बच्चों के लिये / गरिमा सक्सेना
Gadya Kosh से
रमेश अपने पिता से बोला -बाबूजी अब मुझे यह देश छोड़कर लंदन रहने जाना पड़ेगा, ममता और बच्चे भी साथ जायेंगे। आप और माँ यदि यहाँ रहेंगे तो इस घर की देखभाल हो जायेगी वरना तो बेचना ही पड़ेगा।
बाबूजी- क्यों ये अचानक, विदेश जाने की बात?
रमेश-बाबूजी यहाँ मेरी कमाई ज्यादा नहीं हो पाती, अब खर्चे भी बढ़ गये हैं और बच्चों का भविष्य भी तो इस देश में अंधकार में ही दिखता है मुझे। इस देश में रहे तो कुछ नहीं होगा इनका।
बाबूजी - हाँ-हाँ जाओ विदेश, मिटा दो अपनी संस्कृति। तुम बच्चों के लिये हम अपना गांव तक छोड़कर यहाँ आये यहां बसे, अब बुढ़ापे में हमें अकेला छोड़कर जा रहे हो।
रमेश- बाबूजी आपने भी तो अपने बच्चों को किसान नहीं बनाया। गांव से शहर आने पर क्या नहीं बदला। लेकिन हमरे भविष्य के लिए यह आवश्यक था। अपने बच्चों के लिये ही मुझे भी जाना ही होगा।