बरकटुवोॅ रौद / अमरेन्द्र
"कुल्हड़िया चुनाव में खाड़ोॅ होय केॅ रहतै। ...कुल्हड़िया" आपनोॅ नाम केॅ याद करत्हैं ओकरोॅ मोॅन एकदम कस्सोॅ होय उठलै, "है नाम ज़रूरे कैथ टोली या बभन टोली आकि रजपुतानी टोलोॅ के लोगें राखलेॅ होतै। गुअर टोली के चौधरी परिवारो के भी करतूत हुएॅ पारेॅ। यहू भला कोय नाम होलै--कुल्हड़िया ...नै हमरोॅ बोली कुल्हाड़ी रँ, नै करतूत, तभौं हम्में कुल्हड़िया आरो जेकरा आँख न कान, ओकरोॅ दिपुआ नाम। शिवचन्नर के बेटा के सूरत सब्भैं देखवे करै छै, मतरकि नाम की छेकै--सुदर्शन।" ई सोचियै केॅ, आभी-आभी जे ऊ आपनोॅ नामोॅ सें कलपित्तोॅ हेनोॅ होय गेलोॅ छेलै, हाँसी पड़लै, "बड़का टोलोॅ के यहेॅ रँ रिवाजे रहलोॅ छै" वैनें मने-मन सोचलेॅ छेलै आरो सामनें में राखलोॅ मूढ़ी-कचरी के बीचोॅ में दाँया हाथ के बिचलका ओंगरी ढुकाय केॅ घुमावेॅ लागलोॅ छेलै।
"एतना टा मूढ़ी-कचरी सें भला की होय वाला छौ" अजनसिया नें कहलेॅ छेलै, "जानी ले कुल्हड़िया, माल सें चार गुना ज़्यादा चखना रहै छै, तभिये खाय-पीयै में मजा आवै छै, ठहर हम्में जंगली दा कन सें पाँच टका के आरो कचरी लै आवै छियौ।" ई कही केॅ अजनसिया जे गेलोॅ छेलै तेॅ आभी तांय नै लौटलोॅ छेलै, दस मिनिटोॅ सें ज़्यादा होय गेलोॅ होतै।
"लागै छै, वें बनलोॅ-बनैलोॅ के जग्घा पर ताजा छकवावेॅ लागलोॅ होतै, तबेॅ तेॅ आध घन्टे के बरोबर देर समझोॅ। भीड़-भाड़ में ताजा के चक्कर। अजनसिया केॅ समय-कुसमय के कोय ज्ञान नै छै...ज्ञान रहतियै तेॅ साधू महतो के सामने में ई कहतियै, 'कुल्हड़िया, अबकी तोरा इल्कशन में खाड़ोॅ होन्है छौ, छोॅ या खोॅ। फैसला होय केॅ रहना छै' अजनसिया के बातोॅ पर महतो की रँ कनखलोॅ छेलै, आरो एकरोॅ बाद की हुनी चुप्पे-चाप बैठलोॅ होतै, सब औजार भिड़ाय देलेॅ होतै। अखाड़ा के पुरानोॅ पहलवान छेकै, कोॅन दाँव-पेंच के इलिम नै छै, ...बाप रे बाप, ओत्ते बड़ोॅ लाग-भाग वाला मिसिर जी जें दिल्ली सें ओत्तेॅ बड़ोॅ मंत्री केॅ उतारी देलकै, ई मुर्दघट्टी रँ गाँव में, ओकरा तेॅ मात दै में देरे नै लागतै महतो जी केॅ; तेॅ भला हमरा हेनोॅ इग्गी-दुग्गी केॅ की बुझतै, मतरकि जे हुएॅ, अजनसिया के बातोॅ पर कनखलोॅ छेलै महतो जी ज़रूरे आरो कनखै के कारणो छै, होन्है केॅ नै...