाइन तो दिल्ली-मुंबई जैसे शहरों में भी कम ही लोग पी पाते हैं। यहाँ सीतामढ़ी में...

अगर इसके आधार पर शहर के गणमान्य लोगों की सूची तैयार की जाए कि रेड वाइन की मिल्कियत किन-किन लोगों के पास है तो चंद्रचूड़ किशोर का नाम उसमें प्रमुखता से आएगा... सोचते-सोचते वे इतने उत्तेजित हो गए कि उसी तरंग में रिक्शेवाले से बोले - जल्दी-जल्दी पैडल काहे नहीं मारता है... ऐसे चलाएगा तो कितना देर में कोर्ट बाजार पहुँचेगा...

रिक्शावाला रिक्शा रोककर पीछे मुड़कर उनको देखने लगा।

ऐसा नहीं है कि इससे पहले रेड वाइन के बारे में उन्होंने सुना ही न हो। स्कूल के दिनों का उनका एक दोस्त महाशय मुंबई में अंग्रेजी के डी अक्षर से शुरू होनेवाले टीवी सीरियल बनाने वाली एक मशहूर कंपनी में प्रोडक्शन मैनेजर बन गया था। उसने कोई साल भर पहले उनको एक कहानी सुनाई थी जिसका संबंध रेड वाइन से था...

उसने बताया कि कहीं भी शूटिंग हो प्रोडक्शन से जुड़े लोगों का काम होता है वहाँ का सारा इंतजाम देखना। मैं एक्टर्स का इंतजाम देखता... किस एक्टर को कब किस चीज की जरूरत पड़ जाए इसका ध्यान रखना, कोई सुबह के नाश्ते में केवल अंडा खाता है, किसी को अंडे की सूरत से भी नफरत होती है, कोई केवल ताजे संतरे का जूस पीना पसंद करता है, कोई दूध में गाजर का जूस मिलाकर पीता है, किसी को बिना बाथटब के बाथरूम में नहाने की आदत नहीं होती, किसी को मिनरल वाटर से नहाने की आदत होती है... सबका ध्यान रखना पड़ता है... आउटडोर शूटिंग में कब कौन नाराज हो जाए और शूटिंग का शेड्यूल बिगड़ जाए...

किस्सा सुनाते हुए उसने बताया - एक बार हम लोग उतराखंड के रानीखेत में सीरियल की शूटिंग कर रहे थे... उसमें शोभित राय की मुख्य भूमिका थी। उसके साथ मैंने पहले कहीं काम तो किया नहीं था। मुझे उसकी पसंद-नापसंद के बारे में कुछ पता नहीं था। प्रोड्यूसर कंजूस नहीं था। उसने खूब बढ़िया इंतजाम कर रखा था। लेकिन शाम होते-होते माहौल ऐसा बिगड़ा कि सारा इंतजाम किसी काम नहीं आया। शूटिंग खत्म होने के बाद शाम में शोभित राय ने प्रोड्यूसर से कहा, रेड वाइन चाहिए। प्रोड्यूसर ने कहा होटल वाले ने एक से एक स्कॉच का इंतजाम कर रखा है। आज इसी से काम चलाइए, पहाड़ी इलाका है... कल किसी को शहर भेजकर मँगवा दूँगा... अँधेरा घिर रहा है... अभी किसी को भेजना खतरनाक होगा... रोड की हालत खराब है...

शोभित राय टीवी का सुपरस्टार! फैल गया। बोला मैं तो रेड वाइन के अलावा कुछ पीता भी नहीं हूँ। सिर्फ पीने की बात नहीं है, मुझे तो डॉक्टर ने कह रखा है रोज शाम खाने से पहले एक बोतल रेड वाइन पीना हेल्थ के लिए बहुत अच्छा होता है। मेरी तो तबीयत खराब हो जाएगी, कहकर उसने अपना कमरा अंदर से बंद कर लिया। प्रोड्यूसर ने मुझे ऑर्डर दिया, कहीं से कम से कम एक बोतल रेड वाइन लेकर आओ। एक बात जानते हो, प्रोडक्शन का आदमी बहाने नहीं बना सकता। उसे हर हाल में प्रोड्यूसर का कहा पूरा करना पड़ता है। चाहे जो हो जाए... उसने संजीदा होते हुए बताया।

