बलिदान / रघुविन्द्र यादव

Gadya Kosh से
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चाय पीने के लिए नव यौवना ने कुल्हड़ को होंठो से लगाया तो वह बहुत खुश था। मगर कप से उसकी ख़ुशी देखी न गयी, बोला "एक सुंदर लड़की के होंठों से लगकर इतना क्यों इतरा रहे हो? थोड़ी देर में फेंक दिए जाओगे कूड़े के ढेर में। यह तो हमारा ही भाग्य है जो रोज नयी नयी बालाओं के लबों से चिपकते हैं।"

"जिसे कोई भी और कभी भी अपने लबों से लगा ले उसका भी क्या जीना? हमने तो केवल इसी सुन्दरी के लिए खुद को अंगारों में झोंका था और अब इसी के हाथों माटी में मिल जायेंगे। तुम न किसी एक के हो सकते हो न पुन: माटी में मिल सकते हो। तुम्हारा भी क्या भाग्य है?" कुल्हड़ ने कहा और मुस्कराते हुए माटी में मिलने के लिए चल दिया।