महतो बाबू के जत्तेॅ चलती रहौ कैथपट्टी आरो बभन टोली में, कुम्हार टोली, रजक टोली आरो बेेलदारी टोला में हुनकोॅ एक नै चलै वाला छै आरो जो ई तीन पट्टी केॅ मिलाय देलोॅ जाय, तेॅ की मजाल छै कि चुनाव के फैसला महतो जी के पच्छोॅ में होय जैतै" ई सोचिये केॅ कुल्हड़िया के आँखी में एक चमक आवी गेलै। ऊ हठाते एत्तेॅ गदगद होय गेलै कि अजनसिया के बिना ख्याल करल्हैं एक मुट्ठी चखना आपनोॅ गलफरोॅ फाड़तै वैमें राखी लेलकै। मुँह में चखना राखतैं वैनें जाँघी के बगलोॅ में राखलोॅ महुआ के बोतल दिश देखलेलकै, मतरकि आँख फेरी लेलकै। सोचलकै, एक बूँद भी कम देखतै, तेॅ कचकचोॅ करतै, यहू नै कि यै में पीवी केॅ पानी मिलाय देलोॅ जाय, मुँह में राखत्हैं ओकरा सब पता लागी जाय छै, दस टाका बेसी दै केॅ आनलेॅ छै, दोनों बोतल...फेनू, आबेॅ ओकरा आवै में देरिये कतना छै, ऐत्है होतैं" आरो ई सोचत्हैं, मुँहोॅ के चखना केॅ जेना-तेना कुचली-काचली निगली लेलकै। सवादोॅ के कोय सवाले नै छेलै। साथे-साथ वैनें मूरी-कचरी केॅ वहेॅ रँ समेटी देलकै, जेना अजनसिया समेटी गेलोॅ छेलै।
वैनें आँख उठाय केॅ एकपैरिया दिश देखलकै। अजनसिया के काँही छायाहौ तांय नै दिखैलै। जबड़ा आरो मसूड़ा में फँसलोॅ कचरी के कण केॅ वैनें जिह्ना सें लारी-लारी केॅ समेेटनें छेलै आरो फेनू ओकरा कंठोॅ के नीचें उतारी देलेॅ छेलै। मुँह केॅ फुर्सत मिलत्है वैनें आपनोॅ ठोरोॅ केॅ विचित्रो रूप देतें सोचलेॅ छेलै, "चार कचरी छकवाय में सौंसे दिन लगाय छै, तेॅ एकरा सें चुनावोॅ में टोला सिनी के लोग की छकैतै। ई चोट्टा आरो कुछ नै करतै, दस-पन्द्रह जुत्ता बीच रास्ता में सब के सामना दिलवाय देतोॅ आरो कुछ नै। बड़का-बड़का के तेॅ यै दंगल में थाह-पता ढेर लागै छै। मंचे पर भाषण देतें बम सें उड़ी जाय छै, तेॅ हमरा के पूछै छै। तैहाकरोॅ चुनाव छेकै, जबेॅ मुँहोॅ सें कोय उरेफ नै निकालै छेलै, आरो जो उरेफ नै निकालै छेलै, तेॅ बातो छेलै। आयकोॅ नेता सिनी हेनोॅ बाढ़-सुखाड़ के राशि निगलै वाला नै छेलै, नै घरढुक्की करैवाला--अखबारोॅ में साफ फोटू छपै छै, लाज छै! तभियो वहेॅ सिनी जीतै छै...जीतै वास्तें चाहियोॅ बानर सेना, इनरासन के परी और पैसा, आरो हमरोॅ पास की छै, एक अजनसिया आरो साँझकोॅ वक्ती के एक बोतल दारू। एकरोॅ इन्तजाम आयकल अजनसिये करै छै, नै तेॅ वहू नदारत। गिनलोॅ-गुथलोॅ टाका चुनाव वक्ती लेॅ सेती केॅ राखी देलेॅ छियै। आबेॅ जे एक बोतल महुआ के इन्तजाम नै करेॅ पारै छै, ऊ चुनाव वास्तें एत्तेॅ-एत्तेॅ टाका कहाँ सें लानतै। टाकाहौ की एक-दू लाख, कम-सें-कम तीन-चार लाख। एत्है-एत्है टाका होतियै तेॅ बड़का पार्टी सें टिकिट नै लै लेतिये--है निरदलीय। जे भी दस-पन्द्रह हजार जमा करलेॅ छेलियै, दिलो दा वाला अधकठिया खरीदै लेॅॅ, वहू ई अजनसिया खरच-वरच करवाय देतोॅ, आरो कुछ नै, दौड़ै-धूपै आरो नाम दाखिल करै में तेॅ आभी तांय पाँच हजार उड़ी चुकलोॅ छै। धन की छेकै, अरे ज़रा सें मुट्ठी सें खोलोॅ तेॅ ओकरा बीस जोड़ गोड़ निकली आवै छै, फेनू के ओकरा पकड़ेॅ पावेॅ।"
