बंजर भूमि में कोंपल की कामना? / जयप्रकाश चौकसे

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बंजर भूमि में कोंपल की कामना?
प्रकाशन तिथि : 15 सितम्बर 2018


राजकुमार राव और श्रद्धा कपूर अभिनीत फिल्म 'स्त्री’ पुरुष शासित फिल्म उद्योग में 100 करोड़ के निकट पहुंच गई है। इस फिल्म में हॉरर और हास्य का मिश्रण किया गया है। ज्ञातव्य है कि विगत सदी के छठे दशक में महमूद ने 'भूत बंगला’ नामक फिल्म में भी यह अजीबोगरीब मिश्रण प्रस्तुत किया था। उस फिल्म में संगीतकार राहुल देव बर्मन ने एक छोटी भूमिका अभिनीत की थी। 'भूत बंगला’ का आनंद आसानी से उठाया जा सकता था परंतु 'स्त्री’ परिश्रम की मांग करती है और माथापच्ची के बाद भी भूल भुलैया कायम रहती है। सदियों पूर्व एक स्त्री मधु रात्रि के पहले मार दी गई और उसकी आत्मा रहस्य को सुलझाने के लिए मानवी देह धारण करके वर्तमान के तीन युवाओं की सहायता से उस रहस्य से परदा उठाने का प्रयास करती है और अंतिम दृश्य में चलती हुई बस में ही अदृश्य हो जाती है। सारी दास्तान गढ़ी गई है केवल यह कहने के लिए कि स्त्री केवल सम्मान चाहती है। यथार्थ जीवन में अधिकांश लोग प्रेम का पाखंड रचते हैं केवल स्त्री देह को पाने के लिए। फिल्म समाप्त होने पर ठीक वैसा ही अनुभव होता है जैसा किसी रेस्तरां से ग्राहक के निकलते समय परोसने वाला वेटर आवाज देता है 'खाया-पिया कुछ नहीं गिलास तोड़ा बारह आना’। इस खंडहरनुमा फिल्म में राजकुमार राव का अभिनय उस पौधे की तरह है जो उजड़ते-जलते खंडहर में अभी तक बना हुआ है।

आजकल पोलैंड में आयोजित बॉक्सिंग प्रतियोगिता में मैरी कॉम भाग ले रही हैं। मैरी कॉम ने माता बनने के बाद भी प्रतियोगिता में विजय प्राप्त की थी। प्रियंका चोपड़ा ने 'मैरी काम’ बायोपिक में यादगार अभिनय किया था। उन्होंने रणबीर कपूर के साथ 'बर्फी’ में भी यादगार अभिनय किया था। बहरहाल, यथार्थ मैरी कॉम आज भी सक्रिय हैं और उनकी बायोपिक का भाग 2 भी बन सकता है। ये बकमाल स्त्रियां पुरुष प्रभुत्व के मजबूत किले में निरंतर सेंध मारती रहती हैं।

ताजा खबर यह भी है कि केरल की एक नन ने पोप से निवेदन किया है कि क्रिश्चियन साध्वियों के साथ चर्च में अन्याय किया जा रहा है। इस विषय पर अंग्रेजी भाषा में कुछ फिल्में बनी हैं। उनमें से एक फिल्म है 'एग्नेस ऑफ गॉड’। इसी तरह एक फिल्म में एक नन गर्भवती होती है और उसका दावा है कि वह कभी किसी मनुष्य के साथ हमबिस्तर नहीं हुई है। उसने स्वप्न में क्राइस्ट को देखा है। सच्चाई यह है कि स्त्रियां किसी भी क्षेत्र में सक्रिय हों, उन्हें भांति-भांति के कष्ट सहने होते हैं। दफ्तरों में भी उनसे छेड़छाड़ की जाती है। पुरुष पाखंड और कमतरी भांति-भांति से उजागर होती रहती है। अरुणा राजे की फिल्म 'रिहाई’ के क्लाइमैक्स में एक उम्रदराज स्त्री का संवाद है कि 'स्त्रियों से सीता जैसे आचरण की मांग करने वाले बताएं कि क्या उन्होंने कभी राम की तरह आदर्श आचरण किया है?' महानगरों की लोकल ट्रेन में स्त्रियों के लिए आरक्षित डिब्बे के फुल हो जाने के कारण कुछ स्त्रियों को पुरुष के साथ खचाखच भरे डिब्बे में यात्रा करनी पड़ती है और वे बेचारी धक्के खाते हुए यात्रा करती हैं। रेल की गति के कारण नहीं वरन जानबूझकर किए अनचाहे स्पर्श के दंश वे सहन करती हैं। अब ऐसी कोई थकी-हारी महिला अपने पति के आग्रह को कैसे स्वीकार करें? दफ्तरों में नौकरी करने वाली महिलाओं की समस्याओं को ख्वाजा अहमद अब्बास ने अपनी फिल्म 'ग्यारह हजार लड़कियां’ में प्रस्तुत किया था। गोविंद निहलानी की फिल्म 'हजार चौरासी की मां’ भी एक सार्थक रचना थी। महात्मा बुद्ध के अनुयाइयों ने भी मानव सेवा के लिए अनगिनत विहारों की स्थापना की थी। कालांतर में वहां भी भ्रष्टाचार हुआ है। सच्चाई यह है कि मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर जैसे पावन संस्थानों में भी भ्रष्टाचार का प्रवेश हो जाता है। जब समाज के सागर में हर लहर भ्रष्ट हो तब ईमानदारी का कोई भी द्वीप इन लहरों से बचकर कैसे रह सकता है?

नैतिक मूल्यों को जीवन में स्थापित करने का काम ही कुछ हद तक हमें बचा सकता है। सरकारी कागजों पर तो हेरा-फेरी होती ही रहती है। बैंक को चूना लगाने वाले को एअरपोर्ट पर हिरासत में लिए जाने के आदेश-पत्र में 'हिरासत’ शब्द की जगह मात्र 'निगरानी’ शब्द के बदलाव को क्या टाइपिंग एरर करार दिया जाएगा? व्यवस्था की छलनी में हुक्मरान का आदेश है कि केवल उस छेद को बंद करें जो उसको असुविधाजनक लगता है।