बचाव-पक्ष / लिअनीद अन्द्रयेइफ़ / प्रगति टिपणीस
अदालत के गलियारे में काला चोग़ा पहने एक लम्बा, पतला और गोरा-सा आदमी चला जा रहा था। उसका नाम अन्द्रेय कोलअसफ़ है। वह पिछले तीन साल से सहायक वकील के पद पर काम कर रहा है। हर मुक़दमे के पहले कोलअसफ़ बहुत ऊहापोह से गुज़रता है, लेकिन इस बार उसकी परेशानी अपनी सभी सीमाएँ पार कर चुकी है । इस बात की कई वजहें हैं, लेकिन सबसे बड़ी वजह उसकी मानसिक स्थिति का नाज़ुक होना है। पिछले साल से उसकी हालत काफ़ी बिगड़ गई है और इलाज के लिए की जाने वाली जल-चिकित्सा ज़्यादा कारगर नहीं हो रही है। उसे सिगरेट पीना बन्द करने की हिदायत दी गई है, लेकिन वह अपनी इस आदत को छोड़ नहीं पा रहा है। उसे अभी फिर सिगरेट पीने का मन कर रहा है और इसके साथ ही फ़ौरन उसके मुँह में वह स्वाद उभर आया है, जिससे सभी चेन-स्मोकर्स वाक़िफ़ होते हैं। कोलअसफ़ डॉक्टर के कमरे में गया, लेकिन वहाँ पर कोई भी । उसने वहाँ पड़े सोफ़े पर लेटकर सिगरेट सुलगा ली। उसे एहसास हुआ कि वह बहुत थक गया है।
एक हफ़्ते से ज़्यादा वक़्त हो गया था उसे अपना वक़ीली-चोग़ा उतारे। हर रोज़ कुछ न कुछ लगा रहता था, कभी दीवानी अदालत के जजों के साथ बैठक, कभी वक़ीलों का कोई सम्मलेन और एक पूरा दिन तो दीवानी अदालत में किसी मामूली मामले के चलते निकल गया। उसके साथी उससे इस बात पर जलते थे कि वह बहुत अधिक कमाता है, लेकिन काम करने की उसकी क़ुव्वत की मिसाल देते भी नहीं थकते थे। वे यही सोचते थे कि उसकी सारी कमाई जाती कहाँ है। तीन हज़ार रूबल सालाना वह कड़ी मशक़्क़त करके कमाता था, जो उंगलियों से न जाने कब और कहाँ फिसल जाते थे। ज़िन्दगी दिन-ब-दिन महँगी होती जा रही थी, बच्चों की माँगें बढ़ती जा रही थीं, क़र्ज़ बढ़ रहा था और परसों उसे मकान का किराया चुकाना है —पचास रूबल — और उसकी जेब में केवल दस रूबल बचे हैं। इसका मतलब कि उसे फिर कोई जुगाड़ लगाना पड़ेगा। बीवी… क़र्ज़ और बीवी की याद आते ही कोलअसफ़ के माथे पर शिकन आ गई और वह ठण्डी आहें भरने लगा।
— “सुनो, तुम कहाँ गुम हो गए थे? मैं कब से तुम्हें तलाश रहा हूँ।” आज के मुक़दमे के बचाव- पक्ष का दूसरा सहायक वक़ील तथा कोलअसफ़ का साथी पमिरान्त्सिफ़ जैसे उड़ता हुआ सा कमरे में आया, जो एक अच्छा अपराधविज्ञानी होने की धाक बना चुका था।
उसके बाल गहरे भूरे रंग के थे। वह एक ज़िन्दादिल, बातूनी और हँसमुख शख़्स था। उसमें ये सारे गुण कुछ इतना ज़्यादा थे कि कई बार उसकी मौज़ूदगी परेशानी का सबब हो जाती थी। पमिरान्त्सिफ़ के सिर पर नियति का वरदहस्त था। वह अमीर परिवार से था और सबका चहेता था। ख़ुशियाँ उस पर हर तरफ़ से बरसती थीं। ऐसा लगता था मानो प्रसिद्धि और समृद्धि की राह उसके क़दमों में सिर झुकाए हो।
पमिरान्त्सिफ़ ने कहा, — आज की अपनी दलील पर हमें सहमति बना लेनी चाहिए।
— भगवान के लिए बाद में, अभी मुझे बख़्श दो ! — झुँझलाए हुए कोलअसफ़ ने जवाब दिया।
— लेकिन बाद में कब ?