कुल्हड़िया एक क्षण लेली मनझमान होय उठलै, मजकि जल्दिये आपना पर काबू पैतें खुद केॅ समझैनें छेलै, "कोयरी धूपोॅ सें डरलै आरो गुआरोॅ पानी संे, तेॅ होय गेलै तरकारी उपजैलोॅ आरो भैंस पाललोॅ। चुनाव छेकै, दस पन्द्रह हजार गेलोॅ तेॅ समझोॅ कि घाम गिरी केॅ रही गेलै, यहाँ तेॅ बीस-पच्चीस लाख टाका उड़ी जाय, ई कहोॅ कि देहोॅ के सबटा खूने गिरी जाय छै, तभियो लड़वैय्या ठहरी नै जाय छै, तबेॅ हमर्है की दुख। आरो जों लगतें-पिलतें हम्मू निकली जाय छियै, तबेॅ तेॅ गिनतेॅ नी रहोॅ सीबियाय मकान आरो मारतें नी रहोॅ छापा। टेर लागत्है नुनुआ केॅ तबेॅ नी। टेरो लागतै तेॅ केसे नी करतै। केस खुलतें-खुलतें आरो सजा होतें-होतें की हम्में जिन्दे रहवै। सरकारी केस तेॅ नेता सिनी वास्तें खेलोड़। केशो बाबू के की होलै, भला ओत्तेॅ बड़ोॅ पार्टी के ओत्तेॅ बड़ोॅ मंत्री। कोॅन सीबियाय के दम छेलै घरोॅ में राखलोॅ सरकारी गोदाम के माल केॅ निकाली लेतियै। सामान कहाँ राखलोॅ छेलै आरो पुलिस छापा मारी रहलोॅ कहाँ! मंत्रियो खुश, विरोधियो खुश, जनताओ खुश आरो पुलिसो खुश--ई छेकै राजनीति के खेला। आरो जों ई पाशा हमरोॅ पच्छोॅ में आवी जाय छै तेॅ मत पूछ..." सोचतें-सोचतें ओकरा लागलै कि ऊ आबेॅ कमर आरो माथा पर हाथ रखी केॅ नाचेॅ लागतै। ऊ भीतर सें एकदम गनगनाय उठलै आरो वहेॅ खुशी में वैनें हाथ मूरी-कचरी दिश बढ़ैलकै, मतरकि ओकरा छूऐ सें पहिलें हटाय लेलकै; जेना ऊ धोखाहै में बिच्छू केॅ पकड़ै लेॅ जाय रहलोॅ रहै आरो ऊ संभली गेलोॅ रहेॅ। वैनें समझी लेलेॅ छेलै कि चखना सें चुटकियो भर उठाय के मतलब छै, अजनसिया के गोस्सा बढ़ैबोॅ।
"कचरी साथें फुलौड़ी छकवावेॅ लागलोॅ छेलियै, यही में देर लागी गेलै। की कहियौ मरदे, पर्व के मेला-ठेला रहेॅ कि इलेक्शन-मिलेक्शन के मेला-ठेला, सब सें ज़्यादा भीड़ जंगली के दुकानी पर" फुलौड़ी केॅ चूर करी मूरी सें मिलैतें अजनसिया कहलकै, "झूठ नै कहै छियौ, चुनाव में जों जंगली खाड़ोॅ भै जाव, तेॅ सब केॅ मात दै दै। चुनाव चिह्न होतै कचरी आरो घोषणा पत्र में लिखलोॅ जैतै--बड़का होटल बंद करी केॅ वै जग्घा में मूड़ी-घुंघनी के दोकान खुलवैलोॅ जैतै। हफ्ता में तीन रोज इच्छुक केॅ चखना मुफ्त दिलवैलोॅ जैतै।" कहतें-कहतें अजनसिया नंे जोर के ठहाका लगैनें छेलै आरो हाँसतें-हाँसतें कहनें छेलै "आबेॅ तेॅ हेने उलूल-जुलूल के घोषणा करलोॅ जाय छै, चुनाव जीतै लेॅ। देश-समाज जाव चुल्हा-भांड़ी में...अच्छा आपनोॅ घोषणा-पत्र में की छपतै, कुल्हाड़ी" हठाते अजनसिया गंभीर होय उठलोॅ छेलै।
