बधाई भाभीजी मां बनने वाली हैं! / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 16 नवम्बर 2018
'भाबीजी घर पर हैं' नामक विशुद्ध हास्य सीरियल में गोरी मेम का पात्र अभिनीत करने वाली कलाकार सौम्या टंडन अपने यथार्थ जीवन में मां बनने वाली हैं और यह सुखद समाचार कार्यक्रम को निर्माण करने वाली कंपनी की कठिनाई बढ़ा देगा। इस कार्यक्रम के असली नायक इसके लेखक हैं। कुछ वर्ष पूर्व उनकी महत्वपूर्ण कलाकार शिल्पा शिंदे के साथ मेहनताने को लेकर मतभेद हुए थे और शिल्पा शिंदे ने काम बंद कर दिया था। उन्होंने अन्य कलाकारों के साथ शूटिंग जारी रखी है और इसी बीच उसका विकल्प खोजते रहे। संसार में यह लतीफा प्रसिद्ध है किसी कलाकार के उपलब्ध नहीं होने पर उसे कुछ समय के लिए 'तोता' बनाकर पिंजरे में बंद कर देते हैं और कलाकार के उपलब्ध होते ही जादू की घड़ी घुमाकर तोते को फिर मनुष्य बना देते हैं।
शिल्पा शिंदे सुंदर और विलक्षण हैं। उन्होंने उसके विकल्प को विश्वसनीयता के साथ स्थापित कर दिया। 'भाबीजी...' सीरियल विशुद्ध हास्य हुए भी कुछ गंभीर सामाजिक टिप्पणियों के लिए चर्चित है। मसलन उसमें सक्सेना नामक पात्र को पिटने और प्रताड़ित होने में न केवल आनंद आता है वरन वह ऊर्जा भी प्राप्त करता है। इस तरह यह पात्र हमारे आम आदमी का प्रतीक बन जाता है जो व्यवस्था द्वारा प्रताड़ित किए जाने से भी प्रसन्न बना रहता है। इस कार्यक्रम में टीका और उसका साथी मलखान कोई काम नहीं करते। उन्हें नौकरी ही नहीं मिलती। वे भारत के करोड़ों बेरोजगारों की तरह हैं। उन्हें अवसर ही नहीं मिलते, उनके भीतर आक्रोश भी नहीं उत्पन्न होता। वह तमाशबीन बने रहते हैं। व्यवस्था मुतमइन है कि उसे उसके द्वारा की गई अनगिनत गलतियों का कभी कोई दंड भी नहीं मिलेगा। वे नहीं जानते हैं कि यह संचित आक्रोश कब फट पड़ेगा। हम सब एक सुशुप्त अवस्था में रहने वाले ज्वालामुखी पर बैठे हैं। इस कार्यक्रम का सबसे मजेदार पात्र पत्र हप्पू सिंह है जो रिश्वत को निछावर कह कर लेता है। वह एक लवेबल क्रूक है। चार्ल्स डिकेन्स के 'आर्टफुल डॉजर' की तरह। उसका तकिया कलाम संवाद है 'घर में नौ नौ ठय्यां बच्चे और गर्भवती पत्नी है'। पत्नी का लंबे समय तक गर्भवती बने रहना महाभारत की गांधारी की याद दिलाता है। हप्पू सिंह की पत्नी और बच्चे कभी परदे पर दिखाए नहीं गए हैं। इसी तरह इस सीरियल में गोरी मेम की मीनल नामक सहेली है जिससे फोन पर बात की जाती है परंतु यह पात्र कभी प्रस्तुत नहीं होता। यह लेखन का कमाल है कि केवल संदर्भ में मौजूद पात्र स्वयं उपस्थित नहीं होते परंतु दर्शक को वे अपने से लगते हैं। हप्पू सिंह के पात्र की लोकप्रियता के लिए लेखकों के साथ ही उस अभिनेता की भी प्रशंसा करनी होगी, जिसकी सहजता उसे प्रिय बनाती है। क्या यह संभव है कि हप्पू सिंह के माध्यम से संदेश दिया जा रहा है कि भ्रष्टाचार हमारा स्वाभाविक आचरण है और हम इसमें आनंद भी ग्रहण करते हैं। सौम्या टंडन ने अभी अवकाश लिया है परंतु उन्होंने यह भी कहा है कि शिशु के जन्म के कुछ माह पश्चात वे पुनः सक्रिय होंगी। अभिनय कला के प्रति वे समर्पित हैं। यह कार्यक्रम इतने अच्छे ढंग से लिखा हुआ है कि दर्शक इसमें अभद्र संकेतों को भी हंसते हुए स्वीकार करता है। पूरी कथा ही पुरुष की लंपटता की धुरी पर घूमती है। कमोबेश सारे पात्र ही वासना से संचालित हैं परंतु तब भी कुछ आपत्तिजनक नहीं लगता। दोनों पड़ोसी एक-दूसरे की पत्नियों को चाहते हैं। चरित्र चित्रण में विरोधाभास की धुरी पर घूमते पात्र प्राय: कुछ बुदबुदाते हैं। इस तरह वे अपनी दबी हुई इच्छाओं को दबाते-दबाते अभिव्यक्त कर भी देते हैं। नल्ले पात्र की पत्नी कामकाजी महिला है और सारे घर का खर्च चलाती है। पड़ोसी मनमोहन व्यवसायी हैं। उनका व्यवसाय भी बनियान का बताया गया है। भीतर पहनने वाले कपड़ों के व्यवसायी की लार टपकती रहती है। वह गोरी मेम पर फिदा है और उसकी बौड़म पत्नी पर गोरी मेम का नल्ला पति फिदा है परंतु उनके मध्यमवर्गीय मूल्य एक अदृश्य जंजीर की तरह उन्हें मर्यादा की सीमा में बांधे रहते हैं।
सक्सेना नामक पात्र सहित सारे पात्र गोरी मेम पर फिदा है परंतु वह अपनी निगाह के कोड़े से सबको फ्रीज कर देती हैं। मनमोहन की अम्मा भी अत्यंत मनोरंजक पात्र हैं जो मोबाइल पर बात करते समय कोई न कोई वस्तु नीचे गिरा देती हैं और चोटग्रस्त व्यक्ति के चीखने पर खिड़की से दूर चली जाती हैं। यह कलाकार अत्यंत मोटी है परंतु शरीर में चपलता कमाल की है। 'भाबीजी..' का लेखक आपको हरिशंकर परसाई और शरद जोशी की याद दिलाता है। गुदगुदी करने वाली उंगलियां लेखक की हैं जो आपको दिखाई नहीं देती। पुलिस कमिश्नर देव आनंद की शैली को अपनाए हैं। इस कार्यक्रम में मुजरा करने वाली गुल्लो भी विश्वसनीय लगती है।
बहरहाल 'भाबीजी...' के निर्माता को सौम्या टंडन का विकल्प खोजना अत्यंत कठिन होगा। आज यथार्थ जीवन में गंभीर कठिनाइयां हैं और भाभीजी हमें सारे अन्याय सहन करने में सक्षम बनाती रही हैं। क्या अब डूबते अवाम को इस तिनके का सहारा भी नहीं मिलेगा?