कोलअसफ़ ने थके हुए अन्दाज़ में हाथ से इशारा करके उससे जाने को कहा, और पमिरान्त्सिफ़ अपने कंधे उचकाते हुए तेज़ी से बाहर चला गया।
जिस मामले पर कोलअसफ़ और पमिरान्त्सिफ़ को बहस करनी थी वह ज़्यादा पेचीदा नहीं था। मसक्वा (मास्को) के एक बाहरी इलाक़े में, जहाँ चायख़ाने में ही शराब और चखने का बाक़ायदा इन्तज़ाम था और जहाँ पर राजधानी का सारा कचरा आकर जुटता था, हत्या की एक वारदात हो गई थी। बाहर से आए एक नौजवान को, जो मुमकिन है कि कोई क्लर्क या छोटा व्यापारी रहा हो, दो लफ़ंगों और वेश्या ’तान्या बेलअरूचका’ के साथ रात बिताते और रुपयों से भरा अपना बटुआ दिखाते देखा गया था। फिर अगली सुबह उसकी लाश एक बग़ीचे में मिली थी। उसकी गला घोंटकर हत्या की गई थी और उसे लूट लिया गया था। एक हफ़्ते बाद तान्या और उन दो लफ़ंगों को हिरासत में ले लिया गया। उन्होंने हत्या की बात क़ुबूल कर ली थी। कोलअसफ़ तान्या बेलअरूचका का वक़ील था। जब वह तान्या से मिलने जेल में गया तो उसने उसे अपनी कल्पना के बिलकुल विपरीत पाया। तान्या नाम की वह लड़की जवान और सुन्दर थी । उसके भूरे बाल क़रीने से कढ़े हुए थे । वह उसे बहुत ही विनम्र और डरी हुई सी लगी। हो सकता है कि जेल के एकान्त-वास ने उसके चेहरे पर से उसके शर्मनाक पेशे की सारी गन्दगी धो दी हो या घोर मानसिक पीड़ा ने उसे आध्यात्मिक बना दिया हो। लेकिन उस लड़की में ऐसे कोई निशान नहीं थे, जिनसे लगता कि उसकी आदतें और चरित्र शर्मनाक हैं। केवल उसकी आवाज़ थोड़ी सी कर्कश और भारी थी, जो नशे में बिताई गई उसकी रातों और उसके ग़लत रास्ते पर चलने की ओर संकेत कर रही थी।
पहली ही मुलाक़ात के बाद, कोलअसफ़ को यह एहसास हो गया था कि तान्या की आत्मा और शरीर हत्या के दोषी नहीं हैं। उसने डर और दहशत के आगे घुटने टेके थे । यह डर था सामाजिक सीढ़ी के सबसे निचले सोपान पर रहने वाले प्राणी का, जिसे ऊपर के सभी सोपानों के बाशिन्दे अपने-अपने ढंग से कुचलते थे । हर कोई तान्या से अधिक ताक़तवर था, हर कोई उसका तिरस्कार करता था, चाहे वह उसका झगड़ालू और क्रूर प्रेमी हो, या फिर वे पुलिसकर्मी, जिनके चमकते तमग़े ही क़ैदी तान्या को डराने के लिए काफ़ी होते थे। बातचीत के समय तान्या की बातों में जोश और रोष अक्सर साथ-साथ झलक जाते थे, उसकी आँखें चमकने लगती थीं और उसका दुबला-पतला शरीर अत्याचारियों के प्रति मन में संचित घृणा से काँपने लगता था। यह सब देख कर कोलअसफ़ को लगता था कि तान्या आत्मरक्षा कर सकती है, ठीक वैसे ही जैसे कोई सोया हुआ जानवर अपना बचाव करता है। वह पहले पीठ पर पलटता है और वार करने वाले को अपने दाँत दिखाकर गुर्राता है। हताश होकर चीख़ने से अधिक डरावनी और गहरी उदासी उसके उस दिखावटी क्रोध में होती है। तान्या ने आँसुओं में डूबी आवाज़ में कोलअसफ़ को इस बारे में विस्तार से बताया कि हत्या कैसे हुई। उसे संशय था कि कोई उसकी बातों पर यकीन करेगा। जब वे सब शराबख़ाने से बाहर आकर एक सुनसान जगह पर से गुज़र रहे थे, तब उसका प्रेमी इवान गरोश्किन और उसका दूसरा साथी वसिली ख़बातियेफ़ उस अजनबी पर चढ़ बैठे और उसका गला घोंट दिया।
