बलवीर सिंह की अघोषित बायोपिक ‘गोल्ड’ / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 27 मई 2020
हॉकी के खिलाड़ी बलवीर सिंह का निधन हो गया। भारतीय हॉकी टीम के सेंटर फॉर्वर्ड के द्वारा किए गए गोलों की संख्या क्रिकेट के रनों की तरह बड़ी है। बलवीर सिंह ने 1948, 1952 और 1958 में आयोजित ओलिंपिक में भाग लिया और टीम ने गोल्ड मेडल जीते। हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद की परंपरा के बलवीर सिंह का हॉकी गेंद पर कुछ ऐसा नियंत्रण रहा मानो उनकी हॉकी स्टिक में चुंबक लगा हो। बलवीर सिंह मैदान पर गेंद लेकर दौड़ते तो लगता था मानो वे शास्त्रीय नृत्य कर रहे हों। बलवीर सिंह ने हॉकी के खेल को तिलस्म में बदल दिया था। उन्होंने लगातार तीन ओलिंपिक में भारत का गौरव बढ़ाया और सन् 1975 की हॉकी टीम के वे कोच थे। इस तरह तीन दशक तक वे भारतीय हॉकी के कर्णधार रहे। सन् 1948 का ओलिंपिक लंदन में आयोजित था और पहली बार तिरंगा वहां फहराया गया। भारतीय हॉकी टीम का कप्तान बलवीर सिंह को कम अवसर दे रहा था। हमारे हर संगठन में संकीर्णता के हामी आपसी क्लेश कराते हैं। भारत के हॉकी दर्शकों ने बलवीर सिंह के साथ न्याय किए जाने की प्रार्थना की और लंदन स्थित भारतीय दूतावास में नियुक्त वी.के.कृष्ण मेनन ने दबाव डालकर बलवीर सिंह को न्याय दिलाया। उन्हें टीम में स्थान मिला और उन्होंने निर्णायक गोल किए।
ज्ञातव्य है कि बर्लिन में आयोजित ओलिंपिक 1936 को फिल्माने का अधिकार वृत्तचित्र बनाने वाली रैनी रेफिन्सथल को दिया गया था। ‘ओलिंपिक एक और दो’ ऐसे वृत्तचित्र हैं, जिसमें कथा फिल्मों के समान रोचकता और सनसनी है। रैनी रेफिन्सथल हिटलर की प्रिय फिल्मकार रहीं। उन्होंने अपने वृत्तचित्रों में हिटलर को इस तरह प्रस्तुत किया मानो धरती पर कोई अवतार आ गया हो।
हिटलर के प्रचार मंत्री गोएबल्स की झूठ को सत्य की तरह प्रस्तुत करने की शैली आज भी जीवित है। मीर तकी मीर ने इस झूठ के बारे में लिखा है- ‘अय झूठ आज शहर में तेरा ही दौर है शेवा (चलन) यहां सभी का, यही सबका तौर है अय झूठ तू शुआर (तरीका) हुआ सारी खल्क (दुनिया) का, क्या शाह का वजीर का, क्या अहले दल्क (जोगी) का अय झूठ तेरे शहर में ताबाई (अधीन) सभी मर जाए क्यों न कोई वे न बोले सच कभी।’ स्मरण रहे कि शायर मीर तकी मीर 18वीं सदी के शायर हुए हैं। सृजनशील व्यक्ति त्रिकालदर्शी भी होते हैं।
फरहान अख्तर ने फिल्मकार रीमा कागती को निर्देशन का अवसर दिया। उन्होंने सन् 1948 ओलिंपिक के हॉकी पर अक्षय कुमार अभिनीत फिल्म ‘गोल्ड’ बनाई। अक्षय कुमार ने कोच की भूमिका अभिनीत की। दरअसल इस पात्र की प्रेरणा फिल्मकार को 1936 में सहायक कोच रहे एन.एन.मुखर्जी से प्राप्त हुई। यह व्यक्ति 1948 में कोच बना। फिल्म में कोच का नाम तपनदास रखा गया है। स्वतंत्रता प्राप्त होने के मात्र एक वर्ष पश्चात हॉकी टीम के बनने और भाग लेने की संभावना कम थी। विभाजन के कारण खिलाड़ी भी बंट गए थे। तपनदास परिश्रम करके टीम बनाता है, अभ्यास की व्यवस्था करता है। फिल्म में तपनदास की पत्नी की भूमिका बंगाल की कलाकार मौनी रॉय ने अभिनीत की। वह एक व्यावहारिक स्त्री है और पति के हॉकी उन्माद को पसंद नहीं करती। परंतु जब प्रशिक्षण कैम्प में भोजन बनाने के लिए व्यक्ति नहीं मिलते तो पत्नी सभी खिलाड़ियों के लिए भोजन बनाती है। एयरपोर्ट पर भारतीय और पाकिस्तानी खिलाड़ी एक-दूसरे के गले लगते हैं। अंग्रेज अधिकारी को लगता है कि ये एक-दूसरे का गला काटेंगे। राजनीतिक लामबंदी के परे मानवीय करुणा बहती है। भारत-पाक टीमों को एक ग्रुप में रखने का षड्यंत्र भी विफल कर दिया जाता है।
टीम के पास दो सेंटर फॉर्वर्ड हैं और बलवीर को अवसर नहीं दिया जाता। कोच तपनदास तिरंगा दिखाता है और कहता है कि आपसी सहयोग के बिना यह तिरंगा इंग्लैंड में नहीं फहरा पाएंगे। अत: बलवीर से प्रतिस्पर्धा रखने वाला खिलाड़ी स्वयं आगे आकर बलवीर को अवसर देता है और बलवीर सिंह निर्णायक गोल मारते हैं।
एक मैच के समय बारिश होने के कारण भारतीय खिलाड़ियों के पैर फिसलते हैं, क्योंकि उन्हें विशेष जूते नहीं दिए गए। कोच खिलाड़ियों से आग्रह करता है कि जूते-मोजे उतारकर खेलें। यह तरकीब कारगर होती है। फाइनल में बलवीर सिंह ही निर्णायक गोल मारता है। एक दृश्य में आपसी प्रतिस्पर्धा को परे रखकर पास दिया जाता है। बलवीर भी एक अवसर अपने साथी को देता है। ज्ञातव्य है कि इसी के समान दृश्य महिला हॉकी टीम में भी है। फिल्म है ‘चक दे इंडिया’।