बग़ावत / शोभना 'श्याम'
अस्त होते सूरज की लालिमा आसमान के साथ-साथ विहान के उदास चेहरे पर भी फैली थी। इस लालिमा ने उसकी आँखों में छलक आये एक नन्हे से आँसू को ऐसा रंग दे दिया कि बस में बैठी दिव्या का कलेजा जैसे उछल कर मुँह को आ गया, 'तो क्या यही होता है खून के आँसू रोना ...क्या मैं ठीक कर रही हूँ इसके साथ...?'
"इसके साथ से क्या मतलब, अपने साथ ठीक कर रही हो, ये समझ लो।"
दिल से पूछे सवाल का जवाब दिमाग़ ने दिया।
दो महीने पहले विहान दिव्या के ऑफिस में ऑडिट के लिए आया था। संयोग से बीच में कम्पनी का टीम बिल्डिंग का आयोजन पड़ा तो उसे भी आमंत्रित कर लिया गया। टीम बिल्डिंग ज्यादातर मल्टी नेशनल कम्पनियों का ऑफिस के बाहर किसी रमणीय स्थल पर एक पिकनिक की तरह का आयोजन होता है जिसका उद्देश्य न केवल विभिन्न प्रान्तों और देशों से आये एम्प्लाइज को एक दूसरे को अच्छी तरह जानने का अवसर देना है बल्कि विभिन्न समूह बना कर उनमें आपस में तरह-तरह के मजेदार मुकाबले कराए जाने से टीम भावना का भी विकास करना भी है। विहान थोड़ी ही देर में सबसे इस तरह घुल मिल गया था कि लग ही नहीं रहा था कि वह इस कंपनी का एम्पलाई ना होकर पहली बार यहाँ आया है। वह सब गतिविधियों में बढ़-चढ़कर खुद ही भाग ले रहा था। इस तरह विभिन्न गतिविधियों के चलते जब गाने की प्रतियोगिता शुरू हुई तो चार-पांच लोगों के गाने के बाद वह खुद को ना रोक सका और उसने अपनी टीम की ओर से गाना स्वीकार कर लिया। जब उसने गाना शुरू किया तो उसकी दिलकश आवाज़ ने अन्य लड़कियों के साथ-साथ दिव्या के दिल के तारों को भी कम्पित कर दिया। विहान का मधुर कंठ ईश्वरीय उपहार ही कहा जा सकता था। इस पर स्वरों का सधा हुआ उतार-चढ़ाव उसकी शास्त्रीय संगीत की शिक्षा का बयान खुद कर रहा था। उधर विहान भी दिव्या के टॉम बॉय जैसे व्यक्तित्व के प्रति कुछ ऐसा ही खिंचाव महसूस कर रहा था। दिव्या आम लड़कियों की नजाकत से उलट एक मजबूत कद काठी की लड़की थी जो भारी समान उठाने से लेकर कैंपिंग छतरी और टेंट लगाने में लड़कों की मदद कर रही थी। अगले दिन ऑफिस में दोनों रह-रह कर चोर निगाहों से एक-दूसरे को देखते रहे और फिर... जाते-जाते वह अपना नंबर उसकी डेस्क पर रखे नोट पेड पर लिख गया। इसी नंबर से शुरू हुई दोनों की प्रेम कहानी। फोन पर घंटों बात करते-करते दोनों के बीच वह रिश्ता पनप चुका था जिसकी परिणति विवाह के रूप में होती है। एक दूजे को बिना बताए भी दोनों एक दूसरे के साथ जीवन व्यतीत करने के सपने देखने लगे थे। एक दूजे के ख्यालों में खोए आसपास की दुनिया से बेखबर होते जा रहे थे। आखिरकार इन्हीं ख्यालों की डगर पर चलते दिव्या विहान से मिलने उसके शहर में खिंची चली आयी। अपने घर में और विहान के शहर में रहने वाली मौसी दोनों जगह उसने एक वर्कशॉप में भाग लेने का बहाना बनाया था। पूरा दिन बिहान के साथ बिताती और शाम ढले अपनी मौसी के यहाँ पहुँच जाती। दोनों कभी किसी पार्क की क्यारियों के पास फूलों की सगन्ध और प्यार की खुशबू का आदान प्रदान करते तो कभी किसी पिक्चर हॉल में हिन्दी फ़िल्मों के होरो हीरोइन की तरह हाथ में हाथ लिए बैठे रहते। एक दूसरे में खोए उन्हें यह भी याद नहीं था कि कौन-सा पिक्चर हॉल था और उसमें कौन-सी पिक्चर देखी। इसी तरह दो दिन सपनों के बादलों की सवारी करते बीत गए।
