बदलेगा जमाना, यह सितारों पर लिखा है / जयप्रकाश चौकसे

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बदलेगा जमाना, यह सितारों पर लिखा है
प्रकाशन तिथि : 25 नवम्बर 2021

लेखक विकास स्वरूप के उपन्यास से प्रेरित डैनी बॉयल की फिल्म ‘स्लमडॉग मिलेनियर’ में एक प्रसंग यह है कि कुछ अपराधी, अनाथ बच्चों की आंखों में एसिड डालकर उन्हें दृष्टिहीन बना देते हैं। ताकि उन्हें अधिक भीख मिल सके। मधुर भंडारकर की फिल्म ‘ट्रैफिक सिग्नल’ में भी बच्चों से भीख मंगवाने का अमानवीय कृत्य प्रस्तुत किया गया है। राज कपूर की बेबी नाज, रतन कुमार और डेविड अब्राहम अभिनीत फिल्म ‘बूट पॉलिश’ में गांव का आदमी, दो अनाथ बच्चों को उनकी दूर के रिश्ते की चाची के घर छोड़ आता है। चाची बहुत ही निर्दयी महिला है वह अभद्र नृत्य प्रस्तुत करके गरीब लोगों का मनोरंजन करती है और रेड लाइट एरिया में भी काम करती है। चाची, बच्चों को भीख मांगने के लिए विवश करती है। बस्ती में अपंग डेविड अब्राहम अभिनीत पात्र शराब बेचने का अवैध धंधा करता है।

डेविड अब्राहम अभिनीत जॉन चाचा की भूमिका उनके अभिनय जीवन की श्रेष्ठ भूमिका मानी गई। जॉन, बच्चों को प्रेरित करता है कि वे भीख ना मांगे और बूट पॉलिश करके पैसा कमाएं। बच्चे, चाची को बिना बताए बूट पॉलिश प्रारंभ करते हैं। भीख मांगने से मिले धन से अधिक पैसे लालची चाची को देते हैं।

ज्ञातव्य है कि राज कपूर को फिल्म ‘आह’ में बहुत अधिक घाटा हुआ था। उन्होंने 2 बच्चों और एक चरित्र अभिनेता को लेकर ‘बूट पॉलिश’ बनाई जो अत्यंत सफल रही‌। मराठी भाषा में बनी ‘आत्मविश्वास’ फिल्म में मध्यम वर्ग की महिला अपने आलसी पति और स्वार्थी बच्चों से परेशान रहती है। एक दिन उसकी पुरानी सहेली सारी बात समझ कर उसकी बांह में एक धागा बांधती है। वह कहती है कि इस अभिमंत्रित धागे से उसे अपनी बात कहने का साहस मिलेगा। वह महिला अपने आलसी पति और बच्चों को दबंग अंदाज में काम-काज करने को कहती है। सब सहम जाते हैं और काम करने लगते हैं। कुछ ही दिनों में परिवार सुखी हो जाता है। उसकी सहेली परिवार के कायाकल्प हो जाने से प्रसन्न होती है। वह यह बताती है कि वह तथाकथित अभिमंत्रित धागा एक सामान्य सा धागा था। दरअसल वह तो अपनी सहेली के आत्मविश्वास को जगाना चाहती है। बहरहाल, अपने अधिकार के लिए संघर्ष करना ही सबसे कारगर मंत्र है। मनुष्य की मेहनत और संकल्प सभी समस्याओं का निदान है। दिलीप कुमार अभिनीत फिल्म ‘नया दौर’, ‘अपना हाथ जगन्नाथ’ इत्यादि अनेक फिल्में रेखांकित करती हैं कि मनुष्य के भीतर कितनी शक्ति मौजूद होती है। भीख मांगने पर कानूनी बंदिश लगाने का विचार किया जा रहा है। दहेज प्रतिबंधित है परंतु लिया और दिया जा रहा है। समाज में सुधार समाज के भीतर की शक्ति ला सकता है। विभाजन, मनुष्य को कमजोर करता है परंतु इससे मनुष्यों पर राज किया जा सकता है। असमानता व अन्याय आधारित समाज में भिक्षावृत्ति को रोकना कठिन होता है। समानता, महान आदर्श है, जिसके लिए प्रयास करना ही मंजिल है। संपूर्ण सफलता संभव नहीं लगती परंतु प्रयास करते रहना है।

‘बूट पॉलिश’ के सारे गीत सार्थक माधुर्य हैं। एक गीत की कुछ पंक्तियां हैं, नन्हे- मुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी में क्या है, मुट्ठी में है तकदीर हमारी, हमने किस्मत को बस में किया है, भीख में जो मोती मिले लोगे या न लोगे, ज़िन्दगी के आंसुओं का बोलो क्या करोगे।’ गौरतलब है कि फिल्म ‘बूट पॉलिश’ से प्रेरित अहमदाबाद के किशोर ने भीख मांगना छोड़ कर अपना स्वतंत्र व्यवसाय प्रारंभ किया और सफल हुआ। वह हर वर्ष राज कपूर से मिलने उनके घर आता था। गोया की पूरी जिंदगी में किसी एक व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन करना भी अच्छा काम है। कुछ फिल्में, पाठशाला समान हो जाती हैं।