बकरा / मनोज चौहान
मैदानी इलाके का भवन निर्माण मिस्त्री हाड़ू छोटे–मोटे ठेके लेने लग गया थाl उसे अब सभी हाड़ू ठेकेदार के नाम से जानने लगे थेl अपने इलाके में काम कुछ मंदा पड़ने लगा तो उसने पहाड़ों की तरफ रुख करने की सोचीl जान–पहचान के एक व्यक्ति से उसने एक मकान के निर्माण कार्य का ठेका ले लियाl मैदानी इलाके से ही मजदूरों की टोली लेकर वह साथ गया थाl काम वाली जगह से थोड़ी दूर ही उसने मजदूरों को ठहराने के लिए 2-3 कमरे किराये पर ले लिए थेl मकान मालिक ने सख्त हिदायत भी दी थी कि साथ वाले देवता के मंदिर से भूल कर भी स्पर्श न करेl
दिन बीतने लगे और हाड़ू ठेकेदार का निर्माण कार्य चरम पर थाl कुछ ही दिनों में लैंटर पड़ने वाला थाl शैटरिंग की लकड़ियों को उचित जगह पर पहुँचाने की आवाजाही में कुछ मजदूर मंदिर के साथ वाले संकरे रास्ते पर अनियंत्रित हो गए और मंदिर से स्पर्श कर गएl उन्होंने न चाहते हुए भी स्वयं और हाड़ू ठेकेदार के लिए आफत मोल ले ली थीl देखते ही देखते बात पूरे गाँव से होती हुई पुजारी और देवता के ख़ास देवलुओं तक पहुँच गईl थोड़ी ही देर में सभा का आयोजन किया गया और हाड़ू ठेकेदार को दंड स्वरुप एक बकरा भेंट करने का फरमान सुना दिया गयाl हाड़ू ने खुद के और अपने मजदूरों के बेकसूर होने की कई दलीलें दी, मगर सब व्यर्थ ही साबित हुईl मरता क्या न करताl थक–हारकर उसने बकरा भेंट करने की बात मान ही लीl
शाम होने तक हाड़ू ने जैसे–तैसे रुपये जोड़कर भारी मन से बकरा खरीद लिया और उसे पुजारी और देवलुओं को सौंप दियाl दिन–भर की मेहनत से थके हुए मजदूर और हाड़ू ठेकेदार खाना खाकर जैसे ही आराम करने को हुए तो गाँव के ऊँचे टीले से आ रही नाच–गाने की आवाजों ने उनके आराम में खलल डाल दियाl सभी देवलु मांस पकाने और मदिरा का इंतजाम करने में जुटे हुए थेl गाँव में आज उत्सव-सा माहौल थाl सभी देवलू प्रसाद पाकर प्रसन्न थेl हाड़ू और उसके मजदूर उनींदे होकर करवट बदलते रहेl रात्रि के 12 बज चुके थे, मगर देवलु मदमस्त होकर अब भी संगीत की धुनों पर थिरक रहे थेl बकरे की भेंट पाकर मंदिर पुनः पवित्र हो गया थाl