बण्टा भाग-1 / अमरेन्द्र
बण्टा घण्टा भरी सें देखी रहलोॅ छै, तीन-तीन भैंस ओकरोॅ बारी में घुसी ऐलोॅ छै आरो बड़ी निचिन्ती सें खेतोॅ के घास कचरेॅ लागलोॅ छै। एक-दू दाफी वैनें हट-हट करी केॅ भगैय्यो के कोशिश करलेॅ छेलै, एक-दू झिटकियो एक-एक करी केॅ सबके दिश फेकलकै, मतरकि भागै के बात तेॅ दूर, भैंसें मुड़ियो उठाय केॅ बण्टा दिश नै देखलेॅ छेलै। वहूँ सोचलकै, आखिर की बिगाड़िये रहलोॅ छै भैंसें, आपनोॅ एक दिश चरी रहलोॅ छै, बाबू जन्नें परोल के लोॅत रोपलेॅ छै, हुन्नें तेॅ भैंस सिनी नहिये नी जाय रहलोॅ छै। जों हमरोॅ भगैला सें कहीं हुन्ने दिश भागी जाय, तेॅ भारी मुश्किल। हमरा सें भैंस सिनी तेॅ भागैवाला नै छै, लोतो रौंदतै, खैवो करतै आरो मुफ्त में मार खैबोॅ हम्में। बाबू कहतै--तोंही भैसोॅ केॅ हिन्नें भगैनें होबैं। आरो यहू कहतै--तोहें ज़रूर खेलै लेॅ भागी गेलोॅ होवैं आरो हिन्नें भैंसें सब लोॅत मोचरी गेलै।
बाबू के याद ऐतै बण्टा केॅ कुछ झुरमुरी रं बुझैलेॅ आरो निसुआड़ी के एक ठार, पाँच-छोॅ बार दाँया-बाँया करी केॅ, तोड़ी लेलकै आरो भैंस के नगीच आवी केॅ खाड़ोॅ भै गेलै कि जों केन्होॅ केॅ एक्को भैंसें हिन्नें मुँह उठैलकै कि ओकरोॅ मुँहे पर मारतै। वैनें बाबू केॅ हेन्है केॅ मारी केॅ कै दाफी भैंसी केॅ भगैतेॅ देखलें छै।
साटोॅ लै केॅ बण्टा के खाड़ोॅ होना छेलै कि भैंसियो सिनी ओकरोॅ दिश मुँह उठाय केेॅ इस्थिर होय गेलै--नै गर्दन हिलाबै, नै पुछड़ी। वैंनें भैंसिया सिनी के आँखी दिश देखलकै, "अरे बाप रे बाप, सब के आँख कारोॅ पत्थर के गुल्ली रं एकदम इस्थिर--नै मटकी मारै छै, नै पिपनी हिलै छै।"
आरो सबके आँख बण्टाहै दिश गड़लोॅ।
ओकरा डोॅर लागेॅ लागलै। लागलै कि सब भैंसिया एक्के दाफी ओकरोॅ दिश दौड़ी पड़तै आरो ओकरा खूँची-खाँची केॅ रक्खी देतै।
एतना सोचना छेलै कि बण्टा भैंसिया सिनी केॅ देखले-देखले आठ-दस कदम पीछू कल्लेॅ-कल्लेॅ हटलै, फेनू हठाते पीछू मुड़ी केॅ सरपट भागलेॅ आपनोॅ दुआरी पर आवी केॅ खाड़ोॅ होय गेलै आरो वहीं सें वैनें ऊ सब केॅ गुर्राय केॅ देखलकै।
सब भैंस होन्हे केॅ घास कचरेॅ लागलोॅ छेलै--बीचोॅ-बीचोॅ में नेंगड़ी हिलाय-हिलाय केॅ।
