बनारसीदास चतुर्वेदी के नाम पत्र / रामधारी सिंह 'दिनकर'

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पो.ऑ. लालगंज

मुजफ्फरपुर

६-१-३६

श्रद्धेय चतुर्वेदी जी,

प्रणाम!

आपका ५-१-३६ का कृपा-पत्र आज संध्‍या को मिला। इस पत्र ने मुझे बहुत कुछ उत्‍साह दिया है।

अपने मित्रों में जरा इमोशनल कहलाता हूँ। इसीलिए लोग मुझे ऐसी बात कहने या ऐसी चीजें दिखाने से डरते हैं जिससे मुझे दु:ख होने की संभावना हो। अभी हाल ही, मैं शिवपूजन जी से मिला था। तब तक साप्‍ताहिक विश्‍वमित्र में निर्झरिणी की निन्‍दा छप चुकी थी। शिवपूजन जी ने मुझे वह लेख देखने नहीं दिया। कहने लगे जब लोग तुम्‍हारी निन्‍दा खुलकर करने लगें तब तुम समझो कि तुम्‍हारी लेखनी सफल हुई। अस्‍तु।

चौदह करोड़ लोगों के द्वारा बोली जाने वाली हिन्‍दी का क्षेत्र इतना विस्‍तृत है कि लोग किसी व्‍यक्ति-विशेष की रचना पर साधारणत: खास तौर से आकृष्‍ट नहीं हो सकते। इस विशाल समुद्र में किसी इंडिविजुअल की कृति एक तिनके से बड़ी नहीं। फिर इसे तो मैं अपना सौभाग्‍य ही समझता हूँ कि भाव, कुभाव, अनख आलसहूँ 'रेणुका' का नाम दस भले लोगों के मुँह पर आ जाता है।

आप विश्‍वास रखें, आप पूज्‍यों की कृपा से मुझमें इतनी ताकत जरूर है कि अखबारों में रोज निकलने वाली पंक्तियाँ मुझे अपने मार्ग से विचलित नहीं कर सकतीं। कोई प्रशंसा ऐसी नहीं जो मुझे याद रहे, कोई निन्‍दा ऐसी नहीं जो मुझे उभार दे। नास्ति का परिणाम नास्ति है। कुछ नहीं से कुछ की उत्‍पत्ति नहीं हो सकती। अगर आज कोई सत्ता है तो वह किसी के मिटाये से नहीं मिटेगी। पदार्थ का अस्तित्‍व नहीं है तो वह किसी के पैदा करने से पैदा नहीं हो सकता। कीट्स ने एक बार एक मित्र को लिखा था :

'If all my poems were burnt the next day they were written and no eye shine upon them, yet I would go on writing and writing.'

मैं रेणुका के दोषों को भलीभाँति जानता हूँ। उसमें कलाविदों को पद-पद पर अनुभवहीनता, इमैच्‍युरिटी और कहीं-कहीं भाषा सम्‍बन्‍धी कमजोरियाँ मिलेंगी। कीट्स के ही शब्‍दों में It is a foolish attempt, rather than a deed accomplished.

मैं जो कुछ चाहता हूँ , जो कुछ सोचता हूँ उसे ठीक मनचाहे रूप में अब तक उतार नहीं सका हूँ। इस चेष्‍टा का एक अस्‍पष्‍ट रूप मेरी आँखों के सामने बराबर टँगा रहता है। All the same, no one should be justified in passing a remark of insincerity regarding my feelings. I don't believe in the saying that Renuka contains lines written forcibly. Although at times, my poems have been deprived of the support of my character, I know that they have always come out in spontaneity. More or less, every poem has been a direct enlightenment in my life. रेणुका को लेकर धूम मचा करे लेकिन, मैं अभी तक निश्चित रूप से यह भी नहीं समझ पाया हूँ कि मेरे political career का श्रीगणेश हो गया। भगवान मुझ पर कृपा करे कि मैं अभी कुछ दिनों तक और भी सरस्‍वती के चरणोदक से अपनी मूर्खता धोता रहूँ। हिंन्‍दुओं को पुनर्जन्‍म का भी भरोसा रहता है।

बच्‍चन को मैं एक पत्र लिख चुका हूँ। उसने भी एक पत्र लिखा है। अब रेगुलर करेस्‍पोंडेंस शुरू करता हूँ। योगी में अवश्‍य लिखूँगा। लेकिन, बच्‍चन अपनी प्‍याला, बुलबुल आदि कविताएँ भेज दे तो मजमून कुछ अधिक दिलचस्‍प होगा।

मनोरंजन जी से पत्र-व्‍यवहार करके मैं अपने को सौभाग्‍यशाली समझूँगा।

इधर मुझे ऐसा जान पड़ता है कि शुद्ध भाषा लिखने की ट्रेनिंग मुझे और लेनी चाहिए। भरसक कोशिश कर रहा हूँ। कविताएँ शिवपूजन जी से दिखाकर छपाया करूँगा। आप इस विचार को कैसा समझते हैं? मेरे विचार से शिवपूजन जी की जैसी चार्टर्ड हिन्‍दी लिखने वाला विरला ही होगा।

आशा है आप प्रसन्‍न हैं।

अगर मैंने छुट्टी नहीं ली तो दो महीनों तक यहाँ रहने की बात है।

आपका

दिनकर

आवश्‍यक :

जनवरी के अन्‍त में मेरे घर में कुछ यज्ञ-प्रयोजन होने वाला है। अतएव मैं भी मुँगेर में रह सकूँगा कि नहीं यह अनिश्चित है। आपके वसन्‍तोत्‍सव का क्या हुआ? मुझे तो मार्च के पहले छुट्टी प्राय: मिल ही नहीं सकती। उसके लगभग प्रोग्राम रखें तो मैं अभी से छुट्टी की कोशिशें करूँ।

दिसम्‍बर का वि. भा. अब तक नहीं मिला है। भारत और अभ्‍युदय नहीं देखा है। न देखने की इच्‍छा है। विश्‍वमित्र वाले दोनों लेख देख चुका हूँ।

'विश्‍वास' वाला आपका लेख सुन्‍दर है। यह विचार कुछ अनन्‍त की ओर जाने वालों को अप्रासंगिक भले ही लगे लेकिन इसके बिना कवियों का भी उद्धार नहीं है। आज यह राजवाटिका छोड़, चलो कवि वनफूलों की ओर। एमर्सन और क्रोपटकिन को छोड़ कर आप किन्‍हीं दो तीन अन्‍य लेखकों और उनकी सुन्‍दर कृतियों के नाम भेज दें जो आपको पसन्‍द हों।

आपके जीवन में वसन्‍त आ रहा है - इस ४४वें वर्षं में। भगवान करें यह कभी आपको छोड़े नहीं। आप फाल से डरते हैं? You may have a fall, but a fall on the knee which may end in prayer.

दिनकर