रानीखेत जैसे पहाड़ी शहर में रेड वाइन! लेकिन लाना तो था ही। किसी होटल में नहीं मिला। जंगल विभाग के अफसरों के घर पुछवाया, अगर एक बोतल है तो दिलवा दीजिए, चाहे जो कीमत ले लीजिए। होता तो मिलता। मेरे प्रोडक्शन के कैरियर में पहली बार ऐसा होने जा रहा था कि प्रोड्यूसर से जाकर कहना पड़ता - काम नहीं हुआ। कहने की नौबत नहीं आई। मोटरसाइकिल से आधे रास्ते ही पहुँचा था कि गोल्फ कोर्स के मैनेजर का घर दिखाई दिया। मैंने कुछ सोचकर उसके घर के आगे गाड़ी रोक दी। मुझे लगा गोल्फ का खेल बड़े-बड़े लोग ही खेलते हैं। बड़े-बड़े लोगों का यहाँ आना-जाना होता होगा। क्या पता इसके पास किसी ने हिफाजत के लिए रख छोड़ा हो। पूछने पर उसने कहा, है तो एक बोतल, लेकिन पाँच हजार रुपए लूँगा। मेरी जान में जान आई। शूटिंग का शेड्यूल गड़बड़ाने से रह गया।

उस दिन सोते समय चंद्रचूड़जी बड़ी देर तक अभिनेता शोभित राय के ललाई लिए चेहरे के बारे में सोचते रहे और यह अनुमान लगाते रहे कि कितने दिन रेड वाइन पीने से उनका चेहरा भी ऐसे ही लाल हो जाएगा...

इतना सामान लाया था रितेश कि ऑफिस में हेड कैशियर को भी उन्होंने मेड इन फ्रांस पेन भेंट कर दिया। आखिर उनका बॉस था। इस ताकीद के साथ कि आपके लिए तो साले से बोलकर खास तौर पर मँगवाया था। आपको पेन का बहुत शौक है न। किसी को बताइएगा नहीं पेन आपको मैंने दिया है। समझ रहे हैं न! सबके लिए वहाँ से कुछ लाने के लिए तो कह नहीं सकता था।

'आप एतना ध्यान रखते हैं मेरा। मेरा भी तो कुछ फर्ज बनता ही है न, पान रँगे दाँतों को निपोरते हुए हेड कैशियर नमोनारायण जी जवाब में बोले।

ऑफिस में उनसे सब पूछते आपका साला फैशन की नगरी पेरिस गया था, वहाँ से क्या लेकर आया। किसी से कहते कि वहाँ अब पहले वाली बात नहीं रही। अब ऐसा क्या नहीं मिलता है हमारे देश में कि विदेशी सामान की बाट जोही जाए। किसी से कहते जो सामान यहाँ सस्ता मिलता है उसी पर मेड इन फ्रांस लिखकर वहाँ महँगा बेचते हैं। क्या फायदा! पूछा था उसने क्या लाऊँ, मैंने ही मना कर दिया। ऑफिस के सहकर्मी कहाँ मानने वाले थे। वे भी रोज-रोज पूछते। आखिर इस पूछापूछी से तंग आकर एक दिन वे घर से चॉकलेट लेकर आए और ऑफिस में सबको बाँट दिया।

बताना चाह रहे थे कि उनका साला उनके लिए फ्रांस से असली रेड वाइन लेकर आया है। फिर सोचते क्या पता कोई ठीक से समझ ही न पाए रेड वाइन का क्या मतलब होता है। ऑफिस में काम करने वाले बाबू-किरानी क्या समझ पाएँगे रेड वाइन की शान को। यही सोचकर सबको बताने का फैसला मुल्तवी कर उन्होंने चॉकलेट बाँटने का फैसला किया।

एक दिन रितेश के बचपन का दोस्त जयदेव मिलने आया। मर्चेंट नेवी में अफसर था। बोला छुट्टी में आया था, सोचा दीदी से भी मिल लूँ। उसके आने पर पत्नी ने उनको एक कोने में ले जाकर कहा, जयदेव मेरे लिए रितेश से कम नहीं है। इसका खातिरबात जरा ठीक से करना है। मौसी की बेटी से इसकी शादी की बात भी चल रही है। क्या पता कल को आपका साढ़ूभाई ही हो जाए, कहकर पत्नी मुस्कराते हुए किचेन में चली गई। अपने सगे से भी बढ़कर भाई के लिए खाना जो बनाना था।

चंद्रचूड़जी ने सोचा जब इतना ही खास भाई है तो क्यों न इसका स्वागत रेड वाइन से किया जाए। बोतल निकालने जा ही रहे थे, सोचा पहले जयदेव से पूछ लिया जाए। उसके पास जाकर बैठ गए और धीरे से बोले - रितेशजी फ्रांस से एक बोतल रेड वाइन लेकर आए थे। मुझे इसका कुछ ज्यादा शौक तो है नहीं। ले आता हूँ, आपके साथ थोड़ा बहुत मैं भी चख लूँगा...

