फ्रेण्ड्स गैलेरी / सुषमा मुनीन्द्र
'फ्रेण्ड्स गैलेरी' हां, दुकान का यही नाम है। आज से तीन वर्ष पूर्व जिस भव्यता से इसका उद्धाटन हुआ था आज भी वह भव्यता कायम है। इस दुकान का युवा मालिक गिरिराज अपनी दुकान की तरह ही खासा आकर्षक है। सिविल इन्जीनियरिंग की डिग्री धारण करने के बाद नौकरी नहीं मिली तो पिताजी ने दुकान डालने का परामर्श दिया। तब उसे अपनी बडी ड़िग्री, योग्यता, प्रतिभा का अवमूल्यन होता जान पडा था। वह बडी निराशा और निरुत्साह से दुकान में बैठा था पर धीरे धीरे उसे दुकान में आने वाले लडक़े-लडक़ियों का परस्पर वार्तालाप, पसंद, रुचि देखने सुनने में एक किस्म का आनंद आने लगा और वह तुष्ट हो गया कि उसने अच्छा और रुचिकर कार्य चुना है। दुकान ऐसी जगह स्थित है जहां आस-पास दो तीन स्कूल, कॉलेज हैं और उनके मार्ग यहीं से होकर जाते हैं। दुकान में स्कूली और कॉलेज के लडक़े लडक़ियों का मजमा लगा रहता है। दुकान में सामग्री इन युवाओं की आवश्यकता और रुझान को ध्यान में रख कर ही रखी गई है। पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव पूर्वी देशों में खूब दिखने लगा है। विशेषत: ग्रीटींग कार्डस का आदान प्रदान आम और औपचारिक बात हो गई है। सहशिक्षा के प्रसाद स्वरूप बॉयफ्रेण्ड और गर्लफ्रेण्ड का फैशन जोर पकड चुका है। वेलेन्टाईन डे की अहमियत स्वीकार की जाने लगी है। यह शहर छोटा है लेकिन पाश्चात्य संस्कृति के आयातित बीज यहां भी अंकुरित हो चुके हैं। महानगरीय रीति-नीति को दूरदर्शन ने छोटे शहरों, कस्बों तथा गांवों में सहजता पूर्वक पहुंचा दिया है।
युवाओं की रुचि, रुझान, आवश्यकता को देखते हुए इस दुकान में आकर्षक गिफ्ट आयटम, ग्रीटींग कार्डस, फ्रेण्डशिप बैण्ड्स मुख्य रूप से उपलब्ध हैं। दुकान का सदर द्वार और दीवार मोटे शीशे की है। शीशे से झांकती दिखती आकर्षक वस्तुएं युवाओं को लुभाती हैं। विशेषत: टाइटेनिक फिल्म के हीरो लियोनार्डी डी कैप्रियो और हीरोईन केट विन्सलेट की मनोहारी छवि वाले पोस्टर पर विभिन्न गणवेशों में सजे आते लडक़े लडक़ियां रीझ जाते हैं। और इस दुकान को भीतर से देखने और कुछ खरीदने के लिये ललक उठते हैं।
यद्यपि दुकान के उत्तम मेन्टेनेन्स के कारण प्रत्येक वस्तु का मूल्य अपेक्षाकृत अधिक रखा गया है तथापि लडक़े लडक़ियां यहां मजमा लगाये ही रहते हैं। गिरिराज सुबह शाम इन्हीं युवाओं में व्यस्त रहता है। अक्सर यह होता है कि एक लडक़ी को ग्रीटींग कार्ड खरीदना होता है और साथ में पांच छह लडक़ियां आती हैं वे सभी कार्ड उलट पुलट डालती हैं और अपनी राय जाहिर करते हुए बहुत शोर मचाती हैं। इसी बीच गिरिराज की व्यस्तता और असावधानी का लाभ उठा कोई चतुर लडक़ी एक