"अरे हों, ई बातोॅ पर हमरा सिनी तेॅ विचारे नै करलेॅ छियै।" कुल्हड़िया नें चखना के एक बड़ोॅ फक्का मुँहोॅ में डालतें कहलकै। ई देखी केॅ अजनसियौं ओकरोॅ संे एक बड़ोॅ फक्का मुँहोॅ में डालतें पलास्टिक वाला गिलासोॅ में दारू केॅ ढालेॅ लागलै।
महुआ केरोॅ गंध बोतल सें निकलना छेलै कि दोनों के चेहरा फागुन में परास के फूल नाँखी खिली गेलै। अजनसियां पौआ गिलासोॅ में लगभग टापे-टुप दारू भरी देलेॅ छेलै। कुल्हाड़ियां उठाय केॅ ओकरा मुँहोॅ सें लगैवे करतियै कि अजनसिया रोकलकै, "ठहर, पहिलें गिलास तेॅ टकराव। अरे, मोॅर-मिनिस्टर बनवैं, कल मजलिस में पीवैं, आरो जों हेनें आदत रहतौ तेॅ आन शहरी नेता की कहतौ।" गिलास केॅ ओकरा गिलास सें छुलैतें अजनसियां कहलेॅ छेलै आरो एक घूंट मेंपूरे गिलास केॅ कंठोॅ के नीचें उतारी देलेॅ छेलै; जेन्होॅ कि कुल्हड़ियां।
दोनों एक क्षण लेली आँख मुनी केॅ मौन होय गेलोॅ छेलै, जेना कि कंठोॅ सें नीचंे उतरतें दारू के धार केॅ पहचानतें रहेॅ। आरो आँख मुनले कुल्हड़िया नें कहलकै, "हों; तेॅ तोहें घोषणा के बात करी रहलोॅ छेलैं, से तेॅ तोेंही सब जान। हम्में ठहरलियौ टिप्पा मार, ...ई तेॅ समझें कि जनतंत्र-गणतंत्र में हमरोॅ सिनी हेनोॅ आदमी राज करेॅ पारेॅ, नै तेॅ, गदहो देखी केॅ नै रेकै वाला छेलै। भगवान खूब सुख देॅ स्वर्ग में गान्ही बाबा आरो लेहरू जी केॅ, जे हेनोॅ शासन लागू करी केॅ गेलै। लेकिन बात यहाँ लेहरू जी के नै छै, बात यहाँ छै हमरोॅ।"
"मतरकि सबसें पहिलें बात उठै छै भोटर के आरो भोटर होय छै जात के, धरम के. आबेॅ सबसें पहिलें ई सोचना छै--दूसरा सिनी केॅ कोन-कोन जातोॅ के सहारा मिलेॅ पारेॅ। बाभन, राजपूत आरो वैश के सहयोग तेॅ मिलै सें रहलौ, ऊ तीनों तेॅ जैथौ भजप्पा आरो कांग्रेस में। इनलोॅ-गिनलोॅ केॅ छोड़ी दैं तेॅ कोयरी-कुरमी तीर में। पासवान, लोजपा में आरो मुसलमान लोजपा-कांग्रेस छोड़ी केॅ कन्हौं जावेॅ नै पारेॅ। यादव तेॅ लालू यादव के छेकै। लालटेन छोड़ी केॅ कन्हौं जावेॅ नै पारेॅ। बचलै कैथ, कैथोॅ केॅ पकड़िये केॅ की होतै। ओकरोॅ भोटे की छै, जन्नें लुढ़कौ, कोय अन्तर नै पड़ै छै, हेना में तोरोॅ ढिबरी केना जलतौ, पहिलें यै पर सोचना छै। फेनू तोरोॅ जातोॅ के वोटे कतना टा छौ कि नारा देलोॅ जाय--बेटी आरो वोट जात केॅ।" ई सब बात अजनसिया आँख केॅ मुनले-मुनले कोय भविष्य जानै में लीन योगी-मुनी हेनोॅ कहलेॅ छेलै।