जयदेव ने साफ मना कर दिया।

बोला, पिछले साल मेरा जहाज यूरोप में ही घूमता रहा। वहाँ तो पानी की तरह वाइन पी जाती है। खाने के साथ वहाँ लोग पानी नहीं वाइन पीते हैं। वाइन पी-पी कर मैं ऊब चुका हूँ। वहाँ तो आम आदमी भी वाइन ही पीता है। लेकिन अपने देश में वाइन को बड़े लोगों का शौक समझा जाता है। बड़े-बड़े अफसर-मंत्रियों को अगर उपहार में वाइन दिया जाए, वह भी विदेशी तो काम होने की संभावना बढ़ जाती है। मेरा एक दोस्त है। रेलवे में अफसर है। उसकी पोस्टिंग बहुत दिनों से दूर-दराज के इलाकों में हो रही थी। किसी अच्छे शहर में तबादले के लिए वह खूब कोशिश कर रहा था। लेकिन कुछ हो नहीं पा रहा था। उसे किसी ने बताया कि चेयरमैन केवल पैसे से ही प्रभावित नहीं होता। वह वाइन का बहुत शौकीन है। अगर वाइन के साथ उससे मिलो तो शायद कुछ काम बन जाए।

उसने मुझसे बात की। संयोग से मैं यूरोप से लौटा ही था। मेरे पास इटली की रेड वाइन थी। उसे चार-पाँच बोतल भिजवा दिए। अगले सप्ताह फोन आया कि चेयरमैन ने उसके दिल्ली तबादले का आदेश दे दिया है। दिल्ली में तो कहा जाता है कि किसी को खुश करना हो तो उसे रेड वाइन तोहफे में देना चाहिए। कितनी भी महँगी शराब आप किसी को दें उसमें वह बात नहीं होती जो एक बोतल वाइन में होती है। वह भी अगर रेड वाइन हो तो क्या कहने! मैं पीने के लिए नहीं प्रभावशाली लोगों को उपहार में देने के लिए वाइन खरीदता हूँ, जयदेव बोला।

वैसे, कौन सी वाइन है, थोड़ा रुककर उसने फिर पूछा।

जवाब में चंद्रचूड़जी अंदर से बोतल निकाल लाए।

पेत्रूस... अरे, यह तो फ्रांस की बड़ी मशहूर वाइन है। यहाँ इंडिया में तो बहुत मुश्किल से ही मिलती है। मिलती भी है तो बहुत महँगी... लीजिए, ठीक से रख लीजिए, उसने उलट-पुलटकर बोतल देखने के बाद वापस देते हुए कहा।

उस दिन उनको समझ में आया कि कितनी बड़ी चीज उनके हाथ लग गई है। रितेश ने उनके हाथ एक ऐसी चीज दे दी है जिसके माध्यम से वह देश के न सही शहर के ताकतवर लोगों तक तो पहुँच ही सकते हैं। शहर के प्रभावशाली लोगों के साथ कुछ देर बैठ सकते हैं।

बोतल को उन्होंने बहुत सँभालकर रख दिया। छिपाकर...

उस दिन से पेत्रूस रेड वाइन की बोतल को लेकर तरह-तरह की योजनाएँ उनके दिमाग में चलने लगीं। कभी-कभी पत्नी टोकती पी के तो देखिए, कैसा लगता है, एतना दूर से आपके लिए लाया मेरा भाई। कहते, अभी नहीं। रितेश ने भी कई बार फोन पर पूछा, पीकर देखा जीजाजी, कैसा लगा, जवाब देते अगले महीने पाँच दिन की छुट्टी पड़ने वाली है, तब इत्मीनान से इसका स्वाद लूँगा।

जबसे जयदेव मिलकर गया था वे वाइन पीने के बारे में कम किस उपयुक्त व्यक्ति को उसे दिया जाए इसके बारे में अधिक सोचने लगे थे। वे समझ गए थे जो काम किसी भी तरह नहीं हो पा रहा हो उसे रेड वाइन संभव बना सकती है...

यह आपको किसी के करीब ला सकती है। उनके मुहल्ले में जिला भाजपा अध्यक्ष नरेश शर्मा रहते थे। कभी आते-जाते वे दिख जाते, चंद्रचूड़जी उनको नमस्कार करते तो वे जवाब में कभी सिर हिला देते या कभी हाथ उठाकर हिला देते। एकाध बार उन्होंने इनका हालचाल भी पूछ लिया था। वे सोचने लगे अगर उनको रेड वाइन दे आएँ तो अच्छी पहचान हो जाएगी... शहर में रहना है तो किसी न किसी प्रभावशाली आदमी से संबंध बनाकर जरूर रखना चाहिए। वैसे भी प्रांत में भाजपा की सरकार है, इससे सरकार में पहुँच भी हो जाएगी। क्या पता कल क्या काम पड़ जाए।

