बर्फीले मौसम में ख़ोशा-ए-गंदुम / जयप्रकाश चौकसे

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बर्फीले मौसम में ख़ोशा-ए-गंदुम
प्रकाशन तिथि : 31 दिसम्बर 2020


इस वर्ष के आखिरी दिन फिल्मों की सफलता का लेखा-जोखा केवल पहले 2 महीने के आधार पर बनाने का कोई खास अर्थ नहीं रह जाता। रणबीर कपूर और रणवीर सिंह लोकप्रिय सितारे हैं। इनके साथ, इनके बाद प्रवेश करने वाले आयुष्मान खुराना, राजकुमार राव और विकी कौशल लोकप्रिय हैं परंतु वे अवाम में वैसा जुनून पैदा नहीं करते जैसा सलमान खान, आमिर खान और शाहरुख खान ने किया था। अमिताभ बच्चन और अनिल कपूर ने अपनी लोकप्रियता बनाए रखी है। आलिया भट्‌ट, भूमि पेडनेकर और तापसी पन्नू लोकप्रिय हैं परंतु दीपिका पादुकोण और प्रियंका चोपड़ा का चुंबकीय प्रभाव उनके पास नहीं है। यह संभव है कि कोरोना काल खंड ने लोकप्रियता की लहर को स्पंदनहीन बनाए रखा।

राजकुमार राव, आयुष्मान खुराना और विकी कौशल सक्षम कलाकार हैं परंतु मास हिस्टीरिया पैदा करने वाला एक्स फैक्टर उनके पास नहीं है। अक्षय कुमार और अजय देवगन क्रिकेट की भाषा में भरोसा करने लायक ऑलराउंडर हैं जैसे क्रिकेट में जडेजा हैं। मौजूदा क्रिकेट टीम में सुनील गावस्कर, कपिल देव और सचिन तेंदुलकर के स्तर के खिलाड़ी केवल विराट कोहली हंै परंतु विगत कुछ दिनों से उनका बल्ला लगभग खामोश है और कभी-कभी वे अच्छा स्कोर बना कर यह संदेश देते हैं कि वे गूंगे नहीं हैं। इस कालखंड में केवल राजनीति के क्षेत्र में जुनून जगाने वाले कुछ नेता हैं। उन्होंने अपनी चुंबकीय शक्ति को संकीर्णता के गलियारे में ले जाकर स्वयं अपने को हानि पहुंचाई है। कोरोना, बेरोज़गारी और व्यवस्था के लुंज पड़ जाने के कारण अवाम हतप्रभ है और लगता है मानो उनका पैर भूलन कांदा पर पड़ गया है। पाठकों को स्मरण करा दें कि छत्तीसगढ़ के जंगल में ‘भूलन कांदा’ की लोक गाथा है कि उस पर अनजाने पैर पड़ जाने से मनुष्य स्थिर बना रहता है और किसी अन्य व्यक्ति के स्पर्श से सामान्य हो पाता है। संजीव बख्शी ने इस विषय पर लिखा है।

वर्तमान में चावल के दाने के पक जाने से पूरी बिरयानी को तैयार हो जाना नहीं मान सकते। चावल का एक दाना, दल बदलू हो सकता है। अवतार अवधारणा भी हीरो मिथ को मजबूत करती है। यह सारे खेल इस तरह से जन्मे हैं कि स्वतंत्र विचार शैली और तर्क सम्मत दृष्टिकोण का अभाव बना रहे। हम भीड़ बनते हुए हांके जाने को सुविधाजनक मानते रहे। भय का हव्वा बनाए रखना व्यवस्थाओं को टिकाए रखता है। इस तरह की बात की प्रशंसा की जाती है कि एक व्यक्ति ने गेहूं के दाने पर पूरा श्लोक लिख दिया। इसे पढ़ना कितना कठिन है और अब इस दाने को खाया भी नहीं जा सकता। फसल पर कानून बना दिए गए। इसके तहत किसान की फसल चुनिंदा कारपोरेट खरीद लेेंगे और अवाम तक यह 100 गुना मुनाफ़ा लेकर पहुंचेगी। दरअसल यह आंदोलन अवाम की भलाई के लिए है और वह अवाम अब अपना हित भी जानना नहीं चाहता है। प्राचीन नशे में सब गाफिल हैं। यह रहस्यमय है कि किसान आंदोलन इतनी अधिक ठंड में भी किस आग से आज भी दहक रहा है। संभव है कि इक़बाल का शेर कुछ सहायता करे,‘जिस खेत से दहकां को मयस्सर नहीं रोज़ी, उस खेत के हर ख़ोशा-ए-गंदुम (गेहूं की बालियां) को जला दो।’