ओकरा याद ऐलै--आठे, दस रोज पहिलकोॅ तेॅ बात छेकै, "अनारसी काका के भैंस हमरोॅ खेतोॅ में घुसी गेलोॅ छेलै। बाप रे बाप, अनारसी काका के भैंस छेकै--जेना बिना सूड़वाला हाथी। देखथैं हम्में पुआली तरोॅ में सुटियाय गेलोॅ छेलियै, आरो वहीं सें खोॅर हटाय-हटाय केॅ भैंसिया केॅ देखतेॅ रहलोॅ छेलियै। बाप रे बाप, आपनोॅ घांेघरी सिंहोॅ में की रं लोॅत लपेटी केॅ खीची लै छेलै आरो जीहा में फँसाय केॅ गटकी लै। सब लोॅत सुरकला के बादे झुमलोॅ-झुमलोॅ खदैया दिश बढ़ी गेलै। ऊ तेॅ भगवाने हमरा बुद्धि देलकै कि भैंसी के जैतै, हम्में अनारसी का के घोॅर भागलियै। कानी-कानी काका सें सब बात कहलियै आरो बाबू के मारोॅ सें हम्में बची गेलियै। अनारसी कां बाबू के समझाय देलेॅ छेलै, ' देख पचरासी, बच्चा बुतरू केॅ है रं बैल-बोतू रं डंगैलोॅ नै करैं--गोबध लागतौ। अरे बच्चा-बुतरु के मनोॅ में तेॅ गैये के नी मोॅन बसै छै। गाय, माय, बच्चा, सब बरोबर। आबेॅ तोहें है रं आपने बच्चा केॅ पीटै छैं, तेॅ दूसरा के बच्चा केॅ तोहें की दुलरैबैं। टोला भरी के बच्चा डरोॅ सें कुछ भले नै बोलौ, भीतरी मनोॅ सें तेॅ राकसे कहतें होतौ। राकस का, राकस बाबा, राकस नाना, आरो नै जानौं की-की। अरे पचरासी, बच्चा तेॅ सिलोट नाँखी होय छै, जे देखै छै, वही लिखाय जाय छै आरो होने फेनू जिनगी भर घोकै छै। कल फेनू वहूँ होने रं करतै, तेॅ तोहें कहबैं--कुलोॅ में कलंक जनमलोॅ छै। बच्चा केॅ दुलार करभैं, गलती केॅ समझाय केॅ बतैभैं, तेॅ वहूँ वहेॅ रं करतै। आय जे बच्चा सिनी उद्दण्ड बनी गेलोॅ छै, वैमें हमरोॅ सिनी के दोख बुझैं पचरासी, खाली बच्चे केॅ गरियैला सें कुछ नै होय वाला छै। हम्में तेॅ कहभौ--आपने बच्चा केॅ नै, टोला भरी के बच्चा के साथ खेलें, कल टोला भरी के बच्चा वास्तें तोहें आपनोॅ पितियोॅ, आपनोॅ नाना, आपनोॅ बाबा रं बुझैबे। की समझलैं...आबेॅ भैंसे तोरोॅ परोली के लोॅत चाटिये गेलै, तेॅ यै में बण्टू के की दोख। है दस बरिस के बुतरु भला भगाय लेतियै भैंसी केॅ की? जानवर तेॅ जानवर होय छै, हमरौ सिनी जानवरे रं करवै तेॅ जानवर आरो मनुक्खोॅ में की अन्तर। है ले, सौ टाका। तोरोॅ नुकसान हम्में समझै छियौ। बण्टू केॅ मारियै नैं।"
आरो पचरासीं ओकरा ठिक्के नै मारलेॅ छेलै। बण्टा केेॅ समझै में नै ऐलोॅ छेलै कि कैन्हें नी ओकरोॅ बाबूं ओकरा मारलकै। की अनारसी का के समझैला पर, आकि बाबू केॅ सौ टाका मिली गेलोॅ छेलै, यै लेली। जे भी हुएॅ, अनारसी का के भैंसीं परोली लोॅत केॅ चाटी की गेलोॅ छेलै, बण्टा केॅ तेॅ आजादी मिली गेलोॅ छेलै। लोतोॅ के रहतें, ऊ दिन भरी नै तेॅ ठीक सें खेलेॅ पारै, नै आरामे करेॅ पारेॅ। दिन भरी बस एकरे चिन्ता लागलोॅ रहै कि कहीं कोय बकरिये नै टटिया के फाँक सें घुसी आवेॅ।