मैं अन्दर तक दहल गई थी, साहब ! घबराहट में मैंने तब चिल्लाकर उनसे कहा था — हत्यारो, तुम यह क्या कर रहे हो? इवान ने, बस, नज़र उठाकर मेरी ओर ताका, लेकिन उस अजनबी की साँसें तब तक बन्द होने लगी थीं। मैं उसे बचाने के लिए दौड़ी, लेकिन दुष्ट इवान ने मेरे पेट पर लात मारकर कहा — अपनी जगह पर रह, नहीं तो तेरा भी यही हश्र होगा ! — यह सुनकर मैं तेज़ी से वहाँ से भाग निकली और पगडण्डियों पर अंधाधुंध भागते हुए न जाने कैसे मारफ़ूष्का के बिस्तर तक पहुँच गई... भागते समय मेरा स्कार्फ़ कहीं गिर गया था ...।
अगले दिन, तान्या ने इवान को उसके किए के लिए फटकार लगाई। लेकिन दो घूँसे जड़कर इवान ने उसे यह बता दिया कि जो हो चुका, सो हो चुका। और डेढ़ घण्टे बाद तान्या गाने गा रही थी, रो रही थी और लूट के पैसों से ख़रीदी वोदका पी रही थी।
तान्या से मिलने कोलअसफ़ दो बार और जेल में गया, और हर मुलाक़ात के बाद उसे तान्या की पैरवी करना और ज़्यादा मुश्किल लगा। आख़िर वह अदालत में क्या कहेगा? वैसे तो दुनिया की हर कड़वाहट, हर अन्याय के बारे में लोगों को बताना चाहिए । कभी न थमने वाली ज़िन्दगी की जद्दोजहद के बारे में भी बताना चाहिए। यह भी कहना चाहिए कि जंग के किसी भी मैदान में ख़ून के ढेर पर औंधे पड़े दोनों पक्षों — विजयी और पराजित — की कराहें एक जैसी ही होती हैं। लेकिन क्या इन कराहों के बारे में किसी भी ऐसे आदमी को कुछ बताया जा सकता हैं, जिसने न तो उन्हें कभी सुना है और न ही वह इस बारे में कुछ सुनना चाहता है?
कल का बीता दिन भी कोलअसफ़ के लिए बहुत व्यस्त रहा था। लेकिन रात में उसने तान्या के मुक़दमे से जुड़ी दलीलों पर काम किया। शुरू में काम आगे नहीं बढ़ रहा था, लेकिन कुछ गिलास कड़क चाय पीने और कई सिगरेट फूँकने के बाद उसके बिखरे विचार धीरे-धीरे पटरी पर आने लगे। इस बात से उसमें जोश आ गया और जल्दी ही असरदार जुमलों और ठोस तथ्यों के आधार पर उसने एक ऐसी प्रभावी दलील लिख ली, जिससे वह पूरी तरह सन्तुष्ट था। कुछ लम्हों के लिए उसका वह डर भी ग़ायब हो गया, जो तान्या की बातों से उस पर हावी हो गया था। मन के शान्त होने और अपनी जीत के बारे में पुरउम्मीद होकर वह सोने गया।
लेकिन अनिद्रा ने अपना असर दिखाया। आज उसका सिर भारी भी है और ख़ाली भी। काग़ज़ पर लिखी अपनी दलील उसे बनावटी और अतिशयोक्ति पूर्ण लगने लगी। उसकी सारी उम्मीद इस बात पर टिकी थी कि मुक़दमे की कार्रवाई के वक़्त अवसाद उसे अपने शिकंजे में नहीं ले पाएगा और उसका आत्मविश्वास लौट आएगा।
आज वह तान्या से पहले ही मिल चुका था, तान्या की आवाज़ में एक अजीब अधीरता कर उसे धक्का लगा था ।
— देखिए तान्या, आप अदालत में सब कुछ वैसे ही बयान कीजिएगा जैसे आपने मुझे बताया है । ठीक है ?
