बधाई हो! नई बीमारी आयी है / सुरेश कुमार मिश्रा
एक दिन कुछ स्वार्थी मनुष्यों के बहकावे में आकर आयुष के पाँचों बेटों-आयुर्वेद, योग, यूनानी, सिद्ध और होमियोपैथी में तीखी नोंक-झोंक हो जाती है। उनमें इस बात को लेकर बहस छिड़ जाती है कि कोरोना के लिए दवा सबसे पहले कौन बनाएगा। हर कोई मुँह मियाँ मिट्ठू बनकर अपना ही सुर अलाप रहा था। सब एक-दूसरे को नीचा दिखाने पर तुले थे। चूँकि कोरोना महामारी का समय है और दुनिया इससे त्रस्त है इसलिए वे इस अवसर को भुनाना चाहते हैं। वे दुनिया को यह दिखाना चाहते हैं कि उनके सिवाय इस महामारी का इलाज़ कोई नहीं कर सकता। सबसे पहले आयुर्वेद अपना दमखम दिखाते हुए कहता है-दुनिया भर में मेरी जितनी मांग है उतनी किसी की नहीं है। चारों ओर मेरा डंका बजता है। आज मेरे उत्पादों की दुनिया भर में माँग है। मेरे उत्पाद पंतजलि के नाम से प्रसिद्ध हैं। इसके स्टॉल दुनिया भर में खुल गए हैं। मेरी सामग्री हाथों हाथ बिकती है। इतना कहना था कि योग बीच में कूद पड़ा। योग ने आयुर्वेद का गला पकड़ा और गुर्राते हुए बोला-चल-चल! ज़्यादा भाव न खा। वह तो मेरे गुरु बाबा रामदेव की कृपा है। वरना तेरी इतनी हैसियत कहाँ? बाबा ने पतंजलि के उत्पाद बनाये तब जाकर तेरी माँग बढ़ी है। वैसे भी तुझे यह नहीं भूलना चाहिए कि बाबा जी से पहले तुझे पूछता ही कौन था। उदाहरण के लिए तुझ से पहले कोलगेट, पेप्सोडेंट, क्लोज़प के रासायनिक पदार्थ वाले टूथपेस्टों के प्रचार आया करते थे। बाबा जी ने बाज़ार में पतंजलि का टूथपेस्ट का क्या उतारा सब टूथपेस्टों की अक्ल ठिकाने पर आ गयी। सभी दौड़-दौड़ कर कहने लगे हमारे टूथपेस्ट में तुलसी, मुलेठी, आंवला, नीम, बबूल, लवंग, नमक, कोयला, फलाना यह, फलाना वह है। वैसे भी मैंने दुनिया भर को इतने आसन दिये हैं कि उनमें से थोड़े भी अपना लें तो हर कोई निरोगी काया बन सकता है।
आयुर्वेद और योग की दलीले सुन यूनानी बीच में कूद पड़ा। यूनानी ने कहा-बस-बस! स्थानीय होने का लाभ न उठाओ! हाँ यह अलग बात है कि मैं यूनान से हूँ, लेकिन यह भूलकर भी मत समझना कि तुम सब से कम हूँ। मैं भी इलाज़ करने का हुनर अच्छी तरह से जानता हूँ। मेरे अनुभव के आगे सभी के अनुभव पानी भरते हैं। मैं तो यूँ कफ़, बलगम, पीला पित्त और काला पित्त देखकर यूँ मरीजों का इलाज़ कर सकता हूँ। मैं पार्थिव शरीर का इलाज़ पंच तत्वों के आधार पर करता हूँ। मैं अपनी औषधियों का व्यापार नहीं करता बल्कि लोगों को स्वस्थ व निरोगी बनाये रखने में विश्वास रखता हूँ। इतना सुनना था कि सिद्ध इन सबके बीच कूद पड़ा। उसने कहा-मैं तमिलनाडु का जन्मा पारंपरिक चिकित्सा पद्धति हूँ। मेरे आगे तुम लोगों की एक न चलने दूँगा। सिद्ध गुरुओं ने मुझे साक्षात् शिव-पार्वती से प्राप्त किया है। इस हिसाब से मैं तुम लोगों से सबसे प्राचीन और महान हूँ। मानव शरीर तो इस ब्रह्मांड का प्रतिरूप है। चूँकि ब्रह्मांड का ज्ञान मुझमें समाया है, इसलिए मैं ही सबसे अच्छी चिकित्सा कर सकता हूँ। तुम सबकी मेरे सामने कोई गिनती नहीं है। इतना कहना था कि तभी होमियोपैथी बीच में कूद पड़ा। उसने कहा-मुझे मेरे जन्मदाता सैमुएल हैनीमेन की सौगंध। मैं दुनिया में किसी भी बीमारी का इलाज़ करने की योग्यता रखता हूँ। तुम लोग मेरे बारे में नहीं जानते कि मैं बीमारियों को दबाता नहीं, बल्कि उसे जड़ से मिटा देता हूँ। इसलिए मुझे कम आंकने की भूल बिल्कुल भी न करना।
एलोपैथी इन सबकी नोंक-झोंक बड़ी देर से देख रहा था। उसने कहा-तुम सब क्यों बेकार में लड़ते हो? चाहे मैं हूँ या तुम सब, हम सबका एक ही उद्देश्य है-मरीजों को ठीक करना। उनके और उनके परिवार वालों के चेहरे पर ख़ुशी लौटाना। हम सब अपनी-अपनी जगह दुनिया से सारी बीमारियों को मिटाने में कोई कमी नहीं रखते। हम सब में इतनी शक्ति है कि हम किसी भी बीमारी का इलाज़ कर सकते हैं। दुर्भाग्यवश हम मनुष्य के लालच का इलाज़ नहीं कर सकते। कोरोना महामारी तो आज की आयी है। क्या इससे पहले बीमारियाँ नहीं थीं या फिर आगे न होंगीं? हाँ यह अलग बात है कि कोई बीमारी हल्की तो कोई भारी होती है। इंसान जब लालची बन जाता है तो सबसे पहले मानवता खो देता है। वह नई बीमारी आने पर दुखी होने के बजाए एक-दूसरे को बधाई देता है। इसे रुपये-पैसे कमाने का सुअवसर समझता है। लोगों को भयभीत कर अपने झांसे में फंसाने की चेष्टाएँ करता है। वह मरीजों पर चील-कौओं और गिद्धों की तरह टूट पड़ता है। इसके लिए वह हमें ढाल बनाकर लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करता है। जो व्यक्ति हमारा सही ज्ञान रखता है वह रोगियों की सेवा करना ही प्रथम धर्म मानता है। वह भली-भांति जानता है कि दुनिया कि सारी चिकित्सा पद्धतियाँ मानव सेवा ही माधव सेवा है, के लक्ष्य से काम करती हैं।