दो कार्ड चुरा कर अपने बैग में या फाईल में रखने में सफल हो जाती है। लडक़े छोटे छोटे गिफ्ट आयटम चुरा लेते हैं और दुकान के बाहर जाकर अनुमान लगाते हैं कि पचास का होगा कि पचहत्तर का। कुछ लडक़े चुराने वाले की त्वरा और तत्परता की सराहना करते हैं तो नैतिकता पर विश्वास करने वाला कोई लडक़ा कह देता हैचोरी बुरा काम है। चोर लडक़ा अपना पक्ष मजबूत करने हेतु कहता है यह दुकानदार बहुत ठगता है इसके माल को उडाने में कोई दोष नहीं।
इस तरह गिरिराज तमाम दिन व्यस्त रहता है। संयोग ही है जो आज खाली है। रविवार होने से स्कूल बंद है और छात्रों की आवाजाही बंद है।वह अलसाया सा शीशे की पारदर्शी दीवार के पार सडक़ पर आते जाते लोगों को देखता हुआ बैठा हुआ है। सहसा एक लडक़ी आती दिखायी दी। वह उत्साहित हो उठा। लडक़ी स्कूटर खडा कर जब तक दुकान में प्रविष्ट होती गिरिराज ने देखा लडक़ी अत्यन्त सुन्दर और कोमलांगी है। ब्लैक जीन्स, फूलों वाला टॉप, सिर पर क्रिकेट कैप, पॉनीटेल में बंधे हुए केश,मध्यम ऊंचाई को कुछ और ऊंचा दर्शाती ऊंची एडी क़े सैण्डिल। ऐसी बात नहीं कि गिरिराज ने सुन्दर लडक़ियां देखी नहीं। आजकल की लडक़ियां, ड्रेस, फिगर और ब्यूटी को लेकर कॉन्शस हैं और आमतौर पर ठीक ठाक हैसियत वाले घरों की लडक़ियां सुन्दर, आकर्षक या स्मार्ट कुछ न कुछ होती ही हैं। पर यह लडक़ी अपने में खोयी हुयी,खामोश किस्म की होने के कारण गिरिराज को अन्य लडक़ियों से कुछ भिन्न लगी। गिरिराज ने प्रश्नवाचक दृष्टि से लडक़ी को ताका।
“कार्ड्सबर्थडे कार्ड्स दिखाइयेगा।”
गिरिराज ने दो बातें एक साथ महसूस कीं। लडक़ी का स्वर मृदु है और उसके वस्त्रों से किसी मंहगे परफ्यूम की सुवास विकीर्ण हो रही है। लडक़ी की जादुई उपस्थिति से वह मानो बोलना भूल गया अथवा बोलने की आवश्यकता ही नहीं समझी। जिस ओर बर्थ डे कार्ड्स रखे थे उस ओर तर्जनी से संकेत कर दिया। काउन्टर के बायीं ओर की दीवार के शेल्फों में कार्ड्स निहायत ही खूबसूरती से सजाये गये हैं। नव वर्ष, दीपावली, ईद, क्रिसमस, जन्मदिवस के कार्ड सुविधा के लिये अलग अलग शेल्फों में हैं। लडक़ी बर्थ डे कार्ड्स की शेल्फ के निकट जाकर खडी हो गयी। कुछ क्षण ठिठकी हुई खडी रही जैसे सोच रही हो कि कहां से आरंभ करें। फिर उसने एक साथ कई कार्ड्स निकाले और देखने लगी। गिरिराज लडक़ी की प्रत्येक चेष्टा को बरबस लक्ष्य करने लगा। वह अनुमान लगाने लगा कि लडक़ी अठारह या उन्नीस की होगी और स्कूल के अंतिम वर्ष या कॉलेज के प्रथम वर्ष में पढती होगी। जिस तन्मयता से कार्ड देख रही है उसके आधार पर कहा जा सकता है कि किसी अतिप्रिय के लिये कार्ड लेना चाहती है। यह अतिप्रिय कोई सहेली, बहन, भाई, पडाैसी, परिचित, बॉयफ्रेण्ड या प्रेमी कोई भी हो सकता है। किसी अन्य के लिये लेना होता तो अब तक कोई भी ले लेती क्योंकि यहां जो भी कार्ड है सभी सुन्दर और उत्कृष्ट हैं। सभी का मैटर बहुत अच्छा, आत्मीय और हृदयस्पर्शी है।
