बदलते रंग / सुधा भार्गव
सोमेश और राजेश दो गहरे मित्र थे। दोनों ही करोड़पति पर लक्ष्मी तो चंचला ठहरी! सोमेश को व्यापार में ऐसा घाटा हुआ कि खाने-पीने के भी लाले पड़ गए. ऐसी दरिद्रता की अवस्था में सोमेश को अपने दोस्त राजेश का ध्यान आया और सहायता मिलने की उम्मीद से पत्नी को लेकर उसके घर की ओर चल पड़ा।
राजेश अपने दोस्त को आया देख बहुत प्रसन्न हुआ और आदर सत्कार में लग गया। दोस्त का कुम्हलाया चेहरा देखकर वह समझ गया कि उसके ऊपर ज़रूर मुसीबत के बादल मंडरा रहे हैं।
उसने बड़ी आत्मीयता से उसका हाथ अपने हाथ में लिया और पूछा-सोमेश, मेरे लिए कोई काम हो तो बताओ. -मैं पूरी तरह बर्बाद हो चुका हूँ मेरे दोस्त। मुझे तुम्हारी सहायता की ज़रूरत है ताकि नए सिरे से काम-काज शुरू कर सकूँ। सोमेश ने हिचकिचाते हुए कहा -तुम मेरे दोस्त हो। तुम्हारे लिए कुछ भी कर सकता हूँ। तुम परेशानी में रहो और मैं आराम से दिन गुज़ारूँ—-यह कैसे सहन कर सकता हूँ।
राजेश ने अपनी संपत्ति का आधा-साजा कर दिया। उसके पास अस्सी करोड़ मूल्य के बराबर सोने के सिक्के थे। चालीस करोड़ अपने मित्र को दे दिए. यही नहीं बल्कि घर के कपड़े-गहने, बर्तन-भांड़े, नौकर-चाकर सबका बंटवारा कर दिया। इस बँटवारे को देख सोमेश चकित रह गया। वह इतना सब लेने में हिचकिचाने लगा। लेकिन राजेश ने उसकी एक न सुनी।
मित्र को लाख-लाख धन्यवाद देता हुआ सोमेश अपने नगर लौट आया।
उसकी मेहनत रंग लाई और मित्र के दिए धन से व्यापार चमक उठा। किस्मत ने ऐसा पलटा खाया कि पहले से भी ज़्यादा अमीर हो गया।
कुछ वर्षों के बाद राजेश पर भी कुछ वैसा ही कहर टूट पड़ा। उसे व्यापार में लाखों का घाटा हो गया।
उसे पूरा यकीन था सोमेश अवश्य उसकी मदद करेगा। वह बिना देरी किये अपने मित्र से मिलने चल दिया।
रास्ते में अपनी पत्नी से बोला-तुम कोमल स्वभाव की हो, थक गई होगी। मित्र का घर तो अभी दूर है, तुम थोड़ा यहाँ विश्राम करो। मैं पहुँच कर गाड़ी भिजवाता हूँ आराम से और शान से आना।
राजेश उसे सुरक्षित स्थान पर बैठाकर शहर चल दिया।
मित्र के आलीशान घर पर दरबान से अपने आने की सूचना भिजवाई. -भेज दो। सोमेश ने बड़ी बेरुखी से कहा।
राजेश को देखकर सोमेश दौड़कर न स्नेह से गले मिला न आवभगत की। वेशभूषा राजेश की विपदा की कहानी कह रही थी परन्तु दोस्त ने उसे अनदेखा कर निष्ठुरता से पूछा-तुम्हारे आने का क्या कारण हो सकता है? -तुमसे मिलने आया हूँ। -कहाँ रुके हो? -रुकने का ठिकाना अभी तय नहीं किया है। अपनी पत्नी को एक जगह बैठाकर आया हूँ। -तुम्हारे रहने के लायक यहाँ कोई स्थान नहीं है। ऐसा करो, कुछ आटा-चावल और सब्जियां ले जाओ, रास्ते में कहीं पकाकर पेट भर लेना और मेरे पास आने की कोई ज़रूरत नहीं।
राजेश को अपमानित करने के लिए उसने एक नौकर से यह भी कहा-आज गाड़ी भर लाल चावल फटका–छँटवा कर बड़े कोठे में भरा गया है उसका बहुत-सा भूसा बचा होगा। मेरे मित्र को आटे चावल के साथ थोड़ा-सा भूसा भी दे दो।
नौकर ने एक टोकरी में थोड़ा-सा भूसा राजेश के सामने लाकर रख दिया।
राजेश उस भूसे को देख असमंजस में पड़ गया। वह दुविधा में था इसे लूँ या न लूँ। सोच रहा था-चालीस करोड़ मूल्य के बराबर सोना लेकर उसके बदले में यह बेशर्म मुझे थोड़ा-सा भूसा-चावल पकड़ा रहा है! इसने तो दोस्ती की लाज भी न रखी। वाह! मेरी नेकी का अच्छा फायदा उठाया। अच्छा हो यदि मैं इसका दिया कुछ न लूँ।
दूसरे ही क्षण उसका विवेक जाग उठा-अरे यह तू क्या सोच रहा है! सोमेश ने तो मित्रता तोड़ने में कोई कसर नहीं छोडी पर तूने यदि भूसा अस्वीकार कर दिया तो दोस्ती तोड़ने का भागीदार बन जाएगा। कुछ भी हो—है तो वह तेरा मित्र ही। ऐसा न हो कि छल–कपट के कारण एक-एक करके उसके सारे दोस्त ख़तम हो जायें। तब तो वह मुसीबत में पड़ जाएगा। न—न—मैं उसे किसी मुसीबत में नहीं डाल सकता। उससे दोस्ती तो हमेशा बनाये रखूँगा। वह बड़बड़ा उठा।
उसने भूसा स्वीकार कर ही लिया। एक बार तो उसकी पत्नी ने भूसा लेने से उसे मना भी किया पर यह कहकर उसे संतुष्ट कर दिया कि दूसरे के साथ भलाई करके उसे भूल जाना चाहिए.