— ठीक है, तान्या ने हामी भरते हुए जवाब दिया, लेकिन उसकी हामी से डर छलक रहा था। डर जो तान्या के पूरे वजूद में घुल गया था, जिसे सिर्फ़ वही समझता और जानता था ।
मुक़दमे की पैरवी शुरू हुई ।
जब सलाख़ों से बने उस कटघरे तक जाने वाला दरवाज़ा खुला, जिसके पीछे आरोपियों को बैठाया जाता था, लम्बे समय तक इन्तज़ार करने से ऊब चुके लोगों में हड़कम्प-सा मच गया । अदालत में तैनात पुलिसकर्मियों के बूटों की एड़ियाँ खनकने लगीं, उनकी नंगी कटारें चमकने लगीं और दर्शक यह समझ गए कि नाटक शुरू होने वाला है। हॉल में गूँज रहीं सरसराहटें और फुसफुसाहटें इस बात की गवाह थीं कि लोग एक दूसरे को अपने विचार बता रहे हैं। इवान गरोश्किन और ख़बातियेफ़ की बेहद आम-सी वेशभूषा को लेकर कुछ भद्दी सी टिप्पणियाँ हुईं, लेकिन दर्शकों को ड्रामे की असली नायिका तान्या बहुत पसन्द आई।
आरोपियों से उनके नाम और काम के बारे में पूछताछ करने के बाद जज ने तान्या से उसके पेशे के बारे में पूछा । उसने उत्तर में कहा — वेश्यावृत्ति !
हॉल में मौजूद सजी-धजी और साफ़-सुथरी महिलाओं तथा खाए-पिए एवं सन्तुष्ट मर्दों के बीच पहुँचा यह शब्द उन्हें अपने अन्तिम संस्कार के संकेत की तरह लगा या यों मानो क़त्ल हुआ नौजवान सभी ज़िन्दा लोगों की भर्त्सना कर रहा हो । लेकिन फिर भी मौजूदा लोगों में से किसी का सिर या आँखें नहीं झुकीं । बजाय इसके सभी की आँखों में जिज्ञासा की भूख और बढ़ गई — उन्हें अभियुक्त तान्या और उसकी भूमिका बहुत दिलचस्प लग रही थी !
सबसे पहले बयान गरोश्किन ने दिया। वह साँवला, आत्मसन्तुष्ट और अच्छे नाक-नक़्श वाला मर्द था। वह अपने जुमले चबा-चबाकर बोल रहा था, मानो वह यह जानता हो कि वहाँ बैठे सभी लोगों पर वह बीस है और अपने बड़प्पन की नुमाइश से उसे शर्मिन्दगी हो रही हो। उसके बयान से यह लगा कि हत्या में तीनों अभियुक्तों की बराबर की हिस्सेदारी थी। उसने उस अनजान नौजवान के हाथ पकड़े हुए थे, तान्या ने उसकी गर्दन में फन्दा डालकर उसे ताने रखा था और ख़बातियेफ़ ने उसका गला घोंटा था। ख़बातियेफ़ के व्यक्तित्व में बताने लायक कुछ नहीं था, उसने गरोश्किन के बयान को शब्दशः दोहरा दिया, केवल लूट की राशि को बाँटने की बारीक़ियाँ उसकी थोड़ी अलग थीं । वह इस बात से बेफ़िक्र था कि उसको कठोर सज़ा सुनाई जा सकती है, लेकिन उसे इस बात से शिकायत थी कि इवान को लूट का बड़ा हिस्सा मिला था। अब बारी तान्या की आई।
तान्या के बयान को लेकर कोलअसफ़ के मन में शंका थी, डर था। जैसे ही उसने तान्या की सहमी और डरी आवाज़ में पहले शब्द सुने, वह समझ गया कि मामला बिगड़ रहा है। ईमानदारी और सहजता से चीज़ों को बयान करना तान्या का एकमात्र औजार था, लेकिन अदालत में उसका वह गुण नदारद था। बेकार की बारीक़ियों और ग़ैर-ज़रूरी तथ्यों को अश्लील और भद्दे अलफ़ाज़ में पेश करके तान्या ख़ुद को बेगुनाह और दूसरों को दोषी ठहराने की हर मुमकिन कोशिश कर रही थी। उसकी हर कोशिश उसके मामले को बिगाड़ती जा रही थी। बेहतर होता अगर वह चुप रहती ! — तान्या से कुढ़ते हुए कोलअसफ़ ने मन ही मन सोचा। उसकी हर ग़लतबयानी पर कोलअसफ़ ठण्डी आह भर के रह जाता। जूरी या अदालत में मौजूद लोगों की तरफ़ देखे बिना वह यह महसूस कर सकता था कि सबके दिलों में तान्या के लिए नफ़रत और शक बढ़ता जा रहा है।
जज ने पूछा — अगर आपका इस क़त्ल में हाथ नहीं है तो आपने पुलिसकर्मियों और मामले के जाँचकर्मियों के सामने अपना जुर्म कबूल क्यों किया ?
