बड़े सितारे साथ काम क्यों हीं करते? / जयप्रकाश चौकसे

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बड़े सितारे साथ काम क्यों हीं करते?
प्रकाशन तिथि :10 जून 2015


साजिद नाडियाडवाला के नाम से बयान प्रकाशित हुआ कि वे सलमान, आमिर और शाहरुख के साथ तीन नायक की फिल्म बनाने जा रहे हैं और दूसरे ही दिन आमिर खान ने इसे निराधार कहा। अमेरिका में तीन बड़े सितारे एकसाथ काम करते हैं। पटकथा पर तीनों हस्ताक्षर करते हैं और भारत में निर्माण के समय पटकथा बदली जाती है। बहरहाल, एक साथ फिल्म करने पर उसकी विराट कमाई का बंटवारा और किसका रोल अधिक महत्वपूर्ण है - ऐसे मुुद्‌दे हैं कि बात नहीं बन सकती। तीनों यह बात जानते हैं कि फिल्म के पात्र डायरेक्टर की कठपुतलियां हैं। कौन ऐसा निर्देशक है, जिस पर तीनों भरोसा कर सकें। इससे भी निर्णायक बात यह है कि तीनों के प्रशंसकों के खेमों के बीच तीनों से अधिक आक्रामकता, पूर्वग्रह और अंधत्व है। यही बात तीनों को साथ काम नहीं करने देती। यहां राजा जनता की इच्छा का गुलाम है। प्रशंसक जुनूनी होते हैं और यह जुनून ही बॉक्स ऑफिस का आधार है।

राजनीति का आधार भी अवाम का जुनून हैं, इसीलिए संस्थागत प्रयास हैं कि व्यक्तिगत स्वतंत्र विचार शैली विकसित नहीं हो पाए। सारे खेल भेड़ चाल आधारित हैं। राज कपूर ने 'संगम' की पटकथा दिलीप कुमार को दी और कहा कि दो नायकों में से कोई भी एक चुन लो, असीमित धन भी उपलब्ध है। दिलीप कुमार खेमों और प्रशंसकों के जुनून को जानते थे। उन्होंने यह कहकर इनकार कर दिया कि बात न धन की है और न भूमिका की है, जिस फिल्म का डायरेक्टर राज कपूर हो, वह फिल्म हमेशा राज कपूर की कहलाती है। 'जिस देश में गंगा बहती है' के अधिकृत डायरेक्टर राधू करमरकर थे परंतु फिल्म राज कपूर की ही कहलाई। इसी तर्ज पर 'गंगा जमना' के निर्देशक नितिन बोस थे परंतु वह पूरी तरह दिलीप कुमार की ही फिल्म मानी गई।

'संगम' के पंद्रह वर्ष पूर्व 1949 में मेहबूब खान के निर्देशन में नरगिस, राज कूपर और दिलीप कुमार ने काम किया था। तब दोनों उभरते हुए सितारे थे। दिलीप को रमेश सहगल की 'शहीद' पहले ही सितारा बना चुकी थी और बाद में 'बरसात' ने राज कपूर को भी सितारा बना दिया परंतु तब दोनों के प्रशंसक खेमों में नहीं बंटे थे, भले ही देश का विभाजन हो गया था। निर्देशक मेहबूब खान दोनों से बड़े सितारे थे, इसीलिए 'अंदाज' बन पाई। तब नरगिस दोनों से अधिक लोकप्रिय थीं। राज कपूर, दिलीप कुमार और देव आनंद के दौर में मीडिया इतना व्यापक नहीं था। देश में बमुश्कित आधा दर्जन फिल्म पत्रिकाएं थीं। आज हर अखबार में प्रतिदिन कुछ पृष्ठ फिल्म के होते हैं और साप्ताहिक पूरक अंक होते है। फिल्म चैनल के साथ खबर चैनल में मनोरंजन पर यथेष्ठ समय दिया जाता है। फिल्म उद्योग में रोज कोई घटना नहीं होती परंतु मीडिया को खबरें बनानी पड़ती है। खबरों के इस धुंआधार में सच्ची खबर खोजना कठिन कार्य है। मीडिया ने सितारा जुनून को आसमान पर पहुंचा दिया है।

कुछ लोग इस जुनून को नकारते हैं और यह उनकी हेकड़ी है। एक बार ऐसे ही एक आदमी को सितारे के बगल की सीट मिली। औपचारिकता वश हेलो कहा गया, नाम पूछा गया। हेकड़ीबाज ने सब कुछ जानते हुए भी सितारे से पूछा, 'आप क्या काम करते है'? सारा खेल समझकर सितारे ने कहा' मैं बाटा शू कंपनी का सेल्समैन हूं।' हेकड़ीबाज ने कहा, 'क्यों झूठ बोलते हैं, आप तो फिल्म सितारे हैं?' सितारे ने कहा, 'आप कहते हैं तो मान लेता हूं परंतु मैं सेल्समैन ही हूं।' हेकड़ीबाज ने क्षमा मांगते हुए बेटी के लिए आटोग्राफ लिया, जो सितारे की जबरदस्त फैन थी। सितारे ने ऑटोग्राफ के नीचे अपने को सेल्समैन ही लिखा। सच यह है कि इस बाजार युग में हम सब ही सेल्समैन हैं, हर कोई कुछ न कुछ बेच ही रहा है। माथे पर प्राइस टैग लगा है। कहीं- कहीं भाव-ताव भी होता है। डिमांड बढ़ती हैं तो प्राइस भी ऊपर जाती है। बाजार के नियंत्रक कई बार बोगस माल की नकली डिमांड भी पैदा करते हैं। न्यूयॉर्क में शेयर बाजार की गली का नाम है 'वॉल स्ट्रीट' जब यह टूटती है तो अनेक लोग दीवालिया हो जाते हैं और इसके प्रभाव विश्वव्यापी हैं। मुंबई में शेयर मार्केट दलाल स्ट्रीट कहलाता है। जे.पी. दता की 'बंटवारा' में एक उम्रदराज खुर्राट दलाल अपने बेटे से कहता है कि दलाल हर काल खंड में रहे है और स्वतंत्र भारत दलाली का स्वर्णकाल होगा।