बड़े दिन की पूर्व सांझ / ममता कालिया

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बडे दिन की पूर्व साँझ

मुझे नृत्य नहीं आता था। रुचि भी नहीं थी। मैं ने ऐसा ही कहा था।

वह बोला- आता मुझे भी नहीं है।

मैं ने सोचा बात खत्म है।

उसने हाथ में पकडी मोमबत्ती की तरफ देखा और हकबकाया सा हँस दिया- यह मैं ने ले ली थी। मुझे पता नहीं था इसका मतलब यहाँ यह होता है।

सब अपनी अपनी मोमबत्तियों और लडक़ियों के साथ फ्लोर पर थे। बैण्ड उसका इंतजार कर रहा था।


- देखिये प्लीज, मेरे दोस्तों में मेरी बहुत हंसी होगी अगर मैं नाच न पाया।

वह तब तक नर्वस हो गया था।

मैं उससे ज्यादा अटपटी हालत में थी। मैं ने रूप की तरफ देखा, फिर उसकी तरफ।

मैं ने निर्णयात्मक ढंग से कहा

- मैं शादीशुदा हूँ, यह मेरे पति हैं।

उसने मुझे छोड़ रूप से प्रार्थना करनी शुरु कर दी। बडे़ दिन की पूर्व साँझ को नृत्य जाने बिना भी नाचना मैं अजीब न मानती, पर रूप ने मोमबत्ती नहीं खरीदी थी और हमारी शादी को सिर्फ पाँच दिन गुज़रे थे। साढे चार दिन हम एक ही कमरे में कैद रहे थे और उठने के नाम पर बाथरूम तक जाते थे।

आज बाहर आते समय मुझे लगा, मैं ने कहा भी- दिन सफेद नहीं लग रहा तुम्हें?

रूप ने सिर्फ कहा- लोग अभी भी बस की क्यू में खडे हैं।

वह रूप से बात कर चुकने पर मेरी ओर ऐसे बढ़ा कि उसे अनुमति मिल गई है। मैं ने रूप की ओर बिलकुल पत्नियों वाली निगाह से देखा। वह चौडा बडा पैग मुँह में उंडेल रहा था।


हमारे फ्लोर पर आते ही बैण्ड शुरु हो गया। वह लडक़ा ख़ुश था। उसने मोमबत्ती जला ली थी और ढूंढ ढूंढ कर दोस्तों की ओर देख रहा था। जिस किसी दोस्त से उसकी आँख मिल जाती, वह मुझे अधिक कस कर पकड लेता जैसे बच्चा एक और बच्चे को देख कर अपना खिलौना पकडता है।


मैं सोच रही थी वह मुझसे बोलेगा। उसे शायद नृत्य की तहजीब का पता न था। वह मुझसे बिलकुल बात नहीं कर रहा था, बस नर्वसनेस में बार-बार मुस्कुरा रहा था। उसे इस बात का काफी ख्याल था कि मोम मेरी साडी पर न गिर जाये।

प्रथा के विपरीत मैं ने ही बात शुरु की- तुम्हारा नाम शायद जोशी है।

उसने कहा- नहीं, भार्गव!

- ऐसा नहीं लगता कि तुम पहली बार नाच रहे हो।

वह चुप रहा। थोडी देर बाद उसने मुझसे फिर माफी मांगी- मैं ने आज आपको बडा तंग किया, पर नृत्य करना मेरे लिये जरूरी था । यह एक..

मैं ने बीच में टोक दिया- मैं समझती हूँ।


वह मुझे आप कह कर सम्बोधित कर रहा था। मैं ने अनुमान लगाया कि उसकी शादी अभी नहीं हुई थी। शादी के पहले मैं भी इतने लोगों को आप कहा करती थी कि अब मुझे ताज्जुब होता था।

वह बहुत छोटा और अकेला लग रहा था।

रूप को मैं जहाँ खडा छोड आई थी, उस ओर इस वक़्त मेरी पीठ थी। मैं ने उससे कहा- जरा देखना मेरे पति वहीं खडे हैं क्या?

उसने कहा- नहीं, वह यहाँ नज़र नहीं आते।

थोड़ी देर के लिये उसे पर्याप्त व्यस्तता मिल गई। जल्दी ही उसने बताया- हाँ, वह वहाँ हैं, उन्होंने एक और पैग ले रखा है।


वह रूप को रुचि से देखता रहा।

- वह उतना पी सकेंगे, मेरा मतलब, होश रखते हुए?

मैं हँसी, मैं ने कहा- इस बात की चिन्ता मेरी नहीं।

वह डर गया। उसने मुझे ध्यान से देखा।

मैंने बताया- नहीं, मैं नहीं पीती।

वह दु:खी हो गया था- मैं ज़्यादा नहीं पी सकता। हमारे मैस में सिर्फ ड्रिंक्स की पार्टियां होती हैं तो बडी असुविधा होती है।

मैंने कहा- तुमने घर पर कभी नहीं पी होगी।

उसने गर्व से बताया कि उसके घर में अण्डा भी नहीं खाया जाता। जब से वह एयरफोर्स में आया तभी से उसने पहली बार यह सब देखा। घर पर उसने घरवालों को सिर्फ दूध, चाय या पानी पीते देखा था।


मैंने पूछा- तुमने चखी है?