"तेॅ की तोहें है सब बातोॅ पर पहिलें सें नै सोचलेॅ छेलैं, जे आय आठ-दस हजार खरच करवाय केॅ सोचै लेॅ कही रहलोॅ छैं।" अजनसिया के बातोॅ सें कुल्हड़िया के आँख खुली गेलोॅ छेलै, मजकि ओकरोॅ बातोॅ में बेचैनी के भास करियो केॅ अजनसिया नें बिना आँख खोलले कहलकै, "फिकिर नॉट कुल्हड़ी, फिकिर नॉट। इलाका में एतने टा जात थोड़े छै, अरे छत्तीस करोड़ देवता छै तेॅ समाज में छियत्तर करोड़ जात। जेना पियाज में परत-पर-परत रहै छै नी कुल्हड़ी, होन्है केॅ यहाँ जात में जात छै--राजपूत छै तेॅ वै में छै--जादन, भदौरिया, चौहान, बनौत, कछवाहा, केनवार, पछियारा... कायस्थ छै तेॅ कायस्थ में श्रीवास्तव, अम्बष्ठ, करन, राढ़ी... बाभन छै तेॅ बाभन में कनौनिया, गौड़, मैथिल, राढ़िये..., फेनू देखैं, राढ़ी कैथ छै तेॅ वहू में घोष, सिन्हा, मजूमदार, दास, दत्ता जत्तेॅ उपाधि, ओत्ते कैथ--सब पियाज के छिलका नाँखी, जखनी चाहें उतारी केॅ राखें। तोहें चीचोॅ सिनी केॅ देखलेॅ छै नी, जखनी धारा पाती चलै छै तेॅ एक-दूसरा के पुछड़ी मुँहोॅ में लेलेॅ, पैर-गोड़ पटकी दैं तेॅ सब तिल मिल।" ई कही अजनसिया खूब जोरोॅ सें हाँसलोॅ छेलै आरो कहलेॅ छेलै, "की समझलैं कुल्हाड़ी! खाली टाका चाहियोॅ। इलेक्शन की छेकै, टाका के खेल। तोहें की करलेॅ छैं, आरो की करवैं। ई देखै छै कोय। फुल प्रचार कर आरो टाका बहाव, फेनू देखैं खेल। आगिने सें आगिन लागै छै कुल्हाड़ी। एक तेॅ पन्द्रह हजार टाका के बललोॅ पर चुनाव लड़ै लेॅ चललोॅ छैं, वहू में निर्दलीय आरो चिंता करै छैं, लाख करोड़ के ...चल पहिलें एक-एक गिलास आरो गल्ला के नीचें उतार, ई सब बातोॅ में दिमाग ज़्यादा खरच होय छै। ज़्यादा सोचभैं तेॅ दोनों बोतल गंगाजल बनी जैत्हौ।"
अबकी कुल्हड़ियाँ हीं गिलासोॅ में दारू ढारलेॅ छेलै आरो आपना में गोठोॅ गिलास सें ज़्यादा नै ढारलेॅ छेलै। वैं जानै छै, अजनसिया डेढ़ोॅ बोतल पचाय लेतै तेॅ ऊक-बिक नै करतै, ओकरोॅ तेॅ अद्धा में ही मोॅन औल-बौल हुएॅ लागै छै। सें वैनें आपना संे बेसिये अजनसिया के गिलासोॅ में ढारलेॅ छेलै आरो आपनोॅ गिलास लै केॅ ओकरोॅ दिश बढ़ैलेॅ छेलै। यै पर अजनसिया कहलेॅ छेलै, "नै, जाम एक्के बार टकरैलोॅ जाय छै।"