भैंस-गाय घुसै, तेॅ टटिया के बड़ी जोर सें आवाज हुऐ, से ओकरा समझहौ में देर नै लागै कि कोय भैंस-गाय घुसै के कोशिश करी रहलोॅ छै। भनक मिलथैं ऊ साटोॅ लै केॅ टटिया दिश बिरनी रं उड़ै, जेना अभी ओकरा काटिये लेतै, लेकिन ई बकरिया, पाठा, पाठी सें बण्टा बड़ी परेशान रहै, कखनी टटिया के फाँक सें घुसी जाय आरो ओकरा कुछ पतो नै लागै। ऊ तेॅ जबेॅ खैतें-खैतें कान पटपटाबै, तबेॅ ओकरा समझै में आबै कि बकरी-छकरी घुसी गेलोॅ छै।
एक दाफी यहेॅ रं मोटोॅ-नाटोॅ पाठा टटिया केॅ केन्होॅ ठेली-ठाली भीतर घुसी गेलै आरो चर्र-चर्र करी घास केॅ निगलना शुरु करी देलकै। कुछ देर लेली तेॅ बण्टां ओकरा देखतें रहलै आरो फेनू मुहोॅ में हवा भरी केॅ साँस रोकी लेलकै। बण्टा के दोनों गाल बेलुन नाँखी फुली गेलोॅ छेलै। ऊ एकदम हौले-हौले, जेना खोटा-पिपरी चलतें रहेॅ, पाठा दिश बढ़लै आरो जेन्हैं ओकरा लागलै कि आबेॅ ऊ केन्हौ केॅ नै भागेॅ पारेॅ, झपटी केॅ पठवा केॅ धरिये तेॅ लेलकै। पहिलें तेॅ वैं ओकरोॅ पिछुलका टेंगड़ी धरलकै, फेनू ओकरोॅ दोनों कान आरो फेनू ओकरोॅ पीठोॅ पर सवार होय गेलै।
पीठी पर सवार होतैं, पठवा ओकरोॅ भार सें मुक्त होय लेली हिन्नें-हुन्नें भागना शुरु करलकै। बण्टा केॅ तेेॅ जेना ओकरोॅ मनोॅ लायक घोड़ा मिली गेलोॅ छेलै।
पठवा जेना-जेना तेज भागै के कोशिश करै, तेना-तेना बण्टा के देहोॅ में गुदगुदी बढ़ै, आरो वैं बायां हाथोॅ सें ओकरोॅ पुछड़ी पकड़ी केॅ एंेठै कि आरो तेज भागेॅ। तखनी ओकरोॅ दायां हाथ कस्सी केॅ पठवा के दायां कान धरलेॅ रहै। पठवा के तेज होत्हैं बण्टा के दोनों हाथ पठवा के दोनों कानोॅ पर आवी जाय।
बण्टा तब तांय ओकरा खेतोॅ में चारो दिश दौड़ैतेॅ रहलै, जब तांय ऊ एकदम सें अघाय नै गेलै, खुद्दे हाँफेॅ नै लागलै। पठवा तेॅ हाँफतें-हाँफतें कै दाफी गिरियो गेलोॅ छेलै। तखनी ऊ ओकरोॅ पीठी सें उतरी जाय आरो ओकरा काने धरलेॅ उठाबै। पठवा के उठै भर के देर रहै कि ऊ लद सना ओकरोॅ पीठी पर बैठी जाय।
कंठोॅ तक अघाय गेलै बण्टा, तेॅ पठबा केॅ टटिया लगीच लानी केॅ ओकरा पीछू सें एक लंग्घी मारलकै। पठवा एक बार तेॅ गिरलै, मजकि उठथैं हेनोॅ लगै छड़क्का उड़लै, जेना मरखन्नोॅ साँढ़ देखी बुतरु उड़ै छै।
ऊ दिन बण्टा बहुत खुश छेलै आरो रही-रही केॅ ओकरा बिट्टू के ख्याल आवी जाय।
बिट्टू यानी दू साल के ओकरोॅ भतीजा। मायं बाबू से कहलकै कि थोड़ोॅ देर लेॅ एकरा खेलाबौ, तेॅ बाबू चित्त लेटी केॅ गोड़ ठेहुना सें मोड़ी लेलकै आरो पंजा के अड़कन दै गोड़ोॅ पर बिट्टू केॅ बिठाय केॅ जोर-जोर सें हिलाबेॅ-डुलाबेॅ लागलै। बोललोॅ जाय--घुघुआ घू, मलेल फूल, लब्बोॅ घोॅर उट्ठेॅ, पुरानोॅ घोॅर खसेॅ।
