बंकर में अपशब्द बोलता बाहुबली / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 03 जून 2020
दुनिया के सबसे शक्तिशाली और पूंजीपति देश के प्रेसीडेंट को अपने सरकारी आवास व्हाइट हाउस के तलघर में बने बंकर में छिपना पड़ा। किसी अन्य देश ने कोई आक्रमण नहीं किया है। उसके अपने नागरिक उसका विरोध कर रहे हैं। कोरोना महामारी से बचने के लिए कुछ नहीं किया गया। कारखाने लाभ कमाते रहें, इसलिए उसने लॉकडाउन नहीं किया। लगता है कि अमेरिका का मतदाता अपने चयन पर शर्मसार है। इतना ही नहीं, प्रेसीडेंट महोदय अपनी अवाम को अपशब्द कह रहे हैं। बड़े उद्योग आज भी उसका समर्थन कर रहे हैं। वे मुतमईन हैं कि पैसे के जोर पर वे दोबारा उसे जिता देंगे। आक्रोश का कारण है अनगिनत लोगों का महामारी से प्रभावित होना और लाख से अधिक की मृत्यु हो जाना। क्या किसी दिन कब्रगाह छोटे पड़ जाएंगे, दफनाने के लिए भी इंतजार करना होगा? ऐसे में ताबूत उद्योग अवश्य पनप रहा है।
ज्ञातव्य है कि अरसे पहले प्रेसीडेंट अब्राहम लिंकन ने अश्वेत अमेरिकन को समान अधिकार दिलाने के लिए गृह युद्ध लड़ा था। गुलामी का पक्षधर दक्षिण अमेरिका युद्ध हार गया था। युद्ध से प्रेरित किताबें लिखी गईं, फिल्में बनीं। मार्गरेट मिशेल का उपन्यास ‘गॉन विथ द विंड’ की लाखों प्रतियां बिकीं। उपन्यास से प्रेरित फिल्म में नायक रेहट बटलर की भूमिका क्लार्क गैबल ने अभिनीत की और स्कारलेट ओ’हारा की भूमिका नवोदित कलाकार विवियन लीघ ने अभिनीत की थी। इस फिल्म को बॉक्स ऑफिस पर भारी सफलता मिली। फिल्म प्रदर्शन के कुछ वर्ष पश्चात विवियन लीघ और ‘गॉन विथ द विंड’ के कैमरामैन को लेकर एक नई फिल्म करने के लिए अनुबंधित किया गया। शूटिंग प्रारंभ होने के समय विवियन लीघ ने कैमरामैन से निवेदन किया कि इस फिल्म में उसे उतनी ही सुंदर फोटोग्राफ करना। कैमरामैन की हाजिर जवाबी देखिए कि उसने कहा कि अब वह बूढ़ा हो गया है, फिर भी प्रयास करेगा। अपरोक्ष रूप से यह कहा गया था कि नायिका की उम्र बढ़ चुकी है।
श्वेत और अश्वेत का भेद अब कम हो गया है, परंतु पूरी तरह मिटा नहीं। समानता का कानून बना है, परंतु समाज के अपने पूर्वाग्रह और अहंकार हैं। भारत में भी दहेज तथा जाति प्रथा के खिलाफ कानून पारित हुआ है, परंतु समस्याएं किसी और रूप में कायम हैं। अमेरिका में रंगभेद पर फिल्में बनती रही हैं। सिडनी पोइटियर अभिनीत ‘गेस हू इज कमिंग टू डिनर’ एक क्लासिक फिल्म मानी जाती है।
टाटा थिएटर टेलीविजन कार्यक्रम में विजय तेंदुलकर का ‘टाइप कास्ट’ नाटक भी जातिवाद को प्रस्तुत करता है। दूसरे विश्व युद्ध के पश्चात बर्लिन भी दो भागों में बांटा गया था। लिओन यूरिस के उपन्यास ‘आर्मगेडन’ में इसका विवरण है। आज चीन में तानाशाही चल रही है। अवाम को रोजी रोटी और मकान उपलब्ध कराए गए हैं, परंतु असंतोष की लहर चीन में भी प्रवाहित है, क्योंकि मनुष्य मात्र रोटी के लिए नहीं जीता। उसके लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हवा की तरह आवश्यक है। चीन के युवा तलघर में बने बंकर में नाच-गाना करते हैं।
वर्तमान में अनेक देशों में असंतोष और आक्रोश सतह के नीचे प्रवाहित है। निदा फाजली की पंक्ति है- ‘बारूद के ढेर पर बैठी है यह दुनिया और माचिस पहरेदार है।’
कुछ विभाजन दिखाई नहीं देते। तानाशाही अपने नए लिबास में अपनी पहचान छिपाने में सफल रही है, क्योंकि अवाम का मौन समर्थन उसे प्राप्त है। अवाम के नशे आसानी से समझे नहीं जा सकते। समझने वाले समझ जाते हैं, नासमझ अनाड़ी कहलाते हैं। इस अवाम ने ही चिड़ी की दुक्की को ट्रम्प कार्ड बना दिया है। यह ताश के खेल तीन पत्ती का मुहावरा है। ट्रम्प के हमखयाल, हमराही और हमजाद अनेक स्थानों पर मौजूद हैं।
हुक्मरान और तानाशाह की विचार प्रक्रिया में एक बंकर होता है। वह बंकर को जिरहबख्तर कहता है। बंकर मात्र ईंट, लोहे और इस्पात से नहीं बनता। यह वैचारिक संकीर्णता में पनपता है। अपने वैचारिक बौनेपन से तो लोग अपने सर्जक को भी छोटा कर लेते हैं। ज्ञातव्य है कि दूसरे विश्व युद्ध में पराजय के निकट आते ही हिटलर एक बंकर में चला गया, जहां उसने अपनी अंतरंग सखी के साथ विवाह किया। तानाशाह स्वयं एक छिद्रमय बंकर होता है। मृत्यु के साए में विवाह किया गया। उन्हें कैसा लगता होगा? क्या उन्हें भय था कि अविवाहित व्यक्ति को मरकर भी चैन नहीं आता? हिटलर की नपुंसकता भी चर्चा में रही। हिटलर का विवाह इस तथ्य को छिपाने का प्रयास था।