कल को बाल-बच्चे होंगे। पिछले महीने जब माँ रामनवमी का मेला देखने आई थी तो बता रही थी गाँव में नेपाल से एक सिद्ध महात्मा आए थे। उन्होंने माँ का मुँह देखते ही कहा, तेरे घर में बड़ा प्रतापी बालक आने वाला है।

अगर हुआ तो कल को बड़ा भी होगा। स्कूल में उसका नाम लिखवाना पड़ेगा। शहर के अच्छे स्कूलों में नाम लिखवाने के लिए या तो डोनेशन देने के लिए मोटा पैसा चाहिए या किसी प्रभावशाली आदमी की पैरवी। पैसा तो है नहीं, ऐसे में रेड वाइन की यह बोतल प्रभावशाली आदमी तक तो पहुँचा ही सकती है। शहर में पत्नी के साथ रहते हैं। भगवान न करे कुछ हो, लेकिन अगर कल को कुछ हो गया तो मदद के लिए कोई मजबूत सहारा तो चाहिए।

बस एक समस्या थी। सुबह-सुबह लोहापट्टी के हनुमान मंदिर में पूजा करके माथे पर रोली का टीका लगाने वाले नरेश शर्मा के बारे में उनको यह मालूम नहीं था कि वे सुरा का सेवन करते हैं या नहीं। चाहते तो उनसे मिलने-जुलने वालों से पता लगा सकते थे, लेकिन अगर किसी ने कुछ गलत-सलत बता दिया तो... पता चला लेने के देने पड़ गए। उनसे संबंध बनाने से फायदा हो न हो उनकी नाराजगी से नुकसान तो जरूर हो जाता। बहुत सोच-विचार कर उन्होंने यही तय पाया कि पूरी तरह पता करने के बाद ही उपहार में यह बोतल किसी को देंगे। कम से कम उसको जो इसके महत्व को समझता हो। जो इसके रुतबे से वाकिफ हो।

ऑफिस में दूर-दूर तक प्रमोशन का कोई चांस नहीं था। इसलिए दो-एक बार बड़े साहब को देने का खयाल मन में आया भी तो उस पर उन्होंने ज्यादा विचार नहीं किया। उल्टे साहब को देने से इस बात का खतरा था कि पीने के बाद अगर उनको पसंद आ गया तो हो सकता है वे बार-बार इसकी माँग करें - मिस्टर किशोर, इस बार आपके ब्रदर इन लॉ जब विदेश जाएँ तो उनसे ये वाली वाइन जरूर मँगवा दीजिएगा। और हाँ, इस बार आपको मुझसे पैसे लेने पड़ेंगे। पूछ लीजिएगा, कितने का था... बाहर तो सुनते हैं सस्ता मिलता है... ये सब आइटम... हें...हें...हें...

अगली बार नहीं देता तो नाराज और हो जाते! अब बार-बार ट्रेनिंग के लिए कंपनी रितेश को फ्रांस तो भेजेगी नहीं... भेज भी दिया तो वह बार-बार रेड वाइन लाएगा नहीं... वह तो पहली बार गया था... सोचा होगा कुछ ऐसा ले चलते हैं जो जीजाजी को भी याद रहेगा... बाद में कहेंगे - जब रितेशजी पहली बार विदेश गए थे तो वहाँ से रेड वाइन लेकर आए थे...

इसलिए बॉस को देने के खयाल के खयाल से भी वे भागने लगे।

इधर कुछ दिनों से चंद्रचूड़जी कुछ परेशान चल रहे थे। नहीं कुछ खास नहीं... ऐसे ही... उनके पड़ोस में एक कोठी है। जबसे उन्होंने किराए पर यह मकान लिया तबसे उसके गेट पर ताला पड़ा था। महीने-दो महीने पर कोई आता साफ-सफाई करवा जाता। सुनते किसी इंजीनियर साहब का मकान है। अमेरिका में रहते हैं। दो महीने पहले ही उसका ताला खुला... उसमें आकर कोई नौजवान रहने लगा है। महादेव किराना भंडार वाले राघवजी बता रहे थे, इंजीनियर साहब का बेटा है, अभी छह-आठ महीने रहेगा। इंजीनियर साहब के शहर में तीन मकान हैं, गाँव में कुछ खेती-बाड़ी-घरारी... सबका हिसाब करने आया है... अब एतना प्रोपरटी बेचना है तो समय तो लगेगा ही न...

