बम्बई का होटल / लफ़्टंट पिगसन की डायरी / बेढब बनारसी
पिछला पृष्ठ | पृष्ठ सारणी | अगला पृष्ठ >> |
सात - आठ दिन हुए, गुदड़ी बाजार की ओर चला गया था। वहाँ एक मोटी, जिल्द बँधी कॉपी एक दुकान पर मिली। दीमकों ने उसका जलपान भी किया था। देखने पर एक डायरी निकली। लेफ्टिनेंट पिगसन सन् 1921 में भारत आये थे। यह डायरी दो साल की है। अन्त के कुछ पृष्ठ नहीं हैं। डायरी कितनी मनोरंजक है, पढ़ने से पता चलेगा।
परसों तीन बजे मेरा जहाज बम्बई पहुँचा। जहाज से उतरकर एक टैक्सी पर मैं होटल पहुँचा। मेरे एक मित्र ने यहीं एक कमरा ठीक कर दिया था। कानपुर जाने के पहले मैंने बम्बई देख लेना उचित समझा। जिस होटल में ठहरा हूँ उसके जितने ब्वॉय हैं, सब बड़े लम्बे-लम्बे कोट पहने हैं। जान पड़ता है यहाँ कपड़ा बहुत सस्ता है और उनका पतलून पाँव से चिपका हुआ रहता है, शायद इसलिये कि छिपकली या चूहे भीतर घुस न जायें क्योंकि जिस कमरे में मैं सोता हूँ उसकी छत पर छिपकलियाँ कुश्ती लड़ा करती हैं। जिस दिन यहाँ आया उसके दूसरे दिन सवेरे चाय पी रहा था। दो छिपकलियाँ नेपोलियन और वेलिंगटन की भाँति लड़ने लगीं; और एक पट् से मेरी मेज पर गिरी। मैंने मैनेजर को उसी दम बुलाया और शिकायत की। उसने कुछ कहने के पहले मुझे बधाई दी कि चाय में नहीं गिरी और ठीक भी है। यदि वह चाय में गिरती तो उसे कौन रोक सकता था? इतना मैं कह सकता हूँ - छिपकली में समझ थी। गिरने के बाद उसने मेरी ओर देखा। अंग्रेजों का भय भारतवर्ष के मनुष्यों में ही नहीं, भारत की छिपकली भी अंग्रेजों से डरती है। मुझे देखते ही भागी। मक्खन और टोस्ट रखा था। उस ओर देखने का भी साहस नहीं हुआ। अब मुझे मालूम हुआ कि अंग्रेज लोग भारत पर कैसे शासन कर पाते हैं।
मैंने मैनेजर से कहा कि मुझे दूसरा कमरा दीजिये। मैनेजर ने कहा कि बदल देने में कोई हरज नहीं, परन्तु लोग क्या कहेंगे कि एक सैनिक अफसर छिपकली के भय से कमरा छोड़कर भाग रहा है। यह भारतवर्ष है। यहाँ तो आपको अजगर, कोबरा, गेहुँअन और करइत पग-पग पर मिलेंगे। प्रसन्नता की बात है कि आपका जीवन छिपकली के संग्राम से आरम्भ हुआ।
मैनेजर सेना से अवकाश प्राप्त कर चुका था। वह कई बड़ी लड़ाइयाँ लड़ चुका था। उसका भारतवर्ष में बड़ा अनुभव था, इसलिये मुझे चुप रह जाना पड़ा। मैं चाय पीकर बम्बई घूमने निकला। मेरे साथ एक गाइड था। उसकी अंग्रेजी शेक्सपियर से भी अच्छी थी। मैंने लड़कपन में स्कूल में शेक्सपियर का एक नाटक पढ़ा था। उससे भी सुन्दर अंग्रेजी मेरे गाइड की थी। बिना क्रिया के वाक्य बोलता था, जो बहुत सुन्दर लगते थे। उसने अंग्रेजों की बड़ी तारीफ की। अंग्रेजों से भारतवासी बहुत प्रसन्न हैं।
बम्बई नगर में कोई विशेष बात मैंने नहीं देखी। हाँ, यहाँ स्त्रियों को सड़क पर आते-जाते देखा। लन्दन में मेरे एक मित्र ने, जो भारत से लौटा था, कहा कि भारत में स्त्रियाँ कमरों में बन्द रहती हैं और त्योहारों के दिन कमरे से बाहर निकलती हैं। परन्तु यहाँ मैंने दूसरी ही बात देखी। स्त्रियाँ उसी प्रकार दुकानों पर सौदा खरीदती हैं जैसे लन्दन में। हाँ, एक नई बात यहाँ की स्त्रियों में मैंने देखी। यहाँ स्त्रियाँ स्कर्ट और जैकेट नहीं पहनतीं। रंग-बिरंगे बिना सिले कपड़ों को अपने शरीर पर लपेटे रहती हैं। वह किस प्रकार यह कपड़ा लपेटती हैं, मैं कह नहीं सकता, परन्तु देखने में बहुत आकर्षक जान पड़ता है। स्कर्ट इन कपड़ों के भीतर होता है।
