बरसात और बाहुबली वाला कैमरा / जयप्रकाश चौकसे

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बरसात और बाहुबली वाला कैमरा
प्रकाशन तिथि :07 अगस्त 2015


राज कपूर की 'बूट पॉलिश' में एक क्रिश्चियन पात्र जॉन चाचा झोपड़पट्‌टी में बच्चों को भीख मांगने के बदले बूट पॉलिश करने के लिए प्रेरित करता है। वह अवैध शराब का धंधा करता है और एक दिन पकड़ा जाता है। कई बार सजायाफ्ता रहने के कारण वह जेल में अपने समान दस गंजों के साथ एक कक्ष में है। सारे गंजों ने समय-समय पर बाल उगाने वाले नुस्खे आजमाएं हैं। जॉन चाचा कहता है कि बारिश से फसलें उगती हैं, शायद बाल भी उगे और वह 'लपक झपक तू आ रे बदरवा, तेरे घड़े में पानी नहीं है, तू पनघट से भर ला' गाता हैं गीत के अंत में वर्षा होती हैं। सारे गंजे खुश हैं और एकाएक जॉन चाचा यह सोचकर दुखी हो जाता है कि झोपड़पट्‌टी में पानी भर गया होगा और भूख से बिलबिलाते बच्चे ठंड से कांप रहे होंगे। उसकी मासूमियत की हद है कि वह अपने 'मेघ मल्हार' गाने के कारण वर्षा होने से दु:खी है।

प्राकृतिक आपदा हो या दंगे हों, हमेशा साधनहीन गरीब आदमी का ही नुकसान होता है। बकौल निदा फाजली बरसात का आवारा बादल नहीं जानता कि उसे किस छत को भिगोना और किसको बचाना है। हम कल्पना करें कि आवारा बादल में उस तरह का कैमरा लगा है जिस तरह के कैमरे से 'बाहुबली' शूट की गई है तो हम क्या दृश्य देखते हैं। साधन सम्पन्न व्यक्ति के घरों में भजिए तले जा रहे हैं या उनका ड्राइवर मंगोड़े की दुकान के सामने लगी कतार में उनके लिए मंगोड़े खरीदकर लाता है। टेलीविजन, जिसे शायद उसके दर्शक के कारण 'बुद्धू बक्सा' भी कहा जाता है, के सामने सपरिवार भजिए खाए जा रहे हैं और चाय की चुस्कियों के साथ गपशप की जा रही है।

बादल में स्थित कैमरा इस दृश्य के साथ उन साधनहीन लोगों के घर का दृश्य भी दिखा रहा है, जिनमें कमर तक पानी घुस आया है और उल्टे-सीधे बर्तन तैर रहे हैं, अनाज पानी में बह गया है कुछ अबोध शिशु बह गए हैं और उनकी मां का रूदन-क्रंदन बादल की गरज से ज्यादा है। इस तरह दो विपरीत दशाओं को दिखाने को जक्सटापोजिशन ऑफ शॉट्स कहते हैं। मसलन बिमल रॉय की देवदास मे नायक के शराब पीने के साथ ही इंजन में ईंधन डाला जाता है, चलती हुई गाड़ी का दृश्य है। मुंबई में लगभग पच्चीस लाख लोग ताउम्र फुटपाथ पर रहते है और इन सदैव जागने वाली सड़कों के फुटपाथ पर उन्हें बच्चें भी होते हैं। भारी बरसात में ये लोग किस तरह जीवन बसर करते हैं। ये खदेड़े हुए लोग कहां से आएं हैं? क्या विराट आर्थिक खाई की कोख से जन्में हैं या अंधी व्यवस्था की सौतेली संतानें हैं। कौन कहता है कि धर्मवीर भारती का महाभारत से प्रेरित अंधा युग समाप्त हो गया। सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलयुग - इन चारों के समानांतर चला है अंधा युग और आज भी चल रहा है। बहरहाल, बादल में बसे बाहुबली नुमा कैमरे में एक्स-रे की क्षमता भी है तो साधनहीन लोगों की कराहती बस्तियों में वह लोगों की अंतड़ियों का भीतरी दृश्य भी दिखाता है, भूख और अभाव से भरी अंतड़ियां याद दिलाती है शैलेंद्र की पंक्तियां 'आंधियों जली जीवन बाती, भूख ने बड़े प्यार से पाला'। प्राकृतिक और मानव निर्मित विपदाओं को सदियों से झेलता हुआ यह शस्त्रविहीन जीवट वाला व्यक्ति कब से टिका है इस असमान युद्ध क्षेत्र में यह दुनिया का सबसे बड़ा अजूबा है। इसके विपरीत साधन सम्पन्न व्यक्ति के अपने दु:ख हैं, उन बेचारों को अतिवृष्टि के दिनों में अपने थोड़े से सेवकों का ही काम पर आना, कितना असुविधाजनक लगता है परंतु अतिवृष्टि उन्हें भी इस तरह से परेशान करती है। अमीरजादों की विदेशी गाड़ियां कीचड़ से सन जाती हैं और सड़कों पर भरा पानी उनकी कारों के इंजन में घुस आता है तो उन्हें बाहर आकर अवाम के साथ कुछ समय बिताना पड़ता है। निदा फाज़ली का बादल इतना आवारा भी नहीं है।

कम्युनिज्म के पुरोधा का भरोसा मजदूर और कृषक पर था कि वे क्रांति करेंगे परंतु वे भी अपनी आय के दायरे में अय्याश हो गए हैं। वह पुरोधा अपनी कब्र में तिलमिलाता होगा जब साधन सम्पन्न व्यक्ति ही महज अपनी सुरक्षा की खातिर ही सही, आर्थिक खाई को कुछ हद तक पाटने का प्रयास करेगा, क्योंकि गरीब बस्तियों में फैले रोग के कीटाणु उसकी हवेली के सुरक्षा गार्ड के रोके नहीं रुकेंगे। यह भी गौरतलब है कि बादल रूपी कैमरे से उतारी फिल्म सेंसर द्वारा पारित ही हो। अत: वे 'मुतमइन रहें कि पत्थर पिघल नहीं सकता, यह कैमरा तो बेकरार है आवाज में असर के लिए', दुष्यंत कुमार से क्षमा याचना सहित।