बिट्टू झुलवा पर गाना सुनी केॅ चुप होय गेलोॅ छेलै। ई देखी बाबूं एक दाफी आपनोॅ टांग तेॅ एत्तेॅ ऊच्चोॅ उठैलकै कि बिट्टू ससरी केॅ जेना पेटे पर आबी जैतियै। ऊ डरोॅ सें काँपेॅ लागलै आरो वही डरोॅ में ओकरोॅ गू-मूत बाहर निकली गेलै। बिट्टू के गू-मूत बाबू के टाँगी पर पसरै भर के देर छेलै कि बाबूं हेने ओकरा उठाय केॅ एक दिस राखी देलकै, जेना कि बाबू के देहोॅ पर भोहा पिल्लू चढ़ी गेलोॅ रहेॅ आरो देखत्हैं झट से ओकरा हटाय देलेॅ रहेॅ। बिट्टू जे रं कानना शुरु करलेॅ छेलै कि सौंसे टोला औनाय गेलोॅ छेलै।
बण्टा बाबू वाला घुघुआ घू आरो पठवा वाला सवारी केॅ मिलाय छै आरो एत्तेॅ गदगद होय जाय छै कि आपनोॅ जंग्घा पर खड़े-खड़ थपड़ी बजैतें उछलेॅ लागै छै।
कि तभिये ओकरोॅ ध्यान भैंसी दिश गेलै। भैंस तेॅ परछत्ती लुग चरतें-चरतें आवी गेलोॅ छेलै।
ऊ जोर सें चिकरलै। आवाज सुनलकै तेॅ पचरासी दौड़ले-दौड़ल हाता में घुसी गेलै। परछत्ती लुग भंैस केॅ खाड़ोॅ देखी बगले में धरलोॅ साटोॅ केॅ खींची लेलकै आरो एक साटोॅ कस्सी केॅ भैंसी के धौनोॅ पर दै देलकै। साटोॅ खैतैं भंैस एक दाफी सरंग दिश मूँ करी केॅ बाँऽऽऽऽऽ करलकै आरो सीधे घुमी केॅ बहियारी दिश भागलै।
बहियारिये दिशोॅ सें अक्सर भैंस घुसी आबै छेलै। हुन्नें एकदम उदामोॅ छेलै आरो ओत्तेॅ बड़ोॅ घेरा केॅ अड्डा या टटिया संे घेरबोॅ मुश्किल छेलै।
भैंसिया के भागथैं पचरासीं बण्टा केॅ गोदी में उठाय लेलकै आरो ओकरोॅ पीठ सहलाबेॅ लागलै। बाबू सें डाँट सुनै के जग्घा में ई रं दुलार पावी केॅ ऊ तेॅ जेना सब बाते भूली गेलै। नै पठवा वाला बात याद रहलै, नै भैंसी केरोॅ बात।
दुलारला के बाद पचरासीं बण्टा केॅ नीचें उतारलकै आरो कहलकै, "बण्टू, परसू सें तोहें इस्कूल जैबे। आय माट साहब सें हम्में बात करी लेलेॅ छियै। पूवारी टोला सें कै छौड़ा तेॅ जाय छै। लछमनिया, घोंघी, झबरा, मठिया आरनी; ओकरे साथ तहूँ चल्लोॅ जय्यैं। है देख; तोरोॅ वास्तें खल्ली आरो सिलोटो लानी देलेॅ छियौ।"
ई कही पचरासी आपनोॅ दाँया हाथ कुत्र्ता के दाँया जेबी में डाललकै आरो ढेपो नाँखी खल्ली ओकरोॅ हाथोॅ में देतें कहलकै, "है ले खल्ली आरो ई सिलोट।"
