बन्नुक / एस. मनोज
कॉलवेलकें आवाज सुनि ज्ञानचंद जाक'दरबज्जा खोललनि तँ सोझाँमे बालसखा गोविन्दकें देखि प्रफुल्लित भ' गेलाह।
"रौ तों एतय? आ, भीतर आ" कहैत ओकर हाथ पकैड़ि भीतर ल' गेलाह। "सभ नीके न?"
हँ, हँ। आ तोहर?
हमरो सभ नीके छै।
अपन दोस सँ गप्प करैत ज्ञानचंद अपना बालकक शोर पारलनि-"रौ उमेश, देखही के आयल छधुन। अरे कक्का आयल छधुन"। अपन बाबूक आवाज सुनि उमेश आयल आ कक्काक चरण स्पर्श करैत गामक बारेमे किछु-किछु पूछैत बाजल "कक्का! अइ बेर गाममे किसुन जीक मेला केहन लागल रहै" ?
गोविन्द बजलाह-"बड़ सुन्नर। पिछलुका बरीख सँ बेसी सुन्नर। चारि-पाँच दिन धरि त' दिन-राति मेला लागले रहलै। ततबे मधुर बिकलै, ततबे झुल्ला पर लोक झुललै आ ततबे खिलौना बिकलै। मुदा सभसँ बेसी लोक चाउमिन बला काउण्टर पर रहै"। मुस्कैत ज्ञानचंद पूछलाह- "चाउमिन बला काउण्टर पर त' धिये पुता न होयतै"।
"दुर, आय काल्हि त'बुढ़बा बचबा सभ एक्के रंग भ' गेल छै," बजलाह गोविंद।
ज्ञानचंद अपन बेटा दिस घूरिकें बजलाह-"अरे गामभरिकें खिस्सा बादमे पूछिहें, पहिने चाह-पानि आन"।
"हँ, हँ, पप्पा," कहैत उमेश भीतर चलि गेल।
गोबिन्द-"अइ बेर गाममे किसुन जीक मेला बड़ भव्य लागलै। चारि-पाँच दिन धरि खूब मेला लागल रहलै। हमहूँ अपना पोताक कन्हे पर चढ़ैने मेला घूमा एलियै। ओकरा मेला घुमबैत काल हम एगो माटिक मूरैतक दोकान पर रूकलियै। मंसुरचककें बनायल एक सँ एक मूरैत रहै। मुदा गहिंकी एक्कोटा नहि रहै। मेलामे झुण्डक झुण्ड लोक आबै आ जाय, मुदा माटिक मूरैत वा खेलैना कियो नहि कीनै।"
ज्ञानचंद बजलाह-"तों त' बड़ महीन परीक्षण कयले।"
गोबिन्द-"हँ दोस, मुदा तकर बादक घटना हमरा बड़ चिन्तित क' देने अछि।"
ज्ञानचंद-से की?
गोबिन्द-ओहि दोकान पर हम अपन पोताकें पूछलियै-रे छोटकुन, तों कोनो मूरैत नहि किनबें?
हमर पोता बाजलै-अहि दोकान पर नहि, ओ सोझाबला दोकान पर।
हम पोताक ओहि दोकान पर ल' गेलियै आ कहलियै-कौन खेलैना कीनबें?
ओ बाजल-ओ बन्नुक।
हम-नहि बन्नुक नहि। बन्नुक नीक लोक नहि कीनैत अछि।
ऐह! नीक लोक कीनैत ने छै त' की? हम रोज टी.भी। पर दाँतक कीड़ा मारै लेल डागडर साहेबक हाथमे बन्नुक देखैत छियनि। हम तखन निरुत्तर भ'गेलियै। फेर हमर पोता हमरा सँ जिद्द क' कें बन्नुक किनौलक। हम पोताकें बन्नुक त' कीनि देलियै, मुदा एकटा आओर काज कयलियै।
ज्ञानचंद-कौन काज?
गोबिन्द-हम पोताकें घर पहुँचा देलियै आ फेर सँ मेलामे खेलैनाक पाँचटा दोकान पर जाक' पूछलियै-अहाँक दोकान पर सभ सँ
बेसी कौन खेलैना बिकाइत अछि?
कहियौ, की बाजल दोकानदार?
हँ, हँ, कह ने।
सभ एक्केटा शब्द बाजल-बन्नुक।