वे क्या, आसपास के लोग भी उसे कम ही देख पाते थे। गेट अब भी बंद ही रहता था, लेकिन अंदर से... कभी-कभी गेट के बाहर कोई बड़ी गाड़ी रुकती उससे कोई बड़ा आदमी उतरता, गेट खुलता वह अंदर चला जाता, गेट फिर बंद हो जाता... कभी कोई और गाड़ी इसी तरह आती...

उनको इस सबसे कोई परेशानी नहीं थी...

वह बड़ी तेज आवाज में म्यूजिक बजाता था। वह भी आधी-आधी रात में... उनको लगता जैसे अपने घर में ही स्टीरियो बज रहा हो। वह भी पता नहीं कौन-कौन से अंग्रेजी गाने! कई बार सोचा जाकर गेट खटखटाएँ और कहें... भाई साहब! यहाँ आसपास और लोग भी रहते हैं। आपको नींद नहीं आ रही है तो हमारी नींद क्यों खराब करते हैं, रात को सोचते सवेरे कहेंगे, सवेरे सोचते ऑफिस से लौटकर शाम को इत्मीनान से रिक्वेस्ट करेंगे... हर दिन गेट खटखटाना, कहना अगले दिन तक के लिए टल जाता... महीनों से टलता आ रहा था...

सोच रहे थे घर बदल लें। लेकिन दिल्ली तो है नहीं कि जब चाहा घर बदल लिया। एक तो इस शहर में इतना अच्छा हवादार घर किस्मतवालों को ही मिलता है। वह भी इतने कम किराए पर। फिर ऐसा शगुनिया घर छोड़ने का मन भी नहीं कर रहा था। यहीं आकर नौकरी ज्वाइन की, यहीं रहते इतनी अच्छी पत्नी मिली, ऐसा साला मिला जो उनके लिए फ्रांस से रेडवाइन लेकर आया...

उस बंद गेट वाले बँगले में रहने वाले उस अमेरिका पलट लड़के से वे आजिज आ चुके थे। दिन भर ऑफिस में रहते हैं। घर में पत्नी अकेली... अब कहीं... नहीं-नहीं! अपनी पत्नी सीमा पर तो उनको पूरा भरोसा है... लेकिन आजकल का जमाना ही कुछ ऐसा हो गया है। सब चमक-दमक के पीछे भागने लगे हैं। क्या भरोसा... जब भी ऐसा खयाल उनके मन में आता जी करता उस हाई-फाई भाई की ऐसी-तैसी कर दें। ऐसा कुछ कर दें कि अंग्रेजी गाना सुनना भूल जाए। लेकिन...

कई बार मन में आया पिटवा दें। लेकिन सीतामढ़ी शहर में तो वे अपने ऑफिस वालों को ही जानते थे। उनमें से किसी से इस मामले में शायद ही मदद मिल पाती। उन्होंने शहर के नामी बदमाश नवाब सिंह के बारे में सुन रखा था। एकाध बार मेन रोड सीतामढ़ी से एक सफेद क्वालिस को उन्होंने तेजी से गुजरते देखा था। उसे देखते ही लोग सड़क से किनारे की ओर हटने लगते। बताते गाड़ी में नवाब सिंह जा रहा था... उसके बारे में मशहूर था कि जिसका नहीं भाई-बाप, उसका है नवाब! मन में एकाध बार आया आया उससे जाकर कहें हमें परेशान कर रहा है, जरा उस अमेरिकी बाबू का गुरूर तोड़ दीजिए... मगर अकेले उसके पास जाने की हिम्मत नहीं हुई।

मन में आया उसे जाकर वाइन दे आऊँ तो काम भी बन जाएगा... शहर के एक बड़े आदमी से पहचान भी हो जाएगी। शहर के मामले में महादेव किराना भंडार वाले राघवजी बरसों से उसके मार्गदर्शक-पथप्रदर्शक थे। उनका कहना था - शहर में छाती तानकर चलना है चंदरचूड़ बाबू तो किसी बड़ा आदमी से राम-सलाम बहुत जरूरी है। चाहे किसी अफसर से हो चाहे नवाब सिंह जैसे रंगदार से... अगर एक बोतल रेड वाइन से नवाब सिंह से बढ़िया राम-सलाम हो जाए तो क्या बुरा...

जब इस बात पर उन्होंने कई बार विचार किया तो उन्हें इसमें कुछ-कुछ बुराई दिखने लगी। शहर में पति-पत्नी बस दो प्राणी हैं। कहीं घर आने-जाने लगा... वे तो दिन भर ऑफिस में रहते हैं... कहीं कुछ हो गया तो... अमेरिकापलट के अंग्रेजी गाने से तो नवाब सिंह हो सकता है मुक्ति दिला दे, लेकिन नवाब सिंह से कौन बचाएगा...