वैंने बायां कंधा सें गमछी उतारलेॅ छेलै, जेकरोॅ एक छोरी में की बांधलोॅ छेलै, ई तेॅ बण्टा केॅ पता नै चललै, मतरकि दुसरोॅ छोरी में बांधलोॅ सिलोट ओकरा तुरत्ते दिखाय गेलै। जब तांय पचरासी ओकरा खोलतियै बण्टा थपड़ी बजैतै आपनोॅ जग्घा पर उछलतैं रहलै--एक, दू, तीन, पाँच, आठ, दस। रुकलै तभिये, जबेॅ पचरासीं ओकरोॅ हाथोॅ में सिलोट राखी देलकै। सिलोट लै भर के देर छेलै कि ऊ फुर्र सना माय लुग दौड़ी पड़लै।
माय सूपोॅ में कुछ फटकी रहलोॅ छेलै कि तखनिये वैं सिलोट-खल्ली माय के आगू में राखी केॅ वांही पर लट्टू नाँखी घूरेॅ लागलै।
रात केॅ सुतबोॅ करलै तेॅ माय सें सट्टी केॅ नै, सिलोट सें सट्टी केॅ। छाती पर सिलोट राखले ओकरा नीन आवी गेलोॅ छेलै, जेकरा बड़ी आहिस्ता सें ओकरोॅ माय हटाय केॅ राखी देलेॅ छेलै कि कहीं नीनोॅ में चाॅक नै पड़ी जाय।
"है तेॅ कहोॅ कि बण्टु के सिलोट खल्ली तेॅ कीनी देलौ, मजकि पिहनी केॅ की जैतै, यहा डाँड़ी सें सटलोॅ पैंट आरो मजूरोॅ नाँखी कपड़ा के गंजी पिहनी केॅ।" बण्टामाय पचरासी सें कद्दू छिलतें-छिलतें भोरे वक्ती कहलकै।
"अरे मजूरोॅ के बेटा मजूरोॅ नाँखी कपड़ा नै पहनतै, तेॅ की पहनतै।" ई बात कहलेॅ तेॅ छेलै हाँसिये हाँसी, मतरकि पचरासी के कंठ भर्राय गेलोॅ छेलै, जेकरा बण्टा माय तुरत्ते भाँपी लेलेॅ छेलै।
"तोहें चिन्ता कथी लेॅ करै छोॅ। हम्में आय्ये घंटाघर जाय केॅ बण्टू वास्तें कमीज-पैंट कीनी ऐबै। सेथरोॅ तेॅ दुकान धारा-पांती सें रहै छै। सस्तोॅ-महगोॅ, सब किसिम के तेॅ कुत्र्ता, पैंट बिकै छै। सौ टाका में कमीज-पैंट दोनों होय जैतै। सोचलेॅ छेलियै कि जबेॅ बण्टू के इस्कूली में नाम लिखैबै, तेॅ लब्बोॅ-लब्बोॅ कमीज, पैंट कीनी देवै। यही लेॅ तेॅ, हम्में सौ टाका नीछी केॅ राखी देलेॅ छेलियै।" बण्टामाय हुलासोॅ सें कहलकै।
ई सुनथैं पचरासी के मुँहोॅ पर रौनक उतरी ऐलै। तहियो आपने बात केॅ धरतें फेनू कहलकै, "ठीक छै, आरू जों नहियो रहतियै टाका, तभियो बण्टू इस्कूल तेॅ जैबे करतियै। अरे भीखनपुर के कालिये थान वाला इस्कूल नी जैतै, कोनो मौन्टेसी इस्कूल तेॅ नहिये नी कि बुतरु केॅ हौ दौ, है दौ, ई कीनौ, हौ कीनोॅ। सेर भरी के बच्चा छौं, तेॅ पसेरी भर के किताबोॅ सें बोझैलोॅ बैग। बण्टू केॅ जानौ छै, तेॅ कत्तेॅ दूर। एक दरबनिया लगैते कि इस्कूलिये दुआरी पर रुकतै। आरो बोझोॅ की? बैठै लेॅ एक एकठो चट्टी आरो लिखै लेॅ एक टा सिलोट यही तेॅ साथोॅ में रहतै।"
आरो वहेॅ दिन बण्टा वास्तें लब्बोॅ-लब्बोॅ कपड़ा आवी गेलोॅ छेलै। बहुत कुछ सोचियै केॅ ओकरी मायं कपड़ा आनलेॅ छेलै--कुछ बड़े-बड़े।
बण्टा झब-झब ओकरा चढ़ाय लेलेॅ छेलै। पैंट छेलै, तेॅ ठेहुना सें दू अंगुल नीचैं आरो कमीज छेलै, तेॅ जाँघ भर।
