बनिए की बुद्धि और मियां भाई की डेयरिंग / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :22 जुलाई 2015
दक्षिण भारत में "बाहुबली' की सफलता से रजनीकांत का सिंहासन डोला है। भव्यता की सीमा नहीं है, लघुता के बिंदु में संसार समा सकता है। बहरहाल रजनीकांत परेशान हैं तो अपने को श्रेष्ठतम कहते नहीं थकने वाले शाहरुख खान ने अपनी अगली ईद पर आने वाली 'रईस' का अखबारों में विज्ञापन 'बजरंगी भाईजान' के प्रदर्शन के दिन ही शुरू कर दिया है। एक वर्ष पूर्व विज्ञापन का अर्थ यह है कि उन्होंने अगली ईद पर प्रदर्शन का अपना दावा मजबूत कर दिया है, क्योंकि आदित्य चोपड़ा की सलमान अभिनीत 'सुल्तान' की शूटिंग अभी शुरू नहीं हुई है। आदित्य अपनी फिल्म 6 महीने में पूरी कर सकते हैं। अभी इस ईद का खुमार नहीं उतरा अत: अगली ईद की कैसे सोचें, परंतु यह तय है कि अगले रमजान तक चीजें और अधिक मंहगी हो जाएंगी। शाहरुख खान आर्थिक उदारवाद के बाद पनपे समाज और सिनेमा का प्रतिनिधित्व करते हैं और यह काल खंड अपने विज्ञापन के लिए हमेशा याद रखा जाएगा। अत: उनका अपनी फिल्म को इतने पहले से प्रचार देना गलत भी नहीं है। उनकी सितारा छवि में उनका श्रेष्ठतम होना दरअसल असली शाहरुख नहीं है। वह उनकी बिकने वाली छवि मात्र है। उन्होंने अपनी 18 दिसम्बर को लगने वाली 'दिलवाले' का प्रचार प्रारंभ नहीं करते हुए अपनी तीसरी फिल्म का प्रचार शुरू किया है क्योंकि 'दिलवाले' और 'रईस' के बीच 15 अप्रैल 2016 को उनकी 'फैन' भी लगेगी।
शाहरुख खान की 'रईस' की नायिका पाकिस्तान टेलीविजन में प्रसिद्ध कलाकार हैं और उनकी एक पाकिस्तानी फिल्म को इस ईद पर प्रदर्शित नहीं होने दिया। शिवसेना को एतराज था। क्या एतराज का यह शंखनाद शाहरुख कान की 'रईस' के लिए एक चेतावनी है? उनकी 'माय नेम इज खान' एतराज के बावजूद लगी थी परंतु उस समय केन्द्र सरकार सोनिया गांधी की थी। सच तो यह है कि साहित्य व सिनेमा क्षेत्र से राजनैतिक दलों को दूर रहना चाहिए। यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मामला है परंतु उन्माद किसी संविधान को नहीं स्वीकार करता। अनुष्का शर्मा और राघवन की 'एनएच 10' में एक संवाद था कि गुड़गांव के आगे संविधान लागू नहीं होता, वहां खाप पंचायत की हुकूमत है। भारत का गणतंत्र विचित्र है। संविधान के बाहर अनेक संविधान हैं, सता के बाहर अनेक सता केन्द्र हैं। इतने सारे सता के ठिओं ने मनुष्य को ही गौण कर दिया है।
तीनों खान सितारों में शाहरुख खान के पास व्यवसाय बुद्धि सबसे अधिक है। उसने फिल्मों के मेहनताने से अधिक धन विज्ञापन फिल्मों से कमाया है और एक दौर में वह धन के लिए अमीरों की शादियों में नाचा भी है। उसने कुशल पूंजी निवेश से अपना साम्राज्य खड़ा किया है। लंदन में उसने एक बुहमंजिला किश्तों में खरीदा और किराये से ही किश्तें अदा हो गईं और आज वह इमारत अपनी खरीदी के मूल्य से कहीं गुना अधिक की हो गई है। इसी तरह उसने अपनी रिहाइश के लिए बैंड स्टैंड पर जो घर उस दौर में 12 करोड़ का खरीदा था, आज संभवत: पांच सौ करोड़ से अधिक का है। सुना है कि वह बंगला भी उसने भरत भाई शाह से कर्ज लेकर खरीदा था और समय पर कर्ज चुका भी दिया। विशेष प्रभाव पैदा करने वाला उसका स्टूडियों भी एक भव्य इमारत में है। उसका पूंजी निवेश उस समय भी धन पैदा करता है जब वह सो रहा होता है। यह संभव है कि व्यवसाय बुद्धि भी इश्क की तरह है जिसे कहीं सीखा नहीं जाता। वह होती है या नहीं होती। इन्हीं सब कारणों से उसे आर्थिक उदारवाद का प्रतिनिधि सितारा कहा जाता है। आज तो व्यवसाय का ही युग है और शाहरुख अपनी पैनी बुद्धि से कितना कमाएंगे - यह कहना कठिन है। कोई आश्चर्य नहीं की उनकी 'रईस' का प्रचार सूत्र है 'बनिये की बुद्धि और मियां भाई की डेयरिंग (साहस)'। इस पंक्ति में एक अंग्रेजी शब्द का इस्तेमाल भी उदारवाद में भाषा प्रदूषण का उदाहरण है। 'रईस' गुजरात के दो अवैध शराब के व्यापारियों की कथा है। उस दौर के सांप्रदायिक दंगे भी इन 'रईसों' द्वारा प्रायोजित होते थे। सारे दंगे ही प्रयाजित होते हैं। आम गुजराती शांति प्रिय हैं। गुजरात के बनिये गांधी जी ने विश्व में अहिंसा का शंखनाद किया और मोहम्म अली जिन्ना भी गुजरात के प्रखर बुद्धिजीवी थे।