ओकरोॅ बातोॅ सें कुल्हड़िया केॅ झेंप होलोॅ रहेॅ आकि आरो कुछ, से बात नै छेलै। आबेॅ ओकरोॅ मोॅन उनमनी होय चललोॅ छेलै; चखना-दारू पर कम, जमा पूँजी आरो खरचा पर ज़्यादा। ओकरा समझै में नै आवी रहलोॅ छेलै कि घंटा भरी पहिलें यही अजनसिया की-की रँ ढाढस दै वाला बात करी रहलोॅ छेलै, आरो इखनी एक गिलास ढारत्हैं बदललोॅ-बदललोॅ बात करेॅ लागलोॅ छै। "तबेॅ घंटा भरी के बाद आरो निसाँव चढ़ला पर यें यहू कहेॅ पारेॅ है चुनावी मेला-ठेला में तोरोॅ दुकान की चलै वाला छौ। अरे जहाँ आबेॅ बिजली सें चलैवाला तर-ऊपरी चलै छै, जैमें बम्बै के हीरोइन पतुरिया सें ज़्यादा भीड़ जुटावै छै, वैमें तोहें चाहै छैं कि कागज के घोड़ा नचाय केॅ भीड़ केॅ अपना दिश खीची लौं; है भला होय वाला छै। जुग-जमाना बदली गेलै, एक-एक करोड़ टाका लैकेॅ जितलोॅ दल के किश्मत पलटी दै छै...तोहें कथी लेॅ पड़लोॅ छैं कुल्हाड़ी है चुनावोॅ-पुनावोॅ के चक्कर में। तोरोॅ बचलोॅ दस-पन्द्रह हजार टाका तेॅ पच्चीस आदमी केॅ आपनोॅ पच्छोॅ में ही लानै पर पार होय जैतौ। है कि पचपन साठ वाला चुनाव छेकै कुल्हाड़ी।" कुल्हाड़ी नें ढेर सिनी बात एक्के साथ सोची लेलेॅ छेलै।
ओकरोॅ मनोॅ में कुछ शंका उठलोॅ छेलै, जेकरोॅ निदान लेली ऊ अजनसिया केॅ घूरलकै, जे आबेॅ गल्ला सें नीचें दुसरोॅ गिलास उतारी केॅ एकदम खामोश होय गेलोॅ छेलै; आपनोॅ दोनों हाथ केॅ पीछू करी आरो पिछुए आपनोॅ मूड़ी केॅ ज़रा सें झुकैलेॅ; जेना, मुनलोॅ आँखी सें सरंग देखतें रहेॅ।
"इखनी एकरा टोकना ठीक नै होतै। टोकला सें भारी बवाल। कही चुकलोॅ छै--निसाँव वक्ती दिमागी बात नै। आरो यहीं कहलेॅ छेलै कि चल एकान्ती में बैठी केॅ सब योजना तय करी लेलोॅ जैतै। छोटकी केॅ कही देलेॅ छियै--चुपचाप बोतल गाछी जड़ी में राखी दै लेॅ--वाँही पाँच रोजोॅ के पलान सोची लेलोॅ जेतै ...आरो इखनी सरंग हियाय रहलोॅ छै। ...कुछ नै होतै, परसुवे नाँखी सबटा पीवी लेतै आरो कहतै, ई सिनी बातोॅ पर दुसरोॅ दिन चर्चा। इखनी मूड नै खराब कर...कहीं हेनोॅ तेॅ नै, यैं...कोय ठिकानोॅ नै, आय भले ई हमरोॅ साथ छै, मतरकि पिछुलका बीस सालोॅ में ई कोॅन-कोॅन पार्टी के साथें नै रहलोॅ छै। कौन पार्टी केॅ यैं देवता के पार्टी नै बताय चुकलोॅ छै, कोॅन-कोॅन नेता केॅ यैं मसीहा नै कही चुकलोॅ छै, जेकरा हम्में जानै छियै कि हत्या करवाय में महीनो जेल काटी चुकलोॅ छै...आय वही अजनसिया हमरो लेॅ प्रचार करतै, भोट दिलैतै, लोगोॅ केॅ बतैतै--जबेॅ-जबेॅ धर्म के हानी होय छै, तबेॅ-तबेॅ कुल्हाड़ी हेनोॅ देवता नेता के अवतार होय छै--अधर्म आरो अन्याय सें जनता केॅ मुक्ति दै लेॅ।" आरो आखरी बात सोचत्हैं ओकरोॅ चेहरा फेनू सें खिलेॅ लागलै।