- हाँ, मुझे बहुत कडवी लगी है।

मैंने कहा- मुझे कड़वाहट पसन्द है।

उसने मेरी तरफ ध्यान से देखा।

मैंने फिर आश्वासन दिया कि मैं वाकई नहीं पीती।

उस ओर जब तक मेरा मुँह हुआ, रूप वहाँ नहीं था।

मैंने एकदम उससे पूछा- मेरे पति कहाँ हैं?

वह सकपका गया- मैं ने नहीं देखा; मुझे नहीं मालूम; मुझे अफसोस है।

मैंने उससे कहा- मैं जाना चाहूंगी।

भार्गव ने मुझे समझाना चाहा कि डांस नम्बर के बीच में से जाने से उसकी स्थिति कितनी अजीब हो जायेगी।

उसने कहा- आपके पति बाग में गये होंगे, आ जायेंगे।


मुझे हँसी आने लगी। मैं रूप को ढूंढने नहीं जा रही थी। दरअसल मैं उस ऊलजूलूल कवायद से तंग आ गई थी। अनभ्यस्त होने की वजह से हमारे जूते बार-बार एक दूसरे के पैर पर पड रहे थे। वह मेरी साड़ी पर बहुत बार पैर रख चुका था और मुझे उसके फटने की आशंका थी।

उसने कहा- मेरी मोमबत्ती के नीचे एक नम्बर है, अगर उद्धोषणाओं के बाद यह शेष रहा तो मुझे कोई उपहार मिलेगा।

मैं ने फ्लोर पर गिना, चार जोडे बचे थे। उसे अपने लकी होने की काफी आशा थी।

उसने शर्माते हुए बताया कि वह रेस में हमेशा जीता है।

मैं ने पूछा वह कितना लगाता है।

उसने कभी सौ से ज्यादा नहीं लगाया था। उसने कहा कि उसकी समझ में नहीं आता कि वह किस घोडे पर लगाये। वहा वहाँ जाता है... और उसके आगे खड़ा आदमी जिस घोडे़ पर दाँव लगाता है, उसी पर वह लगा देता है।


मैं ने उसका जन्मदिन पूछा और उसका लकी नम्बर बताया। वह ख़ुश हो गया।

उसने मुझसे कहा- आप बुरा न मानें तो एक बात पूछूं ? आपके पति बुरा तो नहीं मानेंगे?

मुझे भार्गव पर लाड़ आने लगा। लगा यह सवाल लेकर उसने काफी माथापच्ची की होगी। इस वक्त वह सहमा-सा मुझे देख रहा था। मैं ने कुछ नहीं कहा, बस, जहाँ रूप कुछ देर पहले खडा था, वहाँ देखकर चाव से हँस दी। उसे उत्तर की सख़्त अपेक्षा थी। मैं ने गर्दन से न कर दी।


- तुम्हारी कोई लडक़ी नहीं ?- उसे लेकर मुझे जिज्ञासा हो रही थी।

उसने कहा- मेरी अभी शादी नहीं हुई।

मैं ने अंग्रेजी में कहा- मेरा मतलब लडक़ी-मित्र से था।


वह और नर्वस हो गया।


थोडी देर में संयत होकर उसने बताया कि उसकी माँ ने अब तक उसके लिये दर्जनों रिश्ते नामंजूर कर दिये हैं। वह ख़ूबसूरत-सी लडक़ी चाहती है, बेशक वह इंटर ही पास हो।

हमारा नम्बर इस बार आउट हो गया।

मैं हॉल में रूप को खोजना चाह रही थी। भार्गव भी साथ-साथ देख रहा था। मैं ने कहा वह परेशान न हो मैं स्वयं ढूंढ लूंगी। मैं हॉल में देखने के बाद सीधे बार में गई। रूप बेतहाशा पी रहा था और उतना ही स्मार्ट लग रहा था जितना तब जब क्लब में घुसा था। हमारे वहाँ जाते ही रूप ने मेरे लिये जिन और उसके लिये व्हिस्की मंगाई। भार्गव डर गया।

मैं ने रूप को इशारे से मना किया- भार्गव बहुत पी चुका है, अभी इसे मोटरसाइकिल पर बारह मील जाना है।

भार्गव ने कृतज्ञ आँखों से मुझे देखा। उसने एक बार फिर रूप से सफ़ाई में कुछ कहा।

उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि, कितनी देर में ऑलराइट कह कर चले जाना चाहिये। वह जेब से मोटरसाइकिल की चाबी निकाल कर खेलने लगा।

रूप ने मुझे कोट पहनाना शुरु कर दिया क्योंकि हमारा इतनी देर बाहर रहना काफी साहस की बात थी, यह मानते हुए कि हमारी शादी को सिर्फ पाँच दिन हुए थे!