एक दिन मन हुआ जाकर अपने पुराने सर साइंस कॉलेज के प्रोफेसर मदनानंदजी को गिफ्ट कर आएँ। उन्होंने इंटर से बीए तक अपने इस होनहार शिष्य को बिना पैसे लिए ही ट्यूशन पढ़ाया था। उस दौरान अपने गुरु के सबसे प्रिय शिष्य होने के कारण वे अच्छी तरह जानते थे प्रोफेसर साहब को तरह-तरह की शराब पीने और पीने से भी ज्यादा रखने का बहुत शौक था। अगर उनको रेड वाइन दें तो वे सचमुच बहुत खुश होंगे... अपने इस होनहार शिष्य को दुआएँ भी बहुत देंगे... और कुछ उनके लिए नहीं कर पाए यह छोटी सी खुशी तो उनको दे ही सकते हैं।

उनको देने से क्या फायदा होता, यह सवाल जब चंद्रचूड़जी के जेहन में कौंधा तो बार-बार कौंधने लगा। ठीक है अतीत में प्रोफेसर साहब के बड़े अहसान रहे हैं उनके ऊपर, लेकिन आदमी की मुश्किल यही होती है कि उसे भविष्य के सपनों के लिए जीना पड़ता है। उनके वर्तमान जीवन में प्रोफेसर साहब का कोई रोल नहीं रह गया था, भविष्य की कोई उम्मीद भी उनसे नहीं रह गई थी। वह तो उसी दिन समाप्त हो गई थी जिस दिन अनुकंपा के आधार पर मिली यह नौकरी उन्होंने ज्वाइन कर ली और सीतामढ़ी आ गए...

रेड वाइन तो किसी ऐसे आदमी को देना चाहिए जिससे समाज में उनका कुछ रुतबा बढ़े। जिससे शहर के किसी बड़े आदमी के साथ कम से कम उनको बैठने का मौका मिले। प्रोफेसर वह भी रिटायर किस काम के... उन्होंने इस बारे में भी सोचना छोड़ दिया!

उनकी उधेड़बुन बढ़ती जा रही थी। किसी एक आदमी को देने के बारे में सोचते कि किसी दूसरे का ध्यान आ जाता। वे पिछले की जगह उस आदमी को देने का मन बनाने लगते। ऐसा कौन हो सकता था जिसे वे गिफ्ट देते तो वह न केवल खुश होता उनको अपने अजीजों में भी शामिल कर लेता। उनके छोटे-बड़े काम चुटकियों में करवा देता। शहर में उनको भी छाती फुलाकर चलने का मौका देता। उन्हें मिथिलेश ठाकुर की याद आई। दिल्ली से पढ़कर आया था। सबसे छिप-छिपकर रहता। सब कहते दिल्ली गया था पढ़ने। किस्मत का ऐसा मारा है, कुछ कर नहीं पाया बेचारा। दिल्ली जाते तो बहुत लोग हैं, बाकी आईएएस, आईपीएस कोई-कोई ही बन पाता है।

देखते-देखते मिथिलेश की किस्मत ही बदल गई। दिल्ली के रामजस कॉलेज में उसका एक सहपाठी रमेश चंद्रा मुजफ्फरपुर का कलेक्टर बनकर आ गया। कलेक्टर बनकर ही नहीं आया अपने पुराने सहपाठी के घर आने-जाने लगा, अपनी लालबत्ती वाली गाड़ी में उसको घुमाने लगा। कहीं भी निकलता लोग कहते देखो, कलेक्टर साहब का दोस्त जा रहा है... शहर में वह सिर झुकाकर नहीं सिर उठाकर चलने लगा था। उसके दरवाजे पर भी मिलने वालों की भीड़ लगी रहती। शायद ही कोई आदमी ऐसा रहा हो शहर में जो मिथिलेश को न पहचानने लगा हो।

चंद्रचूड़ जी की और भी मुश्किलें थीं। पिताजी के मरने के बाद पुश्तैनी घर पर पट्टीदारों ने कब्जा कर लिया था। कोई उनकी शिकायत सुनने वाला भी नहीं था। थाना-पुलिस, कोर्ट-कचहरी में हजारों खर्च हो जाते और कुछ हाथ भी नहीं आता। चुपचाप सोचते रहते किसी तरह कलेक्टर के पास शिकायत करने का मौका मिल जाए तो शायद उनको उनका हक मिल जाए।

डीएम तक पहुँच पाने का कोई रास्ता ही नहीं सूझ रहा था...