तान्या पहले सकुचाई फिर बोली कि थाने में पुलिसवाले उसकी पिटाई करते थे। उसके इस जवाब में सफ़ेद झूठ झलक रहा था। दरअसल तान्या ने अपने वक़ील कोलअसफ़ को भी इस बारे में कुछ नहीं बताया था। लेकिन यह कहने के अलावा कि उसकी वहाँ पिटाई होती थी, वहाँ मौजूद सभी सज्जनों को कोतवाल के प्रति अपने डर के बारे में वह और कैसे बताती। वह कैसे यह बताती कि कोतवाल की एक नज़र से वह अन्दर तक दहल जाती है। क्या सुनहरे बटन वाला कोट पहने ये सज्जन समझ सकेंगे कि हलके रंग के बटनों को देखकर कोई डरता नहीं है?
कोलअसफ़ को तान्या का यह बर्ताव समझ नहीं आया । ग़ुस्से में अपने दाँत पीसते हुए वह कटघरे के पीछे छिप गया ताकि उसे शक भरी मुस्कुराहटों का सामना न करना पड़े । तभी जज ने व्यंग के साथ पूछा — क्या जाँचकर्मी ने भी आपको पीटा था?
पीछे की क़तारों से दर्शकों की हलकी-सी हँसी सुनाई दी।
तान्या चुप थी।
— क्या आप पर किसी शराबी का बटुआ चुराने का मुकदमा चल रहा है? क्या मजिस्ट्रेट ने आपको दो महीने जेल की सज़ा सुनाई है?
तान्या चुप रही। वह क्या कहती। उसे सिर्फ़ इस बात का अफ़सोस था कि अपना बयान ठीक से न देकर उसने कोलअसफ़ को निराश किया है।
अब बारी आई गवाहों की और शुरू हुई उनसे अन्तहीन पूछताछ। कोलअसफ़ की आँखों के सामने धुंधलापन बढ़ता जा रहा था । उसकी धुंधलाई आँखों के सामने से गवाही देने आ रहे तरह-तरह के लोग गुज़र रहे थे : शराबख़ानों के विनम्र और बातूनी-से मालिक, उनींदे और स्तब्ध-से नौकर। कुछ अपने बयान में बेकार की हज़ारों बारीक़ियों के बारे में बता रहे थे और उन्हें चुप करा पाना टेढ़ी खीर था। और कुछ ऐसे थे जिनकी ज़बान से हर एक शब्द ख़ींच-खींच के निकालना पड़ता था। एक गवाह आया — साफ़-सुथरे कपड़े पहने, अच्छी शक्ल-सूरत वाला एक दुबला-पतला और शर्मीला-सा लड़का। कुछ आम से सवालों के बाद जज ने उससे पूछा — “जब तान्या-बेलअरुचका और उसके साथी उसकी दादी की झोपड़ी में आए थे तो वे क्या कर रहे थे?”