गिरिराज एक क्षण को संकोच घिर गया। वह एक नितान्त अपरिचित लडक़ी के विषय में कुछ अधिक ही सोच रहा है।लडक़ी उस पर जादुई प्रभाव डाल रही है या फिर आज वह इतनी फुर्सत में है और फिलहाल सोचने के लिये यही लडक़ी सामने है। लडक़ी ने सरसरी तौर पर लगभग सभी कार्ड देख डाले। फिर ग्रीवा पर उंगली रखे सोचती रही कौन सा कार्ड पसन्द करे। वह कुछ कार्डों का मैटर पढने लगी पढते हुए मंद मंद मुस्कुराने लगी। सोच रही थी कि ग्रीटींग कार्ड्स में कितनी विविधता, नवीनता, कलात्मकता आ गयी है। ए स्पेशल कार्ड फॉर भैयाफॉर भाभी फॉर मॉमफॉर पापाग्रीटींग कार्ड बनाना खासा व्यवसाय बन गया है। वह कहीं नौकरी न कर पायी तो ग्रीटींग कार्ड्स बनाया करेगी।इधर गिरिराज लडक़ी के मुस्कुराने के कारण तलाशने में उलझा हुआ है।
लडक़ी ने बहुत सोच विचार कर आठ कार्ड्स पसंद किये और उन्हें अलग रखा। इनमें से किसी एक को चयन करने में सरलता होगी। वह उन चयनित कार्डों को बारीकी से देखने लगी और मैटर पढने लगी। लडक़ी कोई पसंद करने में कुछ अधिक ही संयम लगा रही थी। मालूम होता है कनफ्यूज हो रही है। उसे कई कार्ड एक साथ पसन्द हैं जबकि लेना कोई एक ही है।
गिरिराज सहसा पूछ बैठा, “मैं कुछ मदद करुं?”
“ऊंहू।”लडक़ी ने उसकी ओर देखे बगैर अपने काम में लीन रही। जैसे कार्ड खरीदना उसका एकदम अपना निजी मामला है और इसमें उसे किसी का हस्तक्षेप नहीं चाहिये।
लडक़ी के मुख पर आते जाते भावों को देख कर गिरिराज गंभीरता से सोचने लगा। कौन है वो भाग्यशाली जिसके लिये यह अत्यन्त सुन्दर लडक़ी इतनी सतर्कता और जिम्मेदारी से कार्ड पसन्द कर रही है? निश्चय ही इसका प्रेमी है। लडक़ी उस उम्र की है जब आंखों को हरा ही हरा दिखता है। न जाने क्यों लडक़ी के प्रेमी की कल्पना करते हुए वह कुछर् ईष्यालू हो उठा। कौन है वह सौभाग्यशाली जिसके लिये कार्ड खरीदने में यह लडक़ी आधे घण्टे से जूझ रही है और कोई राय नहीं बना पा रही है। अपने में इतना डूबी है कि उसे भान तक नहीं है कि कार्ड जैसी मामूली चीज क़े लिये वह कितना अधिक वक्त लगा रही है। या फिर कार्ड पाने वाला इसके लिये इतना प्रमुख है कि वह कार्ड चयन के लिये पूरा जीवन भी लगा सकती है। वह समझ नहीं पा रहा लडक़ी आखिर चाहती क्या है? कोई हीरा जवाहरात नहीं है कि खरीदने से
पहले प्रत्येक स्तर पर संतुष्ट हुआ जाए।
