बतियाती पगडण्डी: रोमांचक कथा-यात्रा / रश्मि विभा त्रिपाठी

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मुझे 'बतियाती पगडण्डी' पढ़ने का अवसर मिला। दो लघु उपन्यास 'दीपा' एवं 'दूसरा सवेरा' का एक सुन्दर संग्रह।

पुस्तक का आवरण चित्र अनायास ही मुझे लेखक के उस गाँव की ओर ले गया, जहाँ उनका पूरा बचपन बीता। पढ़ने की ललक पन्ने दर पन्ने मुझे आगे बढ़ाती रही और पात्रों के संग सहयात्री बनी मेरी जिज्ञासा ने उस गाँव का अविश्रान्त भ्रमण एक बार में ही पूरा किया। बतियाती पगडण्डी की रोमांचक यात्रा का मेरा अपना अनुभव- 'दीपा' एवं 'दूसरा सवेरा' अनेक विधाओं में सिद्धहस्त वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' जी की 21 वर्षीय युवा उम्र की कोमल अनुभूतियों का परिपक्व रूप में प्रांजल प्रस्तुतीकरण है।

'बतियाती पगडण्डी' की पृष्ठभूमि उनका निजी गाँव तथा उसके आसपास का क्षेत्र है। यह साहित्यिक कृति हिमांशु जी के अपने गाँव हरिपुर, उनके श्रद्धे गुरुजन, उनके पब्लिक नेशनल इंटर कालेज साढोली कदीम को समर्मित है।

दिल्ली से सेवाग्राम की चर्चित सहयोगी पत्रिका ग्रामयुवक ने सन 1971 व 1972 में क्रमशः इन दोनों उपन्यास को प्रकाशित किया। पत्रिका के संपादक ज्ञानेन्द्र प्रसाद जैन की सार्थक टिप्पणी इस पुस्तक में अनुस्यूत है।

'दीपा' में उदात्त प्रेम के पथ में आए कई झंझावात हैं मगर उन सबसे टकराकर भी अंततोगत्वा प्रेम अपने शीर्ष पर विराजमान होता है। नायक-नायिका दीपा और बलजीत की भूमिका प्रभावशाली है। वे अन्य प्रेमी युगल के समान हर समय परस्पर प्रेम का आकन्ठ अवगाहन करते हुए नहीं दिखते हैं, वे व्यक्तिगत स्वार्थ व व्यक्तिगत निष्ठा से इतर सामाजिक उत्तरदायित्व का यथोचित निर्वहन भली-भाँति करते हैं। सामाजिक प्राणी होने के नाते मनुष्य के कुछ उत्तरदायित्व निर्धारित किए गए हैं जिन्हें समाज के उत्थान हेतु उसके द्वारा निभाना परमावश्यक है, तभी समाज प्रगति के पथ का पुरोगामी होगा। वे अस्पृश्यता, ऊँच-नीच जैसी कुरीतियों का न केवल मुखर होकर विरोध करते हैं बल्कि इस भेदभाव को मिटाने हेतु यथासंभव सराहनीय प्रयास भी करते हैं।

नायक हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रबल पक्षधर है। आपसी सौहार्द को अटूट रखने की उसकी आकांक्षा उसके व्यवहार में परिलक्षित होती है, महबूब के साथ बैठकर उसका प्रेम से भोजन करना इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है। सरकारी तंत्र में भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे पर वह अपनी आवाज उठाने का साहसिक कार्य कर जनमानस को प्रेरणा देता है कि भ्रष्टाचार के अंत के लिए केवल कानून बना देना ही एकमात्र पर्याप्त विकल्प नहीं, इसके लिए जन-जागरूकता व सामूहिक प्रयास की महती आवश्यकता है।

नायिका नायक को आगे शिक्षा ग्रहण करने का प्रोत्साहन देते हुए शिक्षा के महत्त्व को रेखांकित करती है कि शिक्षा ही वह साधन है जो सर्वांगीण वैयक्तिक विकास के साथ-साथ समाज को भी गतिशील बनाती है।

'दूसरा सवेरा' का कथानक विधवा विवाह पर आधारित है। वैधव्य का अभिशाप एक स्त्री के सर पर सदा के लिए लाद देना अनुचित तो है ही, पूर्ण रूप से अमानवीय भी है। स्त्री भी पुरुष की भाँति पुनर्विवाह कर सुखमय जीवन जीने की अधिकारिणी है।

नायक प्रमोद का विधवा किरण से विवाह करने का निर्णय समाज में एक विधवा स्त्री के अन्धकारमय जीवन का मार्ग प्रशस्त करता है। नायक समाज को यह संदेश देता है कि स्त्री सुधार योजनाओं पर केवल कागजी घोड़े दौड़ाकर इतिश्री न की जाए, हाशिए पर धकेली गई विधवा स्त्रियाँ समाज में पुन: स्थापित हो सकें इसके लिए सर्वप्रथम समाज को पुरानी रुढ़ियों के परदे से बाहर आकर सर्वसम्मति से उन्हें अपनी मान्यता देनी चाहिए।

नायक के हृदय में देशप्रेम की भावना सर्वोपरि है। देश सेवा में जाने हेतु वह तत्पर होता है, व्यक्तिगत प्रेम उसे उसके कर्तव्य से विमुख नहीं कर पाता।

'बतियाती पगडण्डी' के संवाद अत्यधिक प्रभावी हैं। पात्रों की मन: स्थिति तथा परिस्थति के अनुकूल भाषिक प्रयोग हुआ है। प्राय: खड़ी बोली परंतु कहीं-कहीं आंचलिक भाषा का प्रयोग भी दृष्टिगत होता है। कथानक के पात्र अपनी भूमिका का निर्वाह आद्योपांत पूरी निष्ठा के साथ करते हैं। कोई भी दृश्य अथवा घटना कहीं भी उबाऊ नहीं है पाठक का मन रम जाए 'बतियाती पगडण्डी' का भाषा, भाव माधुर्य ऐसा ही है।

मेरी मान्यता है कि इस प्रकार की कृति को विद्यालयी पाठ्यक्रम में स्थान अवश्य दिया जाना चाहिए ताकि शहरी सभ्यता विलुप्ति की दिशा में जा रही गाँवों की संस्कृति से आबद्ध रहे, आंचलिक भाषाओं का अस्तित्व धूमिल न हो, समाज में वैमनस्यता को जन्म देने वाली कुप्रथाओं के अंत हेतु युवा पीढ़ी दृढ़ प्रतिज्ञ हो, समाज तथा देश हित के लिए निज दायित्व का उसे बोध हो।

अध्येताओं के लिए यह अत्यंत उपयोगी कृति है।

हरियाली को ओढ़े हुए पुस्तक के मनभावन आवरण हेतु प्रकाशक महोदय को ढेरों शुभकामनाएँ।

हिन्दी साहित्य जगत को अपनी एक और सशक्त कृति सौंपने के लिए आदरणीय हिमांशु जी को मेरी अनंत शुभेच्छाएँ।

बतियाती पगडण्डी (लघु उपन्यास) : रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' , पृष्ठ-100, मूल्य-220 रुपये, ISBN-978-93-91378-54-7, प्रथम संस्करण-2021, प्रकाशक-अयन प्रकाशन, जे-19 / 39, राजापुरी, उत्तम नगर, नई दिल्ली-110059