लड़के ने तुतलाते हुए जवाब दिया — आलू छील रहे थे।
फिर जज की ओर झिझकते हुए देखकर वह मुस्कुराया।
अदालत मुस्कुराई, जूरी मुस्कुराई, चुपचाप रो रही तान्या भी मुस्कुराई, उसकी आँखों में आँसू छलक आए। कोलअसफ़ ने एक माँ की, जो अपने बच्चे को दफ़ना चुकी थी, उस प्यार भरी मुस्कान को देखा, और सोचा — एक इस मुस्कान के लिए मुझे इसकी बेगुनाही साबित करनी होगी। घण्टे पर घण्टे बीतते गए । अन्द्रेय कोलअसफ़ की हालत बद से बदतर होती जा रही थी। उसकी थकी आँखों के सामने चमकीले धागों का जाल था और साफ़ सुनने में उसे कठिनाई हो रही थी। बयानों पर वह ध्यान केन्द्रित नहीं कर पा रहा था। एक ही सवाल दो बार पूछने के लिए वह जज की घुड़की भी खा चुका था । उदासीनता और ऊब उस पर हावी होते जा रहे थे। उसने ख़ुद को सँभालने की हर मुमकिन कोशिश की । ब्रेक के दौरान वह तब तक सिगरेट पीता रहा, जब तक उसे चक्कर नहीं आ गया । उसने एक गिलास कोन्याक भी पेट के अन्दर उड़ेल ली । कुछ पलों के लिए लगा जैसे की ताज़गी और जोश उसमें लौट आए हों, लेकिन जल्दी ही उसे यह लगने लगा कि उसके हाथ-पैर ठण्डे हो रहे हैं। — “हे भगवान ! मेरे साथ यह क्या हो रहा है? — यह ख़याल लौट-लौट कर उसके दिमाग़ में आता। उसके मन में डर का एक एहसास सा बना हुआ था और पीठ में एक अजीब सी ठण्डक महसूस हो रही थी। पमिरान्त्सिफ़ पूरे जोश-ओ-ख़रोश से अपनी जाँच-कार्रवाई कर रहा था । उसने अपने सवालों से गवाहों को छका दिया था। उसकी जज और सरकारी के साथ कई बार गंभीर झड़पें भी हो गईं। मौजूदा लोगों ने उसकी पैरवी की ख़ासी तारीफ़ भी की।
वक्तव्य शाम को ग्यारह बजे ही शुरू हुए। सरकारी वक़ील बुज़ुर्ग था, उसकी पीठ झुकी हुई थी। वह बुद्धिमान था लेकिन चेहरे पर भाव न के बराबर थे। उसने अपना बेहतरीन वक्तव्य संजीदा और सधी हुई आवाज़ में प्रस्तुत किया। उसका वक्तव्य तर्क की तरह ही दहलाने वाला निर्विवाद वक्तव्य था। यहाँ आशय ऐसे तर्क से है जिससे अधिक कपटभरा दुनिया में कुछ भी नहीं होता, क्योंकि उसका इस्तेमाल इनसान की रूह की गहराई नापने के लिए किया जाता है। सरकारी वक़ील के वक्तव्य में भरती के जुमलों और बनावटी बातों का लेशमात्र भी न था। उसका पूरा वक्तव्य केवल तथ्यों पर आधारित था। जैसे-जैसे वह अपनी बात आगे रखता, तान्या को जकड़ने वाले जाल के फन्दे कसते जाते। उसने पहले बड़ी महारत से आरोपियों के माहौल की तस्वीर उकेरी और उसी प्रवाह में वारदात की तस्वीर खींचने की ओर बढ़ गया ।
घबराहट से ठण्डे पड़ गए हाथों से कोलअसफ़ अपने नोट्स पलट रहा था । उसे ऐसा लग रहा था मानो सरकारी वक़ील के हर शब्द के साथ कमरे में रोशनी घटती जा रही है । एक बल्ब बुझता जा रहा है और अंधेरा गहराता जा रहा है । वह अपने पीछे बैठी तान्या की भावनाएँ महसूस कर पा रहा था । उसे तान्या के शान्त चेहरे तथा सरकारी वक़ील के हर शब्द के साथ उसकी फैलती जा रही आँखों और उसके सिर पर ठुकती कीलों का पूरा एहसास था । पहली बार एक भयावह स्पष्टता और भारी वार के साथ कोलअसफ़ को अपनी ज़िम्मेदारी की गहराई का एहसास हुआ । उसका दिल बैठ गया, उसके हाथ काँपने लगे और एक ख़तरनाक आवाज़ यह दोहराने लगी — तुम हत्यारे हो ! तुम हत्यारे हो !.. — कोलसव पीछे मुड़कर देखने से डर रहा था । उसे डर था कि कहीं तान्या की आँखें उससे अपनी मुक्ति की गुहार न लगा बैठें, कहीं उनमें उसे अपने प्रति अंधविश्वास दिखाई न दे जाए ? वह उसे जेल में यह आश्वासन क्यों दिया करता था कि उसके बरी होने की पूरी संभावना है ?