एक दिन वैशाली चाट भंडार में मिक्स्ड चाट खा रहे थे। बगल में दो आदमी बतिया रहे थे। एक कह रहा था नया डीएम साहब के बारे में सुने हो। कलेक्टेरियट में कल कोई बता रहा था कि शाम होते ही मस्त हो जाते हैं, आठ बजे के बाद किसी से नहीं मिलते। उसके बाद काले शीशे वाली गाड़ियाँ आने लगती हैं, आधी-आधी रात तक महफिल जमी रहती है... इसके आगे की बातचीत पर उन्होंने ध्यान ही नहीं दिया। बस, यही बात उनके दिमाग में अटक गई। उनको यह सुनहरा मौका लग रहा था शहर के राजा से संबंध बनाने का। याद रखो, देश में तीन ही आदमी का तंत्र चलता है - डीएम, सीएम और पीएम, बाकी ई लोकतंत्र, जनतंत्र सब बेकार की बातें हैं। उनको अपने गाँव के शिवशंकर मास्साब की बरसों पुरानी कही बात याद आ गई। डीएम साहब के बारे में मिली इस जानकारी में उनको अपना पुश्तैनी घर वापस मिल सकने की उम्मीद दिखाई देने लगी।

शाम होते ही मस्त हो जाने वाले डीएम साहब तो रेड वाइन पाकर बहुत खुश हो जाएँगे। पेत्रूस एक ऐसी वाइन है जिसे पाकर शायद कोई ऐसा शौकीन न हो खुशी से फूल न जाए, उनको जयदेव की बात याद आई...

इस योजना को कार्यरूप देने के बारे में सोचने लगे तो पहली व्यावहारिक समस्या यह उठ खड़ी हुई कि कलेक्टर साहब तक पहुँचा किस तरह जाए। उनके कर्मचारियों के पास बोतल छोड़कर आने का कोई तुक नहीं बनता था। एक तो इससे इस बात की कोई गारंटी नहीं रहती कि रेड वाइन की बोतल साहब के पास पहुँच जाएगी। दूसरे, अगर कर्मचारियों के माध्यम से बोतल कलेक्टर साहब तक पहुँच भी जाती तो इससे उनको क्या फायदा होता। उनका उद्देशय कलेक्टर साहब को विदेशी वाइन पिलाना तो था नहीं। वे तो उनके साथ उसी तरह संबंध बनाना चाहते थे जैसे दिल्ली में दलाल अफसरों-नेताओं के साथ बनाते थे। रितेश के दोस्त ने बताया था कि बड़े नेता या अफसर घूसखोरी-कमीशनखोरी का काम अपने हाथों से नहीं करते। यह काम वे ऐसे किसी आदमी के माध्यम से करते हैं जो उनको खिला-पिलाकर खुश रखता हो, उन्हें अपना हितैषी दिखाई देता हो।

मिथिलेश के बारे में लोग कहने लगे थे, डीएम उसी के माध्यम से लेन-देन की बात करता है। तभी तो हमेशा साथ-साथ लिए डोलता रहता है। आजकल बिना मतलब के बेटा बाप को नहीं पूछता दोस्त तो बहुत दूर की बात हो गई! उसका एजेंट है एजेंट! क्या पता डीएम साहब उसको ही अपना स्थानीय एजेंट बना लें। जब तक वे वहाँ डीएम रहेंगे तब तक शहर में उसकी इतनी साख बन जाएगी कि उसी रसूख के सहारे आगे का जीवन मजे में कट जाएगा।

जबसे उनका साला विदेश हो आया था उनको महसूस होने लगा था कि उनकी पत्नी उनको उतना आदर नहीं देती थी। पिताजी का जल्दी देहांत नहीं हुआ होता... उनको अनुकंपा के आधार पर मिली यह नौकरी नहीं करनी पड़ती तो आज वह भी कंपटीशन पास करके कम से कम डिप्टी कलक्टर तो बन ही गए होते। लेकिन अब यह सब करने का समय नहीं रह गया था। न सोचने का...

वे भी अपनी पत्नी को कुछ करके दिखाना चाहते थे।

उन्होंने तय किया कि वे कलेक्टर से मिलने का कोई न कोई रास्ता जरूर निकालेंगे... और अपने हाथ से जाकर उनको फ्रांस की मशहूर पेत्रूस वाइन भेंट करेंगे। हो सकता है उसी आगामी मुलाकात में उनके उस संभावित भाग्योदय के संकेत छिपे हों जिसकी ओर देवी मंदिर के पंडित बेनीमाधव मिश्र ने उनका हाथ देखकर संकेत किया था।

वे हर समय सोते-जागते इसी जुगत में लगे रहते कि किस तरह डीएम से मिलने का रास्ता निकाला जाए... एक बार सामने-सामने मिलने का!

