बड़े लेखक / मनोज चौहान
क्षेत्र के नामी हलवाई के घर पैदा हुए चरण दास शर्मा अब बड़े लेखक हो गए थे l जब भी कवि सम्मलेन अथवा साहित्यिक समारोह में जाते तो किसी प्रतिष्ठित पत्रिका को साथ ज़रूर ले जाते, जिनमें उनकी कोई रचना प्रकशित हुई हो l उपस्थित साहित्यकारों के सामने उस प्रतिष्ठित पत्रिका के पन्ने उलटते वह हमेशा दिख जाते ताकि सबपर उनका रौब बना रहे l
अपने पैत्रिक गाँव से कुछ दूर शहर में उनका निवास था l गाँव में अक्सर आना-जाना हो जाता था l इस बार गाँव गए तो पड़ोस के एक मेहनती किसान परिवार के स्वाभिमानी व्यक्ति रमेश सिंह बसेह्डू। की तरक्की पर उन्हें अचरज हुआ l उसे बधाई देते हुए बोले "भाई रमेश, तुमने तो अपना लघु व्यवसाय बहुत बढ़ा लिया है l" बातों ही बातों में उन्होंने रमेश के संघर्ष की गाथा की पूरी कहानी सुन ली l उनका लेखक मस्तिष्क कुलाचें मारने लगा था l
कुछ ही दिनों के बाद चरण दास शर्मा का रमेश बसेह्डू। पर लिखा एक लम्बा लेख एक प्रतिष्ठित पत्रिका में प्रकशित हुआ l इस बार पुनः गाँव का चक्कर लगा तो वे रमेश को उस लेख की प्रकाशित प्रति दिखाने से अपनेआप को न रोक पाए l भोला–भाला रमेश भी फोटो सहित खुद पर लिखे लेख को देखकर बहुर प्रसन्न हुआ l रमेश ने लेख पढ़ना शुरू किया ही था कि बीच में कुछ शब्द पढ़कर उसके भीतर का आक्रोश आँखों में उतर आया l शर्मा ने बड़ी चालाकी से उसे 'आरक्षित' लिख दिया था l
गुस्से से आग बबूला होते रमेश बोला, " शर्मा जी ...क्या मेरी मेहनत और काबिलियत ही काफी नहीं थी? आप तो स्वयं जानते हैं कि बल्ह के एक नेता ने हमारे राजपूती मान को दावं पर लगाकर 'आरक्षित' का ठप्पा लगवा दिया था l जो कुल पुरोहित आपके घर आता है, हमारे सभी संस्कार भी वही सम्पूर्ण वैदिक रीति से करता है l क्या धरती के सीने से अनाज उगाना कोई तुच्छ कार्य है? रमेश यहीं चुप नहीं हुआ l उसने न्यायालय में लड़े जा रहे उस केस की फोटोकॉपी लेखक शर्मा को दिखाई जिसमें कि रमेश का नाम भी अपने राजपूती मान के लिए लड़ने वालों की सूची में शामिल था l शर्मा जी से अब वहाँ रुकते नहीं बन रहा था l वह अब रमेश से आँख नहीं मिला पा रहे थे l उनके 'बड़े लेखक' होने का दंभ काफूर हो चुका था l माफ़ करना भाई रमेश, मुझसे गलती हो गई l इतना कहते ही लेखक शर्मा उठे और लड़खड़ाते क़दमों से आगे बढ़ गए l