तान्या के सिर पर मण्डरा रहे आरोपों के ख़तरनाक बादल गहराते जा रहे थे। सरकारी वक़ील क्रूरता की हद तक शान्त अपनी आवाज़ में तान्या बेलअरूचका का शर्मनाक अतीत सबके सामने रखता है और बताता है कि कैसे उसने अपने सफ़ेद हाथों को निर्दोष खून से रंग लिया है। वह लोगों को लूट की वारदात की ओर भी ले जाता और कहता कि वह ऐसी पहली वारदात नहीं थी...।
हॉल अब पूरी तरह से शान्त है । कोलअसफ़ की साँस फूल रही है । वह अपनी आँखें बन्द कर लेता है और उसे दूर आकाश में उगता सूरज, हरी घास के मैदान और चमकता हुआ नीला आकाश ठीक वैसे ही दिखाई देने लगते हैं जैसे फाँसी के फन्दे के लिए जाते क़ैदी को दीखते हैं। अभी उसके घर में कितनी शान्ति होगी ! बच्चे अपने बिस्तरों में सो रहे होंगे। काश ! वह अभी उनके पास जा सकता ! घुटने टेककर उनके साफ़ बदनों पर सिर झुकाने से शायद उसे सुरक्षा कवच मिल जाता। वह इस ख़ौफ़नाक माहौल से बच जाता। भागो ! पर कैसे भागो ?
उसका भी एक बच्चा था ? कोलअसफ़ को लगा कि उसकी हताशा सिर्फ़ एक लम्बी और जंगली चीख़ ही बयान कर सकती है। काश ! उसके पास देवताओं की भाषा होती। तब यह भीड़ गरजती हुई ज़ोरदार और अबूझ वाणी सुनती ! पत्थर दिल पिघल जाते, हॉल सिसकियों से भर जाता, मोमबत्तियाँ भयभीत होकर बुझ जातीं, दीवारें दुख और करुणा से काँप उठतीं ! कितना मुश्किल है इनसान होना, सिर्फ़ इनसान होना !..
सरकारी वक़ील ने अपना भाषण समाप्त किया। एक मिनट के लिए हुई शान्ति में केवल खाँसने, नाक सुड़कने और पैरों के हिलने की आवाज़ें ही सुनाई दीं । उसके बाद पमिरान्त्सिफ़ ने बोलना शुरू किया। उसका सहज और सुन्दर वक्तव्य एक धारा की तरह प्रवाहमान था। लग रहा था मानो उसकी स्वस्थ और धीमे से काँपती हुई आवाज़ अंधकार को दूर कर रही हो। तभी एक हलकी हँसी सुनाई दी — पमिरान्त्सिफ़ ने लापरवाह अन्दाज़ में सरकारी वक़ील पर कटाक्ष किया। कोलअसफ़ अपने साथी के भरे हुए सुन्दर चेहरे को देखता है, उसके इशारों का अनुसरण करता है और आह भर के सोचता है — तुम्हारे लिए माहौल कितना अच्छा है; तुम न ही शोक-सन्ताप के बारे में जानते हो और न ही उसे समझते हो ! जब कोलअसफ़ ने आख़िरकार बोलना शुरू किया, तो वह अपनी आवाज़ ख़ुद ही नहीं पहचान पा रहा था । उदास, टूटी हुई, और सुनने में ख़ुद उसके लिए भी कड़वी।
जूरी के सदस्य पहले पूरी सावधानी से सुन रहे थे, लेकिन चंद वाक्य सुनने के बाद ही वे हिलने-डुलने लगे, अपनी घड़ियाँ देखने लगे और जम्हाइयाँ लेने लगे। बनावटी और असहज जुमले एक के बाद एक आते रहे और जूरी के सदस्यों के लिए कार्रवाई उबाऊ होती गई। बने बनाए ढर्रे का वक्तव्य, जिसको न जाने वे कितनी बार सुन चुके थे। जूरी-प्रमुख ने थोड़ी देर बाद सुनना बन्द कर दिया और अदालत के एक कर्मचारी से फुसफुसाकर कुछ कहा। कोलअसफ़ को लगा कि वह कह रहा है — काश ! यह सब जल्दी ख़त्म हो।
जूरी सदस्य विचार-विमर्श करने के लिए अपने कमरे में गए। वह आधा घण्टा बिताना बहुत मुश्किल हो गया ! कोलअसफ़ अपने साथियों से किसी भी तरह की बातचीत करने से बचने की कोशिश करता है । लेकिन एक हँसमुख और मोटा-सा जवान लड़का, जिसे इस बात की बिलकुल भी समझ नहीं थी कि कहाँ क्या कहना चाहिए, उसके पास आता है और कहता है —
— अरे भई ! आज आप इतने पस्त से क्यों हैं? हम तो ख़ासतौर से आपको सुनने आए थे ।
कोलअसफ़ औपचारिकतावश मुस्कुराता है और कुछ बुदबुदाता भी है, लेकिन वह जवान लड़का पमिरान्त्सिफ़ को आता देख चिल्लाते हुए उसकी तरफ़ दौड़ पड़ता है :
— लाजवाब, सिर्गेय वसिल्येविच ! बहुत बढ़िया !