लडक़ी ने अब आठ में से चार कार्ड अलग किये। इन शेष कार्डों में से अब एक कार्ड पसन्द करना है। उसने चारों कार्डों को बराबरी से रखा और बारी बारी से देखने लगी।जैसे वह उनकी गुणवत्ता तौल कर ही सर्वश्रेष्ठ का चयन करेगी। गिरिराज कार्ड जैसी छोटी वस्तु ख़रीदने में इतना समय खपाने वाली पहली लडक़ी देख रहा है। अवश्य ही मामला इसके प्रिय का है और वह अंशमात्र भी त्रुटि नहीं करना चाहती। अचानक उसे लगने लगा कि इस समय दुकान में कोई ग्राहक न आए और वह पूरी स्वतन्त्रता से लडक़ी के विषय में सोचता रहे। घडी क़ी टिक टिक को विराम लग जाए, कैलेण्डर की तिथियां विलोप हो जाएं और वह इन क्षणों को मुठ्ठी में बांध कर इन्हें बीत जाने से रोक ले। इस समय घर में गिरिराज के विवाह की चर्चा चल रही है। कई लडक़ियों के फोटो आये पडे हैं पर इस लडक़ी जैसा एक भी फोटो नहीं। ये लडक़ी तो ऐसे भा गई है जैसे उसे जन्मों से इसी की प्रतीक्षा थी। चिर प्रतीक्षा। हे ईश्वर यदि तुम सचमुच कहीं हो तो ऐसा चमत्कार करो कि यह लडक़ी मुझे जीवन संगिनी के रूप में मिल जाए। मेरी एक सद्य: और अंतिम इच्छा पूरी कर दो। फिर उसे ध्यान आया कि वह इतना भाव विव्हल क्यों हो रहा है जबकि इस लडक़ी के हृदय में तो वह बसा है जिसके लिये वह इतनी तन्मयता से कार्ड खरीद रही है। गिरिराज ने विचारों के द्रुत वेग को नियंत्रित किया और लडक़ी की गतिविधि देखने लगा।
अब लडक़ी के सामने दो कार्ड रह गये हैं। एक उसने दाहिने हाथ में पकड रखा है दूसरा बांये हाथ में। कभी पहले को आंख के निकट लाकर जांचती परखती है कभी दूसरे को।उसके लिये अंतिम चयन बडा उलझन भरा है। लडक़ी की भाव भंगिमा से स्पष्ट है कि वह किसी की सुधियों में पूरी तरह डूबी है। लडक़ी का इस तरह बाहरी वातावरण से अर्स्पश्य अपने में डूबे रहना गिरिराज को अधीर कर रहा है। लडक़ी ने बांये हाथ वाले कार्ड को नकार में गर्दन हिला कर रख दिया और दांये हाथ में पकडे क़ार्ड को अंतिम रूप से पसंद कर लिया। बडा श्रम और समय लगा कर पसन्द किया गया वह कार्ड गिरिराज को लडक़ी की तरह ही आकर्षक लगने लगा। उस सौभाग्यशाली का नाम जानने के लिये वह सहज उत्सुक है। लडक़ी कई कोणों से कार्ड को देखती हुई गिरिराज के निकत आ खडी हुई।
“इतने सारे कार्डस और इतने खूबसूरत हैं, मैं तो खूब कनफ्यूज हुई। बहुत अच्छा कलेक्शन है, ग्रेट!”लडक़ी कार्ड पर नजर जमाए हुए है जैसे ये कार्ड से ही कह रही हो।
“हम तो बेहतर चीजें ही रखते हैं, इसलिये जो एक बार आता है बार बार आता है।”गिरिराज ने गुणवत्ता बताने के साथ साथ यह आग्रह भी कर डाला कि भविष्य में वह कार्ड लेने यहीं आए। लडक़ी ने कार्ड पर मुग्ध होते हुए कार्ड को एक बार फिर खोला।
हैप्पी बर्थ डे टू यू एक मधुर धुन बज उठी।
“कमाल का कार्ड है, कैसी कैसी तकनीक निकल आयी हैं। क्या प्राईज है?”
