बकरी का पिल्ला / गोवर्धन यादव
किसी आवश्यक काम से बोधन को बाहर गाँव जाना पडा, वहाँ से लौटते समय उसने बहुत ही कम क़ीमत पर एक बकरी का पिल्ला, यह सोच कर खरीद लिया था कि इतनी कम क़ीमत में तो मुर्गी का पिल्ला भी नहीं मिल सकता, खरीद करते समय उसे यह भी याद था कि आने वाले साल पर उसे अपने बेटॆ की नवस उतारना है,
उसने उस बकरी के पिल्ले को अपने कांधे पर टांगा और घर लौट आया, बाहर आंगन में उसका चार साल का बेटा खेल रहा था, अपने कांधे पर से पिल्ले को उतारते हुए उसने अपने बेटे को उसे दिखाते हुए कहा"देखो मैं तुम्हारे वास्ते क्या खरीद लाया हूँ," , पिल्ले को पाकर वह बेहद हॊ खुश हुआ था, अब वह सुबह-शाम उस पिल्ले के साथ खेलता-कूदता, उसे अपने हाथॊं से हरी-हरी पत्तियाँ खिलाता और पानी पिलाता, वह जहाँ भी जाता बकरी का बच्चा मिमियाता उसके पीछे दौडता चला आता, रात जब वह सोता तो उस पिल्ले को अपनी खाट के पास बाँध देता, देखते ही देखते वह बकरी का पिल्ला अब उसका गहरा दोस्त बन चुका था,
एकसाल कैसे क्या बीत गया पता ही नहीं चल पाया, वह दिन भी नज़दीक ही चला आया जिस दिन उस बकरी के पिल्ले की बलि दी जानी थी, सारी आवश्यक तैयारी के बाद उसके गले में फ़ूलों की माला डाल कर उसके माथे पर बडा-सा तिलक लगा दिया गया था, वह अबोध बालक यह सब बडी कौतुहल के साथ देख रहा था, वह यह समझ नहीं पा रहा था कि आख़िर यह सब क्यों किया जा रहा है, उसने उत्सुकतावश अपने पिता से इस बाबत जानकारी लेना चाहा तो उसके पिता ने समझाते हुए सब कुछ बतला दिया, पिता कि बातें सुन चुकने के बाद उस लडके ने उस पिल्ले को अपनी गोद में उठा लिया और लगभग गरजते हुए कहा: "यदि किसी ने इस पिल्ले की गर्दन पर छुरी चलाया तो वह भी अपनी गर्दन पर छुरी चला लेगा, वह किसी भी क़ीमत पर अपने दोस्त को मरने नहीं देगा, पिल्ले को गोद में उठाए वह अपनी माँ के-के पास आया और कहा" मां किसी जानवर की बलि चढाए जाने से उमर लंबी होती तो आदमी कभी मरता ही नहीं, वह अपने बचने के लिए रोज़ पशु बलि चढाते ही रहता, मैं कितनी उमर जिउंगा यह तो मुझे भी नहीं मालुम, फिर एक मूक जानवर की बलि चढा कर लंबी उमर की कामना कैसे की जा सकती है, " अब वह फ़बक कर रो पडा था, केवल उसकी ही आंखें नहीं भीगी थी बल्कि वहाँ उपस्थित सभी जनसमुदाय की आंखें भर आयी थी।