तभी घण्टा बजता है। लोगों की भीड़ जो बाहर टहलते हुए सिगरेट पी रही थी और बातों में मशग़ूल थी, एक दूसरे को धकियाते हुए हॉल की तरफ़ भागती है। जूरी सदस्य विचार-विमर्श करके अपने कमरे से बाहर आते हैं। अदालत में उपस्थित सभी लोग उनको सुनने के लिए बिलकुल शान्त हो जाते हैं। सब मुँह बाए पूरी जिज्ञासा के साथ उस काग़ज़ की तरफ़ देख रहे हैं, जिसे एक जज जूरी-प्रमुख से ले लेता है और पूरी उदासीनता से उसे पढ़कर फिर उसपर दस्तख़त करता है। कोलअसफ़ दरवाज़े पर खड़ा एकटक तान्या की मलिन छवि को देख रहा है।
जूरी-प्रमुख अपना फ़ैसला पढ़ना शुरू करता है। हालाँकि लिखावट समझने में उसे थोड़ी परेशानी हो रही है। वह पढ़ने लगता है — क्या मसक्वा प्रान्त के ब्रोन्नित्स्की ज़िले की इक्कीस वर्षीय किसान स्त्री तान्या बेलअरूचका इस बात के लिए दोषी है कि उसने आठ दिसम्बर की रात लूट के माल में हिस्सेदारी पाने के लिए अपने साथियों का मृतक का गला घोंटने में साथ दिया?
— हाँ, दोषी है।
क्या यह कोलअसफ़ की कोरी कल्पना थी, या तान्या सचमुच लड़खड़ाई थी? या वह ख़ुद लड़खड़ाया था?
अदालत का फ़ैसला सुनने के लिए आपको आधा घण्टे और इन्तज़ार करना होगा। कोलअसफ़ के लिए उस गरमागरमी भरे माहौल में रहना दूभर हो गया । वह उन मंद रोशनी वाले गलियारों में चला जाता है जो भीड़भाड़ से दूर थे । वहाँ सुस्ती से चहलक़दमी करते हुए उसे सिर्फ़ अपने क़दमों की गूँज सुनाई दे रही थी। तभी हॉल की तरफ़ से पैरों की खड़खड़ाहट, शोर, आवाजें सुनाई देने लगती हैं — सब ख़त्म हो गया है। कोलअसफ़ तेज़ी से भीड़ की उलटी दिशा में चलता है, तेज़ और ख़ुश आवाज़ों में उसे सुनाई देता है — दस साल की क़ैद-ए- बा-मशक़्क़त !" वह उस दरवाज़े पर रुक जाता है जहाँ से मुजरिम बाहर आ रहे हैं ।
जैसे ही तान्या उसके पास से गुज़रती है, वह उसका बेजान लटकता हुआ हाथ थामकर सिर झुका के कहता है :
— तान्या ! मुझे माफ़ कर दो !
तान्या अपनी उदासीन और निस्तेज आँखें उठाकर उसकी ओर देखती है और चुपचाप आगे बढ़ जाती है ।
कोलअसफ़ और पमिरान्त्सिफ़ पड़ोसी हैं इसलिए एक ही गाड़ी में घर लौटते हैं। पमिरान्त्सिफ़ रास्ते भर आज के मुक़दमे के बारे में बातें करता रहा और तान्या के लिए अफ़सोस ज़ाहिर करता रहा। ख़बातियेफ़ को सज़ा में मिली छूट पर ख़ुश होता है। कोलअसफ़ हाँ-नहीं में बड़े बेमन से जवाब देता रहता है। घर पहुँच कर कोलअसफ़ आराम से कपड़े बदलता है, पता करता है कि उसकी बीवी सो रही है कि नहीं, बच्चों के कमरे के सामने से गुज़रते हुए वह आदतन बच्चों को चूमने के लिए दरवाज़े का हैण्डल पकड़ता है, लेकिन उसका मन बदल जाता है और वह अपने बेडरूम की ओर बढ़ जाता है ।