"कोॅन ठिकानोॅ, अजनसिया के बोली के जादू काम करिये जाय।" ई सोचत्हैं ओकरोॅ मोॅन गुदगुदाय उठलोॅ छेलै आरो खिललोॅ चेहरा सें वैनें दोनों हाथोॅ से एक-एक मुट्ठी चखना उठनें छेलै आरो दाँया हाथ के लगभग सबटा चखना मुँहोॅ में राखतें चबाबेॅ लागलोॅ छेलै। फेनू बाँयो हाथ के मुँहोॅ में लैकेॅ। बड़ी तेजी सें ओकरोॅ जबड़ा चलेॅ लागलोॅ छेलै। लागी रहलोॅ छेलै; जेना ऊ बड़ी तेजी सें बहुत कुछ बात सोची रहलोॅ रहेॅ। देखत्हैं-देखत्हैं वैनें गिलास वाला दारू केॅ मुँह सें नै लगाय केॅ पहिलें बोतल वालाहै गट-गट करी पीवी गेलोॅ छेलै आरो तबेॅ गिलासो वाला केॅ नै छोड़लेॅ छेलै।
कुल्हड़िया के माथोॅ हन-हन करेॅ लागलोॅ छेलै। आरो देह-हाथ एकदम इस्थिर। आँख दोनों एकदम बंद आरो बंद आँखी में सपना घूमेॅ लागलोॅ छेलै--ठेला पर एक ठो काठोॅ के कुर्सी छै, जेकरा पर कुल्हड़िया हाथ जोड़लेॅ बैठलोॅ होलोॅ छै, ...गल्ला में कन्डेली फूलोॅ के आठ-दस माला छै। ओकरोॅ आगू सें फटलोॅ कमीज केॅ कुछ हेनोॅ ढंग सें सीलोॅ गेलोॅ छै कि सबसें पहिलें लोगोॅ के नजर वहीं ठां पड़ेॅ...कुल्हड़िया के पीछू पाँच आदमी खड़ा छै, जे जोर-जोर सें कठपुतली नाँखी हवा में हाथ भांजतें नारा दै रहलोॅ छै--गरीबोॅ के नेता केन्होॅ होय, कुल्हड़ी भैया हेन्होॅ होय...ठेला के पीछू पचास लोग साथ दै रहलोॅ छै आरो सबसें आगू छै अजनसिया, जेना ऊ रेगिस्तान में कोय गाड़ी केॅ खींचतें ऊँट रहेॅ।
पर क्षण्हैं में कुल्हड़िया केॅ फेनू लागलै कि ऊ धीरेॅ-धीरेॅ कोय देवता के मूर्त्ति बनी गेलोॅ छै, आरो ओकरोॅ पीछू-आगू के सबलोग कीर्त्तन-भजन में लीन छै, सब जोर-जोर सें 'जय-जय' के नारा लगाय रहलोॅ छै। पंडी जी हाथ उठाय-उठाय केॅ कही रहलोॅ छै--मूर्त्ति विसर्जन के समय होय रहलोॅ छै, जल्दी करोॅ। कुल्हड़ियाँ देखलकै, ओकरोॅ ठेला गाँव के बड़की पोखरिया दिश बढ़ी रहलोॅ छै।
वैनें आपनोॅ माथोॅ केॅ एक झटका देलेॅ छेलै, आरो फेनू वहीं सें सोचना शुरू करलेॅ छेलै--अजनसिया आगू-आगू बढ़ी केॅ भीड़ केॅ समझाय रहलोॅ छै--सौसें इलाकां, ई भितरिया मोॅन बनाय लेलेॅ छै कि अबकी मुहर कुल्हाड़ी नेता के ढिबरी पर। बस आबेॅ तोरा सिनी के आशीर्वाद चाहियोॅ।
कुल्हड़िया के अपने-आप दोनों हाथ उठी गेलोॅ छेलै, मजकि निसाँव एत्है जमी गेलोॅ छै कि ऊ वाँही चित्त होय केॅ लेटी गेलै।