पचरासीं देखलकै तेॅ कहलकै, "है ठिक्के करलौ बण्टूमाय। आबेॅ कत्तो जल्दी बण्टू बढ़तै, तेॅ दू साल तेॅ पैंट-कमीज खाँटोॅ नै पड़ै वाला छै।"
"यहॅ सोची केॅ तेॅ दू अंगुल बड़ोॅ कमीज किनलेॅ छियै।"
"ठीक करलौ, होना केॅ हम्में यहू सोचलेॅ छेलियै, दुखहरन वाला जे पैंट-कमीज छै, ओकरै छटवाय केॅ छोटोॅ करवाय देबै। कपड़ा में होले छै की। एत्तेॅ मजगूत छै कि पाँच, छोॅ महीना चलिये जैतियै। खैर, ओकरोॅ ज़रूरते नै पड़लै।"
"हेनोॅ करियै केॅ तोहें कोॅन बुुद्धिमानी के काम करतियौ। दरजी काटी-छाँटी केॅ नाँपोॅ के बनैतियौं, तेॅ जानै छौ, कत्तेॅ लेतियौं? ओत्तेॅ में तेॅ ई नया कपड़ा आवी गेलै।"
हुन्नें पचरासी आरो बण्टामाय में बातचीत चली रहलोॅ छेलै, आरो हिन्नें बण्टा लब्बोॅ-लब्बोॅ कमीज-पैंट, चप्पल पिहनी केॅ मारे खुशी सें गद्गद होय रहलोॅ छेलै।
खाली पैंटे-कमीज नै, बण्टामायं हवाई चप्पलो जे लेलेॅ छेलै, ऊ बण्टा के गोड़ोॅ सें आधोॅ इंची बड़े। बण्टा तेॅ तखनिये सें गनगनाय रहलोॅ छेलै, जखनी ओकरोॅ गोड़ोॅ के छाप ओकरी माय नें एक कागजोॅ पर लेनें छेलै।
आबेॅ जबेॅ हवाई चप्पल ओकरोॅ गोड़ोॅ में छेलै, तेॅ ओकरोॅ मोॅन करी होलै कि पंजा बल्लोॅ खूब हुमचै। रहलोॅ नै गेलै तेॅ पंजा बल्लें वैं ऐड़िया केॅ खूब उठैलकै, फेनू बोॅल लगाय केॅ एड़िया चप्पल में धंसाय देलके. फोॅल ई होलै कि बायां चप्पल के एक दिशोॅ के लब्बड़ वाला फीता बाहर निकली गेलै।
कहीं टूटी तेॅ नै गेलै, ई खयालोॅ सें तेॅ बण्टा एकदम कनमुहोॅ होय गेलै मजकि जल्दिये ओकरी माय हाथोॅ में चप्पल लेलकै आरो फीता के छोरी पर बनलोॅ छोटोॅ रं के चकरी केॅ चप्पल के छेदोॅ मेें ठेली-ठाली केॅ, पीछू बनलोॅ छोटोॅ रं गोल खद्दो में अॅटाय देलकै। फेनू समझैतें कहलेॅ छेलै..."है रं उछलवे-कुदवे आरो कहूँ बीचे सें फीता टूटी गेलोॅ, तेॅ नढ़िये गोड़ जैय्यें इस्कूल।"
माय के बात बण्टा बड़ी ध्यानोॅ सें सुनलेॅ छेलै, यही लेॅ मोॅन करथौं ऊ पंजा आकि चप्पल पर एड़िया भरी हुमचै के मोॅन मारले रही गेलै।
मजकि जबेॅ आपनोॅ बाबू के साथ चललै तेॅ वैं आपना केॅ रोकेॅ नै पारै। ऊ दौड़ी केॅ पच्चीस हाथ आगू बढ़ी जाय आरो फेनू दौड़ले बाबू लुग आबी जाय। पाँच कदम बाबू साथें चलै, तेॅ फेनू पच्चीस हाथ दौड़ी केॅ आगू बढ़ी जाय आरो वहेॅ रं दौड़ी केॅ बाबू लुग आवी जाय। हेनै करी केॅ ऊ इस्कूल पहुँची गेलोॅ छेलै।
बण्टा केॅ वहीं इस्कूल में बिठाय केॅ पचरासी लौटी ऐलोॅ छेलै--एकदम निचिन्त होय केॅ।
