बड़े रसूख वाले लोग / गोवर्धन यादव
किसनी की बेटी के जवान होने की ख़बर मुहल्ले में ही नहीं, पूरे गाँव में फ़ैल गई थी, ख़बर लगते ही शोहदों की बन आयी थी, वे उसके घर के चक्कर इस आशा के साथ लगाते कि देर-सबेर ही सही, एक बार उसके दीदार हो जाए, किसनी अपने भाग्य को कोसती कि कहाँ उसके घर इतनी खूबसूरत बेटी पैदा हो गई, उसे तो किसी बडॆ घर में पैदा होना चाहिए था, पर होनी को कौन टाल सकता था, बनी-मजुरी के लिए उसे घर छोडना ही होता था, घर में वह बैठे भी कैसे रह सकती थी, बित्ता भर पेट के गड्ढे को भरने के लिए अगर वह काम पर न जाए और घर से बाहर न निकले, यह संभव भी नहीं था, घर छोडने के पहले वह अपनी बेटी को समझाती कि कोई वह घर से बाहर न निकले, यदि कोई अपरिचित दरवाजे की कुण्डी खटखटाए तो दरवाज़ा न खोलना, आदि-आदि, बडी सुबह वह घर से निकल जाती और देर शाम तक लौटती, बाहर रहते हुए उसे केवल एक ही चिन्ता सताये रहती कि उसकी बेटी सुरक्षित तो है, मन ही मन वह अपनी बेटी कि सुरक्षा के लिए भगवान से प्रार्थणा करती रहती, एक दिन, शाम को जब वह घर लौटी तो बेटी गायब थी, उसने चीख-पुकार कर मोहल्ले वालों से अपनी बेटी को ढूँढ लाने की गुहार लगायी, पर उसकी सुनने वाला कोई न था, आख़िर एक बूढे ने आगे बढते हुए उससे पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवा आने की सलाह दी, वह थाना पहुँची, लेकिन उसकी रपट यह कहकर दर्ज नहीं की गई कि हो सकता है वह मोहल्ले में कहीं गई होगी या अपनी किसी सहेली के घर-वर में होगी, देर-सबेर लौट आएगी, चार दिन बाद पुलिस ने एक लाश बरामद की, वह उसकी बेटी की ही लाश थी, बुढिया ने चीख_चीख कर आसमान सर पर उठा लिया था, पडौस में रहने वाले लोग घेरा बनाए मूक दर्शक बने यह सब देख रहे थे, पर किसी ने भी आगे बढकर उसे ढाढस बंधाने की हिम्मत नहीं जताई,
बुढिया ने उन सबको धिक्कारते हुए कहा:-ऐसी घटना यहाँ पहली बार नहीं हो रही है, हर बार लोग हमारी जवान बहू-बेटियों को उठाकर ले जाते रहे हैं और तुम लोग हमेशा कि तरह मुँह लटकाए खडे रहते हो, कब खून खौलेगा तुम्हारा, कायर की औलादो? कब अपना मुँह खोलोगे तुम लोग,
एक आदमी ने आगे आते हुए कहा " अम्मा, हम कायर नहीं, गरीब हैं, हम जिन घरों में गुलामों की तरह काम करते हैं, उनके खिलाफ़ एक शब्द भी नहीं बोल सकते, हम जानते हैं कि उनके खिलाफ़ बोलने की हमें कितनी बडी क़ीमत चुकानी पड सकती है, वे हमारे घरों में आग लगवा देगें, एक-एक दाने के लिए हमें और हमारे बच्चों को तरसा-तरसा कर मार डालेगें, हो सकता है कि पूरे परिवार के लोगों की हत्या ही करवा दें? अम्मा, उन बडॆ रसूखदारों की ताकत का अन्दाजा नहीं है तुम्हें! हम एक बेटी के खातिर पूरे परिवार को संकट में नहीं डाल सकते, फिर हमारे पास सबूत भी क्या है कि चंदा को किसने अगवा किया था और किस-किसने उसके साथ बलात्कार किया था? बोलो, किस आधार पर तुम हमें उनके खिलाफ़ बोलने को उकसा रही हो? चलो-उठॊ और रोना-धोना बंद करो, रोने-धोने से कुछ होने वाला नहीं है, अब हमें उसके अंतिम संस्कार की तैयारी करना चाहिए.