और फिर ...सपनों का बादल दिल की वादी पर ऐसा फटा कि सब कुछ बहा ले गया। वापस जाने से ज़रा पहले विहान दिव्या को अपने घर ले गया अपनी मम्मी और छोटी बहन से मिलवाने। विहान की बहन ने जब मजाक में भाभी कहा तो दिव्या इस तरह शरमा गयी कि उसे खुद अपनी टॉम बोईश प्रकृति से मेल खाता नहीं लग रहा था। चाय नाश्ते के बाद विहान उसे अपने कमरे में ले गया। दिव्या उस कमरे में अपने भावी जीवन की कल्पना करते-करते मन ही मन उसमे कजिये जाने वाले परिवर्तनों की लिस्ट बनाती जा रही थी तभी विहान अपना लैपटॉप उठा लाया, " देखो दिव्या टीम बिल्डिंग की ये तस्वीरें तुमने अभी तक नहीं देखी होंगी। दिव्या ने देखा, उसकी अजीब तरह डांस करते, कभी किसी को चिल्ला कर बुलाते, कभी कैम्पिंग छतरी उठाये, कभी तरह-तरह के मुँह बनाये, मुँह में कुछ खाने की चीज भरे तमाम फनी फ़ोटो खींच रखी थी। दिव्या एक तरफ अपनी ऐसी फ़ोटो देखकर गुस्सा आ रहा था तो दूसरी ओर यह रोमांच भी हो रहा था कि विहान का भी उसी की तरह लव एट फस्ट साइट वाला प्रेम था। प्रकट में उसने अपनी नाराजगी दिखाते हुए पलंग पर रख तकिया उस पर दे मारा। जिसके प्रत्युत्त में विहान ने उसे बाहों में भर लिया। इतनी समीपता के ये पहले पल थे जिनमें दिव्य डूब रही थी कि लैपटॉप पर अचानक एक मेल का नोटिफिकेशन फ्लैश हुआ।
"ओह! आ गयी मेरी रिपोर्ट!"
विहान ने दिव्य को आलिंगन से मुक्त करते हुए माउस पकड़ लिया
"कैसी रिपोर्ट?"
"यार, कुछ दिनों से रात को देखने में ज़रा परेशानी हो रही थी, सो जाने क्या-क्या टेस्ट करवा डाले डॉक्टर्स ने।" कहते-कहते उसने रिपोर्ट पर क्लिक कर दिया।
" पापा भी पता नहीं इतना सीरियस क्यों हो रहे थे। ज़्यादा से ज़्यादा क्या निकलेगा। अगर नाईट ब्लाइंडनेस हो भी गई होगी तो विटामिन ए लेने से ठीक हो जाएगी। आजकल तो मेडिकल साइंस इतनी एडवांस हो गयी। इतनी-सी प्रॉब्लम उंसके आगे क्या है।
लेकिन दिव्या रिपोर्ट देखते ही समझ गयी कि मेडिकल साइंस इस बीमारी के सामने अभी भी कुछ नहीं है। रिपोर्ट के काले अक्षर विहान के उस काले भविष्य को बता रहे थे, जिससे विहान भी अनजान था। मगर दिव्या इस बीमारी को बहुत अच्छी तरह जानती थी। क्योकि उसकी पक्की सहेली के पिता को भी यही बीमारी थी-'रेटिनाइटिस पिगमेंटोसा'
धीरे धीरे आंशिक से होते हुए पूर्णतया अँधा हो जाने की अनुवांशिक बीमारी। जिसका आज तक अपने देश में तो कोई इलाज नही। बेशक दवाइयों से इसके प्रभाव को धीमा किया जा सकता है, लेकिन अंतिम परिणति पूर्णतया अंधा होना ही है। उसके दिमाग में उसकी सहेली के पिता और उसके परिवार की दयनीय ज़िन्दगी के सारे दृश्यों की आतिशबाजी-सी होने लगी और फिर ...काँपती जुबान से विहान को उसकी बीमारी समझा, उसे उसकी स्तब्धता और "आई एम सॉरी" के साथ अकेला छोड़, दिल की सारी खुशामद को नज़रंदाज़ कर, दिमाग के व्यावहारिक तर्कों से परास्त दिव्या उसी समय वापस चल दी। विहान ने भी उसे रोकने की कोई कोशिश नहीं की। मात्र इतना कहा, " बस तक मैं तुम्हे छोड़ दूं तो कोई ऐतराज तो नही। धड़कते दिल से दिव्या ने बस सहमति में सिर हिला दिया।
अपने शहर जाने की बस में बैठी दिव्या के सामने आसमान के साथ-साथ उसके प्यार का सूरज भी अस्त हो रहा था। जब तक बस नहीं चली, तब तक विहान नम आँखों में जाने क्या भाव लिए उसके सामने ही खड़ा रहा। इधर बस चली, उधर दिव्या के फोन पर एक संदेश चमका, जिसे बरसती आँखों ने नहीं, सिर्फ़ दिल ने पढ़ा-"मैं इंतज़ार करूंगा।"
और फिर...उँगलियों ने नहीं, बग़ावत पर उतरे दिल ने लिखा, -"मैं कोशिश करूँगी।"