बजरंगी भाई जान: भावना का इंद्रधनुष / जयप्रकाश चौकसे

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बजरंगी भाई जान: भावना का इंद्रधनुष
प्रकाशन तिथि :10 जुलाई 2015


कुछ वर्ष पूर्व दक्षिण भारत के एक प्रसिद्ध और सफल पटकथा लेखक बी. विजेंद्र प्रसाद ने एक फिल्म लिखी, जिसे दक्षिण भारत में बनाने के लिए अनेक निर्माता उत्सुक थे परंतु लेखक की यह शर्त थी कि पहले इसे हिंदुस्तानी भाषा में मुंबई में बनाया जाए और फिर तमिल में बनाया जाएं। सलमान खान ने पटकथा सुनकर मुंहमांगे दाम देना चाहे परंतु लेखक दाम के साथ सह-निर्माता बनने की इच्छा रखता था, जो सलमान को स्वीकार नहीं थी। लेखक राकेश रोशन को मिला और उन्होंने भी सह-निर्माता वाली शर्त नहीं मानी परंतु मुंहमांगी धनराशि देने को वे तैयार थे। लेखक ने सलमान खान से ही अनुबंध करना उचित समझा और सलमान खान ने 'एक था टाइगर' के निर्देशक कबीर खान को अनुबंधित किया और मूल लेखक के साथ बैठकर कबीर खान ने पटकथा में निर्माण स्केल भव्य कर दिया। इस तरह 'बजरंगी भाईजान' का निर्माण हुआ, जो 17 जुलाई को प्रदर्शित होने जा रही है।

खबरें हैं कि कुछ शहरों में फिल्म का प्रदर्शन रोकने के लिए अर्जी दी गई है और सुनवाई भी शुरू हो गई। हमारी अदालतों में जजों की कमी के कारण अनगिनत केस वर्षों पूर्व फाइल हुए हैं परंतु अभी तक सुनवाई नहीं हुई। अत: पहले से ही व्यस्त अदालतें ऐसे केस को कैसे प्राथमिकता दे सकती हैं, जबकि सुप्रीम कोर्ट का निर्देश भी है कि सेंसर पारित फिल्म का प्रदर्शन रोकने की अपीलों पर ध्यान नहीं दिया जाए। कई लोग कहानी पर नकल के आरोप में ब्लैकमेल करने के उद्‌देश्य से रुकावट डालते हैं। यह प्रसंग ब्लैकमेल का नहीं है वरन् कुछ लोग धर्म को बचाने के स्वयं ओढ़े दायित्व के तहत यह करते हैं। याद आता हैं पी.के. का संवाद, 'इस धरती की तरह अनगिनत गोले जिस ईश्वर ने बनाए हैं, उसकी रक्षा का दम कोई कैसे भर सकता है।' जिन लोगों ने अपील दर्ज की है, उन्होंने फिल्म नहीं देखी है। मैंने गत माह के अंतिम सप्ताह में सलीम खान साहब के साथ बैठकर फिल्म देखी है। सलमान अपनी सब फिल्में प्रदर्शन के कई दिन पूर्व अपने पिता सलीम खान को उनके सुझाव जानने के लिए दिखाते हैं ताकि उनके लंबे अनुभव का लाभ मिल सके। फिल्म देखने के बाद सलमान व कबीर खान ने सलीम साहब से सलाह मांगी।

उन्होंने कहा कि यह विगत पच्चीस वर्षों के सलमान के कॅरिअर की सर्वश्रेष्ठ फिल्म है और इसमें केवल एक सुझाव है कि फिल्म के सुखांत क्लाइमैक्स के बाद सलमान एवं करीना पर फिल्माया गीत अनावश्यक है, क्योंकि फिल्म का समग्र प्रभाव जबर्दस्त है और इस अतिरिक्त नृत्य गीत से, असर कम हो जाता है। पूरी फिल्म में कोई दोष नहीं, कमी नहीं। सलमान और कबीर ने निर्णय स्वीकार किया, अत: दो घंटे तीस मिनट की फिल्म का प्रदर्शन होगा और अनावश्यक गीत हटा दिया है। मुझे विश्वास है कि हिंदुत्व का अनन्य भक्त भी इस फिल्म को देखने के बाद महसूस करेगा कि कुछ भी आपत्तिजनक नहीं है। इसी तरह मुस्लिम समुदाय का कोई भी सदस्य फिल्म में किसी तरह भी इस्लाम के विरुद्ध कोई बात नहीं पाएगा।

दरअसल, यह फिल्म धर्म की नहीं है वरन् एक गूंगी अबोध सात वर्षीय कन्या के अपने परिवार से बिछुड़ने तथा नायक द्वारा उसे उसके मां-बाप से मिलाने की मानवीय कथा है। इसे कुछ इस तरह गढ़ा गया है कि गंभीर बातें भी राजकुमार हिरानी की अदा में हास्य की चाशनी में लपेटकर कही गई है और यही हिंदुस्तानी सिनेमा की मूलधारा भी है। एक गूंगी बच्ची जो लिखना-पढ़ना भी नहीं जानती, से कैसे उसका पता पूछें, इसे अत्यंत रोचक व मनोरंजक ढंग से प्रस्तुत किया गया है और कुछ भी अविश्वसनीय नहीं लगता। उस कन्या और सलमान को अभिनय का राष्ट्रीय पुरस्कार मिल सकता है। पूरी फिल्म रोचक है और कहीं कोई उपदेश भी नहीं दिया गया है परंतु कोई भी दर्शक इसकी भावना से अछूता नहीं रह सकता। सेंसर अध्यक्ष पहलाज निहलानी अनुभवी निर्माता हैं और बीजेपी समर्थक भी हैं। कमेटी में मुस्लिम सदस्य भी हैं। किसी को कोई आपत्ति नहीं है।