बड़ी बहन / शोभना 'श्याम'
विदेश से कुछ महीने पहले आकर बसे इस परिवार में आज सुबह-सुबह ही नई बहु का शुभागमन हुआ है और तीन चार घंटे बीतते-बीतते ढोलक की थाप के साथ वे भी आ पहुँचे हैं। जाने कौन-सी घ्राण शक्ति होती है, इन लोगों के पास कि ये ऐसे सारे शुभ अवसरों को तुरंत सूंघ लेते हैं।
आते ही उन्होंने नई बनी सास को बधाई देना और फिर नेग ठहराना शुरू किया ही था कि सास ने अपनी नई नवेली बहु और बेटे को बुलाकर सबकी पैर छुआई की रस्म कराई। इस अप्रत्याशित सम्मान से प्रफुल्लित और मंत्रमुग्ध हो बेटे-बहु पर ढेर आशीर्वाद बरसाने के बाद नेग ठहराना छोड़ उन्होंने ढोलक के साथ नाचना-गाना शुरू कर दिया। शायद वे उस ओर से आश्वस्त हो गए थे।
तब तक अंदर से रोली चावल और सूखा आटा आदि-आदि भी आ गया था। उनकी नेता ने दरवाजे पर आटे से सतिया बनाया और फिर रोली चावल से उसकी पूजा कि।
अब बारी थी-घर के अंदर चावल डालने की रस्म की।
तभी शोर शराबे के बीच बेटे की माँ का स्वर उभरा-"बहनों! आपसे यह रस्म पूरी कराने और आपको नेग देने का काम दूल्हे की बड़ी बहन करेगी जिसने इसके पिता का साया उठ जाने के बाद बड़ी मेहनत से सारे परिवार को पाला, अपने छोटे भाई को पढ़ा लिखा कर काबिल बनाया।"
सबकी नजरे अंदर से आती एक आधुनिक मगर सुरुचिपूर्ण कपड़े पहने लगभग पैंतीस वर्षीया, मर्दानी-सी शक्ल वाली सुष्ठु महिला पर उठ गयी। आते ही उसने हाथ में ली नोटों की गड्डी से नव-विवाहित जोड़े की वार-फेर कर उसे चावल की थाली में रख दिया और उसके पैर छूने झुके नव-विवाहित जोड़े को अपने अंक में भर लिया।
वे सब नाचना छोड़ अवाक से होकर उसे देख रहे थे, जब उसने अपनी मर्दानी आवाज में कहा, "अरे रुक क्यों गए सब? चलिए सब मिल कर नाचते हैं।"