बड़ा आदमी / दीपक मशाल
मुजीब ढाबे से चाय पीने के बाद लौट कर अपने ट्रक पर आया, गाना चालू किया और एक बार फिर ट्रक को पुणे की तरफ दौड़ा दिया। थोड़ी देर बाद जैसे ही दो गानों के बीच गैप आता, उसे ऐसा लगता कि ट्रक में कोई दूसरा भी है उसने इधर-उधर देखा तो कोई दिखाई ना दिया। अपने मन का वहम समझ वह आगे बढ़ता गया, अब यहाँ अकेले में पूछता भी तो किससे? अरे हाँ अकेले इसलिए कि पिछले हफ्ते ही उसका क्लींज़र हैजे की चपेट में आ दुनिया छोड़ गया था और अभी तक उसे कोई नया क्लींज़र नहीं मिला था। पर माल की डिलीवरी टाइम से देनी थी इसलिए उसे अकेले आना ही पड़ा।
लेकिन जब कई बार उसे ऐसा लगा कि कोई ट्रक में है जो सिसक रहा है तो जाने क्या सोच वो पसीना-पसीना हो गया। पर फिर भी हिम्मत कर उसने ट्रक सड़क से एक साइड में लगाया और अन्दर अच्छे से चेक करने लगा।
वो गलत नहीं था असल में उसकी ड्राइविंग सीट के पीछे एक १४-१५ साल का लड़का एकदम कोने में दुबका सिसक रहा था।
पहले तो काफी देर तक पूछताछ करने पर कुछ नहीं बोला पर जब-
“बताता है अपना नाम और पता या लेके चलूँ तुझे पुलिस थाने में?” उसने सख्ती से पूछा
फटेहाल सा वो लड़का अचानक बहुत जोरों से रोने लगा, “मुझे थाने मत ले जाइए मैं सब बता दूंगा। लेकिन आप किसी से कहना नहीं। वर्ना वो मुझे फिर पकड़ ले जायेंगे और पीटेंगे।”
मुजीब को उसकी हालात पर कुछ तरस आया,
“ठीक है नहीं ले चलूँगा लेकिन कौन पकड़ कर ले जायेंगे? कोई चोर-वोर तो नहीं? तू किस मकसद से मेरे ट्रक में चढ़ा? या कहीं से भाग कर आया है?' उसने ताबड़तोड़ सवाल कर दिए '
“हाँ साब, मेरा मालिक मेरे गाँव से बापू से ये कह कर अपने साथ ले आया था कि मुझे नौकरी पर रखेगा, अच्छी तनख्वाह देगा और पढ़ायेगा भी। लेकिन...” कहकर लड़का फिर सिसकने लगा
“लेकिन क्या?”
“बापू ने कहा था कि वो बड़ा आदमी है मेरी जिन्दगी सुधार देगा लेकिन वो यहाँ लाकर मुझसे दिन-रात सिर्फ काम कराता है, खाना भी ढंग से नहीं देता और कुछ कहने पर लात-घूंसों से पीटता है। मैंने भाग कर शहर में लोगों से उसकी शिकायत करने की कोशिश की पर वो एक इंजीनियर है और उसको सब जानते हैं तो किसी ने मेरी बात नहीं सुनी और मुझे फिर से उसी के पास पहुंचा दिया”
लड़का अब कुछ निर्भीक सा होकर बोलता जा रहा था, “घर पहुँच कर उस रात मेरी डंडे से बुरी तरह से पिटाई की गई, पीठ पर निशान पड़ गए और अभी भी नील पड़े हैं।”
कहते हुए वो मुजीब की तरफ पीठ कर अपनी कमीज़ ऊपर उठा निशाँ दिखाने लगा।
मुजीब से सहानुभूति और पुलिस को ना सौंपने का आश्वासन पा लड़का कुछ और सहज हो चला था। अगले ढाबे पर चाय पिलाते हुए उसने लड़के से पूछा-
“नाम क्या है तुम्हारा?”
“नाम राजेन्द्र है। पर सब राजू-राजू कहते हैं” जवाब मिला
“राजू-राजू या राजू” उसने मसखरी की
चाय के गिलास में जल्दी-जल्दी डबलरोटी डुबो कर खा रहे सुबह से भूखे राजू के होठों पर मुस्कान तैर गई और उसने हँसते हुए कहा, “ राजू। इसी रास्ते पर सौ किलो मीटर आगे मेरा गाँव है 'पनरिया' “
मुजीब ने उसे समझाया, “हम्म। देखो बेटा मैं कोई बड़ा आदमी तो हूँ नहीं जो तुम्हें नौकरी पर रख सकूं या पढ़ा सकूं लेकिन हाँ मैं तुम्हें तुम्हारे गाँव छोड़ दूंगा, तुम्हारे बापू के पास। ठीक है?”
राजू चुपचाप सिर नीचे किये चाय के गिलास को तके जा रहा था और बड़े आदमी का मतलब समझने की कोशिश कर रहा था।