बण्टा केॅ इस्कूल जैवोॅ बड़ी अच्छा लागै। वहाँ कोय पढ़ाय-लिखाय तेॅ हुऐ नै। जैते के साथ पाँच मिनिट के प्रार्थना हुऐ आरू फेनू वहू गलगुदुर। हुन्नें पाँचो मास्टर गप करी रहलोॅ छै आरो हिन्नें सब बुतरु-बतराओ सिनी।
मास्टर सिनी के रस तखनिये भंग हुऐ, जखनी कोय लड़का चिचियाय उठै, "मास्टर जी, दिनेशिया हमरा छुछुन्दरी कहै छै" , "मास्टर जी उरवशिया हमरा लेधू पंडित कहै छै।"
तखनी मास्टर जी है देखै छै कि कौनें चटियां शिकायत करलकै आरो केकरोॅ बारे में शिकायत करलकै। बस दीवारी के एक मोखा में राखलोॅ साटोॅ उठाय छै आरो जे सामना में पड़ी गेलोॅ, सिटपिटाय केॅ राखी देलकोॅ। नै होलोॅ तेॅ बाद में दू-चार ऊपरोॅ सें धौलो दै देलकै। जखनी इस्कूल में है रं कांड चलै छै, तखनी सें एक घण्टा लेली इस्कूली में एकदम शांति बनलोॅ रहै छै। एकदम सकड़दम। सब चटियां खोड़ा या ककहरा सिहारेॅ लागै छै--कोय तेॅ आवाज करी केॅ, कोय मने-मन।
बण्टा है समय में मुड़ी झुकैलेॅ कोन्हराय केॅ खाली सबकेॅ ताकते रहलोॅ। खास करी केॅ मास्टर सिनी केॅ। आरो जबेॅ ऊ निचिन्त होय छै कि कांही कुछ खतरा नै छै, तेॅ वैं आपनोॅ मूड़ी उठाय केॅ कुछ हेन्हे मुँह पटपटावेॅ लागै छै, जेना वैं मनेमन कोय पाठ केॅ सिहारतें रहेॅ। पाठ सिहारै के तेॅ कोय बाते नै छेलै, कैन्हें कि पाठ याद करबोॅ बण्टा लेॅ पहाड़ उठैबोॅ नाँखी लागै। कै दाफी वैं घरोॅ में कोशिशो करलेॅ छेलै कि जे मास्टर साहब याद करै लेॅ देलेॅ छै, ओकरा याद करी लेॅ। मतरकि ई बात ओकरा लेॅ एकदम कठिन बुझैलै। सिलोटी के एक दिशोॅ के कुछ याद करै, तेॅ दुसरोॅ दिश के लिखलोॅ भूली जाय आरो दुसरोॅ दिश के लिखलोॅ याद करै, तेॅ पहिलोॅ दिश के भूली जाय।
तखनी ओकरोॅ सब गोस्सा सिलोटियै पर उतरै। वैं दोनों हाथोॅ सें पकड़ी केॅ सिलोट केॅ हेनै उठाबै, जेना कोय भारी चीजोॅ केॅ झटकै सें उठैलेॅ रहेॅ आरो वहेॅ तेजी सें पटकी दै लेॅ नीचें तक लानै, जेना फोड़िये देतै मतरकि पटकै नै। नया सिलोट फूटी जाय के चिन्ता सिलोट उठैथैं मनोॅ में ढुकी जाय।
हौ वक्ती आपनोॅ गोस्सा शांत करै लेली वैं एक्के काम करै कि पेटोॅ पर सें गंजी केॅ ऊपर ससारै आरो सिलोटी पर लिखलोॅ सब अक्षर केॅ पहिलें पेटोॅ पर छापै। पेटोॅ पर छपलौ अक्षर केॅ कुछ देर ऊ देखथैं रहै, छपलोॅ उलटा अक्षर केॅ पढ़ै में ओकरा बड़ा आनन्द आबै आरो पढ़ी लेला के बाद सिलोटिये केॅ पेटोॅ पर दू-तीन बार रगड़ी-रगड़ी केॅ अक्षर मेटाय दै। जेना वैं आपनोॅ गोस्सा के कारणे केॅ रेगड़ी मेटाय देलेॅ रहै।