मैं कार से उतरकर मैरीन ड्राइव पर टहल रहा था। चार स्त्रियाँ एक साथ जा रही थीं। चारों के कपड़े चार रंग के थे। मुझे उनका पहनावा बहुत भला लगा। मैंने गाइड से पूछा - 'इस कपड़े को क्या कहते हैं?' उसने कहा - 'सारी'।
मुझे दुःख हुआ। मैंने कहा - 'मैं यहाँ की रीति नहीं जानता, इसलिये यदि शिष्टता के विपरीत कोई बात हो तो क्षमा कीजियेगा।' उसने कहा - 'ऐसी तो कोई बात नहीं है।' मैंने कहा कि आपने तब खेद क्यों प्रकट किया। गाइड ने कहा - 'मैंने दुःख नहीं प्रकट किया। इस पहरावे का नाम सारी (साड़ी) है।'
मैंने गाइड से एक सारी खरीदने की इच्छा प्रकट की। बात यह थी कि मैं एक फोटो ऐसी लेना चाहता था जिसमें एक स्त्री सारी पहने हो। ऐसी स्त्री की फोटो मैं कैसे लेता; इसलिये मैंने सोचा कि एक खरीदकर किसी को पहनाकर उसकी फोटो ले लूँगा। गाइड मुझे एक कपड़े की दुकान पर ले गया। लन्दन की दुकान से किसी भी अवस्था में वह दुकान कम नहीं थी।
एक सारी आठ रुपये में मुझे मिली। कभी-कभी इंग्लैंड में मैं सुना करता था कि हिन्दुस्तान के लोग गरीब हैं। यद्यपि अधिकांश लोग यही करते थे कि यह गप है। हिन्दुस्तान के लोग बहुत धनी हैं और यहाँ के धन का इसलिये पता नहीं लगता क्योंकि यह अपना बैंक धरती के नीचे बनाते हैं। जहाँ स्त्रियाँ इतने महँगे कपड़े पहनती हैं वह देश कैसे गरीब हो सकता है?
दुकान पर एक और बात हुई। मेरे जाते ही सब लोगों ने और ग्राहकों को छोड़ दिया और मेरी ही ओर आकर्षित हुए। सम्भवतः मेरा रंग इसके लिये जिम्मेदार था। उस समय ऐसा जान पड़ा कि अकेला मैं ही एक ग्राहक हूँ। जो ग्राहक और थे, वह भी मेरी ओर देखते थे। मैं अपने को बहुत भाग्यशाली समझता हूँ कि इस देश में मेरा इतना आदर हो रहा है। लन्दन की सड़कों पर मैं प्रति दिन घंटों घूमता था, पर मेरी ओर किसी ने ताका भी नहीं और यहाँ लखपति दुकानदार मेरे लिये खड़े हो गये। मैंने तो समझा कि मेरा इतना आदर हो रहा है कि शायद मुझे एक सारी मुफ्त में मिल जाये। परन्तु ऐसा तो नहीं हुआ।
सारी लेकर जब मैं होटल में लौटा तब गाइड से मैंने कहा कि सारी आप पहन लीजिये। मैं एक चित्र खींचना चाहता हूँ। परन्तु उसने कहा कि मैं ऐसे तस्वीर नहीं खिंचवा सकता। तब मैंने कैमरा ठीक करके कहा कि अच्छा, मैं सारी पहनता हूँ और आप तस्वीर खींच लीजिये। फोटो बहुत आवश्यक थी, क्योंकि सारी मुझे बहुत पसन्द आयी और सारी पहने हुए महिला का चित्र मैं मिस स्पैरो को भेजना चाहता था। मैं उससे प्रेम करता हूँ।
मैं तो सारी पहनना जानता नहीं था। गाइड ने मुझे सारी पहनायी और मेरा चित्र लिया गया। मगर फोटो खराब हो गया क्योंकि सारी कुछ ऊपर उठ गयी और दोनों पाँवों का पतलून दिखायी देने लगा।
पिछला पृष्ठ | पृष्ठ सारणी | अगला पृष्ठ >> |