गिरिराज ने सोचा लडक़ी ने मंहगा कार्ड पसन्द किया है जिससे स्पष्ट होता है कि पाने वाला इसके लिये बहुत अजीज है। उसका जी चाहा कह दे - पैसे नहीं चाहिये इस कार्ड को मेरी ओर से भेंट समझिये पर बिना किसी परिचय के पैसे न लेने का लडक़ी क्या अर्थ लगायेगी? उसे पागल समझेगी या उसे अकेला पाकर जानबूझ कर प्रभावित करने की चाल समझेगी। उसने इतने सारे पहलुओं पर एक साथ आज से पहले कभी नहीं सोचा था। लडक़ी में कशिश ही है ऐसी कि वह निरन्तर उसी को लेकर सोच रहा है।
“पैंसठ रूपये मात्र। मालूम होता है किसी बहुत नियर एण्ड डियर के लिये लिया है।”पूछने न पूछने के द्वन्द्व में पडे बिना गिरिराज ने पूछ ही लिया।
वह आशंकित हुआ कि मूल्य सुनकर लडक़ी मलिन न पड ज़ाए पर वह पूर्ववत मुस्कुराती रही। जीन्स की जेब से सौ का नोट निकालते हुए बोली -
“हां तभी तो इतनी मुश्किल से यह कार्ड छांट पाई हूं। ये फौजी बडे चूजी होते हैं न! ”
ओह तो वह भाग्यशाली एक फौजी है। कहीं दूर पदस्थ उस अनदेखे फौजी को लेकर गिरिराज अजीब तरह से संकुचित हो उठा। इस लडक़ी से उस फौजी की भेंट पता नहीं कब,कैसे और कहां हुई होगी। फौजी की घोषणा किये जाने के साथ वह निराश सा हो गया। स्वयं को पराजित अनुभव करने लगा। शिथिल भाव से सौ रूपये ड्रॉअर में रख कर पैंतीस रूपये लौटाए। लडक़ी आग्रह करने लगी -
“अच्छा सा स्कैच पेन देंगे। पता लिख लूं, पोस्ट करती हुई घर निकल जाऊंगी। बार बार आना नहीं होता। टिकट है मेरे पास।”
“श्योर।”गिरिराज ने बैंगनी रंग का स्कैचपेन लडक़ी को थमा दिया।
लडक़ी बडे मनोयोग से लिखने लगी - अनफॉरगेटेबल परसन ऑफ माय लाईफ, वन एण्ड ऑनली भैया ।
गिरिराज न चाहते हुए भी चोर दृष्टि से लडक़ी को लिखते हुए देखता रहा! तो तोतो वह सौभाग्यशाली फौजी जिसके लिये इस लडक़ी ने इतनी लगन और तन्मयता तथा श्रम के बाद कार्ड खरीदा है और जिसको लेकर वह इतना संर्कीण हो उठा था वह इसका भाई है! गिरिराज को एकाएक लगने लगा कि वह एक सदी से किसी कारागार में कैद था और अचानक मुक्त कर दिया हाया है। उसके भीतर जो गहरा तनाव व्याप रहा था वह एकाएक छंट गया है। जैसे उसे कोई इच्छित फल मिल गया है। वह ऐसा ही कुछ तो चाहता था या कि क्या चाहता था उसे भी ठीक ठीक नहीं मालूम। और अब उसे स्वयं पर तनिक अचरज भी हो रहा है कि जिस लडक़ी के विषय में कुछ भी नहीं जानता उसको लेकर इतना व्याकुल और चिंताकुल क्यों हो रहा था ? बहरहाल वह प्रसन्नता अनुभव करने लगा और उसी प्रसन्नता के अतिरेक में उसके मुंह से निकल गया,
“आपके भाई का जन्म दिन है?”
“हाँ! चौदह मार्च को। मेरा कार्ड समय पर नहीं पहुंचेगा तो वह बहुत बुरा मानेगा। बहुत अच्छा और बहुत चूजी है मेरा भाई।”
लडक़ी के चेहरे के भाव दर्शा रहे थे कि भाई के प्रसंग से वह अत्यन्त उत्साहित हो उठी है। और उसके विषय में और बताना चाहती है पर परिचय न होने से संकोच कर रही है। लडक़ी ने लिफाफे पर पता लिखा, टिकट लगाया,लिफाफे को गोंद से चिपकाया, कुछ देर सूखने दिया फिर थैंक्स कहकर शीशे का द्वार खोल चली गयी। लडक़ी परफ्यूम की जो महक दुकान में छोड ग़यी थी उसे दीर्घ सांस द्वारा फेंफडों में खींचते हुए गिरिराज स्वयं को बहुत हल्का और मुक्त पा रहा था - पता नहीं क्यों?