एक शाम जैसे ही घर के बाहर उनका रिक्शा रुका। पत्नी गेट खोलकर बाहर आकर उनको देखने लगी। उनको कुछ आशंका हुई। इस तरह पत्नी जब उनको देखने आती है तो जरूर कुछ न कुछ बात होती है। पिछली बार जब इस तरह आई थी तो खाना बनाते-बनाते गैस खत्म हो गया था। यहाँ एक बार गैस खत्म हो जाए तो उसका इंतजाम करना भी तो बड़ी बात होती है। गैस का इंतजाम समय पर न कर पाने के कारण पत्नी को स्टोव पर खाना बनाना पड़ता और उनको शर्मिंदा होना पड़ता था। क्या सोचती होगी पत्नी, कैसे हैं, इतना दिन से शहर में रहते हैं, एलआईसी में काम करते हैं, मगर मौका-कुमौका एक गैस का इंतजाम भी नहीं कर सकते।

खैर... एक बार डीएम से भेंट हो जाए इस तरह की छोटी-मोटी सारी परेशानी दूर हो जाएगी। उनको बार-बार शर्मिंदा नहीं होना पड़ेगा।

रिक्शेवाले को पैसे देकर जल्दी से घर की ओर बढ़े।

गोदरेज वाले आल्मारी में क्या रखे थे, पत्नी ने सवालिया निगाहों से उनको देखते हुए पूछा।

क्या हुआ, उसमें तो कपड़ा है और क्या है, क्या हुआ बात बताओ,

कपड़ा में लपेट कर क्या रखे थे, पत्नी ने सवाल के जवाब में फिर से सवाल दागा।

क्या हुआ, फिर कुछ सोचते हुए बोले, उसमें तो रेडवाइन की बोतल रखी थी। क्या हुआ, अब उनकी आशंका गहरी हो चुकी थी।

आप नाराज मत होइएगा। हमको कहाँ पता था कि आप वहाँ क्या रखे हैं। आपको बता देना चाहिए था न! वहाँ से आपका कुर्ता-पाजामा निकाल रही थी प्रेस करवाने के लिए तो बोतल गिर गया।

क्या टूट गया, अरे, रितेश ही तो बोला था वाइन के बोतल को लिटाकर रखना चाहिए। सीधा खड़ा रखने पर उसका टेस्ट खराब हो जाता है। इसीलिए वहाँ रखे थे। क्या हुआ, टूट गया, बताया नहीं?

और क्या! कपड़ों के बीच से लुढ़क कर गिर गया। वह तो आधा ही बहा था कि मैंने बोतल को खड़ा कर दिया। आधा बोतल बच गया है। दूसरे बोतल में डालकर फ्रिज में रख दिया है...

चंद्रचूड़जी को कुछ सुनाई नहीं दे रहा था. उनकी पत्नी क्या बोले जा रही थी। लग रहा था जैसे सुंदर सपना बीच में ही टूट गया हो। उसी दिन रिमझिम सैलून में उनकी भेंट डीएम के स्टेनो से हुई थी। उसने कहा था, अगले सप्ताह मिलने का टाइम दिलवा दूँगा। वे खुशी-खुशी घर आ रहे थे...

कहाँ सोचा था कि घर आते ही सारी खुशियों का अंत हो जाएगा...

गुस्सा तो बहुत आ रहा था, मगर कुछ बोल नहीं पाए। चुपचाप कमरे में गए और दरवाजा बंद कर लिया। बोलकर करते भी क्या।

चाय बना दूँ! पत्नी की आवाज आई। उन्होंने मना कर दिया।

काफी देर तक संज्ञाशून्य से बैठे रहे। उठे, फ्रिज खोला, बची-खुची वाइन निकाली और पीने लगे। उसका तीखा खट्टा स्वाद लेते हुए... एक बात है रेड वाइन का स्वाद शराब से एकदम अलग होता है, चुस्कियाँ लेते हुए मन ही मन सोचते रहे। वे इस समय फ्रांस की सबसे मशहूर वाइन में से एक का सेवन कर रहे हैं, अचानक उनको ध्यान आया। गर्दन घुमाकर चारों तरफ देखने लगे...

कोई नहीं था...

उस रात उनको गहरी नींद आई। सुबह उठे तो पत्नी हैरत से उनको देख रही थी।

पूछा - क्या हुआ?

आपको रात क्या ठीक से नींद नहीं आई, जवाब में पत्नी ने पूछा।

क्यों?

पता नहीं, आप नींद में क्या-क्या बड़बड़ा रहे थे - डीएम साहब, खास तोहफा... मुझे तो डर लग रहा था। आपको उठाने लगी तो गले से घों-घों आवाज निकलने लगी। मैं तो घबड़ा ही गई थी। लगता है काम का दबाव बढ़ गया है। दो-तीन दिन छुट्टी लेकर आराम कर लीजिए...