बवंडर बाहर-भीतर (समीक्षा) / अभिमन्यु अनत
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समीक्षा:नितिका गुप्ता
अभिमन्यु अनत का कहानी-संग्रह ’बवंडर बाहर-भीतर’ सन् 2002 में प्रकाशित हुआ। इसमें चार लघुकथाएँ और तेरह कहानियाँ संकलित है। इस कहानी-संग्रह में मॉरिशस के समाज में उठ रहे बवंडर को उद्घाटित किया गया है। यह बवंडर वहाँ के लोगों को बाहर और भीतर दोनों तरफ से मथ रहा है। ’इतिहास का वर्तमान’ कहानी में मजदूरों पर हो रहे अत्याचारों को चित्रित किया गया है। इसमें काले व्यक्ति का गोरी लड़की से प्रेम का भी जिक्र किया गया है। यह प्रेम विवाह में परिणत नही हो पाता। ’वह तीसरी तस्वीर’ कहानी में राजनीति में जातिवाद के बोल-वाले का चित्रण किया गया है। कहानी का नायक ‘जीवन‘ कहता है कि ’मुझे इसलिए प्रधानमंत्री के चुनाव-क्षेत्र से चुनाव लड़ने के लिए चुना गया है, क्योंकि राजनीति में पैसे और दिमाग से कहीं अधिक जरूरत जाति की होती है। इस देश के सभी चुनाव जातिगत समीकरण के आधार पर ही तो जीते जाते हैं।’ वर्तमान समय मे नेता वोट बैंक के लिए किसी भी प्रकार का प्रपंच रचने को तैयार रहते हैं। साथ ही ’आन-रक्षक’ कहानी में राजनीति की आड़ मे नेताओं द्वारा किए जा रहे नशीली दवाओं के व्यापार का यथार्थ चित्रण प्रस्तुत किया गया है। अभिमन्यु अनत जगह-जगह मुहावरों, कहावतों और लोकोक्तियों का प्रयोग करते हैं, जिससे भाषा में सजीवता आ जाती है जैसे-बाल बाँका ना होना, पानी नाक तक पहुँचना, प्राण जाय पर वचन न जाए, ईद का चाँद होना आदि। वह कहानियों में पौराणिक पात्रों और कथाओं का भी जिक्र करते हैं जिससे उनके धार्मिक ज्ञान का पाठकों को आसानी से अंदाजा हो जाता है।